दो आंसू ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
हर बार मुझेमिलते हैं दो आंसू
छलकने देता नहीं
उन्हें पलकों से ।
क्योंकि
वही हैं मेरी
उम्र भर की
वफाओं का सिला ।
मेरे चाहने वालों ने
दिया है
यही ईनाम
बार बार मुझको ।
मैं जानता हूं
मेरे जीवन का
मूल्य नहीं है
बढ़कर दो आंसुओं से ।
और किसी दिन
मुझे मिल जायेगी
अपनी ज़िंदगी की कीमत ।
जब इसी तरह कोई
पलकों पर संभाल कर
रोक लेगा अपने आंसुओं को
बहने नहीं देगा पलकों से
दो आंसू ।
1 टिप्पणी:
...बढ़कर दो आंसुओ से....
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