जुलाई 24, 2021

चाय की कहानी उसकी ज़ुबानी ( अजीब दास्तां ) डॉ लोक सेतिया

 चाय की कहानी उसकी ज़ुबानी ( अजीब दास्तां ) डॉ लोक सेतिया 

चाय की चुसक्कियां लेते लेते लिख रहा हूं सामने भरी प्याली में गर्म गर्म चाय है इस हाथ टाइपिंग उस हाथ कप लिए। ये ज़रूरी था चाय की शर्त थी बस हम दोनों सबसे अलग इक साथ होंगे तभी अकेले में खुलकर बातें होंगी। चाय जैसी कोई नहीं है हुई नहीं होगी भी नहीं कभी भी। चाय इंसान इंसान में भेदभाव नहीं करती है जाने किसने झूठ कहा है चाय की प्याली और होंटों के बीच का फ़ासला इतना है कि कभी कभी सालों लग जाते हैं और प्याली के लबों तक पहुंचने में कितने जोख़िम हैं। चाय चाह का नाम है जहां चाह वहां राह होती है चाय से बिगड़ी बात बन जाती है सर्दी की धूप में चाय पीना लुत्फ़ और बढ़ा देता है तो गर्मी में गर्म चाय ठंडक पहुंचाती है। पत्नी महबूबा दिलरुबा इक प्याली चाय से मान जाती है सुबह की चाय ताज़गी लाती है शाम की चाय आशिक़ाना बनाती है। चाय की चाहत कम नहीं होती कभी ज़िंदगी भर साथ निभाती है बिछुड़ों को मिलाती है सब के मन को भाती है। खुद अपनी ज़ुबानी कहानी चाय सुना रही है कोई केतली रसोई में गुनगुना रही है खुशबू बाहर तलक जा रही है पड़ोसी को जैसे बुला रही है। 
 
मैं नहीं बदली दुनिया बदलती रही है प्याली कभी गलास कभी मग कभी लोटा भर कर कटोरी में डालकर पीना हज़ार ढंग बदले हैं पीने पिलाने वालों ने मेरा मिजाज़ नहीं बदला अंदाज़ नहीं बदला। मेरा साथ छोड़ा प्लेट प्याली का जोड़ा बिछुड़ा प्याली का अकार बदलता रहा मग का भरोसा नहीं कभी कितना बड़ा कितने संगी साथी कभी अकेला अलग अलग हुआ मगर मुझसे जुदा होकर नहीं रहा खुश कभी भी। कॉफी से मेरा कोई झगड़ा नहीं है कड़वाहट मिठास का रिश्ता होता नहीं है मुझे पीने वाले कभी बेवफ़ा नहीं होते हैं ये बात बतानी है कोई लफड़ा नहीं है। बिस्कुट से नाता मेरा सदियों पुराना है नमकीन से भी मुझको रिश्ता निभाना है बारिश में मौसम हो जाता सुहाना है कड़ाही संग टबलर मिल जश्न मनाना है गर्म पकोड़े चाय का रहता ज़माना है। चाय पीने को घर पर बुलाया है शायद मम्मी को बेटी की शादी का ख्याल आया है। चाय ने कितने संबंध बनाये हैं कारोबार कितने लोगों ने चाय साथ साथ पीकर बढ़ाए हैं। कौन है जिसने मुझे नहीं आज़माया है जब कोई नहीं देता साथ चाय ने निभाया है। 
 
पीने को बोतल शराब की भी कितनी हैं शर्बत कितने हैं और सबको लुभाती ढंडी रंग बिरंगी अनगिनत नाम की बाज़ारी जिस्मफ़रोश हैं बर्बाद करती हैं। लस्सी दूध को छोड़ सभी आदमी का सत्यानाश करती हैं। चाय पर कोई ऐसा इल्ज़ाम नहीं है दुनिया में कोई मेरा हमनाम नहीं है। चाय मुहब्बत का पैगाम देती है दोस्तों को बिठाती है साथ चाहे जिस जगह हो भूले नहीं ऐसा ईनाम देती है। घर की होटल की चायखाने की ढाबे की किसी चलते फिरते चायवाले की महंगी नहीं सस्ती नहीं बस गर्माहट देती है ठंडे रिश्तों को पल भर में नया करती है। प्याली खुद नहीं पीती बुझाती है चाह सबकी चाय की मस्ती है शहर गली बस्ती है। चाय के दुनिया में दीवाने बहुत हैं इक इक प्याली को याद अफ़साने बहुत हैं। चाय गर है साथ याराने बहुत हैं कहने को कई महंगे नज़राने बहुत हैं पर चाय की प्याली तूफ़ान खड़े करती है घर घर में रहती है सब चुपके से कहती है पीकर गाओ दिलकश तराने बहुत हैं। चाय की प्याली भी जिनको मिलती नहीं वही समझते हैं कितनी बड़ी कीमत है उसकी। ये मेरी चाय की प्याली नहीं है कहकर ढंडी आह भरते हैं अक्सर लोग।

You're my cup of tea drink sticker - TenStickers

जुलाई 22, 2021

धुंवा बनाके फ़िज़ा में उड़ा दिया मुझको , मैं जल रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको।

   भगवान बेचते सब पैसे के पुजारी ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

