अगस्त 07, 2012

मुझे लिखना है ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

    मुझे लिखना है  ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

कोई नहीं पास तो क्या
बाकी नहीं आस तो क्या।

टूटा हर सपना तो क्या
कोई नहीं अपना तो क्या।

धुंधली है तस्वीर तो क्या
रूठी है तकदीर तो क्या।

छूट गये हैं मेले तो क्या
हम रह गये अकेले तो क्या।

बिखरा हर अरमान तो क्या
नहीं मिला भगवान तो क्या।

ऊँची हर इक दीवार तो क्या
नहीं किसी को प्यार तो क्या।

हैं कठिन राहें तो क्या
दर्द भरी हैं आहें तो क्या।

सीखा नहीं कारोबार तो क्या
दुनिया है इक बाज़ार तो क्या।

जीवन इक संग्राम तो क्या
नहीं पल भर आराम तो क्या।

मैं लिखूंगा नयी इक कविता
प्यार की  और विश्वास की।

लिखनी है  कहानी मुझको
दोस्ती की और अपनेपन की।

अब मुझे है जाना वहां
सब कुछ मिल सके जहाँ।

बस खुशियाँ ही खुशियाँ हों 
खिलखिलाती मुस्कानें हों।

फूल ही फूल खिले हों
हों हर तरफ बहारें ही बहारें।

वो सब खुद लिखना है मुझे
नहीं लिखा जो मेरे नसीब में।

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