हम सभी इस तरह बंदगी करते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हम सभी इस तरह बंदगी करतेदुश्मनी छोड़ कर दोस्ती करते।
तुम अगर रूठते हम मना लेते
जो किया था कभी फिर वही करते।
जी सकेंगे नहीं बिन तुम्हारे हम
इस तरह से नहीं दिल्लगी करते।
क्यों नहीं छू लिया आसमां तुमने
काम मुश्किल नहीं गर कभी करते।
छोड़ आये जिसे घर तुम्हारा है
बस यही सोचकर वापसी करते।
ज़ुल्म सहते रहे हम ज़माने के
पर शिकायत किसी से नहीं करते।
एक हसरत लिये चल दिये "तनहा"
मत लगाते गले बात ही करते।
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