जुलाई 28, 2022

देशभक्ति तमाशा बन गई ( तरकश ) डा लोक सेतिया

        देशभक्ति तमाशा बन गई ( तरकश ) डा लोक सेतिया

     कुछ लोग गहन विचार-विमर्श कर रहे हैं। देशभक्ति की बात हो रही है। कोई सवाल उछालता है , ये क्या चीज़ है , सुना है बड़े काम आती है आजकल। एक नवयुवक बताता है मनोजकुमार की फिल्म का गीत गाना देशभक्ति का काम है , मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती। जो जितना ऊंचे स्वर में गाता है वो उतना ही महान देश भक्त समझा जाता है। वैसे और भी गीत हैं , कुछ सरकारी विज्ञापन भी हैं , मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा एवं कम-आन इंडिया , दिखा दो। ये भी देशप्रेम को प्रदर्शित करने का ही काम करते हैं। क्रिकेट का खेल देखते हुए तिरंगा लहराना और अपने चेहरे या वस्त्रों को तिरंगे के रंगों में रंगना भी देशप्रेम का प्रमाण है। छबीस जनवरी या पंद्रह अगस्त को दूरदर्शन का सीधा प्रसारण देखते हुए गप शप करना हो , चाहे छुट्टी का मज़ा लेते हुए पिकनिक मनाना ये भी देशभक्ति का ही अंग हैं। देशभक्ति ही वो सलोगन है जो प्रतियोगिता में जीत दिलवा सकता है। ये वो फार्मूला है जो हमेशा हिट रहता है , सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेने वाली सुंदरियां तक अपने जवाबों में इसकी मिलावट करके अच्छे अंक बटोर सकती हैं। इसलिये वे देश से अनपढ़ता और गरीबी को मिटाने के उदेश्य की बात करती हैं। मगर जब प्रतियोगिता में जीत जाती हैं तब इन सब को भूल कर बड़ी बड़ी कंपनियों के विज्ञापन करने और चमक दमक वाले कार्यक्रम करती हैं देशभक्ति समझ कर। 
 
     देशभक्ति वो विषय है जिसपर कुछ खास दिनों में लिखता है लेखक , छापते हैं अखबार वाले और पत्रिका वाले। अध्यापक को भी ये विषय पढ़ाना होता है छात्रों को ताकि परीक्षा में अच्छे अंक मिल सकें। इस सबक को समझना ज़रूरी है न ही समझाना ही। रटने का सबक है , तोते की तरह हम सब रटते रहते हैं। कुछ अन्य लोगों के लिये ये एक रंगारंग कार्यक्रम की जैसी है वे देशभक्ति के नाम पर कितने ही आयोजन आयोजित किया करते हैं। कभी किसी दौड़ का नाम , कभी मानव श्रृंखला बनाकर प्रदर्शित की जाती है देशभक्ति। पहले कभी देशभक्ति के मुशायरे और कवि सम्मलेन भी आयोजित किये जाते थे मगर आजकल उनका चलन बाकी नहीं रह गया। अब देशभक्ति पर पॉप संगीत के कार्यक्रम सफल होते हैं। आई लव माई इंडिया गाते हुए नाचना इस युग की वास्तविक देशभक्ति समझी जाती है। इस नज़र से देखो तो युवा पीढ़ी देशभक्ति से भरी पड़ी है।

