अगस्त 10, 2012

POST : 31 चंद धाराओं के इशारों पर ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया " तनहा "

चंद धाराओं के इशारों पर ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया " तनहा "

चंद धाराओं के इशारों पर
डूबी हैं कश्तियाँ किनारों पर ।

अपनी मंज़िल पे हम पहुँच जाते
जो न करते यकीं सहारों पर ।

खा के ठोकर वो गिर गये हैं लोग
जिनकी नज़रें रहीं नज़ारों पर ।

डोलियाँ राह में लूटीं अक्सर
अब भरोसा नहीं कहारों पर ।

वो अंधेरों ही में रहे हर दम
जिन को उम्मीद थी सितारों पर ।

ये भी अंदाज़ हैं इबादत के
फूल रख आये हम मज़ारों पर ।

उनकी महफ़िल से जो उठाये गये
हंस लो तुम उन वफ़ा के मारों पर ।