दिसंबर 31, 2023

किस की सुरक्षा का सवाल है ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया

     किस की सुरक्षा का सवाल है ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया  

सोच सभी संबंधी मित्रगण रहे थे पर खुद ईश्वर से कौन पूछता कि उन्हीं के आवास का उदघाटन होना है क्या कार्यक्रम है कैसे जाने का प्रबंध किया जाएगा और किस किस को सौभाग्य प्राप्त होगा अवसर पर उपस्थित होने का । सभी ने इस समस्या का समाधान करने को ईश्वर जी की पत्नी से अनुरोध किया क्योंकि सिर्फ वही कभी भी कुछ भी ईश्वर से पूछ सकती हैं । पत्नी ने अपने पति परमेश्वर से पूछ लिया आपको नवनिर्मित मंदिर के उदघाटन पर कैसे जाना है सभी जानना चाहते हैं क्या उनको भी तैयारी करनी है । आप किस रूप में जाएंगे मुझे बताएं तो आपका परिधान अन्य सजावट आभूषण उसी अनुसार बनवाए जाएं । ईश्वर बोले क्या मैंने कहा है कि मुझे कहीं जाना है , मुनिवर बता रहे थे ऐसा घोषित है कि उस दिन विशेष आमंत्रित लोग ही प्रवेश कर सकते हैं और कौन कितना भीतर तक जाएगा निर्धारित है । मुझे बुलावा नहीं देने का सवाल नहीं है लेकिन मुझे उस जगह जाना किसलिए है इतना तो पता चले । पत्नी ने बताया इतना भव्य और शानदार आवास आपके ही नाम किया है आपको जाना चाहिए वहीं रहना चाहिए करोड़ों लोगों की भावनाएं जुडी हुई हैं । ईश्वर कहने लगे जिन करोड़ों गरीबों की भावनाएं और भरोसा इसी पर है कि उनकी दरिद्रता मैं मिटाऊंगा उनको रहने को महल नहीं सिर्फ झौंपड़ी हासिल होगी मेरे शासन में उनकी आस्था को अनदेखा कर सिर्फ कुछ ख़ास लोगों की खातिर मैं लालच में आकर उस घर को अपना ठिकाना बनाऊंगा । पत्नी बोली आपकी माया आप ही जानते हैं फिर भी सभी लालायित हैं उस जगह आपके दर्शन करने को , उनकी बात पर ध्यान देना होगा । 
 
ईश्वर कहने लगे कितने लोग हैं जिन्होंने अपना घर छोड़ दिया ये सोच कर कि उनका ईश्वर बेघर है सभी लोग अपने निवास में रहते रहे मुझे इक कमरा भी नहीं दिया अधिकांश ने इक छोटा  सा खिलौने जैसा घर बनवाया और मेरी तस्वीर उस में सजा कर कोई नाम दे दिया । अनगिनत लोग खुले आसमान तले फुटपाथ पर सड़कों पर सर्दी गर्मी तपती लू बदन को बर्फ बनाती ठंड में रहकर भी मुझ से आस लगाए रहे हैं । ये जो सत्ता के भूखे राजनेता हैं उन्होंने मुझे अपने मतलब की खातिर उपयोग किया है क्या क्या हथकंडे नहीं अपनाए इक ईमारत को बनाने की ख़ातिर । कैसे मान लिया किसी ऐसे भवन में मुझे रहना स्वीकार होगा जिस की बुनियाद ही झगड़े फसाद से रखी गई हो । शासक ने पहले अपने राजनैतिक दल का भवन बनवाया मुझे भुलाकर फिर अपने नाम से क्या क्या नहीं बनाया या पहले बनाए हुए को अपना नाम दिया , कितने अपने खास लोगों को धनवान बनाने के बाद संसद का नया आधुनिक सभागार और आधुनिक सुविधाओं से युक्त इक दरबार बनाया सजाया । मेरे नाम के राज्य की अवधारणा का कभी ख़्याल नहीं आया जब नैया डोलती है तभी को याद आती है अपने अपने प्रभु की अन्यथा पतवार जिस के हाथ वही मांझी सबका खेवनहार होता है । 
 
ईश्वर ने समझाया तुमको भी देखने की इच्छा हो रही है तो टीवी चैनल से देख लेना वहां जाने में टीवी वाले खबर दे रहे हैं सुरक्षित नहीं है । सोचो अगर उन सभी को मेरे उस जगह होने का  पूर्ण विश्वास होता तब किसी को किसी से कोई ख़तरा कैसे हो सकता था । उन सभी ने अपनी अपनी सुरक्षा के अनेक उपाय किए हैं बस मेरी सुरक्षा उनकी चिंता नहीं है जबकि वास्तव में सबसे अधिक मुझे सुरक्षा की आवश्यकता हैं ये मत पूछना मुझे किन से कोई ख़तरा हो सकता है । कलयुग की बात है गैरों से नहीं अपनों से सावधान रहना पड़ता है । 
 

 

दिसंबर 29, 2023

ईश्वर आज़ाद होना चाहते हैं ( अजब-ग़ज़ब ) डॉ लोक सेतिया

    ईश्वर आज़ाद होना चाहते हैं ( अजब-ग़ज़ब ) डॉ लोक सेतिया 

बदहवास हुए मेरे करीब चले आए तो कहना ही पड़ा कौन हैं आपको क्या परेशानी है । बोले तुम तो मेरी बात का भरोसा करोगे आपके वो दोस्त तो मेरा पता नंबर ईमेल सब सबूत मांगते हैं । मैंने कहा आप चिंता नहीं करें मेरी आदत ऐसी नहीं है मैंने तो हमेशा हर किसी पर भरोसा किया है लोग यहां अकारण ही सभी को शंका की नज़र से देखते हैं आप सबूत देते तब भी उनके मन में संशय बना रहता इस की संभावना है । पहले आप अपनी परेशानी बताएं पहचान होती रहेगी बाद में । वो बोले मैं तंग आ चुका हूं ऊंची ऊंची दीवारों के भीतर बड़ी बड़ी इमारतों में बंदी बनकर रहते बस अब उन सभी के बंधनों से मुक़्त होकर आज़ाद होना चाहता हूं । मैंने कहा क्या किसी ने आपको आपकी मर्ज़ी के बगैर कैदी बना रखा है तो ऐसा करना दंडनीय अपराध है । उन्होंने कहा मुझे जान लो पहचान लो मैं ईश्वर हूं और मुझे तमाम लोगों ने मंदिरों मस्जिदों गिरजाघरों और गुरुद्वारों में बंद कर रखा है । मैंने कहा आपने बताया कि ईश्वर हैं तो फिर ये सभी स्थल तो आपकी पूजा अर्चना ईबादत भक्ति और भजन कीर्तन को बने हैं सभी भव्य शानदार हैं और आपका नाम गुणगान किया जाता है । आपके लिए क्या क्या नहीं हैं दुनिया भर की विलासिता की ज़रूरत की खाने पीने से पहनने आनंद से मौज मस्ती करने को संगीत से लेकर असंख्य तरह के आयोजन निरंतर होते रहते हैं । खूब मालामाल हैं आपके लिए बनाये सभी धार्मिक स्थल बढ़ते बढ़ते कुछ गज़ से कई कई एकड़ की ईमारत तक फलते फूलते जाते हैं । यहां दो गज़ ज़मीन नहीं मिलती ज़फ़र जैसे बादशाह को और आपका सारा संसार है फिर भी सरकारी दफ्तरों की तरह आपके लिए कदम कदम पर निवास आवास क्या क्या नहीं है । जिस किसी के पास इतना सब हो ऐसे लोग गिनती के हैं जो दुनिया को खरीद सकने का हौसला रखते हैं ऐसा दम भरते हैं । आह भरी उन्होंने कितने बदनसीब होते हैं ये धनवान लोग भी , सुनकर हैरानी हुई । 
 
अब मुझे चुप चाप उनकी बात सुननी थी और वो अपनी व्यथा बताते गए । तुमने सोचा कभी किसी पंछी को पिंजरा भाता है भले वो सोने चांदी का बनाया हीरे मोतियों से जड़ा अनमोल जवाहरात से चमकीली रौशनियों से जगमगाता हो । अगर मैं खुश हो कर समझ लूं कि ये सब और जितनी जमा पूंजी उन सभी की है मेरी है तो क्या मैं आपने वाले सभी को ही नहीं बल्कि जो मेरी चौखट तक नहीं लांघ सकते उस सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करने को वितरित कर सकता हूं । क्या ये मेरा आदेश नहीं है सभी जानते हैं क्या करने दे सकते हैं । भला मेरा धन कौन लूट सकता है बगैर मेरी अनुमति जब इक पत्ता तक नहीं हिलता वही उपदेश देते हैं तो सीसीटीवी कैमरे लगवाने की क्या आवश्यकता है । इतना ही नहीं मुझे भी सलाखों में ताले लगाकर बंद रखते हैं और समझते हैं कि सभी मूर्तियों में साक्षात देवी देवता विराजमान हैं । बस बहुत हुआ अब और नहीं सहा जाता मेरे नाम पर कितना दिखावा आडंबर कब तक आखिर और मुझे बेबस कर दिया है । भला इस से अधिक अंधकार क्या होगा कि मेरे बनाए इंसान मुझी से मेरे होने का प्रमाण मांगते हैं । जिस ईश्वर से सभी मोक्ष मुक्ति मांगते हैं अब खुद उसी को अपने ही चाहने वालों से आज़ादी चाहिए ये अजब-ग़ज़ब नज़ारा है । 
 
 

 


 
 
  

दिसंबर 26, 2023

साक्षात अवतार से साक्षात्कार ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

   साक्षात अवतार से साक्षात्कार ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया  

हे आजकल के कलयुगी अवतार , करती हूं आपको नमस्कार बार बार , मैं डूबती नैया आप मेरे खेवनहार आप हैं सभी कुछ और मैं आपका मनमोहक सुंदर लुभावना इश्तिहार । टीवी पर भरी सभा में मंच पर माइक से ये शब्द सुन सभी ताली बजा रहे थे और जानेजां मुस्कुरा रहे थे । दोनों समय से अनजान अवसर की गरिमा से बेपरवाह सब कुछ भुला कर मन ही मन युगल गीत गुनगुना रहे थे । यही आलम होता है आशिक़ जागते हैं सारा जग सोता है कुछ कुछ होता है । सभा चलती रही उनको नहीं खबर कौन क्या पढ़ता रहा कौन आता जाता रहा उनकी धड़कनों में चुपके चुपके कोई समाता रहा । खूबसूरत अदाओं अभिनय की नायिका टीवी एंकर सबको समझा गई बन के फूल इक कली मुस्कुराई , देखो आई मिलन की बेला देखो आई । धीरे धीरे करीब आते गए दुनिया को भुलाते गए इक दूजे में समाते गए । आज छाई हुई बहार है जिया बेकरार है उनके आने का इंतज़ार है टीवी चैनल पर होनी रिमझिम रिमझिम सी बौछार है , बैठी सज धज के गोरी तैयार है लेना उनका साक्षात्कार है । औपचरिकता है स्वागत करते फूलमाला पहनाते हैं पर कभी कभी अरमान मचलने लगते हैं हालात महकने लगते हैं । 
 
