कलयुगी अवतारों की बात ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
आत्मा का मिलन प्रमात्मा से हुआ तो भगवन ने पूछा बताओ क्या क्या पाया जीवन भर में। आत्मा बोली भगवान मुझे नहीं पता क्या पाना था और कैसे पाना था , मुझे तमाम उम्र यही सवाल परेशान करता रहा कि मुझे जीवन मिला किसलिए है। सच बताती हूं मैं कभी जीवन को जी ही नहीं सकी , इसी में उलझी रही क्या इसी को जीवन कहते हैं। शिक्षक मिले धर्म-उपदेशक भी मिले और खुद भी बहुत तरह से प्रयास भी किया ज्ञान प्राप्त करने का मगर नहीं समझ पाई मैं क्यों धरती पर आई। भगवान बोले लगता तुम भूल ही गई तुझे भेजा था धरती पर क्या क्या हुआ क्या होता आया बताने को। तुमको लिखना सिखाया था ताकि जो जो देखो समझो लिखती रहो और याद रखो मुझे आकर बताओ जिन जिन को मैंने जिस जिस प्रयोजन से भेजा वो सब अपना काम ठीक से कर रहे भी अथवा नहीं। मैंने कहा भगवन आपको तो सब मालूम है सभी यही समझते हैं , आप जानते ही हैं दुनिया की हालत कितनी खराब है। लोग बिमार हैं भूखे हैं बदहाल हैं और बेबस और लाचार हैं। सब उम्मीद करते हैं कलयुग में भी आप कोई अवतार लोगे और सभी के दुःख-दर्द मिटाओगे। भगवन ने पूछा क्या तुम्हें कोई अवतार नहीं दिखाई दिया , मैंने तो बहुत भगवा धारी साधु संत सन्यासी और कितने ही जनता के सेवक भेजे हैं जनता का कल्याण करने को। अभी भी दो अवतार हैं भेजे हुए जिनको जनता की गरीबी भूख और बदहाली को , लूट खसूट को दूर करना है और लोगों को स्वस्थ रहने के उपाय समझाने हैं। भगवन ने उन दोनों के चित्र उसे दिखलाये , आत्मा पहचान भी गई मगर हैरान और दुखी भी थी। सोचने लगी भगवान को क्या बताये उसके भेजे कलयुगी अवतार क्या कर रहे हैं। मगर भगवन आत्मा की दुविधा समझ गये और बोले तुम मुझे बताओ ये क्या क्या कर रहे हैं। अब तक तो लोग सभी रोगों से मुक्त हो चुके होंगे और जनता की गरीबी भूख और बदहाली खत्म हो चुकी होगी। ऐसा होने के शोर की बात मुझे हर दिन आत्माएं आकर बताती रही हैं। तुम बताओ अच्छी तरह से कितना कुछ बदला है इन कलयुगी अवतारों ने अब तलक।
वो आत्मा बोली जिस भगवा भेसधारी बाबा को सभी को निरोग रहने के उपाय समझाने थे , उसने तो लोगों को योग सिखाने का कारोबार कर खूब नाम और धन कमाया है मगर अभी तक रोग या रोगी तो कम हुए लगते नहीं धरती पर। अब तो उसकी इतनी शोहरत है कि उसका नाम बिकता है , हर शहर में उसके नाम से लोगों का उपचार किया जाता है , जाने किस किस को नियुक्त किया हुआ है उसने। बस उसी की बनाई दवायें बेचते हैं गली गली अप्रशिक्षित लोग नीम हकीमों की तरह। और ऐसा कर वो बाबा जी आज दुनिया के गिने चुने अमीरों में शामिल हो चुका है। आजकल तो उसका घी तेल आटा शहद फेस क्रीम सौन्दर्य प्रसाधन से हर चीज़ बिकती है। ऐसा भी प्रचार है कि जैसे कभी राम जी का नाम लिखने से पत्थर तैर गये थे समुद्र में सेतु बनाने को ठीक उसी तरह उसकी कंपनी का नाम लेबल लगने से हर वस्तु शत प्रतिशत शुद्ध हो जाती है। दो घूंट पीने और योग करने से बताता है लोग रोगों के कुचक्र से मुक्त हो जाएंगे , फिर भी कितनी दवायें भी बेचता है। भगवन आपका ये अवतार तो आज का सफलतम व्योपारी है। दावा है शुद्ध और सस्ता बेचने का फिर भी खूब कमाई होती है , ऐसी अनहोनी पहले सुनी न देखी। लगता कोई घर फूंकने की बात कर भी ऐसी कमाई कर सकता है , कुछ तो राज़ की बात अवश्य है।
आत्मा ने कहा जिस दूसरे अवतार की बात है उसने जनता को अच्छे दिन का वादा किया तो था , मगर कब आएंगे वो अच्छे दिन ये शायद बताना भूल गया। अभी तलक को अच्छे दिनों की परछाई भी नज़र नहीं आई , मालूम नहीं किसे अच्छे दिन कब नसीब होंगे। कहने को उसने हर दिन इक नया काम करने की घोषणा की है योजनाओं का अंबार खड़ा कर दिया मगर उनसे हुआ कुछ भी नहीं लगता। बस हर नेता की तरह कागजों पर बहुत विकास वास्तव में नहीं कुछ भी। स्वच्छता अभियान भी है इश्तिहारों में और गंदगी भी पहले की तरह ही नहीं शायद और भी अधिक , न गंगा साफ़ हुई , न मेक इन इंडिया , स्टार्ट अप इंडिया से घर घर शौचालय और सुंदर शहर कहीं सच में दिखते हैं। कितने लोग मर गये इक योजना में मगर न काला धन खत्म हुआ न ही नेताओं अधिकारियों की लूट ही बंद हुई है। जिनको सपने दिखलाये थे गरीबी मिटाने के वो ख़ुदकुशी तक करने को विवश हैं , सर्वोच्च अदालत भी परेशान है। राजनीति में अपराधी आज भी खुद उन्हीं की सभा में उनके साथ मंच पर बैठते हैं और उन्हीं के भाषण में महानता की उपाधि पाते हैं। शासक बनते ही अपनी सत्ता का विस्तार सभी राजनेता हमेशा ही चाहते रहे हैं , ये भी उन्हीं की राह पर हैं , अलग नहीं हैं। उनको जनता की बदहाली मात्र इक उपहास लगने लगती है शासक बनते ही। आये थे हरि-भजन को ओटन लगे कपास की तरह अच्छे दिन की बात कर आये थे और ला रहे और भी खराब दिन। व्यवस्था जैसी थी वैसी चल रही है , नहीं बदला कुछ भी केवल नाम ही बदले हैं। आत्मा सोच कर आई थी मरने के बाद स्वर्ग नहीं तो नर्क ही मिलेगा , मगर यहां तो कुछ भी दिखता , भगवन से पूछा मुझे किधर भेजोगे बता तो दो। भगवान बोले मैंने तो दुनिया को स्वर्ग ही बनाना चाहा है हमेशा और ऐसा कैसे करना इंसानों को राह दिखलाने और समझाने को अवतार भी भेजता रहा , मगर लगता कलयुग में उनकी मति मारी गई जो अपना दायित्व भुला बैठे हैं। परमात्मा अंतर्ध्यान हो गये हैं , आत्मा खड़ी है अकेली अचरज में भगवन की बातें सोचती।