ग़म से दामन बचाना छोड़ दिया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
ग़म से दामन बचाना छोड़ दियाहमने आंसू बहाना छोड़ दिया ।
अब बहारो खिज़ा से क्या डरना
हमने अब हर बहाना छोड़ दिया ।
जब निभाना हुआ नामुमकिन तब
रूठ जाना , मनाना छोड़ दिया ।
हो गये हैं जो कब से बेगाने
उनको अपना बनाना छोड़ दिया ।
कब कहाँ किसने कैसे ज़ख्म दिये
हर किसी को बताना छोड़ दिया ।
उनको कोई ये जा के बतलाये
हमने रोना रुलाना छोड़ दिया ।
मिल गया अब हमारे दिल को सुकून
जब से दिल को लगाना छोड़ दिया ।
ख्याल आया हमारे दिल में यही
हमने क्यों मुस्कुराना छोड़ दिया ।
हमने फुरकत में "तनहा" शामो-सहर
ग़म के नगमें सुनाना छोड़ दिया ।
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