हर मोड़ पर लिखा था आगे नहीं है जाना ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हर मोड़ पर लिखा था आगे नहीं है जानाकोई कभी हिदायत ये आज तक न माना।
मझधार से बचाकर अब ले चलो किनारे
पतवार छूटती है तुम नाखुदा बचाना।
कब मांगते हैं चांदी कब मांगते हैं सोना
रहने को झोंपड़ी हो दो वक़्त का हो खाना।
अब वो ग़ज़ल सुनाओ जो दर्द सब भुला दे
खुशियाँ कहाँ मिलेंगी ये राज़ अब बताना।
ये ज़िन्दगी से पूछा हम जा कहाँ रहे हैं
किस दिन कहीं बनेगा अपना भी आशियाना।
मुश्किल कभी लगें जब ये ज़िन्दगी की राहें
मंज़िल को याद रखना मत राह भूल जाना।
हर कारवां से कोई ये कह रहा है "तनहा"
पीछे जो रह गए हैं उनको था साथ लाना।
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