सितंबर 07, 2024

बेटिकट का सुःख दुःख ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

         बेटिकट का सुःख दुःख ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

चाहने से सभी कुछ हासिल नहीं होता है कीमत चुकानी पड़ती है दुनिया में हर चीज़ की मगर कुछ चीज़ें जो अनमोल नहीं भी होती कोशिश करने पर भी हर किसी को हासिल नहीं होती मानव के खुश होने निराश होने का आधार प्रतीत होती हैं । बस या रेलगाड़ी में बिना टिकट यात्रा का अनुभव अलग अलग होता है लेकिन चुनावी खेल में टिकट नहीं मिलने पर मैदान में उतरना सभी को नहीं आता है । संसद चुनाव में जिस दल की सरकार बनने की संभावना दिखाई देती है उस का टिकट मोक्ष से बढ़कर लगता है तो राज्य के चुनाव में किसी विधानसभा चुनाव में स्वर्ग का द्वार खुलता लगता है । राजनेताओं की कहानी की विडंबना यही है कि पल भर में ऊपर से नीचे पहुंच जाते हैं जबकि नीचे से ऊपर जाने में सौ खतरे उठाने पड़ते हैं ज़िंदगी का सभी कुछ दांव पर लगाना पड़ता है । नेता गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं मगरमच्छ की तरह आंसू बहाते हैं अक़्सर लेकिन कभी कभी बेबसी में भी आंखें भर आती हैं आंसू छलक आते हैं । टीवी वाले कराह पड़ते हैं कहते हैं आप क्यों रोये रोयें आपके दुश्मन जनता है रोती रहती है , रुलाने वाला खुद रोने लगता है तो लगता है जैसे उनके अश्क़ चांद तारों को डुबो देंगे और फ़ना हो जाएगी सारी खुदाई , आप क्यों रोये । ये नज़ारा देख कर इक पुरानी रचना याद आई है विषय अलग है शीर्षक को छोड़ कुछ भी मेल नहीं खाता फिर भी जो कभी अप्रकाशित रही उस से लेखक का मोह जाता नहीं है । रचना है बेटिकट यात्रा का सुःख बहुत पहले नवभारत टाइम्स अख़बार में छपी थी । पेश है वही शुरुआत और अंत आधुनिक संदर्भ में नया है । 
 
कुछ लोग बेटिकट यात्रा का जोखिम उठा लेते हैं , पकड़े गए तो दस गुणा जुर्माना या कैद का विकल्प होता है जबकि कुछ लोगों को अधिकार मिला होता है कि वो बिना टिकट यात्रा कर सकते हैं । साहित्य अकादमी का निमंत्रण पत्र मिलता है जिस में लेखक को आने जाने का किराया देने की बात के साथ इक और बात भी लिखी होती है कि जिनको सरकार से मुफ्त यात्रा की सुविधा मिली हुई है उनको ये राशि नहीं दी जाएगी । पुलिस विभाग का परिवहन विभाग से झगड़ा चलता रहता है मगर पुलिस विभाग और परिवहन विभाग के परिवार से संबंध रखना टिकट नहीं लेने का आधार और अधिकार रहता है । पत्रकारों की बात अलग है उनको इतना नहीं बहुत कुछ और चाहिए जिस की कोई सूचि बन नहीं सकती पत्रकार होने का तमगा पास हो तो कोई कठिनाई रास्ते में नहीं आती है । नेता अधिकारी सभी खुद उपलब्ध करवाते हैं जो भी चाहो यही इक कार्य है जिस में मनचाही मुराद पूरी होना अनिवार्य शर्त है । हरियाणा में हमेशा कोई शुरुआत होती है कुछ साल से महिलाओं को सरकारी बस में राखी के दिन बिना टिकट यात्रा का प्रावधान किया गया है जो शायद महिलाओं को कुछ अनुभव भी करवाता है निःशुल्क कुछ मिलना मुसीबत भी लगता है । हरियाणा की राजनीति बाहरी तो क्या हरियाणवी लोग भी समझ नहीं पाए कभी । हरियाणवी लोकतंत्र लठतंत्र नहीं न ही प्रजातंत्र जैसा है ये पारिवारिक विरासत का बोझ है जिसे जनता को ढोना पड़ता है विवश होकर ।
 
इक घटना पुरानी है नाम को छोड़ देते हैं , रेल मंत्री के सास ससुर बिना टिकट यात्रा करते पकड़े गए । इस में उनको कोई गलती नहीं थी बस अपनी बेटी दामाद को पहले बताते तो टिकट पूछना तो दूर है रेलवे स्टेशन पर अधिकारी हाल चाल जानने सुविधा उपलब्ध करवाने को तैयार रहते । रेलवे विभाग परिवहन विभाग को नेताओं के परिवार के सदस्यों की जानकारी मिलनी चाहिए । किसी माई के लाल में हिम्मत नहीं जो पत्नी से ये कहे की तुम्हारे मायके वालों ने मुझे कितनी मुसीबत में डाल दिया है , हद से हद यही कहते हैं कि अपने मायके वालों से कह दें कि कोई यात्रा करनी हो तो मुझे पहले बता दें ताकि उनको आसानी होगी । हमारे राज्य में बात बिल्कुल अलग है जब भी जो भी नेता सत्ता में होता है बाप भाई चाचा ताऊ साला बहनोई मामा से दूर के नाते वाले रिश्तेदार होने का ढिंढोरा पीटते रहते हैं , हर दिन हर किसी को धमकाते हैं जानते नहीं मैं कौन हूं । शहर गांव गली सभी उनको इसी तरह जानते हैं अन्यथा कोई उनकी पहचान नहीं होती है । मेरे शहर  में आधे लोग ख़ास इसी कारण समझे जाते हैं बाकी आधे बाप दादा की ज़मीन जायदाद से जाने जाते हैं अन्यथा वह लोग शून्य ही होते हैं । लॉटरी पर कभी प्रतिबंध लगाया जाता है कभी सरकार खुद यही करती है लेकिन लॉटरी का टिकट खरीदना आदत होती है आसानी से धन कमाने की आजकल नाम बदल कर करोड़पति बनने का शो या ऐप्प्स पर जाल फैंकने में कौन शामिल नहीं है ।  
 
चुनाव में टिकट मिलने से जीत होना ज़रूरी नहीं है फिर भी शासक दल की टिकट मिलना आर्थिक रूप से लाभकारी होती है इसलिए भले लग रहा हो सरकार नहीं बनने वाली तब भी टिकट मिलने को कोई कोशिश छोड़ते नहीं है । दल से मिलने वाली धनराशि का कोई हिसाब किताब नहीं होता जैसे जब सरकार बनने का भरोसा होता है तब पैसे दे कर भी टिकट खरीदी जाती है । कई नेता पहले करोड़ों देते हैं टिकट पाने को अगली बार दल वाले टिकट देते हैं साथ कई गुणा धनराशि भी चुनाव लड़ने को । मगर कुछ बदनसीब होते हैं जिनको दल फिर से टिकट नहीं देता क्योंकि उसकी जगह कोई और अपनी शतरंज पहले बिछा चुका होता है । राजनीति की यात्रा में भी सावधानी रखना ज़रूरी है अन्यथा दुर्घटना घटते देर नहीं लगती है । ताश की बाज़ी में पत्तों की तरह सही पत्ते मिलना टिकट कब किस से मिला इस पर निर्भर करता है । निर्दलीय चुनाव लड़ने में जीत कर तभी अहमियत बढ़ती है जब किसी को भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हो तब घोड़ा मंडी में हर नस्ल की कीमत बराबर समझी जाती है । आज़ाद उम्मीदवार त्रिशंकु विधानसभा में नायक होते हैं ।   
 
 Haryana Election 2024: कांग्रेस में दागी और दो बार चुनाव हारने वालों का  कटेगा पत्‍ता; पार्टी किन नेताओं को देगी टिकट? - Haryana Election 2024  Congress will not give tickets to ...

