दिसंबर 30, 2012

और कुछ भी नहीं बंदगी हमारी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

और कुछ भी नहीं बंदगी हमारी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

और कुछ भी नहीं बंदगी हमारी
बस सलामत रहे दोस्ती हमारी।

ग़म किसी के सभी हो गए हमारे
और उसकी ख़ुशी अब ख़ुशी हमारी।

अब नहीं मांगना और कुछ खुदा से
झूमने लग गई ज़िंदगी हमारी।

क्या पिलाया हमें आपकी नज़र ने
ख़त्म होती नहीं बेखुदी हमारी।

याद रखनी हमें आज की घड़ी है
जब मुलाक़ात हुई आपकी हमारी।

आपके बिन नहीं एक पल भी रहना
अब यही बन गई बेबसी हमारी।

जाम किसने दिया भर के आज "तनहा"
और भी बढ़ गई तिश्नगी हमारी।  

नहीं कभी रौशन नज़ारों की बात करते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

      नहीं कभी रौशन नज़ारों की बात करते हैं ( ग़ज़ल ) 

                          डॉ लोक सेतिया "तनहा"

नहीं कभी रौशन नज़ारों की बात करते हैं
जो टूट जाते उन सितारों की बात करते हैं ।

हैं कर रही बरबादियां हर तरफ रक्स लेकिन
चलो खिज़ाओं से बहारों की बात करते हैं ।

वो लोग सच को झूठ साबित किया करें बेशक
जो रोज़ आ के हमसे नारों की बात करते हैं ।

वो जानते हैं हुस्न वालों की हर हकीकत को
उन्हीं के कुछ टूटे करारों की बात करते हैं ।

गुलों से करते थे कभी गुफ्तगू बहारों की
जो बागबां खुद आज खारों की बात करते हैं ।

हुआ हमारे साथ क्या है ,किसे बतायें अब
सभी तो नज़रों के इशारों की बात करते हैं ।

जिसे नहीं आया अभी तक ज़मीं पे चलना ही
वही ज़माने के सहारों की बात करते हैं ।

जो नाखुदा कश्ती को मझधार में डुबोते हैं
उन्हीं से "तनहा" क्यों किनारों की बात करते हैं ।
 

 

प्यार की बात मुझसे वो करने लगा ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

        प्यार की बात मुझसे वो करने लगा ( ग़ज़ल ) 

                          डॉ लोक सेतिया "तनहा"

प्यार की बात मुझसे वो करने लगा
दिल मेरा क्यों न जाने था डरने लगा ।

मिल के हमने बनाया था इक आशियां
है वही तिनका तिनका बिखरने लगा ।

दीनो-दुनिया को भूला वही प्यार में
जब किसी का मुकद्दर संवरने लगा ।

दर्दमंदों की सुन कर के चीखो पुकार
है फ़रिश्ता ज़मीं पे उतरने लगा ।

जो कफ़स छोड़ उड़ने को बेताब था
पर सय्याद उसी के कतरने लगा ।

था जो अपना वो बेगाना लगने लगा
जब मुखौटा था उसका उतरने लगा ।

उम्र भर साथ देने की खाई कसम
खुद ही "तनहा" मगर अब मुकरने लगा ।  
 

 

दिसंबर 29, 2012

बहाने अश्क जब बिसमिल आये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बहाने अश्क जब बिसमिल आये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बहाने अश्क जब बिसमिल आये 
सभी कहने लगे पागल आये।

हुई इंसाफ की बातें लेकिन
ले के खाली सभी आंचल आये।

सभी के दर्द को अपना समझो
तुम्हारी आंख में भर जल आये।

किसी की मौत का पसरा मातम
वहां सब लोग खुद चल चल आये।

भला होती यहां बारिश कैसे
थे खुद प्यासे जो भी बादल आये।

कहां सरकार के बहते आंसू
निभाने रस्म बस दो पल आये।

संभल के पांव को रखना "तनहा"
कहीं सत्ता की जब दलदल आये।

दिसंबर 28, 2012

हमको जीने के सब अधिकार दे दो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

        हमको जीने के सब अधिकार दे दो ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हमको जीने के सब अधिकार दे दो
मरने की फिर सज़ा सौ बार दे दो ।

अब तक सारे ज़माने ने रुलाया
तुम हंसने के लिए दिन चार दे दो ।

पल भर जो दूर हमसे रह न पाता
पहले-सा आज इक दिलदार दे दो ।

बुझ जाये प्यास सारी आज अपनी
छलका कर जाम बस इक बार दे दो ।

पर्दों में छिप रहे हो किसलिये तुम
आकर खुद सामने दीदार दे दो ।

दुनिया ने दूर हमको कर दिया था
रहना फिर साथ है इकरार दे दो ।

दिल देने आज "तनहा" आ गया है
ले लो दिल और दिल उपहार दे दो । 
 

 

