उस को यूं हैरत से मत देखा करो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
उस को यूं हैरत से मत देखा करोज़िंदगी तो हादिसों का नाम है ।
जिसको ठुकराने चले तुम बिन पढ़े
दोस्ती ही का तो वो पैगाम है ।
उठ गया अब तो जहां से ऐतबार
शहर वालों में ये चर्चा आम है ।
काफिले में चल रहे हैं साथ साथ
अपनी अपनी फिर भी तन्हा शाम है ।
देख कर लाशें कभी रोते नहीं
खोदना ही कब्र उनका काम है ।
"सत्यवादी" कह के हंसता है जहां
बस यही सच कहने का ईनाम है ।
2 टिप्पणियां:
Wah bahut khoob
👍👍👌👌
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