अगस्त 31, 2021

किन बातों को अपनाना या छोड़ना ( विरासत ) डॉ लोक सेतिया

  किन बातों को अपनाना या छोड़ना ( विरासत ) डॉ लोक सेतिया 

लगता है जैसे तमाम लोग मानते हैं कि हमारी सभी पुरानी ऐतहासिक धार्मिक किताबों की कहानियां और पुरातन धारणाएं महान हैं और उनको फिर से अपनाया जाना चाहिए। सोशल मीडिया पर बाढ़ आई हुई है सच्ची झूठी मनघडंत बातों की और उपदेश देते हैं हमको वापस उस ज़माने को लाना है। मगर अगर हम ध्यानपूर्वक सोचें तो उन्हीं कथाओं कहानियों में बेहद अनुचित अतार्किक और देश समाज की भलाई के खिलाफ आचरण किया जाता रहा है। वास्तविकता सभी जानते हैं बीता ज़माना पुरानी बातें तौर तरीके लौटते नहीं कभी। यकीनन हम बीते हुए कल की तारीख को वापस नहीं ला सकते तो हज़ारों वर्ष सदियों पुरानी चीज़ों को फिर दोहराना संभव नहीं है। जीवन में भी अतीत को दोहराया नहीं जा सकता है हां वर्तमान को बेहतर बनाने को अतीत और पुराने ज़माने से सीख लेकर नया किया जा सकता है। शायद कोई ऐसे युग में जीना नहीं चाहेगा जिस में आधुनिक समय में उपलब्ध साधन सुविधा नहीं हो पाषाण युग मानवता और सामाजिक संरचना का कोई निशान नहीं था जब। क्या हम अपने घर में परिवार में बाप दादा की सभी पुरानी चीज़ों को हमेशा को संभाल रख सकते हैं शायद अधिकांश चीज़ों का कोई महत्व नहीं रहता है उनको रखना घर को कचरे का ढेर बनाना हो सकता है। हम हर वर्ष घर की सफाई करते हैं और अनुपयोगी वस्तुओं को निकाल देते है नया लाकर घर को सजाते हैं। माता पिता की याद उनकी दी गई शिक्षा को मन में रखना अच्छा है मगर क्या हम अपनी आने वाली संतान को उसी तरह से पालन पोषण करना उचित समझते हैं जैसा उस समय किया जाता रहा था। कहावत है ठहरा पानी खराब हो जाता है बहता पानी होना अच्छा है समय के साथ नदी में पानी बहता रहता है तालाब का पानी भी बदलना होता है। बदलना कुदरत का नियम है सभ्यता भी बदलते समय के साथ परिवर्तित होती रहती है पुरानी सभ्यता के अवशेष तलाशना माना आदमी की आदत होती है लेकिन उसको फिर से स्थापित किया नहीं जाता है। 
 
कभी ध्यान से समझना क्या जो सब पुरानी कथाओं कहानियों में पढ़ते सुनते रहे हैं सब लाजवाब था , नहीं उस में भी अन्याय अत्याचार भेदभाव और बिना तर्क बड़े ताकतवर लोग अपनी मर्ज़ी से नियम बनाते लादते थे। महिलाओं गरीबों अपने अधीन व्यक्ति से बेहद अनुचित अमानवीय आचरण किया जाता था। राम रावण से कौरव पांडव युद्ध तक कितनी आपत्तिजनक बातें हुई जिनको वापस लाना ठीक नहीं होगा। वास्तव में इतिहास और धर्म की कथा कहानियां लिखने वालों ने अपनी खुद की आस्था और विश्वास को स्थापित करने सही और गलत को दरकिनार करते हुए किसी को नायक किसी को ख़लनायक साबित करने के लिए मनमर्ज़ी से मापदंड बनाकर अपना मकसद हासिल किया है। वास्तविक ज्ञान आपको अपने विवेक से काम लेकर मिलता है और जब कोई खुद को उस समय में रखकर विचार करेगा तब समझ आएगा जो उस युग में कोई किसी से करता रहा हमारे साथ होता तो क्या होता। सिर्फ इसलिए कि किसी किताब में लिख दिया गया है इस पर शंका नहीं कर सकते उचित नहीं लगता बल्कि ऐसा लिखने वाला खुद को बचाने की कोशिश करने को हमको अंधविश्वास और अज्ञानता में डालना चाहता है। अन्यथा सांच को आंच नहीं और सत्य को कसौटी पर खरा साबित होना ही चाहिए। हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती और अनमोल हीरे जवाहरात की पहचान उनकी खरेपन की जांच से की जाती है। विवेकशीलता का अर्थ है हमको किसी बात को पढ़कर सुनकर विचार कर समझना चाहिए उसकी वास्तविकता और उपयोगी होने को लेकर अन्यथा हम शिक्षित हो सकते हैं जानकार नहीं। 