कभी कभी साक्षत्कार लेने वाला खुद अनजाने में खरी बात बोल जाता है बाद में भूल सुधार करने को मेरा मतलब वो नहीं था कहकर जान बचाता है । कह बैठी आप तो झूठ के पहले अवतार कहलाते हैं सच वाले आपसे घबराते हैं धीरे धीरे बिकने चले आते हैं आप सभी का दोगुना दाम चुकाते हैं गुर्राने वाले चुपचाप आपके तलवे चाटते हैं दुम हिलाते हैं । क्षमा करें गलती से झूठ के पहले अवतार बोल गई सच ये मतलब नहीं है वास्तविकता है सच वही जो आपको भाता है झूठ से नहीं कोई नाता है इस युग में सच ज़िंदा नहीं है झूठ ही सच से बड़ा कहलाता है गोरे और काले दो भाई जैसा नाता है । जवाब दिया जनाब ने झूठ कैसा सच कैसा ये कौन सोचता जब मिलता है पैसा । अगला सवाल कोई आपसे अच्छा कभी नहीं हो सकता आपका मुकाबला किसी से नहीं मगर आपको दुनिया में कौन सबसे अधिक पसंद है जो आपसे कुछ कम अच्छा लगता है शायद । दिखिए मुझ जैसा बनने की कोशिश करना कौन नहीं चाहेगा लेकिन मेरी तरह सफलता सभी को मिल नहीं सकती है अपने कभी इक चॉकलेट का विज्ञापन देखा है इक युवक जब भी कोई उसे कुछ करने को कहता है कुछ भी नहीं करता जिस का परिणाम कोई अनहोनी घटना होने से बच जाते हैं । अच्छा हुआ आपने नहीं किया सभी आभार प्रकट करते हैं , कंपनी कहना चाहती है जो कुछ नहीं करते बड़ा कमाल करते हैं । मैंने कमाल कर दिखाया है दुनिया बच गई मेरे कुछ नहीं करने से । अभी इक मुर्दा खुद ज़िंदा हो गया जब उस विज्ञापन में चॉकलेट खाने वाले ने फ़ोन की घंटी बजती रहने दी उठाया नहीं ये कमाल हर कोई नहीं दिखला सकता है ।  
 
आपकी आधुनिक सोच सब को भाई है आप कोई संदेश दर्शकों को देना चाहते हैं तो बताएं । उनका जवाब था मैंने जीवन भर कुछ भी नहीं किया सिर्फ यही देखता रहा कि दुनिया में जाने कब से कितने लोगों ने कितना कुछ किया है मगर तब भी हर किसी को यही लगता है जो हमने किया किसी से नहीं हो सकता था । हमेशा हर युग हर काल में सभी अपने कार्य को महत्वपूर्ण समझते हैं पिछले सभी का उल्लेख कोई नहीं करता है । मैंने सभी को हमेशा यही बतलाया कि मुझसे पहले कुछ भी नहीं किया गया था जो भी हुआ सब गलत ही हुआ है अतीत में । अधिकांश लोग मेरी बात से सहमत होकर मेरी जयजयकार करने लगे जिस से मेरी कही झूठी बात भी सच बनती गई । कुछ भी नहीं करना और जो भी हुआ उस का श्रेय लेना हर क़ामयाबी का सेहरा अपने सर और नाकामी का इल्ज़ाम किसी और पर मेरा गुरु-मंत्र है । टीवी चैनल पर हर खबर के साथ साथ इक आवश्यक सूचना की तरह विज्ञापन दिखा रहे हैं अमुक समय अमुक दिन साक्षात अवतार से साक्षात्कार प्रसारित होगा देखना मत भूलें केवल इसी चैनल पर । 
 

 

दिसंबर 23, 2023

हरि अनंत हरि कथा अनंता ( निबंध ) डॉ लोक सेतिया

      हरि अनंत हरि कथा अनंता  ( निबंध  ) डॉ लोक सेतिया  

हुआ नहीं होना है , आधुनिक अवतार की बात है जब भी कोई अवतार धरती पर अवतरित होता है पहले से उसकी एक नहीं अनेक कथाएं प्रचलित होने लगती हैं । कुछ ऐसे ही धरती पर भगवान का अवतार बनाने की बात होने लगी है इंसान के हाथों से  । जिनका ज़िक्र है  उनकी पत्नी विशेष अवसर पर उनकी सजावट उनकी वेशभूषा को लेकर चिंतन मनन कर रही है । इस बार कोई कसर बाक़ी नहीं रहनी चाहिए मन ही मन कल्पना करने लगी है शायद पत्थर बनकर भी हमारा दोनों का साथ हमेशा कायम रहे । उनकी इक सखी सवाल कर उनको तंग करने लगी है अजब अजब बातें करती है ये क्या बोली हैरान हुई आका , तो मुकरने लगी है । पत्नी की चिंता मुख पर उभरने लगी पिया पिया करती सजने संवरने लगी आये जब पति तो उनसे मन की दुविधा बताने लगी । इक बात मुझे समझ नहीं आती है कोई सखी पूछ रही थी आपके प्राण मुझ में बसते हैं लेकिन सुना धरती पर किसी बड़ी शानदार ईमारत में किसी पत्थर की प्रतिमा में कोई पूजा पाठ कर उस प्रतिमा को साक्षात दर्शन देती प्राणवान मूर्ति बना सकते हैं । भला आप सभी को जीवन देने वाले को कोई इंसान क्या जिस घड़ी वो निर्धारित करे इस तरह संचालित कर सकता है आपको किसी शुभ अशुभ घड़ी का कोई प्रभाव पड़ सकता है । आपके प्राण कहां हैं कब आपका निवास किस हृदय में है कोई भी नहीं जानता यहां तक मुझे भी नहीं मालूम आपके प्राणों में मैं बसती हूं और मेरे रोम रोम में बस आप ही आप बसे हुए हैं ये भी सिर्फ आपको पता होता है । 
 
प्रभु मुस्कुरा दिए कहने लगे जिनको ईश्वर की कोई पहचान नहीं उन की नादानी को लेकर सोचना किसलिए । तुम जानती हो मैं मन मंदिर में निवास करता हूं किसी मूर्ति किसी पत्थर की प्रतिमा का कभी मन नहीं होता है मन समझती हैं आप । मैंने कभी मन की बात जगज़ाहिर करना उचित नहीं समझा है मेरे मन के दर्पण में कब किस की छवि है मुझे छोड़ किसी को नहीं खबर होती कभी । सबसे पहली बात संसारिक सुखों को त्याग कर कर्तव्य मार्ग पर चलने वाले मेरे मन में बसते हैं और उन सभी में मेरा निवास रहता है । जिन भक्तों के भीतर मैं हूं उनको किसी मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे गिरिजाघर भटकना नहीं पड़ता । जो किसी मतलब की खातिर मेरे दरवाज़े पर आते हैं उनको मुझसे नहीं अपनी कामनाओं से संबंध बनाना होता है , ज़रा सोचो मैं किसी भवन किसी पत्थर की प्रतिमा में बेजान बनकर रह सकता हूं । 
 
  कभी देखा किसी भी धर्मस्थल पर मुझे चलते फिरते बोलते खाते पीते मगर कितने पकवान कितने आभूषण कितने वस्त्र कितने अन्य सामान कहने को मेरे उपयोग की वस्तु हैं पर उनका इस्तेमाल कोई और करता है । जब दुनिया में करोड़ों लोग भूखे नंगे और परेशान हैं मेरे नाम पर कितना धार्मिकता का दिखावा मेरी मर्ज़ी से नहीं हो सकता है । ऐसा करने वाले मुझे नहीं जानते समझते न ही मेरी भक्ति करते हैं अन्यथा क्या उनको नहीं खबर मैं दीन दुःखियों के दुःख दर्द समझता हूं और सभी से प्यार करता हूं भेदभाव नहीं करता जबकि जो ये सब करते हैं वो समझते हैं कि मैं उनकी संपत्ति की तरह हूं और जिनको वो लोग नहीं चाहते उनको मुझसे दूर रखना चाहते हैं । अर्थात उनको लगता है उन पर मेरा बस नहीं चलता मगर मुझ पर उनका एकाधिकार है ।  संसार में जितने भी आलीशान धार्मिक स्थल बने हैं जिन को लेकर दावे किये जाते हैं कितना भव्य कितना नवीनतम प्राचीनतम इत्यादि इत्यादि बढ़ाई की जाती है शान बताने को अभिमान जताने को मुझे कभी किसी ने वहां नहीं पाया जीवन भर भटकते रहते इधर उधर । कितनी ऊंची आवाज़ें सभी करते हैं नहीं जानते कि ईश्वर मन की भीतर की अंतरात्मा की आवाज़ सुनते हैं । उन सभी का इतना शोर मुझे सुनाई ही नहीं देता न ही मुझे देखना सुनना ही है । मन से पुकारने पर मैं अवश्य हर किसी के पास आता हूं और मन की आंखों से देखने वालों को दिखाई देता हूं । धरती का शोर मुझ तक कभी नहीं पहुंचता पहुंचती हैं सच्चे मन की प्रार्थनाएं दुवाएं ।
 
कैसे ज्ञानवान हैं जो किसी बेजान पत्थर में मेरे प्राण प्रवेश करवाने की बात कहते हैं कभी किसी मृत शरीर में फिर से प्राण डाल सकते हैं कभी देखा है । सबसे अचरज की बात होती है इंसान भगवान तक को धोखा दे सकता है मगर खुद अपनी आत्मा अपने विवेक से नहीं बच सकता यहां विवेकहीन लोग दुनिया को क्या सच क्या झूठ क्या सही क्या गलत समझाने की नासमझी कर रहे हैं  मैं उनको नहीं जानता जो मुझे नहीं पहचानते हैं । आपको ये निमंत्रण पत्र कहां से मिला है जाने किस किस को बुलावा भेजा गया होगा ये कितनी विचित्र बात है मेरे चाहने वालों की इस की आवश्यकता नहीं होती है । मुझे समरण करते हैं मैं दौड़ा चला आता हूं बुलावा किसे कब भेजना है ये अलग बात है गोपनीय है कोई नहीं जानता । मैं नहीं समझना चाहता ये तमाम लोग क्या करना चाहते हैं अपने बनाने वाले को सोचते हैं उसका कोई महल नहीं रहने को बना कर इक चारदीवारी में बंद करना चाहते हैं । मैं कहां हूं ये बात गलत है सही बात है कि मैं कहां नहीं हूं ।  