हमको मिली सौगात है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 हमको मिली सौगात है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हमको मिली सौगात है
अश्कों की जो बरसात है ।

होती कभी थी चांदनी
अब तो अंधेरी रात है ।

जब बोलती है खामोशी
होती तभी कुछ बात है ।

पीता रहे दिन भर ज़हर
इंसान क्या सुकरात है ।

होने लगी बदनाम अब
इंसानियत की जात है ।

रोते सभी लगती अगर
तकदीर की इक लात है ।

"तनहा" कभी जब खेलता
देता सभी को मात है ।
 

 

दिसंबर 27, 2012

जब हुई दर्द से जान पहचान है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 जब हुई दर्द से जान पहचान है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

जब हुई दर्द से जान पहचान है
ज़िंदगी तब हुई कुछ तो आसान है ।

क़त्ल होने लगे धर्म के नाम पर
मुस्कुराने लगा देख हैवान है ।

कुछ हमारा नहीं पास बाकी रहा
दिल भी है आपका आपकी जान है ।

चार दिन ही रहेगी ये सारी चमक
लग रही जो सभी को बड़ी शान है ।

लोग अब ज़हर को कह रहे हैं दवा
मौत का ज़िंदगी आप सामान है ।

उम्र भर कारवां जो बनाता रहा
रह गया खुद अकेला वो इंसान है ।

हम हुए आपके, आके "तनहा" कहें
बस अधूरा यही एक अरमान है ।
 

  

दिसंबर 23, 2012

अलविदा पुरातन स्वागतम नव वर्ष ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

अलविदा पुरातन , स्वागतम नव वर्ष ( कविता ) डॉ  लोक सेतिया

अलविदा पुरातन वर्ष
ले जाओ साथ अपने
बीते वर्ष की सभी
कड़वी यादों को
छोड़ जाना पास हमारे
मधुर स्मृतियों के अनुभव ।

करना है अंत
तुम्हारे साथ
कटुता का देश समाज से
और करने हैं समाप्त 
सभी गिले शिकवे
अपनों बेगानों से
अपने संग ले जाना
स्वार्थ की प्रवृति को
तोड़ जाना जाति धर्म
ऊँच नीच की सब दीवारें ।
 
इंसानों को बांटने वाली
सकुंचित सोच को मिटाते जाना 
ताकि फिर कभी लौट कर
वापस न आ सकें ये कुरीतियां
तुम्हारी तरह
जाते हुए वर्ष
अलविदा ।

स्वागतम नूतन वर्ष 
आना और अपने साथ लाना
समाज के उत्थान को
जन जन के कल्याण को
स्वदेश के स्वाभिमान को
आकर सिखलाना सबक हमें
प्यार का भाईचारे का
सत्य की डगर पर चलकर
सब साथ दें हर बेसहारे का
जान लें भेद हम लोग
खरे और खोटे का
नव वर्ष
मिटा देना आकर
अंतर
तुम बड़े और छोटे का ।
 

  

दिसंबर 22, 2012

रुक नहीं सकता जिसे बहना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

रुक नहीं सकता जिसे बहना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

रुक नहीं सकता जिसे बहना है
एक दरिया का यही कहना है ।

मान बैठे लोग क्यों कमज़ोरी
लाज औरत का रहा गहना है ।

क्या यही दस्तूर दुनिया का है
पास होना दूर कुछ रहना है ।

बांट कर खुशियां ज़माने भर को
ग़म को अपने आप ही सहना है ।

बिन मुखौटे अब नहीं रह सकते
कल उतारा आज फिर पहना है ।

साथ दोनों रात दिन रहते हैं
क्या गरीबी भूख की बहना है ।

ज़िंदगी "तनहा" बुलाता तुझको
आज इक दीवार को ढहना है । 
 

 

उसको न करना परेशान ज़िंदगी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 उसको न करना परेशान ज़िंदगी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

उसको न करना परेशान ज़िंदगी
टूटे हुए जिसके अरमान ज़िंदगी ।

होने लगा प्यार हमको किसी से जब
करने लगे लोग बदनाम ज़िंदगी ।

ढूंढी ख़ुशी पर मिले दर्द सब वहां
जायें किधर लोग नादान ज़िंदगी ।

रहने को सब साथ रहते रहे मगर
इक दूसरे से हैं अनजान ज़िंदगी ।

होती रही बात ईमान की मगर
आया नज़र पर न ईमान ज़िंदगी ।

सब ज़हर पीने लगे जान बूझ कर
होने लगी देख हैरान ज़िंदगी ।

शिकवा गिला और "तनहा" न कर अभी
बस चार दिन अब है महमान ज़िंदगी ।
 

 

दिसंबर 21, 2012

गए भूल हम ज़िन्दगानी की बातें ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

गए भूल हम ज़िन्दगानी की बातें ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

गए भूल हम ज़िन्दगानी की बातें
सुनाते रहे बस कहानी की बातें।

तराशा जिन्हें हाथ से खुद हमीं ने
हमें पूछते अब निशानी की बातें।

गये डूब जब लोग गहराईयों में
तभी जान पाये रवानी की बातें।

रही याद उनको मुहब्बत हमारी
नहीं भूल पाये जवानी की बातें।

हमें याद सावन की आने लगी है
चलीं आज ज़ुल्फों के पानी की बातें।

गये भूल देखो सभी लोग उसको
कभी लोग करते थे नानी की बातें।

किसी से भी "तनहा" कभी तुम न करना
कहीं भूल से बदगुमानी की बातें। 

शिकवा नहीं है न कोई शिकायत है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

         शिकवा नहीं है न कोई शिकायत है ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ लोक सेतिया "तनहा"

शिकवा नहीं है न कोई शिकायत है
उनसे मिला दर्द लगता इनायत है ।

जीने ही देते न मरने ही देते हैं
ये इश्क वालों की कैसी रिवायत है ।

करना अगर प्यार ,कर के निभाना तुम
देता सभी को वो , इतनी हिदायत है ।

बस आखिरी जाम भर कर अभी पी लें
उसने हमें आज दे दी रियायत है ।

जिनको हमेशा ही तुम लूटते रहते
उनसे ही जाकर के मांगी हिमायत है ।

आगाज़ देखा न अंजाम को जाना
"तनहा" यही तो सभी की हिकायत है । 
 

 

दिसंबर 19, 2012

जिये जा रहे हैं इसी इक यकीं पर ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

जिये जा रहे हैं इसी इक यकीं पर ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

जिये जा रहे हैं इसी इक यकीं पर
हमारा भी इक दोस्त होगा कहीं पर।

यही काम करता रहा है ज़माना
किसी को उठा कर गिराना ज़मीं पर।

गिरे फूल  आंधी में जिन डालियों से 
नये फूल आने लगे फिर वहीं पर।

वो खुद रोज़ मिलने को आता रहा है
बुलाते रहे कल वो आया नहीं पर।

किसी ने लगाया है काला जो टीका
लगा खूबसूरत बहुत उस जबीं पर।

भरोसे का मतलब नहीं जानते जो
सभी को रहा है यकीं क्यों उन्हीं पर।

रखा था बचाकर बहुत देर "तनहा"
मगर आज दिल आ गया इक हसीं पर।

दिसंबर 14, 2012

दर्द को चुन लिया ज़िंदगी के लिये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

दर्द को चुन लिया ज़िंदगी के लिये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

दर्द को चुन लिया ज़िंदगी के लिये 
और क्या चाहिये शायरी के लिये।

उसके आंसू बहे , ज़ख्म जिसको मिले
कौन रोता भला अब किसी के लिये।

जी न पाये मगर लोग जीते रहे
सोचते बस रहे ख़ुदकुशी के लिये।

शहर में आ गये गांव को छोड़ कर
अब नहीं रास्ता वापसी के लिये।

इस ज़माने से मांगी कभी जब ख़ुशी
ग़म हज़ारों दिये इक ख़ुशी के लिये।

तब बताना हमें तुम इबादत है क्या
मिल गया जब खुदा बंदगी के लिये।

आप अपने लिए जो न "तनहा" किया
आज वो कर दिया अजनबी के लिये।     

दिसंबर 06, 2012

सिलसिला हादिसा हो गया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

  सिलसिला हादिसा हो गया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सिलसिला हादिसा हो गया
झूठ सच से बड़ा हो गया ।

कश्तियां डूबने लग गई
नाखुदाओ ये क्या हो गया ।

सच था पूछा , बताया उसे
किसलिये फिर खफ़ा हो गया ।

साथ रहने की खा कर कसम
यार फिर से जुदा हो गया ।

राज़ खुलने लगे जब कई
ज़ख्म फिर इक नया हो गया ।

हाल अपना   , बतायें किसे
जो हुआ , बस हुआ , हो गया ।

देख हैरान "तनहा" हुआ
एक पत्थर खुदा हो गया ।
 

 

दर्द को गुज़रे ज़माने हैं बहुत ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 दर्द को गुज़रे ज़माने हैं बहुत ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

दर्द को गुज़रे ज़माने हैं बहुत
बेमुरव्वत दोस्ताने हैं बहुत।

हो गये दो जिस्म यूं तो एक जां
फासले अब भी मिटाने हैं बहुत।

दब गये ज़ख्मों की सौगातों से हम
और भी अहसां उठाने हैं बहुत।

मिल न पाए ज़िंदगी के काफ़िये
शेर लिख - लिख कर मिटाने हैं बहुत।

हादिसे हैं फिर वही चारों तरफ 
हां , मगर किस्से पुराने हैं बहुत। 
 
हम खिज़ाओं का गिला करते नहीं 
फूल गुलशन में खिलाने हैं बहुत। 
 
कह रहे , हमको बुलाओ तो सही 
पर , न आने को बहाने हैं बहुत। 
 
ज़िंदगी ठहरी नहीं अपनी कहीं 
बेठिकानों के , ठिकाने हैं बहुत। 
 
वक़्त की रफ़्तार से "तनहा" चलो 
फिर , सभी मौसम सुहाने हैं बहुत। 

अब आप मेरी यही ग़ज़ल मेरे यूट्यूब चैनल अंदाज़-ए -ग़ज़ल पर भी सुनकर आनंद ले सकते हैं। 



 
 
 

 

दिसंबर 05, 2012

मत ये पूछो कि क्या हो गया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 मत ये पूछो कि क्या हो गया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मत ये पूछो कि क्या हो गया
बोलना सच ,  खता हो गया।

जो कहा भाई को भाई तो 
मुझ से बेज़ार-सा हो गया। 
 
आदमी बन सका तो नहीं
कह रहा मैं खुदा हो गया।

अब तो मंदिर ही भगवान से 
क़द में कितना बड़ा हो गया।

उस से डरता है भगवान भी 
देख लो क्या से क्या हो गया। 
 
घर ख़ुदा का जलाकर कोई 
आज बंदा ख़ुदा हो गया।
 
भीख लेने लगे लगे आजकल 
इन अमीरों को क्या हो गया।

नाज़ जिसकी  वफाओं पे था
क्यों वही बेवफा हो गया।

दर-ब-दर को दुआ कौन दे
काबिले बद-दुआ हो गया।

राज़ की बात इतनी सी है 
सिलसिला हादिसा हो गया। 

कुछ न "तनहा" उन्हें कह सका
खुद गुनाहगार-सा हो गया।  
 

 आप मेरी रचनाओं को मेरे यूट्यूब चैनल " अंदाज़-ए -ग़ज़ल " पर भी देख और सुन कर लुत्फ़ उठा सकते हैं। 


 

कश्ती वही साहिल वही तूफ़ां वही हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

       कश्ती वही साहिल वही तूफ़ां वही हैं ( ग़ज़ल ) 

                             डॉ लोक सेतिया "तनहा"

कश्ती वही साहिल वही तूफां वही हैं
खुद जा रहे मझधार में नादां वही हैं ।

हम आपकी खातिर ज़माना छोड़ आये 
दिल में हमारे अब तलक अरमां वही हैं ।

कैसे जियें उनके बिना कोई बताओ
सांसे वही धड़कन वही दिल जां वही हैं ।

सैलाब नफरत का बड़ी मुश्किल रुका था
आने लगे फिर से नज़र सामां वही हैं ।

हालात क्यों बदले हुए आते नज़र हैं
जब रह रहे दुनिया में सब इन्सां वही हैं ।

दामन छुड़ा कर दर्द से कुछ चैन पाया
फिर आ गये वापस सभी महमां वही हैं ।

करने लगे जो इश्क आज़ादी से "तनहा"
इस वतन पर होते रहे कुरबां वही हैं । 
 

 

ख्यालों में रह रह के आये जाये कोई ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

 ख्यालों में रह रह के आये जाये कोई ( नज़्म ) डॉ  लोक सेतिया 

ख्यालों में रह रह के आये जाये कोई
तसव्वुर में आ आ के मुस्काये कोई ।

सराहूं मैं किस्मत को ,जो पास मेरे
कभी खुद से घबरा के आ जाये कोई ।

वो भूली सी , बिसरी हुई सी कहानी
हमें याद आये , जो दोहराये कोई ।

ठहर जाए जैसे समां खुशनुमां सा
मेरे पास आ कर ठहर जाये कोई ।

किसी गुलसितां में खिलें फूल जैसे
खबर हमको ऐसी सुना जाये कोई ।
  
 

 

दिसंबर 03, 2012

बेवफ़ा हमको कह गये होते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बेवफ़ा हमको कह गये होते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बेवफ़ा हमको कह गये होते
हम ये इल्ज़ाम सह गये होते ।

बहते मौजों के साथ पत्थर भी
जो न साहिल पे रह गये होते ।

ग़म भी हमको सकून दे जाता
हंस के उसको जो सह गये होते ।

ज़ेब देते किसी के दामन को
अश्क जो यूं न बह गये होते ।

यूं न हम राह देखते उनकी
जो न आने को कह गये होते ।

थाम लेते कभी उसे बढ़कर
दूर "तनहा" न रह गये होते ।