 

अगस्त 27, 2021

बिना रानी कहानी नहीं ( किस्सा राजा का ) { व्यंग्य } डॉ लोक सेतिया

बिना रानी कहानी नहीं  ( किस्सा राजा का ) { व्यंग्य } डॉ लोक सेतिया 

कोई महबूबा होती है तभी मुहब्बत की निशानी ताजमहल बनता है अमर होने को निशानी रह जाती है। राजा आखिर राजा होता है शासक बनकर मन की बात करने से चैन नहीं मिलता हसरत बाक़ी है इसिहास में उसकी अलग कहानी शामिल होनी चाहिए। सज धज शानो शौकत खूब मौज मस्ती जी भर कर मनमानी सारी दुनिया को घूमकर देखा फिर भी कैसा खालीपन ज़िंदगी में रह गया जाता नहीं सब आधा आधा लगता है। बात कहते हैं तो आधा सच आधा झूठ मिलकर झूठ का पुलिंदा बन जाता है। दरबारी लेखक महिमा गुणगान लिखना करना जानते हैं शासक की मर्ज़ी की आत्मकथा लिख देते हैं जिस में नज़र थोड़ा आता है ढकना अधिक पड़ता है। बीस साल शासन करने के बाद उनकी चाहत यही है कोई उनकी भी ऐसी कहानी लिखे जो ज़माना सदियों तक भूल नहीं पाये। कितने अच्छे साहित्यकारों से चर्चा की और सभी ने समस्या एक ही बताई जब तक शामिल रानी नहीं बन सकती आपकी कहानी नहीं। अविवाहित शासक भी हुए हैं मगर उनकी भी इक मुहब्बत अवश्य होती थी उनका जूनून उनका मकसद कुछ करने का आज़ादी हासिल करना समाज को अच्छा बनाने जैसे मकसद बड़े होते थे। सिर्फ कुर्सी से प्यार बेजान चीज़ों से लगाव अपनी विवाहिता पत्नी घर परिवार को छोड़ना बगैर कोई महान मकसद लिए लिखने को कहानी का विषय हो नहीं सकता है। सवाल आएगा राजा की पत्नी रानी बनकर नहीं जोगन बनकर भी नहीं रही खुश भी नहीं उदास भी नहीं अलग नहीं होकर भी पास भी नहीं ऐसा क्यों हुआ। कोई आरोप नहीं जुर्म नहीं सज़ा जीवन भर पाती रही इस वास्तविकता को छोड़ना मुमकिन नहीं है। माना सत्ता होने से सब मुमकिन हो जाता है मगर चांद पर दाग़ स्वीकार किया जाता है सूरज कहलाने को चेहरे पर धब्बा नहीं। 
 