             आख़िर में इक ग़ज़ल ईश्वर को लेकर प्रस्तुत है ।  

 
 

ढूंढते हैं मुझे मैं जहाँ नहीं हूँ ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

ढूंढते हैं मुझे , मैं जहां  नहीं हूं 
जानते हैं सभी , मैं कहां नहीं हूं ।
  
सर झुकाते सभी लोग जिस जगह हैं
और कोई वहां , मैं वहां नहीं हूं ।

मैं बसा था कभी , आपके ही दिल में
खुद निकाला मुझे , अब वहां नहीं हूं ।
 
दे रहा मैं सदा , हर घड़ी सभी को
दिल की आवाज़ हूं ,  मैं दहां  नहीं हूं ।

गर नहीं आपको , ऐतबार मुझ पर
तुम नहीं मानते , मैं भी हां  नहीं हूं ।

आज़माते मुझे आप लोग हैं क्यों
मैं कभी आपका इम्तिहां  नहीं हूं ।

लोग "तनहा" मुझे देख लें कभी भी
बस नज़र चाहिए मैं निहां  नहीं  हूं ।

 (  खुदा , ईश्वर , परमात्मा , इक ओंकार , यीसु ) 
 

 
 

दिसंबर 22, 2023

बग़ावत की आहट ( पत्नी व्यथा कथा ) डॉ लोक सेतिया { अध्याय - 3 }

   बग़ावत की आहट  ( पत्नी व्यथा कथा ) डॉ लोक सेतिया 

                                 अध्याय - 3 

अनहोनी कहते हैं जिसे दुनिया वालों के साथ घटती है कोई घटना लेकिन जिस की मर्ज़ी बिना कहते हैं इक पत्ता भी नहीं हिलता उसकी आलोचना कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती है । ईश्वर और देवी देवताओं की पारिवारिक बातों में हस्ताक्षेप से बढ़कर इक आधुनिक महिला जिस को प्रभु जी की पत्नी का आशिर्वाद प्राप्त था दास दासियों के अधिकारों को लेकर भगवान से उलझ गई है । धरती पर जीवन बिता मरने के बाद उस लोक में पहुंची आत्माओं को उनके कर्मों का अच्छा बुरा फल भोगने को तमाम देवियों की सेवा करने का निर्णय सुनाया जाता है ताकि घरेलू काम काज झाड़ू पौंछा बर्तन साफ़ करने जैसे काम लिया जा सके । भगवान जी क्या आप बताएंगे ऐसा किस संविधान किस नियम कानून की कौन सी धारा में कहां लिखा गया है और किस सभा ने निर्धारित किया है । हमने तो विदेशी शासन में सरकार और हुक़ूमत को गुलाम बना शोषण और ज़ुल्म करने की बात सुनी थी आज़ादी मिलने के बाद जो भी ऐसा करते हैं उनको मानवता और न्याय के दुश्मन मानते हैं । राजनेता बड़े अधिकारी पुलिस वाले जब मानवाधिकारों का उलंघन करते हैं तब मानवाधिकार आयोग करवाई कर कठोर दंड देता है । हंगामा होना ही था जब जानकारी मिली कि यहां जो ऊपरवाला चाहता है वही इंसाफ़ कहलाता है और देवी देवताओं की मंडली में सभी ईश्वरीय सत्ता के पैरोकार पक्षधर हैं विपक्षी दल जैसा कुछ भी नहीं है । नारी शक्ति मुखर हो कर कहने लगी अर्थात भगवान का मनमाना ढंग तानाशाह जैसा है तो दयावान और सब पर कृपा करने की बात क्या धरती के राजनेताओं की मीठी लुभावनी बनावटी भाषण की खोखली बातों जैसी हैं । किसी दरबारी ने समझाया देवी जी जैसा आपको लगता है वैसा कदापि नहीं है और आपको ये सब कहने पर खेद जताना चाहिए । महिला बोली जनाब मैंने कोई भगवान के भगवान होने को चुनौती नहीं दी है बल्कि मैंने सुझाव दिया है पुराने सड़े गले तौर तरीके बदल कर आधुनिक युग के अनुकूल व्यवस्था स्थापित करने को बदलाव करने की आवश्यकता समझनी चाहिए । देवलोक सकते में है घर की बात गली चौराहे तक पहुंच गई है इतना नहीं कोई और दुनिया का संगठन बिचौलिया बन कर किसी बड़े आंदोलन की रूपरेखा घड़ सकता है , सुगबुगाहट आहट बन सकती है ।  
 
भगवान हमेशा वचन दे कर उलझन में पड़ जाते हैं , जिस दिन उनकी पत्नी ने उस बेमिसाल महिला भक़्त को उनसे मांगा था महिला ने इक अनुबंध करने की शर्त रख दी थी । अब ईश्वर उसको अपनी पत्नी की सेवा से कभी हटवा नहीं सकते हैं , ईश्वर की पत्नी की भी सहमति शामिल थी कि वो अपनी उस परमप्रिय भक़्त को हमेशा कुछ नया बदलाव करने से रोक नहीं सकती हैं । उस महिला ने बताया था उसे रोज़ कुछ नवीन कार्य और सुधर करने की आदत है जो जैसा है वैसा रहने देना उसको परेशान करता है । देवी देवताओं की मंडली नहीं जानती धरती पर दो देशों के बीच समझौते होते हैं जिनको भविष्य में निभाना पड़ता है , गले पड़ा ढोल बजाना पड़ता है । कथा समाप्त । 
 
 सत्ता को चुनौती देती मशहूर उर्दू शायर हबीब जालिब की शायरी- 'बीस घराने हैं  आबाद, और करोड़ों हैं नाशाद' - Habib Jalib Pakistani poet Urdu Shayar Famous  Hindi Poetry Kavita ...
 
 

ना वो समझे हैं ना समझेंगे ( पत्नी व्यथा कथा ) डॉ लोक सेतिया { अध्याय - 2 }

 ना वो समझे हैं ना समझेंगे ( पत्नी व्यथा कथा ) डॉ लोक सेतिया 

                                 अध्याय - 2

आप ने पहला अध्याय पढ़ लिया लेकिन आपको पूरी तरह से ईश्वर की पत्नी की उलझन समझ नहीं आई होगी अत : आपको विवाद की शुरुआत से बतलाना उचित होगा । ईश्वर की पत्नी इक आधुनिक महिला की भक्ति आराधना से बेहद प्रभावित थी क्योंकि वो नारी पूजा अर्चना करते हुए बहुत ही मधुर स्वर में गायन और शानदार नृत्य किया करती थी । धरती से उस लोक में आने पर प्रभु से उनकी पत्नी ने उस महिला को मांग लिया था ताकि घर में अधिकांश समय अकेली होने पर कोई दिल को लुभावनी बातें करने को साथ हो तो बोरियत उकताहट नीरसता महसूस नहीं हो । उस आधुनिक महिला ने पृथ्वी लोक की तरह सभी देवियों की इक किट्टी पार्टी की शुरुआत करवा दी थी जिस में सभी मिलकर अपने मनोरंजन के लिए संगीत आदि का आनंद लिया करती । धीरे धीरे आपसी वार्तालाप होना शुरू हुआ और सभी को एहसास होने लगा कि सब मिलने पर भी उनको वास्तविक ख़ुशी अनुभव नहीं होती थी , उनका जीवन उबाऊ औपचरिकताओं से भरा आनंद का अनुभव नहीं होने देता था । धरती से पधारी महिला ने उन सभी को सुख का सागर दिखला आचंभित कर दिया था । उस ने बतलाया था कि विवाह करते ही हम पति-पत्नी अलग आवास में बाकी परिवार से अलग आज़ादी से रहते थे , कोई सास ननद का झगड़ा न भाई भतीजे की चिंता हर कोई अपने जीवन साथी संग रहते बच्चे भी पढ़ लिख कर अपनी मर्ज़ी से शादी करते अपना अलग बसेरा बना लेते थे । आजकल कोई भी रिश्तेदार किसी से कोई मेल जोल नहीं रखता है सिर्फ ख़ास अवसर पर ख़ुशी या ग़म की घड़ी में दिखावे का अपनापन होता है वास्तव में किसी को किसी से कोई सरोकार नहीं होता है । सभी देवियों को तब पता चला कि भगवान की बनाई दुनिया कितनी बदल चुकी है अब कोई अपना पराया नहीं बस सभी मतलब पड़ने पर ज़रूरत होने पर अपनत्व जताते हैं । सबसे हैरानी की बात थी कि अब दुनिया समझदार हो गई है जब जैसा प्रतीत होता है भगवान से संबंध रखते हैं , कब किस भगवान किस देवी देवता से क्या हासिल हो सकता है इसका गणित लगाते हैं । भगवान और धर्म केवल बड़े कारोबार ही नहीं बल्कि राजनीति की शतरंज के मोहरे भी बन गए हैं । आदमी पुरातन कथाओं से आगे बढ़ कर आधुनिक काल की अपनी कथाएं गढ़ रहे हैं जिस में सफल लोग नाम शोहरत पाकर भगवान से अधिक प्रिय लगने लगे हैं । धरती पर कितने भगवान साक्षात दर्शन देते दिखाई देते हैं । आप सभी मात्र कहने को ईश्वर देवी देवता हैं आदमी को जो भी चाहिए आप से नहीं उनके अपने बनाये भगवानों से मिलता है । 
 
बस इक दिन ज्वालामुखी फटना ही था पत्नी ने अपने पति परमेश्वर प्रभु से वरदान मांगा सिर्फ एक दूजे का बनकर रहने का ।  भगवान ने समझाना चाहा कि वो सभी के अपने हैं और सभी भले बुरे इंसानों से उनका नाता हमेशा से है और कभी ख़त्म नहीं हो सकता है । जैसा हर धर्मपत्नी समझाती है ईश्वर को उनकी पत्नी ने समझाया अपनी इस सोच से मुक्ति पाओ अब दुनिया में कोई पहले जैसा आपका भक़्त नहीं है ।  भक़्त शब्द को बदनाम कर दिया गया है आपको कैसे समझाया जाये कि समय बदलता है तो शब्दों के मतलब भी बदलते रहते हैं । भगवान सोचते हैं कि किसी तरह किट्टी पार्टी जैसी आधुनिक सभ्यता से पीछा छुड़ा लिया जाए लेकिन जानते हैं नारी को कुछ भी देना सरल है मगर वापस लेना संभव नहीं है । हर महीने किट्टी पार्टी आयोजित होती है और ईश्वर को इक नई तरक़ीब खोजनी पड़ती है अपनी पत्नी जी की उदासी को दूर करने को लेकिन ऐसा आखिर कब तक चलेगा । किश्तों में कीमत चुकाते चुकाते हर पति कभी न कभी थक जाता है ।  

( लिखने को इस कथा का कोई अंत नहीं है विस्तार से लिखना मुश्किल और पढ़ना दुश्वार लगता है । )
 

 

दिसंबर 21, 2023

जा तन लागे सो तन जाने ( पत्नी व्यथा कथा ) डॉ लोक सेतिया { अध्याय - 1 }

  जा तन लागे सो तन जाने ( पत्नी व्यथा कथा ) डॉ लोक सेतिया

                                 अध्याय - 1

उस लोक की बात है कि किस लोक की बात है सच कहूं तो हर लोक परलोक की बात है । अवसर विशेष था सभी का सुहागिन नारी का सुंदर भेस था । खुद ईश्वर की पत्नी बेहद उदास थी विरह की तरह उसको लगती मिलन की रात थी । पलकों पर गंगा यमुना समाए बरसने को व्याकुल बरसात थी अपनी प्रेम लीला की शतरंज की बाज़ी हार बैठी थी हुई शह मात थी । सभी सखियों ने किया सवाल था भला ईश्वर पत्नी को किस बात का मलाल था । बोली थी इक अबला बेचारी दर्द किसी का कौन पहचाने जा तन लागे सो तन जाने , झूठे हैं सारे अफ़साने चाहे कोई माने चाहे कोई नहीं माने । मेरे पति हैं लगते हैं बेगाने उनको फुर्सत नहीं दुनिया जहान की चिंताएं हैं कैसे कैसे हैं बने ठिकाने । हर पत्नी का यही दुःख है मेरा पति हर क्षण मेरा हो सांझ हो जीवन की या सवेरा हो । कितनी बार उनको समझाया कुछ भी उनको समझ नहीं आया छोड़ो अब दुनिया वालों की चिंता सब ने कब का आपको भुलाया कौन जानता प्रभु क्या है किसे खबर कैसी है माया । नहीं किसी भक्त ने कभी ईश्वर को जाना क्या सच झूठ कहां पहचाना सबका अपना अलग तराना क्या रोना है कैसा गाना । दुनिया करती शोर बहुत है उनका संसार उजला भी है मन में अंधेरा घनःघोर बहुत है ।

मैंने उनको कितना समझाया है आपने इंसान बनाए जहां बनाया आखिर हर अपना हो जाता है पराया खुद आपने यही रीत चलाई कोई नहीं किसी का भाई रिश्तों की गहरी है खाई भला चली किसी की चतुराई । अब जब दुनिया आपको भुला चुकी है अपने भगवान खुद बना चुकी है किसी को विधाता की ज़रूरत नहीं है । क्यों आप उनके झूठे बंधन में बंधे हुए हैं हर पति पत्नी के बीच झगड़े हुए हैं सभी पुरुष शायद बिगड़े हुए हैं । मुझे नहीं कोई बांकपन चाहिए कोई धन चाहिए न ही सुःख साधन चाहिए बस मुझे उनका मन चाहिए । मेरे मन में बस कर रहे मेरा पति कोई और कहीं नहीं उनका बंधन चाहिए । हर पत्नी हमेशा यही वरदान मांगती है कि उसकी हर बात बिना शक सवाल उसका पति समझे माने सखियां देती हैं सब ताने भगवान की बातें बस भगवान ही जाने दुनिया कहती फिरती है उसी के हम दीवाने । उनकी चिंता बढ़ती जाए धर्म की दशा किसे कौन बताए कौन पीसे कौन खाये सब को कोई और मन भाये । ईश्वर को मेरा दर्द नहीं समझ आता उनका दुखड़ा मुझे ख़बर है उनके सभी इंसान बनाए खुश हैं उनको भुलाए मेरी याद कभी उनको सताये ऐसा भी इक पल मिल जाये । तभी अचानक कोई संदेशा लाया पति परमेश्वर ने याद किया है जल्दी घर वापस आओ आपकी पसंद का सब है मंगवाया , मान गई रूठी हुई महारानी रही आधी अधूरी उसकी कहानी । दूध का दूध पानी का पानी सबकी नानी बुढ़िया भूल गई देवरानी जेठानी जो नहीं समझा है बड़ा ज्ञानी ।  
 

 

दिसंबर 14, 2023

मैं इक राजा मेरी अपनी कहानी ( व्यंग्य-कथा ) डॉ लोक सेतिया

   मैं इक राजा मेरी अपनी कहानी ( व्यंग्य-कथा ) डॉ लोक सेतिया  

शिखर पर खड़े होने का मज़ा लूटने के बाद इक अनजाना डर हमेशा बेचैन किए रखता है जहां से चढ़ कर ऊंचाई पर पहुंचे वापस लुढ़क कर नीचे गिरने का । ऐसा अनुभव हुआ जब राजधानी से आमंत्रण प्राप्त हुआ । 
कथाकर शायद उनकी कही बात को भूल ही गया था कि अचानक शासक शाहंशाह का संदेश मिला शीघ्र चले आओ मेरी जीवनी लिखने का उचित समय आ गया है । कथाकार को हैरानी हुई कि ऐसे समय जब सरकार महत्वपूर्ण निर्णय ले कर कितने राज्यों की बागडोर पुराने महारथियों से लेकर नये नये चेहरे ढूंढ उनके सर ताज पहना रहे हैं भविष्य की योजना को ध्यान में रखते हुए अपनी कथा की रूपरेखा बताने की फुर्सत भी कैसे हो सकती है । कक्ष में बैठते ही किसी आकाशवाणी की तरह उनकी जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी । आपने आने में तनिक भी विलंब नहीं किया ये सराहनीय बात है फिर भी मेरी जीवनी कोई साधारण विषय नहीं है आपको इक विश्वास अपने भीतर जगाना ज़रूरी है कि मैं कोई लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित शासक ही नहीं बल्कि जैसा मुझे शिखर तक पहुंचाने वाले करोड़ों प्रशंसक भक्त की तरह समझते और मानते हैं मैं इस आधुनिक काल का पहला और आखिरी अवतार पुरुष खुद को भगवान घोषित करता हूं । ये समरण रखना अतिआवश्यक है कि भगवान की जीवनी नहीं कथा लिखी जाती है और भगवान चाहे जो भी करता रहे उसकी सभी बातों को उचित ठहराने को तर्क घड़ने पड़ते हैं जैसे इक मिसाल है श्री कृष्ण ने जामवंत से मणि पाने को युद्ध किया और उसको मार कर मणि ही नहीं हासिल की बल्कि उसकी पुत्री को भी अपनी पत्नी बना लिया था । श्री कृष्ण जी को ऐसा अपने पर लगाए अपनी पत्नी के पिता के आरोप से मुक्त होने के कारण किया था ।  लेकिन उस को अपराध नहीं साबित किया कथाकार ने इस को महान कार्य सिद्ध किया कि ऐसा कर जामवंत को उनके प्रभु राम के दर्शन करवाए थे । राम और कृष्ण अलग अलग हो कर भी एक थे क्योंकि दोनों ने खुद को विष्णुभगवान का अवतार घोषित किया था । 
 
कथाकार ने कहा आपकी बात समझ भी ली और गांठ भी बांध ली है और अभी तक की आपकी सभी गतिविधियां मुझे मालूम है लेकिन थोड़ी सी बातें हैं जिन को लेकर मन में संशय बाकी है बस उनकी चर्चा करना अनिवार्य है । कक्ष में अंधेरा छा गया और सामने बड़े आकार के पर्दे पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की तरह साक्षात सरकार दिखाई दिए । कथाकार से सवाल पहले ही मंगवा लिए गए थे और जवाब भी पूरी तरह तैयार कर प्रकट हुए थे इसलिए फिर से भाषण शुरू कर दिया । आपकी दुविधा रानी को लेकर अनावश्यक है मेरे लिए रानी इक काल्पनिक किरदार है जब जहां आवश्यकता होती है ज़िक्र करते हैं अन्यथा उसका कोई महत्व राजनीति में नहीं होता है मेरी रानी या रानियां बदलती रहती हैं शतरंज के मोहरे की बात अलग होती है लेकिन शकुनि के पासे की तरह जो उनके मृत पिता की रीढ़ की हड्डी से बने हुए थे और जैसा शकुनि का आदेश होता उसी करवट पड़ते थे । आपने गीता में सुना होगा श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं और अपने मुंह को खोलकर दिखलाते हैं कि ये सभी योद्धा मर कर मेरे मुख का ग्रास बने हुए हैं तुमको इनका वध करना है और विजयी होकर शासन और शोहरत पानी है । हमारे दल में भी कोई मेरे बराबर कद का नहीं है और न ही कभी होने दिया जा सकता है । ऐसे तमाम नेताओं को पंख काट कर पिंजरे में बंद कर दिया है जिनको ज़रा भी गलतफ़हमी थी कि जनता उनको चाहती है और सत्ता पर बिठा सकती है । सभी को साफ़ साफ़ संदेश और संकेत मिला है कि मुझे छोड़ अन्य किसी का कुछ भी महत्व नहीं है जीत अर्थात मेरी विजयपताका फहरा रही है । 
 
मेरी कथा में पत्नी संतान जैसा कुछ भी नहीं क्योंकि ये सब सांसारिक बंधन मोह में जकड़ते हैं जबकि मेरा रिश्ता सत्ता सुंदरी से है जो हमेशा यौवन का वरदान पाए हुए है संविधान से जिसको मैंने अपनी शैया के पाये से बांध लिया है । मेरी कथा की शुरुआत है जिसका अंत कभी नहीं होगा क्योंकि मैं कभी मर नहीं सकता मेरे बाद भी मैं खुद ही शासन करूंगा ऐसा असंभव नामुमकिन कार्य जिस ने मुमकिन किया वो मैं सिर्फ और सिर्फ मैं ही हूं मुझे पिछले या अगले की बात नहीं करनी है केवल मेरी कथा सब से अधिक फ़लदाई है । तभी उनको आकर पत्नी ने नींद से जगा दिया और कथाकार का खूबसूरत सपना अधूरा रह गया ।  पत्नी ने टीवी का चैनल बदल कर समाचार की जगह टीवी शो कर दिया था । बिग बॉस कौन है कौन बनेगा करोड़पति में उलझे लोग क्या जाने राजनीति का ऊंठ किस करवट बैठेगा । 
 

 

दिसंबर 13, 2023

देश समाज जीवन की क्षणिकाएं ( कविता ) डॉ लोक सेतिया { 12 जनवरी 2005 }

    देश समाज जीवन की क्षणिकाएं ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

                                12 जनवरी 2005 

             1      कड़वी सच्चाई । 

धर्म का कारोबार करने वालों ने   
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा गिरिजाघर को 
अपनी संपत्ति बना कर ईशवर को 
बेघर कर दिया है भिखारी बन कर 
भटकता फिरता शहरों की गलियों में ।  

