अगस्त 30, 2023

गोलगप्पों की राजनीति ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

     गोलगप्पों की राजनीति ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया  

सब जगह चर्चा है अख़बार में खबर छपी है तस्वीर भी जनाब गोलगप्पे खा रहे हैं चैनल वाले एंकर से अखबार के संपादक तक इस बात पर गंभीर चिंतन कर घटना का निहितार्थ ढूंढ रहे हैं । खबर महत्वपूर्ण है टीवी पर घोषणा करने वाले समझाने को सवालात ही सवालात खड़े कर बहस की शुरुआत कर रहे है । क्या ये आने वाले चुनाव को सामने रख कर गणित ठीक करना है । क्या पानी पूरी गोलगप्पे और भरवां गोपगप्पे तथा आटे वाले सूजी वाले गोलगप्पे को लेकर कुछ अंतर है कौन किसे पसंद है इसे लेकर कोई संदेश देने की बात जनाब कर रहे हैं । एंकर जानना चाहता है कि गोलगप्पे का पानी का स्वाद को लेकर क्या सभी की राय अलग अलग है या इस पर एकमत से सहमति बन सकती है । इतना साफ़ है ये किसी भी राजनीतिक दल का अधिकार नहीं है बल्कि महिलाओं ही की चाहत की बात नहीं पुरुष भी चटखारे लेकर गोलगप्पे खाने को तैयार हैं । गोलगप्पे की रेहड़ी वाला बता रहा है कि हर राजनैतिक दल हर वर्ग जाति धर्म के लोग उस के ग्राहक हैं । क्या इसको आपसी भाईचारा राष्ट्रीय एकता से जोड़ा जा सकता है सत्ता और विपक्षी दल यहां आकर सब मतभेद छोड़ एक साथ खाते खिलाते हैं । टीवी वाले का कैमरा वहां पहुंच जाता है जहां गोलगप्पे कड़ाही में तले जाते हैं और गोलगप्पे का पानी और उबले आलू को मसल कुचल कर चटनी को भी बनाया जाता है । लेकिन कैमरे को नज़दीक जाने की अनुमति नहीं है इक सुरक्षा चक्र है जिस के बाहर से फोटो वीडियो बना रहे हैं । इक कर्मचारी अंदर जाने से रोकता है ऐसा कहते हुए कि उनकी बनाने की विधि और रेस्पी सार्वजनिक नहीं की जा सकती है । धंधे का सवाल सबसे बड़ा है , अचानक जनाब रेहड़ी वाले से बातचीत करने लगते हैं और जानना चाहते हैं कि कब से ये व्यवसाय कर रहे हैं और कितनी बिक्री कितना मुनाफ़ा होता है । 

गोलगप्पे की रेहड़ी वाला थोड़ा घबराया लगता है तो जनाब दिलासा देते हैं कि उनका किसी आयकर विभाग से या अन्य किसी संस्था से कोई मतलब नहीं है । उनको अपने अगले चुनावी घोषणापत्र में इस को लेकर योजना बनानी है शोध करना है कि इसका सेवन कितना लाभदायक है । हमारी सरकार बन जाएगी तो सबको गोलगप्पे खाने की शानदार पार्टी आयोजित की जाएगी और इस को बढ़ावा दिया जाएगा । हमने इक सर्वेक्षण करवाया है जिस का नतीजा यही है कि अधिकांश जनता की पसंद यही है । गोलगप्पे वाले को अपने दल का उम्मीदवार बनाने की बात भी कही गई है टिकट देने का वादा है बस इक शर्त इक इरादा है सब कुछ आधा-आधा का प्रस्ताव है । ये बड़ा सस्ता भाव है या कोई नया दांव है खुद उसको पाव भाजी से लगाव है । उसको फिर अच्छे दिन दिखाई दे रहे हैं अपना गोलगप्पों का बिल मांगा तो कहने लगे कर गूगल पे रहे हैं । मेरे पास कोई ऐसा विकल्प नहीं है कहने पर जवाब मिला नकद देने की हमको इजाज़त नहीं है चैक लेने तुमको राजधानी आना पड़ेगा जीएसटी का खाता बनाना पड़ेगा । समस्या बड़ी भारी है ये खर्च सरकारी है दस बीस साल बाद होता भुगतान है रेहड़ी वाला बड़ा नादान है इन सब से अनजान अनाड़ी है । राजनीतिक दल वाला बतला रहा है गोलगप्पे की रेहड़ी वाला जनाब को समर्थन भी दे रहा और मुफ़्त में गोलगप्पे परोस कर हाथ मिला रहा है । जनता क्या है गोलगप्पा है जिसको हर दल वाला कब से खा रहा है कीमत कौन चुका रहा है ये कोई नया ज़माना है जो सदियों से चला आ रहा है खुद को बदला हुआ नवयुग बता रहा है ।



अगस्त 26, 2023

शून्यकाल का आलाप ( हास्य - व्यंग्य रचना संग्रह ) डॉ लोक सेतिया [ पूरी किताब ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं ]

शून्यकाल  का आलाप  ( हास्य - व्यंग्य रचना संग्रह ) डॉ लोक सेतिया 

    मेरी चार किताबें प्रकशित करने के बाद इस हास्य-व्यंग्य रचना संग्रह छापने को प्रकाशक को पांडुलिपि भेजी हुई है । मुझसे फरवरी तक छापने की बात कही गई थी एवं उसी भरोसे मैंने सभी मित्रों और पाठकों से शीघ्र नई किताब का वादा किया था । मुझे बताया गया था कि जल्दी ही आपको प्रारूप भिजवा दिया जाएगा त्रुटियां को देखने के लिए । जुलाई का अंत आ गया है और मित्र पाठक जानना चाहते हैं कब पढ़ने को किताब मिलेगी । ऐसे में यही उपाय करना  सही लगा कि ब्लॉग की सभी पहले से पब्लिश पोस्ट को एक साथ पूरी किताब की तरह पब्लिश कर दिया जाना उचित होगा और किताब छपते ही आपको लिंक उपलब्ध करवाया जाएगा पुस्तक मंगवाने को । किताब में 28 रचनाएं शामिल हैं हास्य-विनोद से सार्थक कटाक्ष करती सामाजिक सरोकार की गंभीर समस्याओं पर ।

               

                    अस्वीकरण ( घोषणा ) 

पुस्तक में शामिल सभी रचनाओं के पात्र व घटनाएं  काल्पनिक हैं । संयोगवश किसी भी प्रकार से मेल खाने पर लेखक का कोई उत्तरदायित्व नहीं होगा ।
लेखक सभी धर्मों का आदर करता है और तमाम धर्मों एवं विचारधारा सामाजिक सांस्कृतिक आदर्शों का पूर्ण रूप से सम्मान करता है ।
सभी चरित्र मनोरंजन एवं हास परिहास के उद्देश्य से लिखे व निर्मित किए गए हैं और किसी भी रचना के पात्र का किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई भी सरोकार कदापि नहीं है ।
लेखक का मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं है ।
कृपया पाठक हास परिहास को ध्यान में रख कर रचनाओं से आंनद उठाएं और अन्यथा नहीं लें व्यक्तिगत रूप में समझना उचित नहीं होगा ।
 
 
 
 © सभी रचनाएं डॉ लोक सेतिया अर्थात मेरी मौलिक हैं और सभी कॉपीराइट मेरे लेखक के सुरक्षित हैं कोई बिना अनुमति किसी भी तरह उपयोग नहीं कर सकता है ।

             फ़िसलन भरी राहों पे चलते ( भूमिका ) 