राजा की आरज़ू है इक शानदार ऊंचा विशाल गगन को छूता भवन बनाया जाये जिस में सिर्फ इक उसी की खूबसूरत तस्वीरें सजाई गईं हों। चाहे कितने तरह के लिबास में लाखों तस्वीर किसी व्यक्ति की किसी चित्रशाला में लगाई जाएं दर्शक को अधिक समय तक लुभा नहीं सकती हैं। हर किसी के साथ कोई संगी साथी होना ज़रूरी है। आपने खुद को सबसे ऊपर सबसे बड़ा दिखलाने की खातिर अकेला और तन्हा कर लिया है लाखों की भीड़ में भी आप खुद को अजनबी महसूस करते हैं। कोई नाटक कोई फिल्म अकेले किरदार से बन नहीं सकती है कोशिश करते रहे हैं लोग खुद ही नायक निर्देशक पटकथा लेखक बन फिल्म बनाने की अंजाम दर्शक भी सिर्फ वही बनकर रह गए। आपकी ज़िंदगी में प्यार मुहब्बत की कोई दास्तां नहीं है केवल खुद को खुदा समझने का झूठा अहंकार रहा है। जो बाकी लोगों की अहमियत को स्वीकार नहीं करते हैं खुद उनकी कोई अहमियत रहती नहीं है। आपकी ज़िंदगी इक किस्सा बनकर रह गया है जिसको किसी किताब में दर्ज नहीं किया जा सकता है किस्सों में सच्चाई काम कपोल कल्पना अधिक होती है। कहीं खुद आप ज़िंदगी को किस्सा समझने की भूल कर पछता तो नहीं रहे। रानी का वजूद नहीं समझने वाले राजा की कोई कहानी बनती नहीं है।

अगस्त 25, 2021

ख़ुशी की तलाश में ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

           ख़ुशी की तलाश में ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया    

पढ़ने से पहले समझ लो ख़ुशी पाने की बात यहां नहीं हो रही है। खुश रहना जिनको जीवन का मकसद लगता है ख़ुदगर्ज़ लोग होते हैं भौतिक वस्तुओं से आनंद की अनुभूति होती है। खुश रहने के तौर तरीके अंदाज़ समझाने वाले संदेश भेजने वाले बहुत मिलते हैं ख़ुशी क्या होती है शायद उनको खुद मालूम नहीं नाचना गाना मौज मस्ती करना घूमना फिरना अच्छा लगता है ख़ुशी देता है ऐसा नहीं है। ख़ुशी कोई बाज़ार में बिकता सामान नहीं होता है अपने भीतर से उपजा एहसास होता है। अगर हमारे आस पास समाज में असमानता अन्याय भूख गरीबी जैसी समस्याएं हैं मगर हम जश्न मनाते हैं सुःख सुविधा साधन पाकर तब हमारी ख़ुशी मानवता की भावना को समझे बिना झूठी खोखली और दिखावे की अस्थाई पल दो पल की है बस ज़रा सा झौंका आकर उसको कभी भी दुःख दर्द परेशानी में बदल सकता है। ख़ुशी ऐसा एहसास है जो हासिल करने से नहीं बांटने देने से मिलता है सभी के दुःख दर्द परेशानियां समझना उनका एहसास करना अपना समझ उनको मिटाने की कोशिश करना सच्ची मानसिक ख़ुशी देता है। बिना कोई स्वार्थ सबकी सहायता करना कोई नाम शोहरत उपकार करने की चाह नहीं रखते हुए मानवीय संवेदना की खातिर हर किसी की भलाई की कामना रखना ख़ुशी पाने का वास्तविक ढंग है। ख़ुशी इक मासूम बच्ची की तरह है जिसको जन्म देने में महीनों इंतज़ार करने के बाद अपने भीतर पलना पड़ता है और असहनीय पीड़ा झेल कर जन्म देना होता है। हर ख़ुशी छोटी से बड़ी होती जाती है देखभाल करने से संभालने से प्यार से हर समस्या से बचा कर रखने से। मगर हमने ख़ुशी को समझा नहीं जाना नहीं पहचाना नहीं एवं धन दौलत नाम शोहरत भौतिक चीज़ों को पाने को खुश रहने का तरीका मान लिया है। अनुचित ढंग से छल कपट से धोखा देकर विवश कर जालसाज़ी द्वारा हासिल ख़ुशी वास्तविकता उजागर होते ही परेशानी दुःख दर्द की वजह बन जाती है। चोर डाकू लुटेरे पकड़े जाने पर मुजरिम ठहराए जाते हैं गुनाह की सज़ा मिलती है मगर जिनको बिना महनत अनुचित कार्य से धन दौलत नाम शोहरत मिल भी जाती है उनकी खुद की अंतरात्मा ख़ुशी अनुभव नहीं होने देती और अधिकांश लोग खुश होने का आडंबर दिखावा करते हैं ख़ुशी को अनुभव नहीं कर सकते हैं। 
 