          2  विडंबना ।

कुछ लोग सत्य की खोज में 
निकले हैं झूठ का सहारा ले 
सच के झंडाबरदार बन कर  ,
वहीं शानदार दफ्तरों सामने
कराहता खड़ा है घायल सच । 
 

   3  चीख पुकार । 

संसद भवन विधानसभाओं में
भीतर भी और बाहर आंगन में 
चीखता पुकारता है लोकतंत्र 
बचाओ बचाओ की कर रहा 
फरियाद गूंगी बहरी जनता से ,
और उसकी अंतिम चंद सांसे 
गिन रहे हैं संग सभी राजनेता । 
 

       4  ज़िंदगी की जंग ।

ज़िंदगी लड़ रही है हारी जंग 
पल पल करीब आती मौत से 
सोचते सभी संभव नहीं बचना 
अनजाने डर से घबराया हर कोई 
उजड़ रहा बसने की चाहत में ही ,
यही आलम है जिधर देखते हम 
महानगर शहर से गांव बस्ती तक । 

      5   बाड़ खेत चर रही । 

 
कोई बन माली उजाड़ता चमन 
बन के मांझी कश्ती डुबोता कोई
कुछ लोग उनकी तस्वीरें बनाकर  
बेचते ऊंचे दाम प्रदर्शनी लगा कर
खुश हैं बदहाली से पैसा कमाकर  ,
इंसानियत शर्मसार है बेबस लाचार
संवेदनहीनता शर्त कैसा कारोबार है ।
 

         6  नाउम्मीद निराश लोग । 

हम जीवन भर बैठे रहते हैं बेकार 
करते रुख हवाओं के बदलने का 
तूफानों के थम जाने का इंतज़ार 
डूबने का भय हौंसलों की है कमी , 
नहीं मंज़िल मिलती उम्र भर कहीं ।
 
काश लड़ते हवाओं तूफ़ानों से और 
गुज़रते भंवर से साहस की पतवार ले 
नहीं घबराते सफ़र की कठिनाइयों से  
किसी बात की चिंता न कोई ही वहम ,
मंज़िल पर जाकर रुकते हमारे कदम । 
 

          7  सपनों में खोये लोग ।

कभी ज़िंदगी से कभी बाक़ी दुनिया से   
शिकवे गिले तमाम करते रहे बेकार हम   
अपनी नाकामियों से सबक सीखते गर 
दिल को झूठे दिलासों से बहलाते नहीं 
अपनी कल्पनाओं को हक़ीक़त बनाते 
झूठी उम्मीदों की आस में बैठते नहीं । 
 

        8    फ़रिश्ता ज़मीं पर । 

 
मसीहा का इंतज़ार किया सदियों तक 
हर किसी में देखी हमेशा वही झलक
नींद से जागते खुलते ही अपनी पलक 
धरती थी वही कहीं दूर था वो फ़लक  
ख्याली बातों पे भरोसा निराशा मिली 
लौटता वापस फिर पुराना ज़माना नहीं 
इस युग में उसका कोई ठिकाना नहीं , 
जिसको जाना समझा पहचाना नहीं । 
 

      9  संघर्ष । 

जीवन इक वास्तविकता है इक जंग है 
कोई सुनहरा ख़्वाब नहीं होती ज़िंदगी 
उसको पूरी तरह पाने के लिए खुद ही 
बदलना होता है सभी हालात प्रयास से 
यथार्थ में जीना होता है अपने पांव रख ,
ठोस धरातल की ज़मीन पर मज़बूती से । 
 

     10   रास्ता मंज़िल का । 

अपनी इस रंग बिरंगी दुनिया में सब है 
फूल ही नहीं हैं कांटे भी हैं पत्थर भी 
छांव धूप रौशनी अंधियारा दोनों हैं यहीं 
किनारे हैं लहरें हैं हिचकोले भी होते हैं 
अपने लोग और बेगाने भी मिलते हैं मगर ,
अपने रास्तों पर चल ढूंढते हैं मंज़िल भी । 
 

       11  वीराने को सजाना है ।

 
सभी तूफानों से गुज़र कर अंधेरे मिटा 
कांटों को हटाना है चलते चले जाना है  
सभी भंवर से गुज़र कर उस पार जाना है 
तब अपने प्यार के ख्वाबों को सजाना है 
खुद ही कोई अपनी नई दुनिया बसाना है 
फूलों को उगाना है शमां को जलाना है ,
प्यार की खुशबू का गुलशन बसाना है । 
 

      12  पत्थर से संगीत की धुन । 


ज़माने के दिल पत्थर के हो गए हैं अब 
उन में फिर कोमल एहसास जगाना है 
ज़िंदगी इक ऐसा इक खूबसूरत तराना है 
प्यार भरे बोलों को होंठों पे सजाना है 
दर्द और ख़ुशी से बनता हर फ़साना है  , 
संग संग मिलकर जिस को गुनगुनाना है ।   





ज़हर भर कर जाम दे दो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

       ज़हर भर कर जाम दे दो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया  

ज़हर भर कर जाम दे दो
मौत का ईनाम दे दो । 
 
थक गए दुनिया से लड़ते 
अब हमें आराम दे दो । 
 
दर्द सहना आ गया है 
तुम दवा का नाम दे दो । 
 
बेख़ता को हर सज़ा अब 
बज़्म में खुले आम दे दो । 
 
क़त्ल से पहले मुझे बस 
आखिरी पैग़ाम दे दो । 
 
हम नहीं ख़ैरात लेंगे 
पर हमें कुछ काम दे दो । 
 
नफ़रतों का दौर ' तनहा '
चाहे जो इल्ज़ाम दे दो । 
 
( 1 सितंबर 2004 की पुरानी डायरी पर लिखी रचना। ) 
 

 

दिसंबर 09, 2023

प्रलोभन बगैर सब बेकार ( वादों का क्या ) डॉ लोक सेतिया

   प्रलोभन बगैर सब बेकार ( वादों का क्या ) डॉ लोक सेतिया 

बात को विराम देने से बात ख़त्म नहीं होती है भगवान ने पत्नी को इस बार मना लिया पर चिंता मन से मिटी नहीं और अगली सुबह सभी देवी देवताओं की आपत्कालीन सभा बुलाई समस्या को समझने और उसका स्थाई समाधान ढूंढने की ख़ातिर । विषय गंभीर था तब भी हर देवी देवता खुद अपने और अपने कुछ भक्तों से निकल कर कुछ विचार करने सोचने समझने को तैयार नहीं हुए । आखिर सब ने मिलकर इक बात पर सहमति प्रदान की कि जिन महान विचारकों संतजनों एवं बुद्धिजीवी लेखन कार्य में निपुण को मरने उपरान्त ईश्वरीय लोक में जगह दी गई थी उन्हीं से ये बेहद महत्वपूर्ण कार्य करने में सहायता सहयोग लिया जाए । सभी को सभागार में आदर सहित आमंत्रित किया गया । उन सभी ने भगवान देवी देवताओं की समस्या जानकर अपने अपने विचार प्रकट किए । सार्थक बात निकल कर आई कि भगवान और देवी देवताओं ने खुद को अन्य सभी से अधिक शक्तिशाली और महान व ऊंचा साबित करने को अलग अलग कथाएं प्रचलित करवाई हैं ।  उन सभी को शामिल कर केवल एक कथासागर की रचना कर हर देवी देवता को उचित स्थान देने को सभी का इक किरदार दिखाई देना चाहिए बिल्कुल किसी उपन्यास की तरह । बड़ा छोटा , अच्छा बुरा नहीं सिर्फ वास्तविक चरित्र हो जिस पर अडिग होकर खरा साबित होना ज़रूरी हो , कभी कभी कहानी कथा में सब से लोकप्रिय ख़लनायक भी हो जाते हैं । बैठक में तय किया गया उन सभी लिखने विचारवान लोगों को आपस में संवाद कर कोई दस्तावेज़ रूपरेखा बना प्रस्तुत करना उचित होगा उस पर चिंतन कर भगवान भविष्य की योजना का निर्णय करेंगे । 

अगली सभा में वरिष्ठ बुद्धिजीवी प्रस्तावित लेख पढ़ कर सुना रहे हैं । भगवान और देवी देवताओं को आशा है इस की खबर पहले से होगी कि धरती पर तमाम लोगों ने कितने की मनुष्यों को भगवान जैसा नहीं अपितु भगवान से ऊंचा सबसे बड़ा पद दिया हुआ है । ऐसे सभी मनुष्य वास्तव में अपने चाहने वालों को अपने श्रद्धालुओं भक्तजनों को कुछ भी देते नहीं दे सकते भी नहीं लेकिन सबको सभी देने की बात पूर्ण आत्मविश्वास से करते हैं । उनकी शरण में आने से उनको अपना भगवान मानने से कुछ भी असंभव नहीं रहता ऐसा भरोसा किया जाता है । भगवान आपने  सभी कुछ दिया है लेकिन हर कोई जितना ईश्वर ने दिया उस को पाकर खुश नहीं है कुछ आपने भी बंदरबांट की है क़ाबिल लोगों को कम और नाक़ाबिल चोर लुटेरों को झोली भर भर कर दिया है । दुनिया में सबसे अधिक संचय जमाखोरी भगवान आपके नाम पर चल रही है आपको इस की खबर तक नहीं कि आपके दरवाज़े से लोग सब मांगने आये होते हैं मगर होता उलटा है जो पास होता वो भी लुटवा बैठते हैं प्रलोभनों के जाल में फंसकर । हम सभी अलग अलग विधाओं के जानकर हैं लेकिन आप सभी देवी देवताओं की सम्मूहिक कथा हम से लिखवाना संभव नहीं होगा । आजकल टीवी चैनल वाले कुछ सिनेमा वाले आपस में तालमेल बिठाकर यही कार्य बड़ी निपुणिता से कर रहे हैं और वो सभी जिस किसी से उनको अपने कार्य का भरपूर मूल्य मिल जाए उसी को भगवान घोषित ही नहीं साबित भी कर सकते हैं । भगवान ने मन ही मन निर्णय ले लिया है और ऐसे सभी लोगों के नामों की सूची बनाकर मौत के दूत को उनको लाने को कहना उचित समझा है । मालूम नहीं किस किस का बुलावा कब आता है सबकी बारी इक दिन आनी तो है । 



 
 

