अगस्त 26, 2012

POST : 84 बस मोहब्बत से उसको शिकायत रही ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

         बस मोहब्बत से उसको शिकायत रही ( ग़ज़ल ) 

                            डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बस मोहब्बत से उसको शिकायत रही
इस ज़माने की ऐसी रिवायत रही ।

इक हमीं पर न थी उनकी चश्मे करम
सब पे महफ़िल में उनकी इनायत रही ।

हम तो पीते हैं ये ज़हर ,पीना न तुम
उनकी औरों को ऐसी हिदायत रही ।

उड़ गई बस धुंआ बनके सिगरेट का
राख सी ज़िंदगी की हिकायत रही ।

भर के हुक्का जो हाकिम का लाते रहे
उनको दो चार कश की रियायत रही । 
 
अनसुनी बेकसों की रही दास्तां 
ज़ुल्म वालों को मिलती हिमायत रही । 
 
जिनकी झोली थी "तनहा" लबालब भरी 
सब मिले उनकी हसरत निहायत रही । 



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