    आसान लगती हैं हास्य व्यंग्य की राहें । चलना पड़े तो समझ आता है , डगमगाने लगते हैं हाथ कलम पकड़े शब्दों के अर्थों से उलझते , फ़िसलने लगते हैं पांव जब बहते दरिया के पानी में पत्थर आते हैं अचानक नीचे । घायल होने से डूबने तक का एहसास हमेशा बना रहता है और तैरना सीखा नहीं फिर भी कागज़ की नैया पर हो कर सवार निकल पड़ते हैं इस पार से उस पार भंवर से गुज़र कर हर बार । सच्ची कड़वी बात को मीठी हर्गिज़ नहीं बना सकते नमक मिर्च मसाला लगाकर परोसना होता है उन्हीं के सामने जिनकी असलियत पर कटाक्ष करना होता है सलीके से । किसी बेवफ़ा सनम की बेवफ़ाई उसी को सुनानी भी और उसी की ज़ुबान से वाह वाह भी निलकना किसी करामात से कम नहीं । हज़ूर समझते भी हैं मगर नासमझ भी बन कर लुत्फ़ उठाते हैं बुरा नहीं मानो हंसी हंसी में कहकर हमारे संग मुस्कराते हैं । थोड़ी खट्टी थोड़ी मीठी गुदगुदाती जाने कब तीखी लगने लगती हैं और तेवर बदल जाते हैं अपनत्व की जगह बेगानापन दिखाई देता है । ज़माने की अफ़साने की बात हर किसी को निजी लगती है तीर सी चुभती हुई । ये हास परिहास ज़रूरत होता है मगर मज़बूरी बनते देर नहीं लगती है । चुटकुले मज़ा देते हैं कॉमेडी मज़ेदार लगती है लेकिन कटाक्ष हास्य के साथ जुड़कर क्या क्या सितम नहीं ढाता है । ये रास्ता आम सड़क नहीं इक पगडंडी है कदम कदम पर कोई कंटीली झाड़ी कोई खड्डा कोई चुभती हुई चीज़ पैरों को दर्द देती है । चारों तरफ से सरसराहट सी सुनाई देती है नहीं पता चलता किधर से कोई तिरछी नज़र से देख रहा है । कहीं तेज़ चकाचौंध रौशनी कहीं घना अंधकार भरी दुपहरी में आकाश पर कोहरा छाने लगता है जिस को उजाला बतलाया जाता है । समस्या बढ़ जाती है जब तमाम लोग अलग अलग चश्में से देख कहते हैं सब हरा है या लाल या काला या पीला ज़र्द रंग वाला है । सभी जो उनको पसंद है वही देखना सुनना पढ़ना और समझना चाहते हैं । ऐसी रंग बदलती दुनिया में हास्य व्यंग्य घायल भी हो सकता है और रंगीन होते हुए भी रंगहीन भी लग सकता है ।  
 
   हरियाणवी भाषा और हरियाणा के लोगों का तौर तरीका सीधी बात को ख़ास अंदाज़ से कहना जिनकी पहचान हो उस राज्य की मिट्टी में रहकर आदतन तिरछी नज़र से देखने का ढंग बन जाता है । सवाल की तरह जवाब सूझने लगते हैं बस यूं ही हास्य पैदा हो जाता है । सच तो ये है कि बात हंसने की नहीं कभी संजीदा विषय की होती है पर लोग समझे बगैर हंसने लगते हैं । ये कोई खाला जी का घर नहीं है ये ऐसी जगह है जहां सासु मां दामाद को नानी याद दिलवा सकती है चार दिन ससुराल रह कर देखे कोई । ये बात पुस्तक पढ़ने से पहले शुरुआत में समझाना ज़रूरी लगा ताकि कोई हास्य-व्यंग्य की रचनाओं से सबक सीख कर अपनी ज़िंदगी में आज़माने परखने की कोशिश नहीं करे , रचनाकार परिणाम का दोषी नहीं होगा । सावधानी ज़रूरी है सुरक्षा के लिए । ध्यान रहे ।

                  [ पूरी किताब ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं ]