दिसंबर 08, 2023

जो वादा किया निभाना पड़ेगा ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

   जो वादा किया निभाना पड़ेगा ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

भगवान जी के विशेष कक्ष में देवी देवता तो क्या उनकी अर्द्धांगिनी तक को प्रवेश की अनुमति नहीं थी  , अब पत्नी आखिर पत्नी होती है चाहे भगवान की ही क्यों नहीं हो । धरती से कुछ ख़ास महत्वपूर्ण समाचार लाने वाले को निकलते देखा तो भगवान की पत्नी ने सवाल करना उचित समझा कि बड़े खुश दिखाई दे रहे हैं कोई अच्छी खबर लाए हैं तो छुपाने की आवश्यकता नहीं बताएं ।  दूत क्षमा याचना करते कहने लगा आपने बिल्कुल ठीक जाना है  , लेकिन वह बता नहीं सकते उनको गोपनीयता की शपथ दिलाई गई थी सिर्फ भगवान से ही संवाद करना अनिवार्य है । संयोग से भगवान निवास पर आये तो बेहद खुश थे और पत्नी ने कहा मुझे आज इक बात पूछनी है क्या सच सच बताएंगे मेरे सवाल का जवाब बिना कोई बहाना बनाए । ख़ुशी में बोले भगवान आज मेरा मूड शानदार है वादा किया जो चाहो पूछ सकती हो आज । पत्नी ने पूछा आज धरती से क्या अच्छी खबर लाए हैं दूत जिस से आपको बेहद ख़ुशी प्राप्त हुई लगती है । भगवान ने बताया कई साल बाद फिर किसी ने मेरी कथा को अपने ढंग से लिखवाया और सार्वजनिक मंच पर पेश करने की तयारी की जा रही है । पत्नी ने कहा मेरे मन में इस विषय पर हमेशा कितने सवालात रहे हैं लेकिन कभी अनुमति नहीं थी चर्चा करते उस पर मगर आज जब आपने खुद अधिकार दिया है तो फिर इस पहेली को मुझे समझा भी दीजिए । भगवान जो सब जानते हैं नहीं जान सके थे कि सवाल कठिन और उलझे हुए ही नहीं बल्कि इक इक सवाल अपने भीतर अनगिनत सवाल समेटे हुए है । उन्होंने कहा आपको पूर्णतया संतुष्ट किया जाएगा आपके मन में जितने भी अंतर्द्वंद उभर रहे हैं उनका निवारण किया जाना अनिवार्य है । 

भगवान की अनुमति मिलते उनकी पत्नी ने कहना शुरू किया , ठीक से मेरे सवाल सुनकर समझ कर तब जवाब देना मुझे ये अवसर शायद फिर नहीं मिलेगा । भगवान ने खामोश रहना उचित समझा और सिर्फ इशारे से समझाया आपको बारी है सब संशय मिटाने को खुलकर बताओ मुझे सुनना है चुपचाप जैसे दुनिया का हर पति अपना फ़र्ज़ समझता है । पत्नी कहने लगी आपकी कथाओं को लेकर कितनी बार अजीब अजीब तथ्य सामने आते रहते हैं तर्क की कसौटी पर विश्वसनीय नहीं लगते हैं तब भी आपकी माया है सोच कर बिना सोचे सभी यकीन कर लेते हैं । लेकिन जो भी चाहे आपकी कथा को जैसे तोड़ मरोड़ कर बदलकर प्रस्तुत करे ये बात समझ नहीं आती कि उनको ऐसा अधिकार कौन देता है । मैंने तो यहां कितने धरती से इस लोक में आये इंसानों को इस कारण चिंतित देखा है कि उनकी मौलिक रचनाओं को लोग ठीक से उच्चारित नहीं करते । किसी शायर की ग़ज़ल का शेर या कविता पढ़ते समय शब्द बदल देते हैं । कोई गायक गायिका अपने मधुर स्वर में गाने की रॉयल्टी को लेकर चर्चा कर रहे थे मौत के पचास साल बाद तक उपयोग करने वाले को कीमत चुकानी पड़ती है । आप तो अजर अमर हैं लेकिन आज तक आपको अपनी कथाओं की आमदनी से कितनी रॉयल्टी या हिस्सा मिला कोई नहीं जानता कि उस का हिसाब किताब कौन देखता है । 

भगवान ने कभी इस तरह सोचा ही नहीं था इसलिए बोले छोड़ो इन सब व्यर्थ की बातों से क्या हासिल और हमको भला क्या चाहत कुछ पाने की । उनकी पत्नी ने कहा ठीक है ये विषय छोड़ देते हैं लेकिन इतना तो विचार किया जाना चाहिए दुनिया कितनी आगे बढ़ चुकी है मगर आपकी कथाओं में लगता है जैसे कोई बहता हुआ दरिया नहीं रुका हुआ पानी है जिस का उपयोग करना हितकारी नहीं है । समझदार कहते हैं वक़्त के साथ साथ बदलना ज़रूरी है अन्यथा पुरातन भवन खंडहर बनकर रह जाते हैं । आपको कथाओं का घोषित लोक आधुनिक काल के संदर्भ में शायद ही किसी को लुभाता होगा । कभी खुद धरती पर जाओगे तब संभव है हैरान ही हो जाओ देख कर कि आपसे अधिक कितना कुछ इंसान ने बना लिया है जैसा आपकी किसी कथा को लिखने वाले ने कल्पना भी नहीं की थी । आपकी कथाओं से दुनिया को क्या हासिल हुआ मुझे नहीं मालूम लेकिन उनको पढ़ना समझना छोड़ इंसान ने जो खुद किया है लगता नहीं आपको कभी ख़्याल भी आया होगा वो सब होने का । भगवान को लगा इस बात को यहीं विराम देना ज़रूरी है क्योंकि अब उनको दिखाई देने लगा था पत्नी दुनिया की आधुनिक वास्तविकता और बदलती तस्वीर को लेकर क्या क्या नहीं बोलने वाली हैं । लोकतंत्र से लेकर महिलाओं के अधिकार तक की जानकारी रखती हैं और समय आने पर दुनिया और संसार की बागडोर संभालने को तत्पर हैं । आखिर भगवान को भी अपनी पत्नी के सामने अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी और बचने को वही ढंग अपनाना पड़ा बात को बदल कर बोले आपकी बातों में महत्वपूर्ण बात बताना भूल गया आपके लिए सुंदर परिधान और आभूषण और उपहार मंगवाए हैं चलो पहले उन को देख लें फिर ये सब चर्चा कभी भी की जा सकती है । पत्नी की बात का जवाब देते नहीं बनता हो तब यही उपाय सभी करते हैं । 
 

               ( अगला अध्याय अर्थात अगली पोस्ट सबसे महत्वपूर्ण है 

                  उस को पढ़ने से मोक्ष जैसा फल पाया जा सकता है )






 

दिसंबर 07, 2023

भटकन ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

               भटकन ( कविता ) डॉ लोक सेतिया  

चाहिए बस दो ग़ज़ ज़मीन , नहीं मांगते ऊंचा आसमान ,
पेट भरता दाल-रोटी से ही , क्यों चाहें हम मधुर मिष्ठान । 
 
सुकून से छोटे घर में रहना , महलों की झूठी लगती शान ,
झौंका खुली हवाओं को मिले , थोड़ा सा जीने का सामान । 
 
कतरे भर की प्यास हमारी , भर मत देना अपना ये जाम ,
आख़िर सूरज ढल जाता है , जलता दिया है हर इक शाम ।
 
मन उपवन खिला फूल प्यार के , कंटीला वन दुनिया न छान ,
खोने और पाने की धुन में अपना , बीत रहा है जीवन नाकाम । 
 
खुशियों को कैद मत करना कभी , हंसना आज़ादी का इक नाम ,
पल पल मौत खरीद रहे सभी हैं , चुका कर जीने का महंगा दाम ।      
 
 

            ( बहुत साल पुरानी डायरी से इक रचना प्रस्तुत की है। )




दिसंबर 06, 2023

मेरी तलाश ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

              मेरी तलाश ( कविता ) डॉ लोक सेतिया  

जाने कैसा जहां है ये कहीं , 
आकर जिस में खो गया हूं मैं 
करते करते इक प्यार भरे , 
जीवन की तलाश युग युग से । 
 
भूल गए हैं यहां सभी लोग ,
जीने का वास्तविक अंदाज़  
हर शख़्स अकेला खड़ा है 
भीड़ में अजनबी लोगों की ।
 
ढूंढती फिरती है सबकी नैया ,
भंवर में डोलती कोई किनारा
मांझी गए पार छोड़ के पतवार
तूफानों के हवाले है सब संसार । 
 
नहीं है चाह धन दौलत की थी  ,
कभी नहीं मांगे हीरे और मोती  
ज़माने भर से रही है अभिलाषा 
हो विश्वास दो थोड़ा सा प्यार । 
 
सब कुछ मिल सकता था मुझे , 
शोहरत नाम अपनी इक पहचान 
मिलता काश स्नेह किसी का तो
मेरा बस इक वही तो था अरमान ।
 

         ( बहुत साल पुरानी डायरी से इक रचना प्रस्तुत की है। )  


 

   

नींद नहीं ख़ूबसूरत सपनों से प्यार ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

  नींद नहीं ख़ूबसूरत सपनों से प्यार ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया  

नींद आती है लेकिन चैन की गहरी नहीं आती है बड़े होने की यही सबसे बड़ी परेशानी है । बचपन में दादी नानी या कोई भी सबको परियों की प्यार भरी दुनिया की कहानी सुनाते हैं तभी उम्र बढ़ने पर हम ढूंढते हैं कहीं तो मिलेगा वो प्यारा सा जहां । अब हम बड़े हो चुके हैं लेकिन अभी भी हमको सुंदर सपने जो ख़ुशी देते हैं वास्तविक जीवन में नहीं मिलती । धीरे धीरे हमने सपनों में जीना सीख लिया है ज़िंदगी की समस्याओं से नज़रें चुरा कर ख़्वाब को सच समझने लगते हैं । कुदरत ने इंसान को सपने देखने का उपहार दिया था और आदमी ने अपने साहस और बार बार कोशिश कर अपने सपनों को हक़ीक़त में बदलना शुरू किया तभी आज दुनिया में सब संभव हुआ है । जो भी आदमी ने अपनी कल्पना से बनाया कभी इक सपना ही था । हमारे देश को आज़ाद देखना जिनका सपना था उन्होंने अपना जीवन देश समाज के नाम समर्पित कर दिया । कितने फांसी का फंदा चूम कर हंसते हंसते मर कर अमर हो गए क्योंकि उनको हम पर भरोसा था कि हम उनके अधूरे सपनों को सच करने का फ़र्ज़ निभाएंगे । कितनी कोशिशों और कुर्बानियों के बाद देश को आज़ादी मिली और हमारे पूर्वजों ने इक संविधान बनाकर देशवासियों को भविष्य का इक नक़्शा दिखलाया और इक रास्ता बतलाया जिस पर चलकर हमको ऐसा समाज बनाना था जिस में समानता न्याय और सभी को जीने का अधिकार हासिल हो । अफ़सोस उनका वो सपना कभी सच नहीं हुआ और कुछ खुदगर्ज़ स्वार्थी लोगों ने जनता को इक खूबसूरत जाल में फंसा कर रोज़ झूठे सपने बेचने का कारोबार करना शुरू कर दिया जबकि उनको खुद कभी नहीं पता था कि सपनों को हक़ीक़त कैसे बनाया जा सकता है । 
 
आज़ादी के बाद लोकतंत्र के नाम पर जनता से हमेशा छल धोखा और षड़यंत्र का खेल खेला जाता रहा है ।  हमको तरह तरह से कोई नशा दिया गया और मदहोश कर राजनैतिक दलों के झांसों में फंसकर बर्बाद किया जाता रहा है । कुछ लोग फिर भी ऐसे हुए हैं जिन्होंने हमको इस मदहोशी की नींद से जगाने की कोशिश कितनी बार की है लेकिन हमको उनकी बातें अच्छी नहीं लगीं हमने उनको अनसुना कर दिया कभी भी समझने की कोशिश नहीं की । अधिकांश लोगों ने विश्वास कर लिया कि कोई ईश्वर कोई मसीहा आएगा और हमारे देश से समाज से बुराई अपराध और अन्याय असमानता का अंत कर देगा । सब जानते हैं कि भगवान भी उनकी सहायता करते हैं जो खुद अपनी सहायता करते हैं अपने हालात को बदलने को अपने हाथ की लकीरों तक को मिटाने और अपनी तकदीर खुद लिखने का दम रखते हैं । लेकिन हमको तो नींद से प्यार है और बस ख़ूबसूरत सपने देख दिल बहला लेते हैं । कौन जागे और ज़ालिमों से टकराये हमने तो ज़ालिम के ज़ुल्म को अपनी किस्मत समझ समझौता कर लिया है । हमको सपने बेचने वाले सौदागर ज़हर पिलाते हैं अमृत कहकर और हम पीते हैं जीने की चाह में रोज़ मरते हैं । हमारी उलझन है कि कभी कोई डरावना ख़्वाब हमको नींद से जगाता है तो हम बेचैन हो जाते हैं जबकि मनभावन सपना दिखाई देता है तो हम उसी में खोये रहना चाहते हैं जागना नहीं चाहते हैं । विडंबना है कि हम ऐसे लोगों की छत्रछाया में सुकून ढूंढते हैं जिन के भीतर कितनी ज्वालाएं सुलगती रहती हैं जो सबको जलाकर ख़ाक करना चाहते हैं । सभी जानते हैं कि राजनीति का खेल कितना गंदा है इक कालिख़ की कोठड़ी जैसा जिस में सभी का दामन दाग़दार है । जंग सिर्फ इक बात की है कौन अपनी चमक से अपने करिश्में से अपने दाग़ों को दुनिया से छुपा सकता है और कब तलक । राजनेता मसीहा नहीं होते हैं और राजनीति की हालत वैश्यावृत्ति जैसी है उनका धंधा बनावट से चलता है । 
 
कभी इक छोटी सी कहानी पढ़ी थी जिस का सार था कि हम लोग आज़ाद होना नहीं चाहते क्योंकि कहीं न कहीं इक गुलामी की मानसिकता हमको विवश करती है किसी को अपना मालिक समझ उस की जय जयकार करने की । शायर कैफ़ी आज़मी ने इक नज़्म लिखी थी , कुछ लोग अंधे कुंवें में कैद थे और आवाज़ें लगा रहे थे हमको आज़ादी चाहिए , हमको रौशनी चाहिए । जब उनको अंधे कुंवें से बाहर निकाला गया और आज़ादी और रौशनी दिखाई गई तब वो इस को देख घबरा गए और उन्होंने फिर से उसी अंधे कुंवें में छलांग लगा दी और दोबारा वही शोर करने लगे , हमको आज़ादी चाहिए , हमको रौशनी चाहिए ।  
 

 

दिसंबर 05, 2023

गर्व से कहो हम सभी भिखारी हैं ( खरी-खोटी ) डॉ लोक सेतिया

  गर्व से कहो हम सभी भिखारी हैं ( खरी-खोटी ) डॉ लोक सेतिया 

शुरुआत करते हैं जनाब जाँनिसार अख़्तर जी की ग़ज़ल से , उनका परिचय क्या बताएं मुझे समझ नहीं आता है , उनकी शायरी की किताब शायर निदा फ़ाज़ली जी ने सम्पादित की ' जाँनिसार अख़्तर - एक जवान मौत '  । जन्म ग्वालियर में 18 फरवरी 1914 और मृत्यु 19 अगस्त 1976 को मुंबई में हुई । 
 साहिर लुधियानवी से कौन परिचित नहीं जाँनिसार अख़्तर उनके साथी और उनकी महफ़िल का इक ख़ामोश कोना थे जो बुलंदी पर नहीं पहुंच सका क्योंकि मुंबई नगरी के तौर तरीके उनको कभी नहीं आये । लेकिन 1973 में हिंदुस्तानी बुक ट्रस्ट मुंबई से प्रकाशित ' हिन्दोस्तां हमारा ' राजकमल प्रकाशन ' से 75 साल प्रकाशन के पूर्ण होने पर दो भाग में 2023 में फिर से पेपरबैक में छापा गया जिस को पढ़ कर कोई भी हमारे हिंदोस्तां को वास्तव में समझ सकता है । उनकी ग़ज़ल पेश है और आख़िरी शेर मुंबई नगरी पर कहा गया था बस अब उस को देश पर कहें तो कुछ भी गलत नहीं होगा । 
 
ज़िन्दगी ये तो नहीं तुझको सँवारा ही न हो 
कुछ न कुछ हमने तेरा क़र्ज़ उतारा ही न हो । 
 
कूए - क़ातिल की बड़ी धूम है चल कर देखें 
क्या खबर कूच - ए - दिलबर से प्यारा ही न हो । 
 
दिल को छू जाती है यूँ रात की आवाज़ कभी 
चौंक उठता हूं कहीं तूने पुकारा ही न हो । 
 
कभी पलकों पे चमकती है जो अश्कों की लकीर 
सोचता हूं तेरे अंचल का किनारा ही न हो । 
 
शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ 
न मिले भीख तो लाखों का गुज़ारा ही न हो । 
 
राजनीति का खेल तमाशा अजब ग़ज़ब होता है , सबसे बड़ा मदारी कहते हैं ऊपरवाला है जो दिखाई नहीं देता दुनिया को अपनी उंगलियों पर नचाता है , लेकिन उसका किसी को पता नहीं पर सत्ता पर आसीन राजनेता कमाल करता है । आपको सुनहरे सपने दिखलाता है और खुद अपनी ख़्वाहिशों को पूरा करने में कोई कसर नहीं रहने देता कभी । वोटों की भीख मांग कर खुद शासक बनकर सिंघासन पर बैठ मौज मस्ती करता हुआ जनता को उसी के अधिकार अधिकार नहीं भीख की तरह दे कर समझाता है कि वही इक दाता है भिखारी सारी दुनिया । भीख की महिमा , भिखारी सारी दुनिया , मोबाइल वाले भिखारी , भिक्षा सरचार्ज , ये सभी मेरी 2003 में लिखी और छप चुकी रचनाएं हैं । आज की रचना उसी विषय पर है मगर नई लिख रहा हूं पुरानी याद आ रही हैं ।
 
इक विज्ञापन है कुछ नहीं कर के बड़ा अच्छा किया क्योंकि उन्होंने जो करना था किया होता तो अनहोनी होने का अंदेशा था लेकिन फाइव स्टार चॉकलेट खाने वाले यही करते हैं । पहले उन्होंने 35  साल तक भीख मांग कर गुज़ारा किया मोदी जी ने बताया था 2014 को इक साक्षात्कार में उस के बाद उन्होंने शायद साक्षात्कार देना ही छोड़ दिया है । अब सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 80 करोड़ जनता को मुफ़्त में अनाज और ज़रूरत की अन्य वस्तुएं मिल रही हैं अर्थात दो तिहाई लोग बेबस हैं जीने को खैरात पर निर्भर हैं , मगर देश आत्मनिर्भर बन रहा है और जाने कितने अरब खरब की अर्थव्यस्था बनने की राह पर अग्रसर है । हमने इक कहानी सुनी थी इक भिखारन को रानी बना दिया गया तब भी उसको भीख मांगना ख़ुशी देता था उसकी आदत थी बंद कमरे में दीवार के सामने हाथ फैला भीख मांगती थी । क्या अपने ऐसी खबरें नहीं पढ़ीं किसी भिखारी के पास करोड़ों रूपये मिले । आपको हैरानी हो सकती है जबकि यही सच है भीख मांगना आजकल बहुत बड़ा धंधा है फर्क सिर्फ इतना है कि भीख मांगते नहीं किसी और नाम से हासिल करते हैं अगर नहीं मिलती तो छीन लेने में संकोच नहीं करते हैं । मैंने कई साल पहले इक रचना लिखी थी सबसे बड़ा घोटाला जो इक पत्रिका को छोड़ किसी भी अख़बार पत्रिका ने नहीं छापी थी । अभी भी देश में उस से बड़ा घोटाला शायद ही हुआ होगा , सरकारी विज्ञापन जनता के धन की अथवा सरकारी खज़ाने की इक लूट है जिस से देश समाज को कुछ नहीं मिलता बस कुछ लोगों की तिजोरी भरती रहती हैं और बदले में सरकार अधिकारी राजनेताओं की वास्तविकता को सामने नहीं लाने और उनका गुणगान करने का कार्य कर पत्रकार विशेषाधिकार हासिल कर अपने को छोड़ सभी को कटघरे में खड़ा करने लगे हैं । इक शेर मेरा भी है पढ़ सकते हैं । 
 

    ' बिका ज़मीर कितने में हिसाब क्यों नहीं देते , सवाल पूछने वाले जवाब क्यों नहीं देते । '  


भीख में क्या क्या नहीं मिलता बल्कि सब कुछ मिलता है , धार्मिक उपदेशक पुराने साधु संतों की तरह घर घर गली गली भिक्षा मांगने नहीं जाते उनका सारा विस्तार किसी कंपनी की तरह कारोबारी तौर तरीके से दिन दुगनी रात चौगनी रफ़्तार से चलता है । लोभ लालच संचय नहीं करने का उपदेश अनुयायियों को देते हैं खुद उनकी महत्वांकाक्षा आसमान से ऊंची उड़ान भरना होता है । लोकतंत्र का खेल जिस चंदे से खेला जाता है वो इस हाथ ले उस हाथ दे की नीति पर निर्भर है सत्ता मिलते कई गुणा मुनाफ़ा की शर्त होती है । अधिकारी राजनेता से मधुर संबंध किसी प्यार की भावना या आदर स्नेह से नहीं मतलब से रखते हैं सभी ख़ास लोग । अपना ज़मीर गिरवी रख कर अमीर बनना ज़रा भी मुश्किल नहीं है और सच्चाई ईमानदारी आपको कब बदहाली की चौखट तक पहुंचती है आपको खबर नहीं होती है । साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं अन्य संगठनों के पदों की सौगात उन्हीं को मिलती है जो सत्ता की चौखट पर माथा टेक झूठ की जयजयकार करते हैं ।  बन गए चोरों और ठगों के  , सत्ता के गलियारे दास । मेरी पहली नज़्म बेचैनी चालीस साल बाद भी कम नहीं हुई बढ़ती ही जा रही है ।

