फैसले तब सही नहीं होते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
फैसले तब सही नहीं होतेबेखता जब बरी नहीं होते ।
जो नज़र आते हैं सबूत हमें
दर हकीकत वही नहीं होते ।
गुज़रे जिन मंज़रों से हम अक्सर
सबके उन जैसे ही नहीं होते ।
क्या किया और क्यों किया हमने
क्या गलत हम कभी नहीं होते ।
हमको कोई नहीं है ग़म इसका
कह के सच हम दुखी नहीं होते ।
जो न इंसाफ दे सकें हमको
पंच वो पंच ही नहीं होते ।
सोचना जब कभी लिखो " तनहा "
फैसले आखिरी नहीं होते ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें