राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहींझूठे ख्वाबों पे विश्वास करते नहीं।
बात करता है किस लोक की ये जहां
लोक -परलोक से हम तो डरते नहीं।
हमने देखी न जन्नत न दोज़ख कभी
दम कभी झूठी बातों का भरते नहीं।
आईने में तो होता है सच सामने
सामना इसका सब लोग करते नहीं।
खेते रहते हैं कश्ती को वो उम्र भर
नाम के नाखुदा पार उतरते नहीं।
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