       बेचैनी ( नज़्म )  

पढ़ कर रोज़ खबर कोई
मन फिर हो जाता है उदास ।

कब अन्याय का होगा अंत
न्याय की होगी पूरी आस ।

कब ये थमेंगी गर्म हवाएं
आएगा जाने कब मधुमास ।

कब होंगे सब लोग समान
आम हैं कुछ तो कुछ हैं खास ।

चुनकर ऊपर भेजा जिन्हें
फिर वो न आए हमारे पास ।

सरकारों को बदल देखा
हमको न कोई आई रास ।

जिसपर भी विश्वास किया
उसने ही तोड़ा है विश्वास ।

बन गए चोरों और ठगों के
सत्ता के गलियारे दास ।

कैसी आई ये आज़ादी
जनता काट रही बनवास । 

अब भीख मांगना गरीबी की मज़बूरी नहीं होकर अमीर बनने का तरीका हो गया है और सभी बिना किसी मेहनत के धनवान होना चाहते हैं सिर्फ कौन बनेगा करोड़पति शो ही नहीं जाने कितने लोग दुनिया को नाम शोहरत दौलत हासिल करने को संसद विधानसभाओं की सदस्यता से ठेकेदारी और तमाम अच्छे बुरे धंधे करने की राह दिखलाते हैं । अपराध राजनीति और टीवी मीडिया सिनेमा का गठजोड़ देश को अपने स्वार्थ की खातिर इक ख़तरनाक खाई में धकेलने का कार्य कर रहे हैं और ये सभी दानवीर कहलाने वाले वास्तव में किसी न किसी तरह से भीख पाकर ऊंचाई पर खड़े हैं तब भी आपको झूठे प्रलोभन भ्रामक विज्ञापन से इक जाल में फंसवा पैसा बनाते हैं । आजकल आपको भिक्षा जेब से हाथ से सिक्के निकाल नहीं देनी पड़ती बल्कि आपको कब कैसे किस ने चपत लगाई आपको पता ही नहीं चलता है । भीख खैरात शब्द अपमानजनक लगते थे आजकल ऐसा करने को समाजसेवा जैसा कोई ख़ूबसूरत नाम दे देते हैं रईस लोग हाथ फैलाकर नहीं लेते लोग खुद विवश होकर उनको देते हैं बदले में अपना नाम किसी सूचि में शामिल करवा खुश हो जाते हैं । भीख की महिमा अपरंपार है देने वाला इक वही मांगता सारा संसार है । हम गरीब देश भी किसी को भीख देते हैं किसी से भीख लेते हैं यहां हर कोई किसी न किसी से मांगता उधार है क़र्ज़ लेकर घी पीने का हमारा चलन कितना शानदार है । इस सब के बावजूद किसी भूखे को डांटना सब जानते हैं ऐसा कहते हैं भले चंगे हो मांग कर खाने से शर्म नहीं आती जबकि कौन है जिसे मांगते हुए लज्जा आती है राजनेता और अमीर तो क्या सरकार से बैंक तक सभी की झोली फैली हुई है । मीना कुमारी ने कहा है जिसका जितना अंचल था उतनी ही सौगात मिली । अंत में मेरे गुरूजी राम प्रसाद शर्मा महरिष जी की इक ग़ज़ल प्रस्तुत है । 

बने न बोझ सफ़र इक थके हुए के लिए 
हो कोई साथ उसे मिलके बांटने के लिए । 

हज़ार देखा किया जाने वाला मुड़ मुड़ कर 
मगर न आया कोई उसको रोकने के लिए । 

ये हादिसा भी हुआ एक फ़ाक़ाकश के साथ 
लताड़ उसको मिली भीख़ मांगने के लिए । 

तू आके सामने मालिक के अपनी दुम तो हिला 
है उसके हाथ में पट्टा तेरे गले के लिए । 

ये ख़ैरख़्वाह ज़माने ने तय किया आख़िर 
नमक ही ठीख रहेगा जले-कटे के लिए । 

बहानेबाज तो महफ़िल सजा रहा था कहीं 
घर उसके हम जो गए हाल पूछने के लिए । 

फ़क़ीर वक़्त के पाबंद हैं बड़े " महरिष "
अब उनके हाथ में घड़ियाँ हैं बांधने के लिए ।






दिसंबर 04, 2023

परछाई बनकर खुश हैं लोग ( विमर्श ) डॉ लोक सेतिया

        परछाई बनकर खुश हैं लोग ( विमर्श ) डॉ लोक सेतिया 

आवाज़ अल्फ़ाज़ अंदाज़ लाजवाब लगते हैं मगर फिर भी सोचने पर अजीब लगता है कि उनका मौलिक नहीं है किसी जाने माने व्यक्ति की बात को थोड़ा अदल बदल कर पेश किया गया है । आपने किसी की आवाज़ की नकल करते देखा होगा किसी की शक़्ल सूरत मिलती हुई दिखाई देती है कहने का अर्थ असली की हूबहू प्रतिलिपि बनाना , साफ शब्दों में नकल । वास्तविक दस्तावेज़ की फोटोकॉपी की बात नहीं है क्योंकि उस में कोई छेड़छाड़ बदलाव नहीं किया गया होता लेकिन किसी शायर की ग़ज़ल की लोकप्रियता को भुनाने को कोई उनकी रचना में कुछ नये अंतरे या शेर जोड़ कर उस शायर को याद नहीं कर रहा होता न ही कोई श्रद्धाभाव समझना चाहिए बल्कि इसको चोरी नहीं तो हेराफेरी करना समझना चाहिए । बात इतने तक भी ठहरती तो छोड़ देते लेकिन जब कोई उनकी निजि ज़िंदगी प्यार की सुनी सुनाई या दुनिया की काल्पनिक मनघड़ंत कहानी को लेकर अपनी रचना लिखने की बात कर दावा करता है वास्तविकता की तब सीमा लांगने की बात बन जाती है । विशेषकर जो लोग दुनिया में नहीं उनको लेकर मनमाने ढंग से किस्से सुनाना कम से कम साहित्यिक दृष्टि से ईमानदारी नहीं कहला सकती है । तमाम ऐसे लोगों का उपयोग खुद को स्थापित करने या कारोबार अथवा शोहरत हासिल करने को करना अनुचित एवं अनैतिक आचरण है । 
 
इधर धार्मिक ग्रंथों का उपयोग कुछ लोग खुद को ऊंचे शिखर पर दिखाने की खातिर करने लगे हैं । अजीब बात है कोई मंच से धार्मिक ग्रंथ पढ़ उपदेश देने का कार्य भी व्यवसायिक तरीके से करता हुआ दिखाई देता है लेकिन संवाद करते हैं तो पाप अपराध और बुराई को गलत कहने का साहस करने से घबराता है और इतना ही नहीं शासक सरकार से हर संभव लाभ उठा कर खुद को बुलंदी पर खड़ा करने में अनुचित उचित की चिंता नहीं करता है । सबको अहंकार की भावना छोड़ने का पाठ पढ़ाता मगर खुद अपने आप को अन्य तमाम सभी संतों महात्माओं साधुओं से बड़ा ज्ञानवान मानते हुए खुद ही अपने इश्तिहार लगवाने का कार्य करता है । कभी किसी ग्रंथ को जो पुरातन है प्रमाणित समझा जाता है उसी को खुद फिर से दोबारा लिखने का काम करता है तो कभी किसी अन्य व्यक्ति की सभाओं में विख्यात प्रार्थना या ईश्वर के गुणगान की तर्ज़ पर इक अपनी रचना बनाकर उसकी जगह हासिल करना चाहता है । आजकल कितने ही धर्म उपदेशक इक दूजे से प्रतिस्पर्धा  कर प्रतिद्विंदी बने हुए हैं जो हमको कहते हैं किसी से ईर्ष्या द्वेष से बचने को कहते हैं क्योंकि ये ऐसा ज़हर है जो आपसी रिश्ते संबंध का अंत कर देता है । सबको महान धार्मिक ग्रंथ का महत्व समझाने वाला शायद उस का अर्थ कभी नहीं समझ पाया है । दीपक तले अंधेरा है ।
 
 

    1             मैं ( नज़्म ) 

मैं कौन हूं
न देखा कभी किसी ने
मुझे क्या करना है
न पूछा ये भी किसी ने
उन्हें सुधारना है मुझको
बस यही कहा हर किसी ने ।

और सुधारते रहे
मां-बाप कभी गुरुजन
नहीं सुधार पाए हों दोस्त या कि दुश्मन ।

चाहा सुधारना पत्नी ने और मेरे बच्चों ने
बड़े जतन किए उन सब अच्छों ने
बांधते रहे रिश्तों के सारे ही बंधन
बनाना चाहते थे मिट्टी को वो चन्दन ।

इस पर होती रही बस तकरार
मानी नहीं दोनों ने अपनी हार
सोच लिया मैंने
जो कहते हैं सभी
गलत हूंगा मैं
वो सब ही होंगें सही
चाहा भी तो कुछ कर न सका मैं
सुधरता रहा
पर सुधर सका न मैं ।

बिगड़ा मैं कितना
कितनी बिगड़ी मेरी तकदीर
कितने जन्म लगेंगें
बदलने को मेरी तस्वीर 
जैसा चाहते हैं सब
वैसा तभी तो मैं बन पाऊं ।

पहले जैसा हूं
खत्म तो हो जाऊं
मुझे खुद मिटा डालो 
यही मेरे यार करो
मेरे मरने का वर्ना कुछ इंतज़ार करो । 
 

   2      हर किसी का अलग ख़ुदा है ( ग़ज़ल ) 

हर किसी का अलग ख़ुदा है 
अब ज़माना बहुत नया है ।  
 
प्यार की बात कर रहे हो 
प्यार करना बड़ी ख़ता है । 
 
जाम भर भर मुझे पिलाओ 
ज़हर ये दर्द की दवा है ।
 
हम से दुनिया ख़फ़ा है सारी 
बोलते सच मिली सज़ा है ।  

मौत भी जश्न बन गई है 
रोज़ होता ये हादिसा है । 

साथ हर बार और कोई 
आजकल की यही वफ़ा है । 

झूठ ' तनहा ' से कह रहा है
ये बता सच का हाल क्या है ।  
 
मैंने अपने बारे में जो महसूस किया वही लिखा वही कहा वही समझा है किसी और की परछाई नहीं बनाया अपने आप को इतना तय है । 
 

सबको लगता नहीं उन जैसा हूं मैं ,

मैं सोचता हूं खुद अपने जैसा हूं मैं । 

   डॉ लोक सेतिया ' तनहा '