रईस लोग बड़े धनवान लोग शासक बनकर ऐशो आराम पाने वाले पल पल जो मिला है उसको खोने का डर उनको चिंतित किये रहता है खुश नहीं रहने देता तभी जिनको बहुत अधिक हासिल है उनकी और ज़्यादा पाने की चाहत की हवस मिटती नहीं और वास्तव में वो सबसे गरीब होते हैं। हमने देवता और दानव की कथाएं कहानियां पढ़ी सुनी हैं , आदमी जब अपने पास जितना है किसी और को देता है ज़रूरतमंद को तब वो इंसान देवता बन जाता है। मगर दानव होते हैं जो किसी से उसका सब छीन लेते हैं अपनी इच्छा कामना की खातिर। देवता देते हैं राक्षस लेते हैं यही अंतर है अच्छे बुरे होने का , खेद की बात है आधुनिक समाज के मापदंड और नैतिक मूल्य आदर्श बदलते बदलते गलत को सही समझने लगे हैं। तेज़ चलने आगे बढ़ने की दौड़ में हमने पतन को उन्नति का नाम दे दिया है। जितना नीचे गिरते हैं लगता है ऊंचाई पर हैं और सबको पीछे छोड़ने में खुद अपनी ज़मीन से कट जाते हैं। 
 
आपको धर्म समाज की शिक्षा ने कितने कर्तव्य कितने क़र्ज़ गिनाये होंगे माता पिता से लेकर तमाम लोगों के लिए आभारी होने और उनका उपकार चुकाने की बातें। लेकिन कभी सोचा है जिस धरती पर रहते हैं जिस समाज से हमको कितना कुछ मिलता है उसका कोई क़र्ज़ हमपर बाकी रहता है चुकाने को। अपना घर परिवार संतान के इलावा देश समाज से जीवन भर कितना बिना मांगे बगैर शर्त मिलता रहा उनको कुछ वापस देना याद रहा ही नहीं। जिनके पास बहुत है उनको देना चाहिए उनको जिनके पास कुछ भी नहीं क्योंकि विधाता ने धरती हवा पानी प्रकृति सभी के लिए बराबर बनाई है जिन्होंने अपने हिस्से से बढ़कर हासिल किया है औरों का अधिकार छीन रहे हैं। सिर्फ कहने को सबका भला विश्व का कल्याण हो व्यर्थ की बात है जब हम सिर्फ अपनी ख़ुशी अपनी ज़रूरत को समझते हैं मतलबी बनकर अन्य लोगों के लिए असंवेदनशील हो जाते हैं। इस युग का आदमी अनगिनत लाशों के ढेर पर खड़ा उल्लास और अट्हास का प्रदर्शन कर हैवानियत का कार्य कर रहा है। मुट्ठी भर लोगों की हंसी के नीचे तमाम लोगों की आहें चीखें दबी हुई हैं। ख़ुशी चाहते हैं तो ऐसा समाज बनाना होगा जिस में सभी एक समान हों छोटा बड़ा ऊंचा नीचा ख़ास आम जैसा भेदभाव नहीं हो। 

 

अगस्त 21, 2021

शानदार अंत की अभिलाषा ( अजीब दस्तान ) डॉ लोक सेतिया

   शानदार अंत की अभिलाषा ( अजीब दस्तान ) डॉ लोक सेतिया 

यही टीवी सीरियल के पर्दे पर नज़र आया अंतिम एपिसोड में सब चंगा हो गया है। हर बात का खुलासा हो गया सभी राज़ खुल गए पूरी तस्वीर साफ़ हो गई शुरुआत से अनगिनत बार सिर्फ गलत और अनुचित आचरण करने वाला खलनायक पल भर में बदल गया माफ़ी मांगने लगा अपने किये पर पशेमान होता दिखाई दिया। अर्थात अनहोनी घट रही थी राक्षस अपना स्वभाव बदल देवता बन गया। कहानी लिखने वाले के पास कुछ भी बचा नहीं अंत करना ही विकल्प हो गया। कल उसी समय कोई और नया धारावाहिक शुरू होगा शुरआत लाजवाब होगी बाद में बोझिल दास्तान आखिर में अंत वही सब उलझन सुलझती हुई।
 
 वास्तविक जीवन में भी ठीक यही होता है। कोई कितना अकेला होकर जिया दुनिया से विदा होने के बाद शोक मनाने वाले बहुत चले आते हैं काश लोग जानते तो कब से मरने की ख़्वाहिश करते। बात क्या है कि मशहूर लोगों के घर , मौत का सोग होता है त्यौहार सा। गुड़िया गुड्डे को बेचा खरीदा गया , घर सजाया गया रात बाज़ार सा। डॉ बशीर बद्र जी की ग़ज़ल कितनी सच्ची है इतनी अच्छी बातें इतना अपनापन कहां नज़र आता है मतलबी दुनिया में अफ़सोस की घड़ी बिछुड़ने की कम मुलाक़ात की ज़्यादा लगती है। इक अजीब बात ज़रूर होती है शोकसभा में जिसकी तस्वीर पर पुष्प चढ़ाते हैं सभी उसकी बात शायद कोई करता है हर कोई हज़ार बातें करता है। न जाने क्यों लोग आकांक्षा करते हैं उनकी शोकसभा शानदार होनी चाहिए जबकि खुद देख नहीं सकते उनकी चर्चा कोई नहीं करता। रिश्ते नातों की कितनी बातें होती हैं उनके बहाने से लोग अर्से बाद मिलते हैं अपनी अपनी बात करते हैं। ख़ुशी भी दुःख दर्द भी असली नहीं लगते हैं अब सब खोखला खाली खाली लगता है भीड़ में आदमी की शख़्सियत खो जाती है।   
 
 धार्मिक सभाओं में उपदेशक वक्ता दोहराते हैं उन्हीं बातों को असंख्य बार , कहते हैं आप नाम नहीं जपते धार्मिक स्थल जाते नहीं भगवान की उपासना करते नहीं। जाने इतनी भीड़ मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे तमाम धार्मिक शहरों में किस तरह दिखाई देती है। लोग एक नहीं सभी धार्मिक जगहों पर दर्शन ईबादत पूजा अर्चना को जाते हैं किनको शिकायत है लोग नहीं धार्मिक आस्था पर चलते हैं। ईश्वर उनको कैसे बताते हैं मेरी भक्ति का उपदेश अभी थोड़ा है शायद इतना अधिक होने लगा है कि उसकी कीमत घट गई है। आदमी पल पल चिंता में रहता है कोई बात गलत नहीं हो जाए लेकिन हज़ार नज़रें उस पर गढ़ी हुई होती हैं जो हर क्षण उसकी कमियां तलाश करती रहती हैं। कोई खुद अपनी गलती नहीं देखता है। अधिकांश लोग अपनी भूल गलती क्या अपराध तक को अनुचित नहीं समझते हैं। औरों पर तलवार ताने हुए हैं खुद को आईने में नहीं देखते हैं। 
 
  विडंबना की बात है कि धार्मिक जगहों पर रिश्वत देकर पहले दर्शन करने से लेकर चढ़ावे और दानराशि की चर्चा होती है आस्था विश्वास और भक्ति भावना को कोई नहीं जानता समझता। भवसागर से पार लगाने की बात कहने वाले मोह माया में डूबे हैं खुद दीपक तले घना अंधकार है। लिखने से पहले मिटाना पड़ता है जो मनघडंत अतार्किक लिखा हुआ है। सोच की मानसिकता की स्लेट अथवा पट्टी को साफ करना होगा लिखावट ऐसे शब्दों में हो जिसको पढ़ा और समझा जा सके। बिना अर्थ समझे रटना किसी काम का नहीं होता है। सही मार्ग की तलाश करनी ज़रूरी है कब तक कोल्हू के बैल बनकर उसी दायरे में घूमते रहेंगे आंखों पर अंधविश्वास की पट्टी बांधे , जहां हैं वहीं रहेंगे। 