झूठ बोलते हैं अदालत में शपथ खाकर सच बोलने की संविधान की शपथ उठाकर धज्जियां उड़ाते हैं। हम सच नहीं कहते झूठ से पर्दा हटाते हैं जो देखते हैं उसकी असलियत समझते समझाते हैं। इधर उधर से ढूंढकर मुद्दे लाते हैं सिक्का नहीं उछालते नहीं किस्मत आज़माते हैं राज़ की बात भरी महफ़िल में कहते हैं बेआबरू होकर निकाले जाते हैं। खेल पैसे का है पैसा भगवान है कथा कहानी हक़ीक़त फ़लसफ़ा है। शुरुआत करते हैं टीवी पर इक नया विज्ञापन चल रहा है गांव के लोग बात कर रहे हैं स्कूल की ईमारत की हालत खराब है कुछ करना होगा सरकार ने हाथ खड़े कर दिये हैं। जब तलवार मुकाबिल हो अखबार निकालो आजकल कोई नहीं कहता क्योंकि अखबार टीवी चैनल खुद बंदर के हाथ उस्तरा बन गए हैं बंदर बांटता है बिल्लियां रोटी खाने की आस लिए बंदर का गुणगान करती हैं। कुछ मुहावरे की नकल की तरह उपाय ढूंढते हैं और निर्णय किया जाता है मुनादी करवाई जाती है केबीसी को फोन लगाओ गांव के समझदार सब उल्लू बन जाओ। लगता है सरकार ने अमिताभ बच्चन को ज़िम्मा सौंपा है हमसे नहीं होता आप केबीसी से विकास की गंगा लाओ जनता को समझाओ खाली दिमाग शैतान का घर होता है सबके दिमाग में कचरा भर कर उलझन को सुलझाओ नहीं सुलझती और उलझाओ। बस 15 सवाल हैं ज़िंदगी मौत का सवाल नहीं है कोरोना को छोड़ो धमाल नहीं मिसाल नहीं है। आपके सामने ऑप्शन होते हैं किधर जाना है सही दिशा कौन सी है दिमाग़ कहता है जिधर सभी जाते हैं उसी डगर चलना ठीक है दिल है कि मानता नहीं और आत्मा भटकती है कोई अलग रास्ता बनाने को चिंतन करती है लेकिन रटी रटाई बात याद आती है सत्य की खोज की ज़रूरत नहीं है आगे बढ़ना है तो जो जवाब पैसा दिलवाता है उसी को लॉक करना होगा। कपिल शर्मा के कॉमेडी शो में सही जवाब का शोर मचाकर बच्चा यादव मंच को हिलाकर रख देता है। अमिताभ बच्चन और टीवी शो वाले खुद अपनी असलियत नहीं जानते दुनिया भर की जानकारी समझदारी की बातें करते हैं। दुनिया से जाना है खाली हाथ सबको मगर क्या कमाल है कुत्तों को खिलाते हैं जानवर से प्यार करते हैं इंसान को इंसान नहीं समझते आदमी आदमी को भूनकर खाने लगे हैं। दुष्यन्त याद आने लगे हैं घर मिल रहा जहां तहखानों से तहखाने लगे हैं। महल वालों के अंदाज़ नज़र आने लगे हैं घर वही है रहने वाले लोग वही हैं दरवाज़े अलग अलग होने लगे हैं करीब होकर दूर जाने लगे हैं बात करने से बचते हैं मिलने जुलने से कतराने लगे हैं। अपने भीतर शिकवे शिकायत बैर नफरत छुपा नकाब चेहरे पर लगाकर मुस्कुराने लगे हैं। 
 
सत्तावाले सोने चांदी के कलम भिजवाने लगे हैं जो बात लिखवानी है लिखवाने लगे हैं। सच की बात करने वाले झूठ के कदमों में सर झुकाने लगे हैं। टीवी सीरियल फिल्म गाने समाज को गलत दिशा दिखाने लगे हैं ज़मीर बेचने वाले धन दौलत कमाने लगे हैं। लोग खोटे सिक्कों को बार बार आज़माने लगे हैं। संसद विधानसभा में देश समाज की समस्याओं की चर्चा छोड़कर माननीय कहलाने वाले आपस में टकराने लगे हैं चाय की प्याली में तूफ़ान उठाकर अपनी ताकत को आज़माने लगे हैं। शून्यकाल में सवाल खड़े हैं जवाब खाली कुर्सियां हैं कौन सुनता है चीख पुकार आम लोग रोते बच्चे भूखे सो जाने लगे हैं। खड़ा हूं आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए , सवाल ये किताबों ने क्या दिया मुझको। धुंवा बनाके फ़िज़ा में उड़ा दिया मुझको , मैं जल रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको। नज़ीर बाकरी जी की ग़ज़ल जगजीत सिंह की आवाज़ में हर लफ्ज़ हक़ीक़त है आज भी।
 

 


जुलाई 20, 2021

कुछ करना था कुछ कर बैठे ( सच के दर्पण में ) डॉ लोक सेतिया

  कुछ करना था कुछ कर बैठे ( सच के दर्पण में ) डॉ लोक सेतिया 

ढूंढने से जो नहीं मिला जीवन भर अचानक सामने खड़ा दिखाई दिया कहीं ये कोई ख़्वाब तो नहीं। नहीं ये सपना नहीं हक़ीक़त सामने नज़र आई मुझे बिल्कुल शीशे की तरह साफ जिसको तलाश किया इधर उधर मिला भी तो खुद अपने पास और इतना पास कि कोई फ़ासला नहीं था दोनों में ज़रा भी। मैंने चाहा उस से पूछना बहुत कुछ कितने सवाल मन में उठते रहे ज़िंदगी भर मगर कुछ भी कहने से पहले उसने सब कुछ बता दिया जैसे किसी परीक्षा में हर सवाल का जवाब लिखा हुआ हो। आधुनिक समय में होता है आपको सही और गलत का निशान लगाना होता है झट से पहले से दिए कॉलम में। पर यहां सोचने की ज़रूरत नहीं थी सही का निशान लगा हुआ था जैसे ऐसा गलत है साफ बताया हुआ था। आपको समझने में आसानी हो इसलिए आपको तमाम उलझनों समस्याओं परेशानियों चिंताओं का कारण भी समाधान भी बता देता हूं बस आपको हां या नहीं सच या झूठ जो उचित लगता है बोलना है खुद से खुद ही बात करनी है। आत्मचिंतन उसी तरह है जैसे हम आप अपनी मन की बात सोशल मीडिया पर लिखते हैं सोचते हैं लोग नासमझ हैं उनको समझाना ज़रूरी है खुद कभी नहीं समझा क्या समझना क्या समझाना है। ध्यान से पढ़ना खुली किताब को बिना समझे पन्ने नहीं पलटते जाना जैसे साल बढ़ते गए संख्या बढ़ी हम वहीँ रहे जहां थे। 
 
   क्या कुछ भी वास्तव में उस तरह का है जैसा होना चाहिए दुनिया में सब कुछ जैसा है कोई नहीं मानता कि बढ़िया है। लेकिन हम जिस चीज़ को अच्छा नहीं समझते बदलते रहते हैं अपने खुद की खातिर घर वाहन साज़ो-सामान खराब छोड़ बेहतर चुनते हैं हासिल करते रहते हैं। लेकिन जिस दुनिया में रहना है उसको अच्छा और सुंदर बनाने की जगह और भी खराब करते रहते हैं। किसी और ने नहीं हमने बर्बाद किया है इस कभी बड़ी खूबसूरत रही दुनिया को और कैसा बनाया है जैसा बनाना कदापि नहीं था। सरकार राजनेता अधिकारी न्यायपालिका पुलिस सुरक्षा शिक्षा स्वास्थ्य सेवा यहां तक कि धर्म भगवान समाजसेवा तक सभी जैसा होने चाहिएं उस के उल्ट हैं। धन दौलत शोहरत सुख सुविधा के पीछे भागते रहते हैं इक रेगिस्तान में मृगतृष्णा की तरह चमकती रेत को पानी समझ और मर जाते हैं प्यास से। प्यास बुझ सकती थी अथाह सागर था पास हमने जिसको देखा नहीं मुहब्बत इंसानियत और दोस्ती अपनेपन को छोड़ खुदगर्ज़ी को मकसद बना लिया है। 
 
कोई रिश्ता कोई संबंध सच्चा और निस्वार्थ नहीं बनाया है हमने सब को खराब किया है जो नहीं भाया उसको भी संवारा नहीं मिटाना चाहा है। बनाना नहीं सीखा बने बनाये को ख़त्म करना यही किया है। विधाता जो चाहता है हमने उसके विपरीत किया है मनमानी की है और विधि से मिला जो हम नहीं चाहते थे। जिस दिन अपनी मर्ज़ी छोड़ विधाता की मर्ज़ी को समझ सही आचरण करने लगे बदले में जिसकी हमको चाहत है विधाता वही देगा। बस हम उस से होड़ लगा बैठे हैं जिस के सामने अपना कोई बस नहीं चलता और बेबस हैं। हम खुद को नहीं बदलते विधाता को उसकी दुनिया को बदलना चाहते हैं। मगर किया क्या है दुनिया बनाने वाले की हर चीज़ को हमने चाहा है अपनी मर्ज़ी की बनाने को बदलने में जैसा था उस से खराब किया है। शायद ध्यानपूर्वक देखना होगा क्या ये सब जैसा होना चाहिए उसके उल्ट नहीं है जैसे सफ़ेद और काला रंग। लेकिन हमने कालिख़ को दाग़ को छुपाने को सब कुछ काले रंग में रंग दिया है। इतना ही नहीं हम काले रंग झूठ आडंबर और सभी गलत बातों को स्वीकार कर अपना लिया है। राह ही गलत चलते रहे हैं तो जिस मंज़िल की चाह थी मिलती कैसे और हम अपनी खूबसूरत मंज़िल से इतना दूर होते गए हैं कि हमारी राहें  भी खो गई हैं। 
 
सामने सच खड़ा हुआ है सच ही ईश्वर है और सच के दर्पण में सब कुछ दिखाई दिया है। कुछ करना था कुछ कर बैठे। ज़िंदगी का घड़ा भरता नहीं है जितना पानी डालते हैं रिसता जाता है जीवन को बहते दरिया की तरह बनाते तो प्यास बुझाते सबकी कुछ फूल खिलाते इक गुलशन था ये दुनिया इसको बर्बाद नहीं करते बचाते सजाते और सब पाने से अच्छा था कुछ दे कर जाते। 
 
 Money Quotes in Hindi: मैं पैसा हूँ - Afroj.In

जुलाई 15, 2021

कल्याणकारी मोदीमंत्र ( नवीनतम अध्याय ) डॉ लोक सेतिया

   कल्याणकारी मोदीमंत्र ( नवीनतम अध्याय ) डॉ लोक सेतिया 

आखिर मैंने उनको मना ही लिया उनके शिखर तक पहुंचने के निराले ढंग अजब तौर तरीके और अचूक निशाने पर लगने वाले रहस्यमयी बाणों का भेद खोलने को जनहित विश्वकल्याण की दुहाई देकर। आपको यहां तलक पहुंचने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान किस का रहा है पहले ये सवाल करना लाज़मी था। क्या जनता का संपर्क संगठन का भरोसा या दल का समर्थन इसके लिए पहली सीढ़ी साबित हुआ। ताली बजाते हुए हंस कर कहने लगे इतना भी नहीं जानते हर कामयाब व्यक्ति के पीछे किसी महिला का हाथ होना लाज़मी है। मेरी धर्मपत्नी अगर चाहती तो मुझे अपने बंधन से मुक्त नहीं होने देती और मैं दाल रोटी कपड़ा मकान घर का सामान जमा करने में भटकता रहता। लेकिन उस महान आदर्शवादी नारी ने मुझे किसी झंझट में नहीं डाला मुझ पर गुज़ारा मांगने तक को मुकदमा नहीं किया। सोचो अगर अलग अलग रहने से विवाह बंधन से छुटकारा पाने को पंचायत का अथवा अदालत का दरवाज़ा खटखटाती तो मैं जितने साल खैरात मांग कर गुज़र बसर करता रहा इन चक्करों में फंसकर ज़िंदगी बिताने को मज़बूर हो सकता था। आज भी मेरे शासक बनने के बाद उस औरत ने कभी अपना अधिकार नहीं चाहा है जो कानून संविधान भी उसको इनकार नहीं कर सकता है। बात पते की लगी तो मैंने कहा किसी महीने मन की बात करते रेडियो पर उनका धन्यवाद या आभार ही जता देना उचित था किया नहीं किसलिए। उन्होंने कहा ये पति - पत्नी का आपसी मामला है इसको राजनीतिक चर्चा से अलग रखना चाहिए। 
 