                         1     शून्य का रहस्य                 

     आज शून्य के बारे चर्चा कर रहे हैं। अध्यापक जब शून्य अंक देते हैं तो छात्र निराश हो जाते हैं। जीवन में शून्य आ जाये तो जीना दुश्वार हो जाता है। अगर समझ में आ जाये तो शून्य का अंक बड़े काम का है। गणित में भारत का योगदान है शून्य का ये अंक , इस के दम पर ही विश्व चांद तारों का सफ़र आंक सका है। समाज में कुछ लोगों का योगदान शून्य होता है फिर भी उनका बड़ा नाम होता है। क्योंकि उनके आगे कुछ और लिखा होता है। शून्य से पहले एक से नौ तक कोई संख्या लिखी हो तो शून्य शून्य नहीं रहता। जब किसी के साथ माता पिता का नाम जुड़ा हो , विशेषकर अगर माता पिता सत्ताधारी हों तब संतान शून्य होने के बावजूद अनमोल होती है। उसके जन्म दिन पर बधाई के विज्ञापन अख़बार में , सड़कों पर इश्तिहारों में दीवारों पर दिखाई देते हैं। ऐसा शून्य बड़े काम का होता है। वह किसी राजनैतिक दल का सामान्य कार्यकर्त्ता नहीं बनता कभी , सीधे मुख्यमंत्री - प्रधानमंत्री पद का दावेदार होता है । विचित्र बात है , हम लोकतंत्र की दुर्दशा का रोना रोते हैं और साथ ही परिवारवाद को फलने फूलने में भी सहयोग देते रहते हैं। नतीजा वही शून्य रहता है । ध्यान से देखें तो हमारे आस पास कितने ही शून्य नज़र आएंगे । आप चाहे जितने शून्य एक साथ खड़े कर लें कुछ फर्क नहीं पड़ता , पांच शून्य भी एक साथ शून्य ही होते हैं लेकिन उनके आगे एक लग जाये तो वे लाख बन जाते हैं ।

          हम सौ करोड़ लोग मात्र नौ बार लिखा शून्य का अंक हैं , जब तक हमारे कोई एक खड़ा नहीं होता , किसी काम के नहीं हैं हम । इसलिए समझदार लोग प्रयास करते रहते हैं कि वे शून्य से बड़ा कोई अंक हो जाएं  और हम जैसे कई शून्य उनके पीछे खड़े रह कर उनका रुतबा बुलंद करें । इसे राजनीति , धर्म , समाज सेवा कुछ भी नाम दे सकते हैं । हज़ारों लाखों में सब से जो अलग नज़र आते हैं आज कभी वो भी शून्य ही थे। मगर उनको तरीका मिल गया कि कैसे शून्य से एक बन सकते हैं । इस सब के बावजूद कोई भी शून्य को अनदेखा कर नहीं सकता है । अगर इनके साथ शून्य नहीं हो तो इनकी हालत पतली हो जाती है ।
         
