बदलाव की बातें नहीं बदलाव चाहिए ( आलेख ) डा लोक सेतिया
चलो इक पुरानी कथा याद करते हैं , इक महात्मा जी ( सच्चे , आजकल जैसे नहीं ) किसी नगर में आये और धर्म क्या है ये समझाते रहे। थोड़े दिन बाद जब वो जाने लगे तब उनको गुरु समझने वालों ने रोकना चाहा तब वो बोले देखो तुमको सबक पढ़ा दिया है धर्म क्या है अब मुझे और लोगों को भी तो समझाना है , यही साधु का धर्म है , इक जगह नहीं रहना। ज्ञान को बांटना होता है पूरे जगत में। आप सब याद किया करना जो सबक सीखा है हर दिन। बहुत दिन बाद जब वो वापस उधर लौटे तब देखा लोग हर रोज़ रटते रहते लिखी लिखाई बातों को , ठीक वैसा जैसा इधर हम सभी करते हैं। किसी पुस्तक को तोते की तरह सुबह शाम रटना , समझना नहीं। महात्मा जी निराश हो कर बोले ये आप सभी क्या करते हैं। जो पढ़ते हो उनपर अमल बिल्कुल नहीं नज़र आता। व्यर्थ गया मेरा सारा प्रयास। सोचो ये कहानी किसलिये याद आई , क्या देखा। चलो बताता हूं।कल हरियाणा में प्रधानमंत्री जी ने बेटियों को बचाने की शपथ दिलाई भरी सभा में हज़ारों लोगों को। क्या ये शपथ पहली बार किसी ने दिलाई , कितनी बार खिलाई गई ऐसी कितनी कसमें , भ्र्ष्टाचार के विरुद्ध , बाल मज़दूरी , दहेज़ , जाति धर्म के भेदभाव को मिटाने को और जाने क्या क्या। नतीजा नज़र आया कभी , कुछ लोगों को इस से मतलब नहीं कुछ फर्क पड़ता है या नहीं , उनको नाम शोहरत मिलती है कि वो महान काम कर रहे हैं। आमिर खान जैसे लोग नित नये शगूफे छेड़ते हैं , आजकल शर्म का ताज पहनाने का विज्ञापन दिखाई देता है , क्या ऐसे किसी को किसी को अपमानित करने का अधिकार है। क्या आप ऐसा कर सकते हैं , नहीं ? ये भी इक अपराध है , मगर जो लोग खुद को नियम कायदे से ऊपर समझते हैं उनको इसकी परवाह कहां। केजरीवाल कोई अकेले नहीं जो समझते हैं वे जो भी करें वो सही है और जो उनको सही नहीं मानता वो गल्त। इन लोगों की परिभाषायें बदलती रहती हैं। बात हो रही थी मोदी जी की बेटी बचाओ योजना की , ब्रांड अम्बेस्डर बनाया गया माधुरी दीक्षित जी को। पूरे हरियाणा में न भारत देश में कोई और लड़की या महिला इस काबिल मिली जो ये कार्य कर सके। शायद ऐसे ही आप महिलाओं को उनके अधिकार दिलाएंगे , जिनके पास पहले सब कुछ उनकी झोली में और खैरात डालनी है , और जो खाली हैं उनकी कोई सुध ही नहीं लेनी।
दिल्ली में चुनाव में भी यही किया गया है , किरन बेदी जी को दल में शामिल करते ही मुख्यमंत्री पद की दावेदार भी बना दिया गया। क्या भाजपा में पहले कोई और महिला इस काबिल नहीं है , बता रहे हैं ऐसा चुनाव जीतने को किया गया। क्या मोदी जी का भरोसा खत्म हो गया , उनकी लहर नहीं रही या लगा कि काठ की हांड़ी अबकी बार नहीं चढ़ेगी। इससे तो लगता है इतना बहुमत पाकर भी भाजपा को अभी आत्मविश्वास की कमी डराती है। चुनाव जीतना हारना लोकतंत्र का हिस्सा है , येन केन प्राकेण चुनाव जितना आपको वहां ला खड़ा करता है जहां जनाब केजरीवाल साहब हैं। इक केजरीवाल से इतना डरते हैं आप कि मोदी को छोड़ किरन बेदी को पतवार थमा दी।
लोग शायद भूले नहीं जो वादे किये थे मोदी जी ने। मुझे तो कुछ भी नहीं बदला दिखाई देता। वही तौर तरीके जो कोई और अपनाता था अब भाजपा सरकार अपना रही है। प्रचार रैलियां और विज्ञापनों का शोर। सरकारी धन का दुरूपयोग। आखिर में इक पुरानी बात , आप बीती। 1980 की बात है मैं दिल्ली में रहता था , किरन बेदी जी तिलकनगर थाने में ए सी पी थी। कोई कॉलोनी में अवैध शराब का धंधा करता था। पत्र लिखा था और किरन बेदी जी ने इक दिन समय दिया था जवाब में पत्र भेज आकर मिलने को। लगा अब बात होगी न्याय की , मगर निराशा मिली थी , मिलने पर बोली थी मुझे जाना है आप अपनी बात उन हवलदार को बता दो , जो खुद ऐसे काम करवाता था महीना लेकर। तब किसी शायर का शेर याद आया था , " तो इस तलाश का अंजाम भी वही निकला , मैं देवता जिसे समझा था आदमी निकला "। कहीं जनता को मोदी जी से भी यही न मिले और अगर दिल्ली में किरन बेदी जी मुख्यमंत्री बन गई तो उनसे भी। चेहते और नाम नहीं बदलने हमने , जो भी सही नहीं सको बदलना है। बदलाव की बातें करना सब जानते हैं , बदलाव लाना सबके बस की बात नहीं होती।