ठीक है जैसा आपकी मर्ज़ी मगर आपके कितने मंत्र आये-दिन सुनते हैं कुछ ख़ास ऐसे सभी की भलाई के लिए बताओ। उन्होंने कहा मुझे जानवरों से बड़ा लगाव है प्यार है उनसे सीखने को बहुत मिलता है। बिल्ली और कुत्ता दो जीव हैं जिनको लोग पालते हैं मगर उनका सवभाव अलग अलग है सोच बिल्कुल उल्टी है। कुत्ते को कोई खिलाता पिलाता है रहने को जगह देता है उसको आराम से सोने को बिस्तर कपड़े देता है तब कुत्ता समझता है ये मेरा भगवान है मुझे सब देता है। इसलिए अपने पालने वाले के पांव चूमता है दुम हिलाकर उपकार मानने का इज़हार करता है। लेकिन यही सब बिल्ली को मिलता है तो उसको लगता है मैं भगवान हूं तभी ये मुझे खुश करने को रात दिन कोशिश करता है। बिल्ली जो मिलता है उसको अधिकार समझती है और कुत्ता उसी को उपकार समझता है। सियासत में ये दोनों महत्वपूर्ण सबक सिखलाते हैं। कुत्ते को हड्डी खिलाते हैं बिल्ली से दूध को बचाते हैं छिपाते हैं मुश्किल खड़ी तब होती है जब चूहे बिल्ली कुत्ते शेर दोस्ती निभाते हैं। ऐसा होता है जब चुनाव करीब आते हैं। लोमड़ी को सरे गुर आते हैं गिरगिट भी रंग बदलने में पीछे रह जाते हैं हम राजनेता मगरमच्छ हैं चबाते नहीं निगल जाते हैं लोग हमको बार बार आज़माते हैं। धोखा खाते हैं पछताते हैं सब सम्मोहित करने वाले मंत्र बस मुझी को आते हैं। असली बात आपको समझाते हैं बात कहते हैं बात से मुकर जाते हैं अच्छे दिन लाने की बात थी जानते हैं कैसे कैसे हालात दिखलाते हैं। किया जो जो छुपाते हैं जो कर नहीं सकते उसके सपने दिखलाते हैं बिना कुछ भी करे कर दिया का शोर मचाते हैं जब लोग समझने लगते हैं उनको भारतमाता की जय देशभक्ति जैसे नारों से उलझाते हैं हारी बाज़ी को जीतने वाले बाज़ीगर कहलाते हैं।

जुलाई 09, 2021

दर्शक ताली बजाओ मदारी बंदर नचाओ ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

इक बस वही खिलाड़ी सब अनाड़ी ( सत्ता की बाज़ी ) डॉ लोक सेतिया 

ये उनकी राजनीति है उनके लिए खेल बदलते हैं मैदान बदल जाते हैं मगर मर्ज़ी उनकी रहती है। धर्मराज जुए में सब को दांव पर लगाते हैं हर बाज़ी हार जाते हैं फिर भी सच्चे अच्छे कहलाते हैं। उनके हाथ देश की बागडोर है सारी की सारी दुनिया चोर है उनकी बात और है दिल पर भला चलता किस का ज़ोर है। मन की बात करते हैं झूठ कहते हैं सब उनका झूठ सबसे बड़ा सच कहलाता है रोज़ बात से मुकरते हैं। आपको कुछ समझ नहीं आ रहा है कोई आपको देशभक्ति का सबक पढ़ा रहा है अपनी धुन में कोई दरवेश भजन सुनाता चला जा रहा है मधुर स्वर सुन कितना मज़ा आ रहा है। खुले आकाश से राजदरबार तक किसी मॉल से मल्टीप्लेक्स और थियेटर तक उसका तमाशा है आपकी हर निराशा उसकी बन जाती आशा है आदमी नहीं है इक बताशा है मिलने की आशा है। उसके हाथ हज़ार हैं सारी दुनिया में उसके यार हैं किस लिए लोग बेज़ार हैं। बर्बादी के जितने भी आसार हैं उनकी सत्ता के सभी अचूक हथियार हैं। अपनी अपनी कहानी है बिल्ली शेर की नानी है जनता की नादानी है जिसने बदहाल किया उसकी भी समझी मेहरबानी है। चलो इस किताब को खोलते हैं खामोश अल्फ़ाज़ कभी बहुत कुछ बोलते हैं राज़ की बात खोलते हैं उनको सच के तराज़ू में तोलते हैं। जिनकी शोहरत के चर्चे हैं आमदनी से बढ़कर जिनके खर्चे हैं उन का क्या क्या हिसाब है लिखा बही खाता में सौ खून माफ़ है। हर अध्याय मुक़्क़मल है समझना चाहो तो कोई नहीं मुश्किल है। 
 
