अगस्त 12, 2012

दिल पे अपने लिखी दी हमने तेरे नाम ग़ज़ल ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

     दिल पे अपने लिखी दी हमने तेरे नाम ग़ज़ल ( ग़ज़ल ) 

                       डॉ लोक सेतिया "तनहा"

दिल पे अपने लिख दी हमने तेरे नाम ग़ज़ल
जब नहीं आते हो आ जाती हर शाम ग़ज़ल।

वो सुनाने का सलीका वो सुनने का शऊर
कुछ नहीं बाकी रहा बस तेरा नाम ग़ज़ल।

वो ज़माना लोग वैसे आते नज़र नहीं
जब दिया करती थी हर दिन इक पैगाम ग़ज़ल।

आंसुओं का एक दरिया आता नज़र मुझे
अब कहूँ कैसे इसे मैं बस इक आम ग़ज़ल।

बात किसके दिल की , किसने किसके नाम कही
रह गयी बन कर जो अब बस इक गुमनाम ग़ज़ल।

जामो - मीना से मुझे लेना कुछ काम  नहीं
आज मुझको तुम पिला दो बस इक जाम ग़ज़ल।

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