          इन दिनों कई तरह की देशभक्ति दिखाई देती है। आधे घंटे का सीरियल जिसमें दो कमर्शियल ब्रेक हों , और तीन घंटे की फिल्म भी जिसको कई कंपनियां मिल कर प्रयोजित करें। टीवी के हर चैनेल में देशभक्ति का तड़का ज़रूरी है , उदेश्य भले पैसा बनाना ही हो , बात देश प्रेम की ही करनी होती है। सब चैनेल अपने को बाकी से बड़ा देशभक्त साबित करने का प्रयास करते हैं। इन टीवी सीरियल और फिल्मों के नाम और विज्ञापन लुभावने तो होते हैं मगर देखने पर इनका प्रभाव दूसरा ही नज़र आता है। दर्शक सोचते हैं कि देशभक्ति कोई समझदारी का काम नहीं है। बस एक बेवकूफी है , पागलपन है। क्या मिला देशभक्तों को जान गवांने से , क्या काम आई उनकी कुर्बानी। न देश को कुछ मिला न जनता को। बस मुट्ठी भर लोगों ने सब की आज़ादी को , लोकतंत्र को ढाल बना अपनी कैद में कर लिया। आजकल ज़रा दूसरी तरह की देशभक्ति होती है , आंदोलन होते हैं , दंगा फसाद करवाते हैं , तोड़ फोड़ की जाती है। जनता को मूर्ख बना सत्ता हासिल करने को समझौते किये जाते हैं। चुनाव जीत सरकार बनाते ही सब भूल कर वही दुहराते हैं जिसका विरोध किया था। शासक बन ऐश करते हैं , झंडा फहराते हैं ,सलामी लेते हैं , देशभक्त कहलाते हैं। अफ्सर लोगों के लिये देशभक्ति ऐसा ब्यान है जिसे कभी भी किसी भी अवसर पर दिया जा सकता है। जनता के धन से खुद हर सुख सुविधा का उपयोग करते हुए गरीबों की हालत से दुखी होने की बातें करना और गरीबी मिटाने को कागज़ी योजनायें बना उनको कभी सफल नहीं होने देना , देश के विकास के झूठे आंकड़े बनाना देशभक्ति है। सत्ताधारी नेता की चाटुकारिता , मंत्री के आदेश पर हर अनुचित कार्य करना , पद का दुरूपयोग करना भी देशभक्ति है।

           नेताओं के लिये देशभक्ति ऐसा नशा है जिसको अपने भाषणों द्वारा जनता को पिला मदहोश कर उससे मनचाहा वरदान पा सकते हैं। देश को लूट कर खाने वाले नेता डंके की चोट पर देश के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का दावा करते हैं। चुनाव करीब आते ही नेताओं पर देशभक्ति का ज्वर चढ़ जाता है। हर नेता नई रौशनी लाना चाहता है , सत्ता मिलते ही फिर अंधेरों का सौदागर बन जाता है। एक बार कुर्सी मिल जाये तो हर नेता उसे अपनी बपौती समझने लगता है। देशभक्ति इनके लिये कारोबार है , कभी गल्ती से देशभक्ति के नाम पर कोई जेलयात्रा कर आया हो तो वो ही नहीं उसका परिवार भी मुआवज़ा पाने का हकदार बन जाता है। कुछ लोगों की देशभक्ति जनता पर चढ़ा हुआ ऐसा कर्ज़ है जिसका भुगतान करते करते उसकी कमर टूट चुकी है , तब भी वो चुकता नहीं हो रहा , कुछ लोगों के वारिसों को उसका ब्याज ही मिला है , असल बाकी है। 
 
    आज़ादी मिले 75 साल होने को हैं आज़ादी की आयु की चर्चा होने लगी है , वर्षगांठ मनाते मनाते पचीसवीं पचासवीं से पिहचतरवीं तक संख्या पहुंच गई है । गुलामी सैंकड़ों साल की रही है आज़ादी को सौ वर्ष होने को अभी 25 साल और कौन इंतज़ार करता । कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक , वास्तव में आज़ादी के अर्थ तक बदले गए हैं । आज़ादी खो गई है या कहीं गुम है , अभी पिछले दिनों इक पुरानी फिल्म " मैं आज़ाद हूं " दोबारा देखी टीवी पर । अमिताभ बच्चन जी का किरदार लाजवाब है इक अखबारी कॉलम लिखने वाले का काल्पनिक किरदार जनता से सरकार तक शोहरत हासिल कर लेता है । ऐसे में इक बेबस भूखे गरीब को लालच देकर नकली आज़ाद बन कर सबको दिखलाना पड़ता है । टीवी पर अमिताभ बच्चन जी कौन बनेगा करोड़पति शो का संसाचल करते हैं कितने सालों से , विज्ञापन टीवी पर दिखलाया जा रहा है आज़ादी की पिहचतरवीं वर्षगांठ मनाने को लेकर । फिल्म में आज़ाद ख़ुदकुशी कर मर जाता है  , उसको मारने की कोशिशें करने वाले उसको ख़ुदकुशी नहीं करने देना चाहते बल्कि क़त्ल करने की कोशिश करते करते बचाने की ज़रूरत महसूस करते हैं । अमिताभ बच्चन को अपनी असफल रही कमाल की फिल्म की याद कभी न कभी आती होगी , 7 अगस्त को शो की शुरुआत करते हुए किरदार की कड़वी याद आए तो उनका तमाशा सिर्फ तमाशा बन जाएगा । ये देश आजकल तमाशाओं के भरोसे चल रहा है । देशभक्ति का खेल तमाशा इस दौर का सबसे अधिक बढ़िया कारोबार बन गया है । कौन खिलाड़ी है कौन तमाशा दिखलाता है और तमाशाई कौन है सवाल सबसे बड़ी उलझन है। कीमत बढ़ कर सात करोड़ पचास लाख हो गई है करोड़पति बनाते बनाते लोग कंगाली में आटा गीला होने की चिंता करते हैं।



जुलाई 24, 2022

माली की नज़र में प्यार नहीं ( फूल चमन में कैसा खिला ) डॉ लोक सेतिया

माली की नज़र में प्यार नहीं ( फूल चमन में कैसा खिला ) डॉ लोक सेतिया 

कल किसी की पोस्ट पढ़कर न जाने कितनी बातें अंतर्मन में उभरती रहीं । कुछ अजीब बात या किसी की सिमित दायरे की समझ की बात है । लिखा था जो माता पिता अपनी संतान के परीक्षा में बढ़िया प्रदर्शन पर गौरव और ख़ुशी जताते हुए पोस्ट लिखते हैं उनको पढ़कर कम अंक पाने वाले बच्चे हीनभावना का शिकार हो जाते हैं । ये समझने का सही ढंग नहीं है लेकिन उनकी बात को अनदेखा नहीं कर सही पक्ष सामने रखना ज़रूरी है । विस्तार से इसकी चर्चा करते हैं । माता पिता भाई बहन दादा दादी एवं दोस्त रिश्तेदार पीठ थपथपाते हैं तो बढ़ावा देते हैं और महनत करने सफलता अर्जित करने को । समस्या उनको लेकर है जिनकी आदत होती है अपनी संतान की तुलना अन्य किसी से कर उस में हीनभावना पैदा करने की । उनको अपने बच्चे को समझना चाहिए और उसकी प्रतिभा को जानकार उनको जिस कार्य में रूचि है उसी क्षेत्र में शिक्षा अथवा कार्य करने को प्रोत्साहन देना चाहिए । जब अपने ही परिवार के सदस्य किसी से तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करते हैं तब ठीक वैसा होता है जैसे कोई छोटा सा पौधा किसी बंजर ज़मीन पर उग आया हो जहां बाड़ बनकर खेत की रखवाली वाला बागबां उस को मसलता कुचलता है । कोई नहीं जानता ऐसा अनचाहा पौधा कैसे खुद को बचाए रखता है हर दिन कोई पैरों तले कुचलता है कोई जानवर खा जाता है लेकिन वो फिर फिर उगता रहता है । अनचाहा बनकर जीना कितनी बार मरना होता है । 
 
जीवन में सब किसी की मर्ज़ी से नहीं होता है और खुश होकर जीने का आनंद लेना चाहते हैं तो जो मिलना संभव नहीं उसकी चिंता छोड़ कर जो हासिल है उसकी कीमत और अहमियत समझनी चाहिए । अजीब बात है जिस से मनचहा सभी कुछ पाना चाहते हैं उसी को गरियाते लताड़ते रहते हैं । नफ़रत तिरिस्कार ज़हर की तरह होते हैं जीवन को फलने फूलने नहीं देते हैं । प्यार भरे शब्द अपनेपन का व्यवहार नई ऊर्जा नए साहस का संचार करते हैं । आप धन वैभव ताकत भौतिक सुविधाओं से आपसी रिश्तों में मिठास और भरोसा नहीं जगा सकते हैं साधन मिलने से वास्तविक संतोष और खुशी नहीं मिलती है । कस्तूरी मृग की तरह भीतर के एहसास को समझे बगैर हम मृगतृष्णा के पीछे भागते भागते बिना जिए मर जाते हैं । शायद हमारी अनावश्यक कामनाओं अधिक और सब कुछ आसानी से पाने की आरज़ू ने भीतर के अमृतकलश के प्यार को सुखा दिया है । सब चाहते हैं उनको प्यार अपनापन मिले मगर खुद बांटते नहीं प्यार दुनिया में , हर किसी से टकराव अहंकार नीचा दिखाने की भावना ने आपसी सद्भाव और पारस्परिक मेल मिलाप को बर्बाद कर दिया है । संबंध औपचरिकता निभाने को सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप्प पर बधाई शुभकानाएं अभिवादन तक रह गए हैं । दोस्ती रिश्ते नाते जब कारोबारी नज़र से दिखाई देते , बनते-बिगड़ते हैं तब उनका हासिल कुछ भी नहीं रहता है । ढाई आखर प्यार वाले पढ़ना पढ़ाना छोड़ दिया है । चमकती हर चीज़ सोना नहीं होती है । अनमोल हीरे की परख नहीं पत्थर को जाने क्या समझने लगे हैं समंदर किनारे सीपियां मिलती हैं मोती गहराई में जाकर तलाश करने पड़ते हैं । नाम शोहरत पाने और अपने को सबसे बड़ा या ऊंचा साबित करने की कोशिश ने छोटा बना दिया है नैतिक गिरने को ऊपर उठना नहीं कहते हैं । अपने किरदार को सच के दर्पण  में देखना कठिन है दुनिया पर उंगली उठाना सब जानते हैं ।
 