         साहित्य में भी शून्य का महत्व कम नहीं है । लेखक को तमाम उम्र लिखने के बाद भी शून्य राशि का मिलना कोई अचरज की बात नहीं होती । तो कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो साहित्य के कार्यक्रम आयोजित कर के भी अच्छी खासी आमदनी का जुगाड़ कर ऐश करते हैं । उनके लिये साहित्य भी चोखा धंधा है , और वो तलाश कर लेते हैं उन लोगों की जो अपना नाम अख़बार की सुर्ख़ियों में देखना चाहते हैं दानवीर कहलाना चाहते हैं , खुद को समाज सेवक कहलाना चाहते हैं । उनकी समाज सेवा मात्र पैसे दे कर अपना नाम निमंत्रण पत्र पर  आयोजक अथवा मुख्य अतिथि के रूप में छपवाने तक सिमित रहती है । साहित्य , धर्म , समाज सेवा क्या होती  है , इन शब्दों का अर्थ क्या है उनको नहीं मालूम होता , तब भी मंच से इन पर बड़ी बड़ी बातें कर सकते हैं । सर्वगुण सम्पन कहलाते हैं । ऐसे अंगूठा छाप लोग विद्वानों को पाठ पढ़ाते हैं , अपने उन भाषणों द्वारा जो किसी और विद्वान से वे लाये होते हैं लिखवा कर । विद्वान अगर धन कमाना चाहता हो तो उसे ऐसे ही किसी शून्य के साथ मिल कर अपना अस्तित्व मिटाना होता है । कभी समय था जब गणित में प्रथम रहे आदमी को बहुत आदर सम्मान मिला करता था , कारोबार करने वाले उसको अच्छा वेतन देते थे नौकरी पर रख कर ताकि उनका हिसाब किताब बराबर रहे । मगर केल्कुलेटर और कम्प्यूटर ने हालत बदल दी है , लोग अब इंसानों से अधिक विश्वास इन पर करते हैं । खास बात ये है कि कम्प्यूटर की भाषा में भी शून्य का बड़ा महत्व है । इसकी सारी भाषा ही शून्य और एक पर आधारित है ।

            दार्शनिक लोग सदा यही कहते रहे हैं कि शून्य ही सब कुछ है और सभी कुछ शून्य है । हम शून्य से शुरुआत करते हैं और अंत में शून्य ही रह जाता है । धर्म वाले भी कहते हैं " लाये क्या थे जो ले के जाना है " फिर भी हम सभी यही चाहते हैं कि जैसे भी हो सब अपने साथ लेते जायें । शून्य का रहस्य जानना बहुत ज़रूरी है , अगर वो समझ आ जाये तो फिर शून्य से सभी कुछ हासिल किया जा सकता है । जो लोग हमें हर क्षेत्र में शिखर पर दिखाई देते हैं वो खुद कभी शून्य ही हुआ करते थे । बस उन्होंने कभी किसी से शून्य के रहस्य को समझ लिया और जान गये कि किस तरह किसी दूसरी संख्या के पीछे जुड़ना है ताकि उनका महत्व बढ़ सके । शून्य की महिमा का बखान करना  बहुत कठिन है । इस का ओर छोर पाना संभव नहीं है । एक साधना है शून्य को अपने पीछे खड़ा करना अपनी संख्या बढ़ाने के लिये । ऐसा करने के बाद कोई शून्य शून्य नहीं रह जाता है । 
 
      
 

                 2          झूठे कहीं के ( व्यंग्य ) 

