अगस्त 22, 2012

POST : 71 नफरत के बदले प्यार दिया है हमने ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

       नफरत के बदले प्यार दिया है हमने ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

नफरत के बदले प्यार दिया है हमने
शायद ये कोई जुर्म किया है हमने ।

मरना भी चाहा , मर सके न हम लेकिन
लम्हा लम्हा घुट घुट के जिया है हमने ।

दिल में उठती है टीस सी इक रह रह कर
नाम उसका जो भूले से लिया है हमने ।

तू हमसे ज़िंदगी ,क्यों है बता रूठी सी
ऐसा भी क्या अपराध किया है हमने ।

हमको कातिल कहने वाले , ऐ नादां
तुझ पर आया हर ज़ख्म सिया है हमने ।

उसने अमृत या ज़हर दिया है हमको
जाने क्या यारो , आज पिया है हमने । 
 
साकी बन कर "तनहा" भर दो पैमाना
किस्मत से ख़ाली जाम लिया है हमने ।   
 

 

 




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