अगस्त 26, 2012

रंक भी राजा भी तेरे शहर में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

रंक भी राजा भी तेरे शहर में ( ग़ज़ल ) डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

रंक भी राजा भी तेरे शहर में
मैं कहूं यह  बात तो किस बहर में।

नाव तूफां से जो टकराती रही
वो किनारे जा के डूबी लहर में।

ज़ालिमों के हाथ में इंसाफ है
रोक रोने पर भी है अब कहर में।

मर के भी देते हैं सब उसको दुआ
जाने कैसा है मज़ा उस ज़हर में।
 
मत कभी सिक्कों में तोलो प्यार को 
जान हाज़िर मांगने को महर में। 
 
अब समझ आया हुई जब शाम है 
जान लेते काश सब कुछ सहर में। 
 
एक सच्चा दोस्त "तनहा" चाहता 
मिल सका कोई नहीं इस दहर में। 
 
 
      { अब किसी पर हम भरोसा क्या करें 
       लोग सब जाते बदल इक  पहर में। }

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