कैसे कैसे नसीब देखे हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
कैसे कैसे नसीब देखे हैंपैसे वाले गरीब देखे हैं।
हैं फ़िदा खुद ही अपनी सूरत पर
हम ने चेहरे अजीब देखे हैं।
दोस्तों की न बात कुछ पूछो
दोस्त अक्सर रकीब देखे हैं।
ज़िंदगी को तलाशने वाले
मौत ही के करीब देखे हैं।
तोलते लोग जिनको दौलत से
ऐसे भी कम-नसीब देखे हैं।
राह दुनिया को जो दिखाते हैं
हम ने विरले अदीब देखे हैं।
खुद जलाते रहे जो घर "तनहा"
ऐसे कुछ बदनसीब देखे हैं।
मौत ही के करीब देखे हैं।
तोलते लोग जिनको दौलत से
ऐसे भी कम-नसीब देखे हैं।
राह दुनिया को जो दिखाते हैं
हम ने विरले अदीब देखे हैं।
खुद जलाते रहे जो घर "तनहा"
ऐसे कुछ बदनसीब देखे हैं।
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