अगस्त 29, 2012

आपने जब पिलाना छोड़ दिया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आपने जब पिलाना छोड़ दिया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आपने जब पिलाना छोड़ दिया
मयकदे हमने जाना छोड़ दिया।

रोज़ महफ़िल जमाना छोड़ दिया
घर किसी को बुलाना छोड़ दिया।

अब कहीं आना जाना छोड़ दिया
आपका आशियाना छोड़ दिया।

दोस्तों का ठिकाना छोड़ दिया
दुश्मनों से निभाना छोड़ दिया।

ज़िंदगी को डराना छोड़ दिया
अब ज़हर रोज़ खाना छोड़ दिया।

चारागर को बुलाना छोड़ दिया
दर्द को खुद बढ़ाना छोड़ दिया।

गैर सारा ज़माना छोड़ दिया
आज "तनहा" ने माना छोड़ दिया।
                                                    
(  चारागर = डॉक्टर = चिकित्सक )

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