 

जुलाई 20, 2022

ज़ालिम को फ़रिश्ता कहना है ( व्यंग्य-कहानी ) डॉ लोक सेतिया

 ज़ालिम को फ़रिश्ता कहना है ( व्यंग्य-कहानी ) डॉ लोक सेतिया 

    घोषणा करता हूं ये वास्तविक कहानी है कोई कपोल कल्पना नहीं ,  अक्सर फ़िल्म वाले अलग ढंग से बताते हैं , ये काल्पनिक कथा है किसी से सरोकार नहीं घटना का । वास्तव में असली बात सच को झूठ से मिला कर पेश करते हैं अभिनय करने वाले लोगों का नाम तौर तरीका पहनावा सब किसी किरदार से मिलता जुलता है । दर्शक वही समझते हैं जो निर्देशक चाहता है समझाना , यहां नाम चेहरे नहीं मिलते लेकिन किरदार असली हैं हमारी वास्तविक दुनिया वाले । बात की शुरुआत करते हैं आधुनिक युग की असलियत को जानते समझते हुए कि शराफत ईमानदारी सच्चाई आत्मा की आवाज़ नैतिक मूल्य बड़े आदर्श आजकल बेकार की बातें समझी जाती हैं किताबी और उपदेश देने को अमल करने को हर्गिज़ नहीं । इस कहानी को इक निर्माता-निर्देशक की तलाश है ।
 
  शोर ही शोर है चहुंओर है चोर नहीं है चौकीदार है ज़रा मुंहज़ोर है । मनमौजी है शाही लिबास है दुनिया भर में वही सबसे ख़ास है । सिंघासन पर बैठा अंधेरा है रौशनी उसी के पास है । उसका बड़ा नाम है , ऊंचा सबसे दाम है , दुनिया सब बेनाम है , जाने कौन गुमनाम है अनजान है , फिर भी निराली शान है। लंगड़ा उसका घोड़ा है दौड़ा दौड़ा दौड़ा है जिसके हाथ में लाठी है भैंस उसी की हो जाती है । सब कुछ जिसने तोड़ा है साबुत कुछ नहीं छोड़ा है उसका बड़ा कमाल है बेचा घर का सारा माल है उसका शौक निराला है तन गोरा है मन काला है । तिजोरी का रखवाला है खुल जा सिम सिम का ताला है अलीबाबा चालीस चोर है हिजाब है न कोई नकाब है बेहिसाब सब हिसाब है । उसका बही-खाता है जो मसीहा उसको बताता है मनचाही मुराद पाता है । घर फूंक तमाशा देखने वाला इस कहानी पर फिल्म बना सकता है पटकथा तैयार है ये सिर्फ इक छोटा सा दृश्य है जैसे इक इश्तिहार है ।
 
कहानी का नायक मसीहा कहलाता है ज़ुल्म भी करता है तो लोग आह नहीं भरते वाह-वाह करते हैं । ग़ज़ल पेश है :-

रंक भी राजा भी तेरे शहर में ( ग़ज़ल ) 

डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

रंक भी राजा भी तेरे शहर में
मैं कहूं यह  बात तो किस बहर में।

नाव तूफां से जो टकराती रही
वो किनारे जा के डूबी लहर में।

ज़ालिमों के हाथ में इंसाफ है
रोक रोने पर भी है अब कहर में।

मर के भी देते हैं सब उसको दुआ
जाने कैसा है मज़ा उस ज़हर में।
 
मत कभी सिक्कों में तोलो प्यार को 
जान हाज़िर मांगने को महर में। 
 
अब समझ आया हुई जब शाम है 
जान लेते काश सब कुछ सहर में। 
 
एक सच्चा दोस्त "तनहा" चाहता 
मिल सका कोई नहीं इस दहर में।
 
 
 

 



 

जुलाई 16, 2022

ग़म है बर्बादी का क्यों चर्चा हुआ ( अजब-ग़ज़ब ) डॉ लोक सेतिया

  ग़म है बर्बादी का क्यों चर्चा हुआ ( अजब-ग़ज़ब ) डॉ लोक सेतिया 

उसको लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है वहां चोर लुटेरे ठग अपराधी गुंडे बदमाश शान से बैठते हैं ये राजनीतिक दलों की मज़बूरी है सत्ता पाने को दूसरा कोई रास्ता नहीं दिखाई देता। धनबल बाहुबल झूठ धोखा फरेब कपट सब करना पड़ता है जनता को उल्लू बनाने की खातिर अन्यथा नेताओं की मंशा उनकी सत्ता हासिल कर मनमानी करने की हवस की वास्तविकता मालूम हो तो ज़मानत ज़ब्त हो जाये। लेकिन बड़ी बदनामी होती है जब रिश्वत भ्रष्टाचार घोटाले और बहुमत के दम पर तानाशाही करने को देश समाज की भलाई साबित किया जाता है और कुछ निडर लोग विपक्ष वाले या बिना बिके मीडिया वाले झूठ को झूठ बताने की बात करते हैं । उस तथाकथित मंदिर में भले जैसा भी व्यक्ति सुशोभित होता है उसको आदरणीय माननीय कहना होता है उनको लेकर असभ्य शब्द उपयोग नहीं किये जाने चाहिएं। अब चाहे उनका किरदार कैसा हो उनकी सोच कितनी घटिया हो और उनको सही गलत की कोई समझ नहीं हो और उनको अपनी ज़ुबान पर बोलते समय लगाम लगाना नहीं आता हो नासमझ बच्चों की तरह शरारत करना उनकी आदत हो उनको अनुशासन सिखाना ज़रूरी है। घर की भीतर की बात बाहर नहीं जानी चाहिए आपस में टकराव का असली कारण देश की जनता को पता नहीं लगने देना है और विश्व भर में सबसे बड़े लोकतंत्र कहलाने का क्या लाभ जब ये सब को समझ आने लगे कि यहां लठ तंत्र लूट तंत्र और झूठ का बोलबाला है । सत्यमेव जयते लिखा हुआ है मगर सत्य से किसी को कोई मतलब नहीं है। 
 
फ़िल्मी नायक जिनकी आदत होती है डायलॉग बोलने की और सिनेमा पर अपनी ताकत और शक्ति दिखाकर दर्शकों की तालियां बटोरने की उन से भाषण सभाओं में नर्म मुलायम शब्दों का उपयोग करने की आपेक्षा करना व्यर्थ है। टीवी फिल्म से लेकर न्याय-व्यवस्था स्थापित करने वाले सभी अंगों में नियुक्त लोग लाठी डंडे और ज़ोर ज़बरदस्ती सब करने को जायज़ समझते हैं यहां तक कि सत्ताधारी शासक के अनुचित गैर कानूनी आदेश का पालन करते हर देश और संविधान की भावना नागरिक आज़ादी और विचारों को अभिव्यक्त करने के मौलिक अधिकार तक की अवेहलना करते हैं । ऐसे खतरनाक भयानक वातावरण को छोड़ शब्दों के बोलने पर रोक लगाने की चिंता करना ऐसा है जैसे भीतर जिस्म सड़ा गला हो सभी अंग बेकार हों लेकिन उसके बहरी पहनावे की सुंदरता और बुझे हुए चेहरे के पीलापन उदासी निराशा को ढकने को सजाने की कोशिश की जाए। 
 