पहला अध्याय। मैं आज़ाद हूं। अमिताभ बच्चन की पुरानी फिल्म है पर्दे से असलियत में कर दिखाया है किसी संपादक ने झूठा किरदार बनाकर अपनी कल्पना से सभी पाठकवर्ग को उल्लू बनाया है। रोज़ जिस नाम से कॉलम पढ़वाया है कोई नहीं बस इक साया है अचानक कोई भूखा बेबस नज़र आया है जिसने सड़क से फेंका झूठा सेब चुपके से उठाया है। उसकी मज़बूरी का फायदा उठाया है खूब खिलाया है और पैसे देकर झूठ बोलने का अनुबंध करवाया है। मैं आज़ाद हूं , सबसे दावा कर अमिताभ बच्चन से मिलवाया है। किरदार अभी तक सदी के महानायक निभाते हैं हर फिल्म में झूठा किरदार शिद्दत से निभाते हैं मालामाल होते जाते हैं। आपको करोड़पति बनने की राह दिखाते हैं खेल खेल में पैसा बनाते हैं समझदारी उसको बतलाते हैं। आजकल कितने लोग आपको जुआ खेलने को ललचाते हैं टीवी पर खेलो और जीतो विज्ञापन में उल्टी पट्टी पढ़ाते हैं ये गुमराह करने वाले नायक समझे जाते हैं। 
 
सबसे बड़ा खिलाडी। अध्याय दो। खोटा सिक्का उसने चलाया है कुछ भी नहीं आता फिर भी सब में हाथ आज़माया है। कभी शतरंज की बिसात बिछाई है जनता मोहरे हैं बादशाह की मौज मस्ती है सत्ता की खुमारी छाई है। हर कोई दुश्मन है हर कोई भाई है बस उसकी मुहब्बत और जंग की लड़ाई है जिस में सब जायज़ है कौन सच्चा आशिक़ कौन हरजाई है। चाल उसकी है मात खाई है मगर क्या लाजवाब की चतुराई है उसने बिसात पलटी है हारी बाज़ी जिताई है। अब कोई खेल नया खेलेगा ताश की बाज़ी में हार जाएगा पुलिस बनकर वापस ले लेगा। उसने ताश के पत्तों का महल बनाया है बस हवा का झौंका कहीं से आया है बिखर गए सभी पत्ते हैं। अभी नहीं समझे बड़े कच्चे हैं उनके सामने बूढ़े भी बच्चे हैं। सरकार कोहलू के बैल जैसी है चलती रहती है अपने दायरे में नहीं किसी मंज़िल पर पहुंचती है उसकी आंखों पर बंधी खुदगर्ज़ी की पट्टी है। खराब है मगर अपनी महबूबा है ज़ुल्म ढाये फिर भी प्यार आता है उनको करना हर वार आता है उनकी सूरत पे प्यार आता है। शोहरत की बुलंदी की बात मत पूछो हर घड़ी इश्तिहार आता है। उनको नींद नहीं आती है खबर उनको सच्ची नहीं भाती है उनकी शोहरत घटती जाती है जान जाती है रूह थरथराती है। 
 
        (  अभी जारी है किताब का अगला अध्याय अगली पोस्ट पर। )
 

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जुलाई 07, 2021

तस्वीर तेरी दिल में ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

       तस्वीर तेरी दिल में ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

आशिक़ आशिक़ होते हैं महबूबा की तस्वीर दिल में छुपा कर रखते थे कभी ज़माना था। किसी शायर ने कहा था कुछ हसीनों के खतूत कुछ तस्वीरें बुताँ बाद मरने के मेरे घर से ये सामां निकला। अब उनको क्या मालूम था कितनी हैं अब तलक और कितनी अभी और बनानी हैं। बड़े दिलवाले लोग मुहब्बत बांटने में किफ़ायत नहीं किया करते हैं। आधुनिक युग है आशिक़ी का रोग छोटी उम्र में लग जाता है शायद कोई बचना चाहता है कोई नहीं बच पाता है। सोशल मीडिया ने झूठी मुहब्बत की कितनी कहानियां बनाई बिगाड़ी हैं फेसबुक पर बाज़ार सजा हुआ है सच्ची मुहब्बत की झूठी तस्वीरों का। किसी सिरफिरे ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर बंदे ने फेसबुक पर इक पेज बना डाला है सब पेज लाइक करने वालों को जिस किसी से मुहब्बत हुई उसकी बात तस्वीर के साथ शेयर करने को कहा है। खुद को बदनसीब बताया है क्योंकि उनकी ज़िंदगी में जो भी मिलती रहीं उनकी तस्वीर पास नहीं है लिखते हैं तस्वीर तेरी दिल में बसाई है। कोई वक़्त था लड़के अपने ख़ाली बटुए में तस्वीर रखते थे बस तस्वीर से बात करते थे उसको कहने से डरते थे। वहीं से कुछ टुकड़े आशिक़ों के दिल के बिखरे पड़े हैं लाया हूं आपको दिखाने को क्या ज़रूरी है हर मुहब्बत की अमर कहानी कोई लिखे जाने कितने बेनाम अनजान बदनाम आशिक़ सच्चे नहीं झूठे ही सही दुनिया में हुए हैं। इधर शायरी लिखने वालों ने खूबसूरत तस्वीर साथ लगाई है मिलती बधाई है। आपने अपनी कहानी क्या किसी को बताई है तौबा तौबा ये प्यार की रुसवाई है , देखा कोई पढ़ कर लज्जाई शर्माई है। 
 
