अगस्त 07, 2012

POST : 25 ग़म से दामन बचाना छोड़ दिया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ग़म से दामन बचाना छोड़ दिया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ग़म से दामन बचाना छोड़ दिया
हमने आंसू बहाना छोड़ दिया ।

अब बहारो खिज़ा से क्या डरना
हमने अब हर बहाना छोड़ दिया ।

जब निभाना हुआ नामुमकिन तब
रूठ जाना ,  मनाना छोड़ दिया ।

हो गये हैं जो कब से बेगाने
उनको अपना बनाना छोड़ दिया ।

कब कहाँ किसने कैसे ज़ख्म दिये
हर किसी को बताना छोड़ दिया ।

उनको कोई ये जा के बतलाये
हमने रोना रुलाना छोड़ दिया ।

मिल गया अब हमारे दिल को सुकून
जब से दिल को लगाना छोड़ दिया ।

ख्याल आया हमारे दिल में यही
हमने क्यों मुस्कुराना छोड़ दिया ।

हमने फुरकत में "तनहा" शामो-सहर
ग़म के नगमें सुनाना छोड़ दिया ।  
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: