अगस्त 24, 2012

POST : 76 सुनो इक कहानी हमारी ज़ुबानी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सुनो इक कहानी हमारी ज़ुबानी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सुनो इक कहानी हमारी जुबानी
नई भी नहीं है न है ये पुरानी ।

किसी ने किसी से किया प्यार इक दिन
रखी है छुपा कर अभी तक निशानी ।

वहीँ पर सुबह से हुई शाम अक्सर
सुहाने थे दिन और रातें सुहानी ।

नहीं भूल सकता कभी वो नज़ारा
किसी में थी देखी नदी की रवानी ।

वो क्या दौर था दोस्तो ज़िंदगी का
लुटा दी किसी ने किसी पर जवानी ।

अजब हाल देखा वहां पर सभी का
वहीं प्यास भी थी जहां पर था पानी ।

इसे तुम जुबां पर कभी भी न लाना
सुना दी है "तनहा" तुम्हें जो कहानी । 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: