चंद धाराओं के इशारों पर ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया " तनहा "
चंद धाराओं के इशारों परडूबी हैं कश्तियाँ किनारों पर।
अपनी मंज़िल पे हम पहुँच जाते
जो न करते यकीं सहारों पर।
खा के ठोकर वो गिर गये हैं लोग
जिनकी नज़रें रहीं नज़ारों पर।
डोलियाँ राह में लूटीं अक्सर
अब भरोसा नहीं कहारों पर।
वो अंधेरों ही में रहे हर दम
जिन को उम्मीद थी सितारों पर।
ये भी अंदाज़ हैं इबादत के
फूल रख आये हम मज़ारों पर।
उनकी महफ़िल से जो उठाये गये
हंस लो तुम उन वफ़ा के मारों पर।