     बचपन की मुहब्बत को दिल से न भुला देना , पोस्ट पर तस्वीर गुलाब के फूल की नहीं किसी भंवरे की लगाई है। समझ नहीं आई बात इतनी साफ समझाई है भंवरा बड़ा नादान रे , बगियन का महमान रे , फिर भी जाने ना जाने ना जाने ना कलियन की मुस्कान रे। किसी लड़की की फेसबुक वाले लड़के ने किसी की तस्वीर फेसबुक से लेकर उसकी तस्वीरों का गुलदस्ता बनाकर क्या कमाल किया है। बस जिसकी तस्वीर है उसी को नहीं पता कौन है उसने कि इसने ब्लॉक किया है। सोनम बेवफ़ा नहीं है किस्सा भूला नहीं है हर कोई उसकी गवाही देता था , सोनम ने अपनी बात लिखी है बस यही बताया है नाम पर मत जाना असली नहीं है बाकी सब सच है। सबसे लाजवाब बात इक महिला ने लिखी है जिस से सच्चा प्यार हुआ कभी इकरार नहीं इज़हार नहीं किया उसके लिए ज़िंदगी भर घर-बार नहीं किया उसके नहीं रहने पर उसकी नाम की माला जपती है खुद को मीरा कहती है राधा कहती है। जिस देश में गंगा बहती है कितनी फ़िल्मी कहानियां कितनी नायक नायिकाओं के किस्से लिखे हुए हैं। साहिर की बात से लेकर रेखा हेमा की कितनी कहानियां पढ़ कर लगता है मुहब्बत का तमाशा किसी मेले की नौटंकी में दिखाया जा रहा है। 
 
  सबसे बड़ी सच्ची मुहब्बत रूहानी होती है किसी ने ख़ुदा से ऊपरवाले से इश्क़ की कहानी लिखी है। पढ़कर किसी ने वीडियो बना डाला है कोई बादशाह किसी को खुले आसमान के नीचे मिट्टी से खेलते देख सोचता है इस के पास घर नहीं पहनने को कपड़े नहीं खाने को कुछ नहीं है। उस से कहता है मेरे साथ मेरे महल में चलकर रहो आपको सब मिलेगा जो भी मांगोगे। क्या मेरी चार शर्त मानोगे मुझे साथ ले जाना चाहते हो तो बताओ। बादशाह ने कहा कोई मुश्किल नहीं मेरे लिए बोलो क्या क्या शर्त है। उसने कहा मुझे सब खाने को देना मगर खुद आपको कुछ भी नहीं खाना पहली शर्त है , बादशाह ने कहा ये छोड़ और क्या है शर्त बताओ। उसने कहा मुझे शानदार लिबास पहनने को देना खुद नहीं पहनना , तीसरी शर्त मुझे चैन से सोने देना खुद कभी नहीं सोना होगा , और चौथी शर्त है मुझे छोड़कर कभी इक पल भी कहीं नहीं जाना। बादशाह बोले आप ही बताओ कोई भी ऐसा कैसे कर सकता है। मुझे अपने राज का सब कुछ कामकाज करना है कैसे कर सकता हूं।  उसने बताया मेरा ईश्वर ये सब करता है मुझे खिलाता है खुद कुछ नहीं खाता है। मुझे पहनने को कपड़े देता है खुद नहीं पहनता , मैं सोता रहता वो कभी नहीं सोता है , कभी भी मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जाता। फिर भी उसका कामकाज उसका दुनिया का सब काम नियमित होता रहता है दिन रात हवा पानी मौसम कुदरत सभी रुकते नहीं हैं। सोचना आपको किसी तस्वीर की ज़रूरत नहीं होगी कोई ईमारत कोई मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा गिरजाघर ज़रूरी नहीं उस से मुहब्बत सबसे सच्ची मुहब्बत है। माला फेरना गिनती करते रहना जैसे कर्म की अहमियत नहीं है। 
 
बसाना ही है तो रूह में बसा मुझको - HindiLoveShayari.CoM

जुलाई 04, 2021

ज़िंदा हैं मर कर भी लोग ( ग़ज़ब की बात ) डॉ लोक सेतिया

  ज़िंदा हैं मर कर भी लोग ( ग़ज़ब की बात ) डॉ लोक सेतिया 

बड़े बड़े दार्शनिक बड़े बड़े संत महात्मा आदर्शवादी समाज सुधारक समझाते रहे मर के भी अमर अजर होने को अच्छे अच्छे कर्म करने चाहिएं अच्छाई सच्चाई की राह चलना चाहिए मगर हम ज़िंदा होकर भी मरे जैसे बेज़मीर लोग बन कर सालों की गिनती बढ़ाते रहे। वास्तव में जीना ऐसा था बल्कि है जीते हैं जैसे कोई चलती फिरती लाश हैं। वास्तविक जीवन कठिन लगता है तभी हमने इक झूठा सपने जैसा जीवन जीना सीख लिया है व्हाट्सएप्प  फेसबुक पर ज़िंदा हैं कुछ लोग दुनिया से अलविदा होने के बाद भी और हमने देखा कुछ दिन बंद किया सोशल मीडिया पर खाता तो लोग समझने लगे जाने ज़िंदा भी हैं कि नहीं। यही ग़ज़ब की बात है आपकी ज़िंदगी की खबर से महत्वपूर्ण लगती है मौत की खबर। दोस्त तो दोस्त दुश्मन भी चाहते हैं तारीफ़ करना फूल चढ़ाना भूलकर दिल की रंजिशें। कभी कभी समझते हैं चार दिन की ज़िंदगी हज़ार झगड़े झमेले किसलिए काश हंसते बोलते मिलते प्यार मुहब्बत की दास्तां बनते। स्वर्ग जैसी लगती है ये काल्पनिक सोशल मीडिया की नकली दुनिया जिस में सभी कुछ है और सबके लिए है शुभकामनाएं भगवान की भक्ति से लेकर आपको मार्गदर्शन देने वाली बातें कथाएं कहानियां। लगता है किसी को किसी से कोई बैर नफरत जलन नहीं है हर कोई सबकी भलाई अच्छाई की चाहत रखता है। 
 
