तड़पा ही गया हिज्र में बरसात का आलम ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
तड़पा ही गया हिज्र में बरसात का आलमऔर उसपे उमड़ते हुए जज़्बात का आलम।
याद आता है वो वक्ते मुलाकात हमारा
बरसात में भीगे हुए हालात का आलम।
बस भीगते ही रहने में थी खैर हमारी
बौछार से कम न था शिकायात का आलम।
दीवाना बनाने हमें रिमझिम में चला है
दुजदीदा निगाहों के इशारात का आलम।
लफ़्ज़ों में बयाँ कर न सकूँगा मैं सुहाना
भीगी हुई जुल्फों की सियह रात का आलम।
2 टिप्पणियां:
...बरसात में भीगे हुए👌👍
👍👌
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