शराबखाने में शराब पीने की छूट हो मगर होश की बात करने की शर्त हो , किसी जिस्म फ़रोशी के बाज़ार में गंदा धंधा करने की आज़ादी हो पर वहां गाली गलोच की भाषा पर ऐतराज़ हो । अजब ग़ज़ब है घर गली दफ़्तर से टीवी सीरियल सिनेमा तक शराफत की तहज़ीब की धज्जियां उड़ाना खराब नहीं है बस उन सभी बातों को छुपाए रखना अनिवार्य हो । कल चमन था आज इक सहरा हुआ , देखते ही देखते ये क्या हुआ।
मुझ को बर्बादी का कोई ग़म नहीं , ग़म है बर्बादी का क्यों चर्चा हुआ। 
 



 

जुलाई 14, 2022

सात्विक भाषा के शब्द का शब्दकोश ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

   सात्विक भाषा के शब्द का शब्दकोश ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

वहां कोई अपराधी कोई झूठा कोई रिश्वतखोर निर्वाचित होकर नहीं बैठ सके ये करना संभव नहीं है स्वीकार कर लिया गया है। लेकिन भरी सभा में झूठ भ्रष्टाचार जैसे शब्द उपयोग नहीं किए जाएं ऐसा करना मुमकिन हो सकता है उन शब्दों पर प्रतिबंध लगा सकते हैं । किसी नियम बनाने से सभी को ईमानदार बनाया नहीं जा सकता तो क्या हुआ बेईमानी करने वाले को बेईमान नहीं कहा जाए ये नियम लागू किया जा सकता है । मगर चिंता नहीं करें नेताओं को सत्ताधारी या विपक्ष वालों को भाषण देते समय अपशब्द बोलने से लेकर गोली मारो सालों को से हिंसा और नफरत फ़ैलाने की छूट रहेगी । कल तक जो सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी पर ब्यान दे रहे थे कि टीवी पर किसी शासक दल के प्रवक्ता को अपने ब्यान की क्षमा मांगनी चाहिए उनको इस बदलाव पर खामोश रहना उचित होगा । सभ्यता मर्यादा शिष्टाचार का पालन सिर्फ एक जगह होना चाहिए अथवा हमेशा हर जगह ऐसे सवालों के जवाब खोजने लगे तो कितने सवाल खड़े हो सकते हैं । कोई जांच आयोग कितने साल तक शोध करेगा तब सामने आएगा पिछले इतने सालों में किस किस ने कितनी बार ऐसे असभ्य शब्दों का उपयोग किया है । कोई शरीफ़ शराफ़त से चर्चा करता शायद ढूंढना कठिन लगे हर किसी ने कोई न कोई शब्द कभी न कभी उच्चारित किया होगा चोर को चोर क़ातिल को क़ातिल घोटाला करने वाले को हिस्सा लेने वाला पाए जाने पर अथवा आरोप लगाने को । जब किसी को ऐसा कहना खुद अपराध समझा जाएगा तब जुर्म हुआ होगा मुजरिम सामने होगा फिर भी आरोप लगाना नियम का उलंघन होगा। समस्या गंभीर है इसलिए भाषा विभाग को असभ्य आचरण करने वालों की गरिमा का ध्यान रखते हुए शब्दकोश में प्रतिबंधित शब्दों की जगह पर्यायवाची सात्विक शब्द घड़ने होंगे क्योंकि पुराने शब्द खरे साबित नहीं हुए हैं। 
 
अभी शुरुआत हुई है धीरे धीरे किताबों से कहानियों से ऐतहासिक दस्तावेज़ों से जाने किस किस जगह से संशोधन कर सब फिर से लिखना पढ़ना पढ़ाना होगा । लगता है हमको अभी तक उलटी पढ़ाई पढ़वाते रहे हैं अब सब सीधा करना होगा । जसपाल भट्टी जी नहीं हैं अन्यथा उनकी तमाम बातें उल्टा-पुल्टा होती थी उनकी बोलती बंद हो जाती या ऐसा भी संबव है सरकारी शिक्षा विभाग उन्हीं से नया शब्दकोश बनवाने का अनुबंध करना चाहता । हिंदी भाषा के जानकार विशेषज्ञ पीएचडी वालों को अवसर का उपयोग कर कोई आधुनिक शब्दकोश बनाने का कार्य कर गाली गलोच की जगह आदर सूचक शब्द सुझाने का कार्य शीघ्र करना ज़रूरी होगा।



अल्फ़ाज़ किस को पेश करें ( मुश्किल बड़ी है ) डॉ लोक सेतिया

   अल्फ़ाज़ किस को पेश करें ( मुश्किल बड़ी है ) डॉ लोक सेतिया 

अल्फ़ाज़ एहसास से भरे होते हैं खोखले शब्द निरर्थक होते हैं जिनका कोई मसलब नहीं होता है । मेरी किताबें मुझे जान से अधिक प्यारी हैं ज़िंदगी भर की महनत का नतीजा है । कभी कभी महसूस हुआ है कोई ख़फ़ा ख़फ़ा सा है बात कोई नहीं उसको लगता है मैंने अपनी किताब उसको भेंट नहीं की । उसे पढ़ने में कोई रूचि नहीं है मैं जानता हूं उसको ये फज़ूल की बात लगती है उसको फुर्सत ही नहीं जाने कितने काम हैं उसके लिए ज़रूरी पैसे का कारोबार सबसे महत्वपूर्ण है । धार्मिक सामजिक संस्थाओं से जुड़ना नाम शोहरत सबसे जान पहचान बढ़ाना उसको विचारधारा की नहीं शान ओ शौकत की बात लगती है । जाने कितनी किताबें उसने अलमारी जैसे शोकेस में सजा रखी हैं दिखाने को कभी खोल कर पढ़ी नहीं लेकिन सब जानता है का भाव हमेशा रहता है । जिनको लेकर मुझे लगता है साहित्य से अनुराग है किताबों से लगाव है उनको किताब भेंट की है मगर जब किसी के बारे पता है उनको किताब पढ़ना समय की बर्बादी लगता है उनको किताब देना किताब का निरादर करना लगता है ।
 
सालों पहले किसी के पास इक लेखक की पुस्तक देखी थी और पूछा कैसी लगी आपको , सुनकर हैरान हुआ था उनका दोस्त है उपहार में नहीं बाकायदा कीमत लेकर दे गया है । सौ रूपये निकालो मांग कर किताब थमा गया है उन्होंने उनकी किताब मुझे दे दी थी ऐसा कह कर कि उनके लिए ये किसी काम की नहीं रद्दी की टोकरी में फैंकनी होगी किसी दिन । लोग मुझे जानते हैं खरी खरी बात पसंद हैं इसलिए बतला देते हैं । इक बार उनकी रद्दी की टोकरी से शहर के सबसे बड़े अधिकारी की काव्य रचनाएं उठा लाया था उनके बताने पर कि उन का कर्मचारी प्रेस-नोट के साथ दे गया है । इक शिक्षक जो निजि विद्यालय चलाते हैं राजनेता भी समझे जाते हैं मिलने आये अपने दल की चुनावी पत्रिका भेंट करने मुझे सच पता चला खुद उन्होंने पढ़ा नहीं था उस में क्या लिखा है । मैंने पढ़ कर ब्लॉग पर लिखा था खूबसूरत कवर और बढ़िया कागज़ अच्छी छपाई है मगर झूठ का पुलिंदा है तथ्य और वास्तविकता से कोई नाता नहीं क्या चुनावी घोषणापत्र ऐसे होते हैं जिसको पढ़ना किसी काम का नहीं कभी निभाए नहीं जाते जो उन वादों की बात होती है । खैर उन्होंने बताया उनको सिर्फ वही किताबें पढ़ना पसंद है जो आर्थिक फायदे की होती हैं , उनको स्कूल की पढ़ाई की किताबें भी पढ़ने की फुर्सत नहीं मिलती है बच्चों को शिक्षा देने को अध्यापक नियुक्त कर रखे हैं वेतन पर। 
 