 

अगस्त 08, 2021

हां मैं शून्य हूं ( शुरुआत से आखिर तक ) डॉ लोक सेतिया

    हां मैं शून्य हूं ( शुरुआत से आखिर तक ) डॉ लोक सेतिया 

यही सच है सबने मुझे ज़ीरो समझा है हीरो बनना भी नहीं चाहता क्योंकि हीरो नायक कहलाने को बेताब लोग भी होते भीतर से खोखले हैं। ज़ीरो की कीमत कोई नहीं समझता मगर शून्य की अहमियत समझना बेहद ज़रूरी है आपकी संख्या में जोड़ने घटाने से अंतर नहीं पड़ता फिर भी बड़े काम का होता है एक के बाद लगाने से दस बना देता है तो करोड़ से गुना करने पर करोड़ को ज़ीरो भी बनाता है। जब तलक अपने मुझे जाना समझा पहचाना नहीं आपके जीवन का गणित उत्तीर्ण नहीं हो सकता है। विश्व का आदि और अंत शून्य ही है संसार की हर शय का यही अफसाना है शून्य से आना शून्य में विलीन हो जाना है। मुझे आपको अपनी कहानी नहीं सुनानी आपको आपकी कथा से मिलवाना है। 
 
बात उनकी करते हैं जिनकी संख्या असंख्य समझी जाती है बड़े लोग धनवान शासक अधिकारी राजनेता उपदेशक उद्योगपति शिक्षक विद्वान महान कहलाने वाले। सौ साल जीने के बाद आखिर शुरुआत के भार के मिट्टी बनकर रह जाते हैं। सिकंदर खाली हाथ आये थे खाली हाथ जा रहे कह जाते हैं। छोटा सा आकार लेकर आये थे विस्तार पाकर आकाश तक पहुंचे मगर मिट्टी से मिट्टी तक का सफर ज़िंदगी है। शायद इस से बड़ा मज़ाक कोई नहीं हो सकता कि हर कोई जीते जी मरता है सोचता है मौत के बाद ज़िंदा रहना है। जब हमीं न रहे तो रहेगा मज़ार क्या , पागलपन है मरने के बाद ख़त्म कहानी की चर्चा करते हैं ज़िंदगी की सच्ची कहानियों को नहीं समझते हैं। आपने जीवन भर जो भी किया अपने मकसद की खातिर किया कभी कुछ भी बिना स्वार्थ किया ही नहीं कभी अपने पराये की बात कभी कोई विवशता का बहाना बनाकर मानवता के कर्तव्य को अनदेखा किया। आपको बदले में कुछ चाहिए कोई सुख कोई सुविधा कोई मोल अन्यथा क्यों किसी को कोई सहयोग देना , मानव होना मानवता की राह चलना पड़ता है। आदमी इंसान नहीं बना कभी हैवान कभी शैतान बन जाता है। सिर्फ खुद की खातिर जीना ज़िंदगी का मकसद नहीं हो सकता है जीना सार्थक होता है जब आदमी आदमी के काम आये अन्यथा हमारा होना नहीं होना एक समान है। 
 
मुझे शून्य होना अच्छा लगता है किसी को बदले में कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती है। सभी को उपलब्ध होता हूं हमेशा जब ज़रूरत हो उपयोग कर सकते हैं। आपकी संख्या बढ़ जाएगी मुझे अपने पीछे खड़ा कर और इक बार नहीं बार बार कर सकते हैं। शून्य को बेकार मत समझो उसको अपना लो , हां शून्य हूं मैं। तकरार छोड़ो मुझसे प्यार कर लो। बस एक बार मेरा भी ऐतबार कर लो।


जानिए संख्या शून्य /"0" का रहस्य! - Who Discovered Zero And It's  Significance – Vigyanam