सितंबर 04, 2024

रंग बदलती दुनिया ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

      रंग बदलती दुनिया ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

  चुनावी राजनीति की बात है मौसम रंगीन है ,  नज़र आये चाहे कुछ भी समझ नहीं आये नज़ारा हसीन है । संख्या अनगिनत है चुनाव में सभी मैदान में उतरने को तैयार हैं जिस भी दल से टिकट मिल जाए उसे लेकर विचार बदल जाते हैं । जीत हार बाद की बात है अवसर मिलने की बात है कितनी हसीं मुलाक़ात है चांद भी है और उनका साथ है वाह भाई वाह क्या बात है । फूल है हाथ में , हाथ छोड़ना नहीं , ऐसा जज़्बात है इक यही खेल है जिसमें होती करामात है बिन बादल बरसती नोटों की बरसात है । हमारा देश और समाज कभी चलता था सोच समझ कर कुछ सार्थक पहले से बेहतर बनाने की दिशा में कोशिश करते हुए । लेकिन अब लगता है जैसे हम ठहर गए हैं किसी तालाब के पानी की तरह बहना दरिया नदिया की तरह भूल गए हैं । जिसे भी देखते हैं खुद की खातिर कोई अवसर ढूंढता है अन्य सभी को पीछे छोड़ आगे बढ़ना चाहता है , इक कारवां था जिस में तमाम लोग शामिल थे उसे बिखरने दिया मतलब की खातिर । भीड़ है फिर भी हम सभी अकेले ही नहीं अजनबी लगते हैं खुद को भी पहचानना कठिन लगता है । चर्चा बहुत होती है सार्थक संवाद नहीं होता है क्योंकि विचार विमर्श करते हुए भी हमारा ध्यान निष्कर्ष को लेकर नहीं उसका हासिल क्या हो सकता है हमें ऊपर ले जाने के लिए इस की चिंता रहती है । 

सभी को इक छलांग लगाकर शिखर पर पहुंचना है सत्ता हथियानी है लेकिन सत्ता का उपयोग कर देश समाज को कोई दिशा देनी है ऐसा कभी सोचते ही नहीं । अर्थात हमारे पास सब कुछ हो सिर्फ खुद के लिए ऐसा संकीर्ण मानसिकता का समाज बन गया है । और ये इक राजनीति की बात नहीं है शिक्षा स्वास्थ्य धर्म से न्याय व्यवस्था सुरक्षा प्रणाली प्रशासन तक सभी ईमानदारी से कर्तव्य निभाना छोड़ मनमानी करने लगे हैं । विडंबना है कि बावजूद इस के सभी मानते हैं हम देश और समाज की सेवा करते हैं जबकि लूट का कारोबार करने में इक होड़ सी लगी है । कारोबार व्यौपार उद्योग से लेकर सिनेमा टीवी चैनल लेखन तक हर कोई सही राह से भटक गया है आईना बेचने लगे हैं दर्पण को देखते नहीं हैं । बारिश में जैसे मेंढक टरटराने लगते हैं हम सभी की आदत बन गई है रोज़ किसी बदले विषय पर बातचीत करते हैं । कोई गिनती नहीं रोज़ कुछ न कुछ नया होता है नव वर्ष से लेकर त्यौहार या खास अवसर ही नहीं महिला दिवस बाल दिवस स्वतंत्रता दिवस गणतंत्र दिवस से तमाम दिन निर्धारित हैं किस दिन हिंदी की बात करनी है कब संविधान को लेकर कुछ कहना है । बस उस दिन उस अवसर को छोड़ कभी किसी की चिंता करना अनावश्यक लगता है , सभाओं में भाषण भी इक सिमित परिधि में देते हैं सुनते हैं और अधिकांश औपचारिकता निभाते हैं कोई प्रभाव नहीं छोड़ते इस कदर खोखले हो गए हैं । 

कोई चित्रकार इक चित्रकारी करते हुए कितने रंगों का उपयोग करता है अपनी बात को अभिव्यक्त करने को अब लगता है तस्वीर खूबसूरत नहीं डरावनी लगती है । दोष तस्वीर का रंगों का नहीं है जो सामने दिखाई देता है उसी को दर्शाना होता है । आज इस रचना में भी बात निराशा की नहीं है अंधकार ही अंधकार है हर तरफ और कहीं कोई आशा की किरण नहीं दिखाई देती तो उस बेबसी का दर्द झलकता है शब्दों में सिर्फ कल्पना लोक में जीना संभव नहीं रचनाकार के लिए । मुझे जिस सुंदरता की चाहत है लाख कोशिश करने पर भी उसका कोई निशान कोई सिरा मिलता नहीं है तो महसूस होता है भटक गए हैं अब फिर से उसी जगह से नई शुरुआत करनी होगी जिस मोड़ से हमने राह बदल ली थी भटक गए हैं । वक़्त लौटता नहीं कभी भी तब भी सफ़र में जब समझ आये कि मंज़िल नहीं दिखाई दे रही तो सोच समझ कर इक मोड़ लेना ज़रूरी है । नहीं तो चलते चलते थक कर सोना हमेशा हमेशा के लिए नियति बन जाएगी । उलझी हुई तस्वीर है बिगड़ी हुई तकदीर है टूटी हुई शमशीर है शिकारी खुश निशाने पर है घायल हुआ हर तीर है ।
 
 
Die Geheimis der Kletterkünstler: Lianen leisten Wäldern unschätzbare  Dienste - [GEO]