नहीं साथ रहता अंधेरों में साया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
नहीं साथ रहता अंधेरों में सायाहुआ क्या नहीं साथ तुमने निभाया ।
किसी ने निकाला हमें आज दिल से
बड़े शौक से कल था दिल में बिठाया ।
कभी पोंछते जा के आंसू उसी के
था बेबात जिसको तुम्हीं ने रुलाया ।
निभाना वफा तुम नहीं सीख पाये
तुम्हें जिसने चाहा उसी को मिटाया ।
चले जा रहे थे खुदी को भुलाये
किसी ने हमें आज खुद से मिलाया ।
खड़े हैं अकेले अकेले वहीँ पर
जहाँ आशियाँ इक कभी था बसाया ।
उसे याद रखना हमेशा ही "तनहा"
ज़माने ने तुमको सबक जो सिखाया ।
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