इक आईना उनको भी हम दे आये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
इक आईना उनको भी हम दे आयेहम लोगों की जो तस्वीर बनाते हैं ।
बदकिस्मत होते हैं हकीकत में वो लोग
कहते हैं जो हम तकदीर बनाते हैं ।
सबसे बड़े मुफलिस होते हैं लोग वही
ईमान बेच कर जो जागीर बनाते हैं ।
देख तो लेते हैं लेकिन अंधों की तरह
इक तिनके को वो शमशीर बनाते हैं ।
कातिल भी हो जाये बरी , वो इस खातिर
बढ़कर एक से एक नज़ीर बनाते हैं ।
मुफ्त हुए बदनाम वो कैसो लैला भी
रांझे फिर हर मोड़ पे हीर बनाते हैं ।
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