ख़ास नाम वाले लोग नेता लोग अधिकारी और उच्च पद पर आसीन लोग सभाओं में मुख्य अतिथि बनकर भाषण देते हैं साहित्य को लेकर समझ नहीं रखते कभी । जाने माने लेखकों की शानदार बातें रटी हुई दोहराते हैं बिना सोचे भी कि उनका विषय से कोई संबंध है भी या नहीं । लेकिन इस बात को जान कर भी कई लिखने वाले उनको अपनी किताब भेंट करते हुए फोटो लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं । कई बार कोई लेखक किसी बड़े साहित्यकार होने का रुतबा पाये व्यक्ति को किताब भेंट कर देता है जिस की रचनाएं कितनी गहराई लिए हों वो खोलते तक नहीं सोचते हैं नवोदित रचनाकार की लिखी कहां उच्च स्तर की होंगी । वास्तव में खुद को बुलंदी पर पाने वाले अन्य को छोटा देखते हैं जैसे पहाड़ पर खड़ा आदमी नीचे के लोगों को कीड़े मकोड़े जैसा देखता है जबकि नीचे से खुद और बौना लगता है पहाड़ पर खड़ा हुआ । शोहरत की बुलंदी हमेशा कायम नहीं रहती है । 
 
आधुनिक लोग पढ़ाई लिखाई समझने ज्ञान पाने को नहीं नौकरी पैसा आमदनी और जीवन में भौतिक सुख सुविधाओं को हासिल करने को करते हैं ।  उच्च आदर्श और नैतिकता सच्चाई अच्छाई जैसे मापदंड रहे नहीं हैं और धन दौलत से आदर सम्मान को आंका जाता है । वास्तव में अच्छे साहित्य की ज़रूरत आज पहले से अधिक है भटके हुए समाज को राह दिखलाने को अंधकार मिटाने रौशनी लाने को । समस्या गंभीर है हमारे गांव में कहावत है आप बैल को तालाब पर ले जा सकते हैं मगर प्यास नहीं है तो पानी नहीं पिला सकते हैं , छी-छी कहते रहने से बैल पानी नहीं पीता है । पाठक में पढ़ने की प्यास नहीं तो किताब पास होने से कोई फायदा नहीं है । विडंबना है लोग जिन महान पुस्तकों ग्रंथों की उपदेशों की बातें करते हैं उनकी पूजा अर्चना करते हैं अध्यन नहीं करते , उपहार में बांटते हैं ऐसी किताबों को । संविधान की रट लगाने वाले संविधान को पढ़ते समझते नहीं अनुपालन क्या करेंगे । शिक्षित समाज सभ्य तभी हो सकता है जब उसको शब्दों का अर्थ भी मालूम हो । अपने अल्फ़ाज़ व्यर्थ बर्बाद नहीं करें सोच समझ कर पेश करें। गागर में सागर भरने की तरह संक्षेप में इतना कहा है ।

जुलाई 06, 2022

सिर्फ उसी दोस्त के नाम कताबें ( मकसद ) डॉ लोक सेतिया

   सिर्फ उसी दोस्त के नाम कताबें ( मकसद ) डॉ लोक सेतिया 

   ये सवाल इक न इक दिन सामने आना लाज़मी था , मुझे जो भी कहना है इस ज़ालिम ज़माने से नहीं कहना है । किसी को फुर्सत कहां मेरी दास्तां मेरी बात मेरी ज़िंदगी के एहसास दिल के जज़्बात को समझने की । बचपन से जवानी की तरफ बढ़ती उम्र का खूबसूरत ख़्वाब था बस एक दोस्त की तलाश जो मेरा अपना हो पूरी तरह से जीवन भर को । नाम पता मालूम नहीं जाने किस गांव नगर बस्ती गली में रहता हो । पब्लिशर को नहीं समझ आती मेरी मन की बात क्योंकि कारोबार की घाटे मुनाफ़े की बात नहीं है और सामान्य पाठक वर्ग को साहित्य कविता ग़ज़ल कहानी व्यंग्य काल्पनिक रचनाएं लगती हैं या किसी की नाम शोहरत दौलत पाने की चाहत । लेकिन मुझे इनकी ज़रूरत नहीं है , जीवन भर प्यास रही है कोई एक अपना हो जिस को ज़िंदगी की दास्तां सुननी हो मुझे सुनानी भी हो । फिल्म आनंद के बाबुमोशाय या तलाश फिल्म की नायिका की तरह हंस परदेसी के आकर मिलने की आरज़ू । कभी किसी दिन मेरी कोई किताब पढ़कर शायद उसको मेरी ही तरह से ख़्वाब को हक़ीक़त बनाने की तरकीब समझ आ जाए और हम मिल जाएं तब सार्थक होगा मेरा लिखना।