  वास्तविक ज़िंदगी में आपने क्या किया क्यों किया उसका हिसाब कहीं कोई नहीं लिखता है लेकिन अपने सोशल मीडिया पर खूब अपना सिक्का जमाया है सबको वही सच लगता है। समस्या विकट है हम लाख कोशिश कर असली ज़िंदगी में उस तरह बन नहीं सकते हैं। जानते हैं ये सब बेकार किताबी बातें हैं और किताबों को पढ़ना नहीं उनको अलमारी में सजाकर रखते हैं कोई दिन होता है जिस दिन उनको झाड़ पौंछ कर माथा टेकते हैं। जब हमने मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे को भी घंटा बजाने माथा टेकने मोमबत्ती जलाने आरती अरदास पूजा ईबादत करने की जगह समझ लिया है चिंतन मनन करने की जगह कोई नहीं सिर्फ रटी रटाई बात वही औपचारिकता निभाते हैं हर दिन ऐसे में सोशल मीडिया की बातों का असर ख़ाक होगा। शायद हमने स्वर्ग तलाश कर लिया है अनजाने में जन्नत का सुख अनुभव करते हैं परियां हैं बहार है कितनी रौशनी है। लेकिन हम किसी गहरी नींद में सोये हुए दिलकश ख़्वाब देखते रहते हैं नींद खुलने से डरते हैं कहीं हक़ीक़त सामने आकर खड़ी नहीं हो जाए। चिट्ठी नहीं आती मगर संदेश आते हैं स्वर्ग की दुनिया है स्मार्ट फोन की हमारी दुनिया जिस में सांसों की नहीं इंटरनेट डॉटा की ज़रूरत पड़ती है। क्षण भर में जान मुश्किल में पड़ जाती है। सोशल मीडिया की ज़िंदगी में हमसे असली जीने का मज़ा छीन लिया है बात इतनी नहीं हमने अपनी झूठी पहचान बनाने में असली पहचान खो दी है। दुनिया क्या हम खुद से भी अजनबी हैं अपने चेहरे को देखते हैं तो लगता है आईने में कोई और अक्स है हमारी कितनी खूबसूरत डीपी है।
 

 


जुलाई 03, 2021

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी ( ज़फ़र से जारी है सफ़र ) डॉ लोक सेतिया

 बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी ( ज़फ़र से जारी सफ़र ) 

                                       डॉ लोक सेतिया

जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी। बादशाह होकर भी उनकी मुश्किल वही थी और सदियों बाद हमारी भी हालत उन से बढ़कर कठिन है। दुष्यंत कुमार को भी बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार। ये कोई सरकारी फ़रमान की ही बात नहीं है घोषित आपात्काल की बात भी नहीं हालात समाज के ऐसे बन गए हैं कि शोर मचाने की छूट है हर कोई बंद कमरे में बैठा सोशल मीडिया पर भड़ास निकाल सकता है घर की चौखट लांघते ही सोच विचार कर मुंह खोलना होता है। बात किसी अपने से करनी हो या जान पहचान वाले से अथवा अनजान अजनबी से कहने से पहले समझना ज़रूरी है किसको क्या सुनना है बस जिसको जो अच्छा लगता है आपको उस से वही कहना हैं नहीं तो चुप रहना सब सहना है। इस दौर में ख़ामोशी सबसे बड़ा गहना है ज़ालिम को मसीहा क़ातिल को ख़ुदा कहना है उनकी दुनिया में जीना मौत से दुश्वार है। हर कोई लाचार है बंदा गुनहगार है सरकार खुद बेज़ार है इश्तिहार ही इश्तिहार है। राजाओं की सभाओं से धर्म की चर्चाओं में कभी वाद-विवाद होते थे चर्चा में अपने विचार से बात मनवाई जाती थी सच कहना जुर्म नहीं था कोई आफ़त नहीं ढाई जाती थी तीर तलवार मैदान-ए -जंग में चलाई जाती थी। महफ़िल में इक शमां जलाई जाती थी अपनी कही सबकी सुनी समझी और समझाई जाती थी।  
 
मन की बात का ढिंढोरा नहीं पीटा जाता है मन की बात दुनिया से नहीं होती है शोर करना उलझन की बात होती है। राजा बोला रात है रानी बोली रात है , मंत्री बोला रात है सन्तरी बोला रात है , ये सुबह-सुबह की बात है। इधर काली अंधियारी रात को दिन का उजाला कहना है  बस्ती में रहना है तो झूठ को सच कहना है। दोस्तों से फ़ासिले हो गए हैं ख़त्म सब सिलसिले हो गए हैं , आवाज़ गुम हो गई है लब हिले कुछ सिले हो गए हैं। खुद से मुलाक़ात नहीं होती ज़माने के शिकवे गिले हो गए हैं। किसी से दोस्त से पत्नी से भाई बहन खास रिश्ते से उसकी नापसंद बात करना आपसी संबंध को बिगाड़ना है। मीठा खाना सब चाहते हैं मधुमेय की चिंता छोड़ कर झूठी तारीफ भाती है सच सुनते नातों में कड़वाहट भर जाती है यूं अदब से हंसकर मिलते हैं मन में नफरत का ज़हर छुपाए रखते हैं। मुझे आप जैसे लोग पसंद हैं कहते हैं हम आपके दिल में रहते हैं मौका मिलते ही ऊंचे महल ढहते हैं कहने वाले कहते हैं दुनिया के दस्तूर निराले हैं भीतर अंधेरे बाहर उजाले हैं। आज सवाल करते हैं कड़वा सच किसलिए बोलते हैं क्यों सच के तराज़ू पर सभी को तोलते हैं। इक दिन खोलेंगे लबों को भरी सभा में कहेंगे कहां चले गए वो जो वक़्त पर बोलते हैं।
 

 
 
 
 
 
 

जुलाई 02, 2021

बड़ा नामुराद सोशल मीडिया रोग ( खरी-खरी ) डॉ लोक सेतिया

 बड़ा नामुराद सोशल मीडिया रोग ( खरी-खरी ) डॉ लोक सेतिया

ये ऐसा मीठा मीठा दर्द है जो हर किसी को अच्छा लगता है पहले , उसके बाद धीरे धीरे मज़ा आने लगता है आखिर लगता है ये मुसीबत बन गया है मगर तब तक नशा बन चुका होता है छोड़ना चाहते हैं छोड़ नहीं पाते हैं। कोई इस से बचा नहीं इंसान से बेजान सरकार तक उलझे हैं फेसबुक व्हाटऍप्स के मायाजाल में। सब से दुनिया भगवान रिश्तों से मोहभंग हो सकता है मुआ यही इक है जिस बिन जीना मुहाल लगता है फरिश्तों की दुनिया है बाकी सब जी का जंजाल लगता है। इंटरनेट नहीं हो डाटा खत्म हो मत पूछो जीने मरने का सवाल लगता है। मैंने ज़िंदगी के दस साल खुद को गंवाया है अब जाकर समझ आया है खोया ही हैं समय बर्बाद किया है नहीं कुछ भी पाया है। एक बार नहीं सौ बार आज़माया है। जिधर देखते हैं बढ़ता जाता ये शाम का साया है हर किसी ने सोच समझ का दीपक खुद ही बुझाया है ये घना अंधियारा हर किसी को बहुत भाया है। सबने औरों को सब कुछ समझाया है कभी किसी को समझ नहीं आया है दवा जानकर मीठा ज़हर खाया है। आपको अपनी कहानी बताते हैं इस दुनिया की तस्वीर बनाते हैं भगवान से बाज़ार तक यहीं मिलते हैं ये कुछ नहीं सिर्फ इक फैला हुआ रेगिस्तान है जिस में कभी गुलशन नहीं खिलते हैं। आज मंच पर आते हैं हर पर्दा उठाते हैं सच और झूठ दोनों को आमने सामने बिठाते हैं फिर दर्द की दास्तां सुनते हैं मगर उदास नहीं होते हैं ख़ुशी जताते हैं हंसते गाते मुस्कुराते हैं ये दिखावे की दुनिया है डीपी खूबसूरत चुनकर लगाते हैं। 
 
आपको हर शख़्स ऑनलाइन दिखाई देता है पढ़ता है जाने कैसी उल्टी सीधी पढ़ाई राज़ कोई नहीं जानता दोस्त दुश्मन भाई भाई दिखाई देता है। मिलते नहीं बात करते नहीं गली से जिनकी गुज़रते नहीं उनको सुबह शाम शुभकामना संदेश भेजते हैं। मुझे बड़े अच्छे सच्चे लगते हैं कुछ लोग हिम्मत वाले जो मुझे पसंद नहीं करते ब्लॉक कर देते हैं अपने दिल की हसरत का पता देते हैं मेरे बारे जो अफ़वाह उड़ा देते हैं ये अल्फ़ाज़ बड़े शायर से उधार लिए हैं ज़रूरी है साफ बता देते हैं। सोशल मीडिया पर सरकार चलती है कितनी बेकार हो तब भी शानदार चलती है झौंपड़ी महल दिखाई देती है अंधों की नगरी काना राजा है जम्हूरियत लंगड़ी लूली है बैसाखियों की महिमा हर बार चलती है। कुदरत की नहीं है किसी और की माया है कुछ भी मिला नहीं किसी को सभी ने खुद को गंवाया है जिस दिन से पड़ा ये मनहूस साया है इक पागलपन सभी पर छाया है समझ कोई नहीं असलियत को पाया है। 
 
   पढ़ता सुनता कोई भी नहीं है समझता सच्चाई कोई भी नहीं है गरीब की जोरू सबकी भाभी है बहन कोई नहीं भरजाई किस की कौन है नहीं मालूम किस घर मातम किस घर बजती शहनाई सोचता हरजाई कोई भी नहीं। माता पिता का निधन सोशल मीडिया पर बता रहे हैं जैसे मौत का जश्न मना रहे हैं लाइक देखते हैं कमेंट पढ़ कर जवाब देते हैं कुछ इस तरह दुनियादारी निभाते हैं सारा हिसाब देते हैं। भगवान परेशान हैं क्या हाल किया है भक्तों ने बिना सोचे समझे कोई टकसाल किया है अंधभक्तों ने। इंसान कितने ख़ुदा बन गए है ईमान बेचकर दौलत बनाई है मत पूछो किसी कैसी कमाई है उस तरफ कुंवा इस तरफ गहरी खाई है सबने अपनी रफ़्तार बढ़ाई है। इंसानियत बच नहीं पाई है लाश उसकी हर किसी ने सजाई है। फेसबुक व्हट्सएप्प दोस्ती बढ़ाएंगे दावा झूठा है नफरत बढ़ाई है इक दीवार रिश्तों में खड़ी की है कोई उसका चाहने वाला कोई इसका चाहने वाला दो चोरों ने राजनीति में क्या आग लगाई है। आपसी कोई मतभेद नहीं है दिखाई देता बस छेद नहीं है राजनेता मिल बैठेंगे अवसर मिलते ही हम लड़ते रहेंगे मिलने का कोई अनुछेद नहीं है। लगता हैं हम गुलाम हैं आज़ाद नहीं हैं ख्यालात नहीं कोई जज़्बात नहीं हैं जिनको मसीहा बना लिया सभी ने वास्तव में उनकी कोई औकात नहीं है नेताओं की कोई धर्म जात नहीं है ये बदल हैं जिनकी होती बरसात नहीं है। 
 

                           समीक्षा की बात : - 

काश जितना समय इस सोशल मीडिया पर बर्बाद किया कोई सार्थक कार्य किया होता तो बहुत अच्छा हो सकता था। मैंने इस से पीछा छुड़ाने का संकल्प लिया है आपको क्या लगता है क्या सही क्या ग़लत आपकी मर्ज़ी है।

 
 
 
 
WhatsApp privacy backlash: Facebook angers users by harvesting their data |  Facebook | The Guardian