महफ़िल में जिसे देखा तनहा-सा नज़र आया ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
महफ़िल में जिसे देखा तनहा-सा नज़र आयासन्नाटा वहां हरसू फैला-सा नज़र आया ।
हम देखने वालों ने देखा यही हैरत से
अनजाना बना अपना , बैठा-सा नज़र आया ।
मुझ जैसे हज़ारों ही मिल जायेंगे दुनिया में
मुझको न कोई लेकिन , तेरा-सा नज़र आया ।
हमने न किसी से भी मंज़िल का पता पूछा
हर मोड़ ही मंज़िल का रस्ता-सा नज़र आया ।
हसरत सी लिये दिल में , हम उठके चले आये
साक़ी ही वहां हमको प्यासा-सा नज़र आया ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें