दिल पे अपने लिखी दी हमने तेरे नाम ग़ज़ल ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
दिल पे अपने लिख दी हमने तेरे नाम ग़ज़लजब नहीं आते हो आ जाती हर शाम ग़ज़ल ।
वो सुनाने का सलीका वो सुनने का शऊर
कुछ नहीं बाकी रहा बस तेरा नाम ग़ज़ल ।
वो ज़माना लोग वैसे आते नज़र नहीं
जब दिया करती थी हर दिन इक पैगाम ग़ज़ल ।
आंसुओं का एक दरिया आता नज़र मुझे
अब कहूँ कैसे इसे मैं बस इक आम ग़ज़ल ।
बात किसके दिल की , किसने किसके नाम कही
रह गयी बन कर जो अब बस इक गुमनाम ग़ज़ल ।
जामो - मीना से मुझे लेना कुछ काम नहीं
आज मुझको तुम पिला दो बस इक जाम ग़ज़ल ।
इक यही हसरत है ' तनहा ' इस से इश्क़ किया
है यही आग़ाज़ , अपना हो , अंजाम ग़ज़ल ।
1 टिप्पणी:
बहुत खूब सुंदर अशआर
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