फिर कोई कारवां बनाएं हम ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
फिर कोई कारवां बनाएं हमया कोई बज़्म ही सजाएं हम।
छेड़ने को नई सी धुन कोई
साज़ पर उंगलियां चलाएं हम।
आमदो - रफ्त होगी लोगों की
आओ इक रास्ता बनाएं हम।
ये जो पत्थर बरस गये इतने
क्यों न मिल कर इन्हें हटाएं हम।
है अगर मोतियों की हमको तलाश
गहरे सागर में डूब जाएं हम।
दर- ब- दर करके दिल से शैतां को
इस मकां में खुदा बसाएं हम।
हुस्न में कम नहीं हैं कांटे भी
कैक्टस सहन में सजाएं हम।
हम जहां से चले वहीं पहुंचे
अपनी मंजिल यहीं बनाएं हम।
लोग सब चुप उदास महफ़िल है
फिर से "तनहा" को ढूंढ लाएं हम।
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