       वकील किसी के मित्र होते तो नहीं मगर वो खुद को मेरा मित्र बताते हैं तो मेरे पास नहीं मानने का कोई तर्क नहीं होता । तलाक के मुकदमों के माहिर समझे जाते हैं । आजकल सब को मिठाई खिला रहे हैं । जब से खबर पढ़ी है अख़बार में कि एक नया कानून बनाने जा रही है सरकार जिसमें प्रावधान होगा कि तलाक लेने पर पत्नी को पति की अर्जित सम्पति के साथ साथ उसकी पैतृक सम्पति से भी बराबर का हिस्सा मिलेगा । अभी तक उनकी तलाक दिलवाने के मुकदमें की फीस इस बात को देख कर तय की जाती थी कि तलाक लेने के बाद महिला को अपने पति से क्या कुछ मिलने वाला है । वैसे उनको पुरुषों के तलाक के मुकदमें लड़ने से भी इनकार तो नहीं लेकिन वे खुद को नारी शक्ति , महिला अधिकारों और औरतों की आज़ादी का पक्षधर बताने में गर्व का अनुभव करते हैं । इस नया कानून बन जाने से उनके पास महिलाओं के तलाक लेने के मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी ऐसा उनको अभी से लग रहा है और वो अपनी फीस भी बढ़ाने की सोचने लगे हैं । मेरे घर खुद आये मिठाई बांटने और मेरी पत्नी से इस विषय पर ही चर्चा करने लग गये । मैंने कहा वकील साहब इन तिलों में तेल नहीं है , आपकी भाभी जी मुझसे कभी तलाक नहीं लेने वाली । वे बोले मित्र बुरा मत मानना , मुझे तो हर इक महिला अपनी मुव्वकिल नज़र आती है । क्या पता कब भाभी जी का भी मन बदल जाये और उनको मेरी सहायता की ज़रूरत आन पड़े । इनसे तो मैं फीस भी नहीं ले सकूंगा , आखिर को हम मित्र हैं और मित्र की पत्नी से भला मैं फीस ले सकता हूं । तुम दोनों का विवाह भी मैंने ही करवाया था अदालत में , क्या गवाह बनने की कोई फीस मांगी थी । तुम दोनों ने जो उपहार दिया उसी को अपनी फीस समझ लिया था । लेकिन कभी मुझे तुम्हारी तरफ से तलाक का मुक़दमा लड़ना पड़ा तो फीस दोगुणी लूंगा तुमसे । तुम्हें आज़ादी की कीमत तो चुकानी ही होगी , तब मोल भाव मत करना । उनसे पुरानी मित्रता है इसलिये समझता हूं कि वकील कभी किसी के दोस्त नहीं हो सकते । भला घोड़ा घास से यारी कर सकता है । हर वकील को लड़ाई झगड़ा , दुश्मनी , चोरी डकैती जैसी बातें अपने कारोबार के लिये आशा की किरण नज़र आते हैं । समाज में अपराध और अपराधी न हों ये कोई वकील कभी नहीं चाहता , ऐसा हो गया तो सब के सब वकील भूखे मर जाएंगे ।

          अभी वकील साहब हमें तलाक के फायदे समझा ही रहे थे कि उनकी धर्म पत्नी अर्थात हमारी भाभी जी भी आ गई । पत्नी को देख वकील साहब की हालत भी वैसी ही हो गई जैसी किसी भी पति की होती है जो पूरी दुनिया में बदलाव लाने की बात करता फिरता हो मगर खुद अपने घर कुछ भी बदलने को तैयार नहीं हो । भाभी जी मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोली कि मैं जानती हूं ये किस ख़ुशी में मिठाई बांटते फिर रहे हैं । इसलिये आज इनके सामने ही आपसे पूछने आई हूं कि मुझे भी बताओ कोई ऐसा वकील जो मेरा इनसे तलाक करवा सके । मुझे भी देखना है कि दूसरों का घर बर्बाद करने वाले का जब खुद का घर बर्बाद हो तो उसकी कैसी हालत होती है । मैं आपसे सवाल करना चाहती हूं कि जो लोग , जो समाज कानून होने के बावजूद आज तक बेटियों को सम्पति का अधिकार नहीं देता है वो कानून बन जाने से बहुओं को आसानी से दे देगा । कहीं ऐसा न हो जैसे आजकल बलात्कारी बलात्कार कर के बच्चियों को जान से ही मार देते हैं वही तलाक चाहने वाली महिलाओं के साथ भी होने लग जाये । जायदाद की खातिर भाई भाई का दुश्मन बन जाता है तो जो पत्नी छुटकारा चाहती हो उसे छोड़ देगा उसका पति ।

      आज तक आपका ये समाज महिलाओं को सुरक्षित जीने का अधिकार तो कभी दे नहीं सका न ही किसी सरकार ने कभी सोचा है कि जब आधी आबादी को इतना भी मिल नहीं सका तो फिर आज़ादी के क्या मायने हैं । और बात कर रहे हैं पैतृक सम्पति पति की से पत्नी को तलाक के बाद हक दिलाने का । मैं आपके सामने आपके इन वकील मित्र से पूछती हूं कि वे तैयार हैं मुझे तलाक देने के बाद अपनी सम्पति से बराबरी का हिस्सा देने को । आप ही बता दो कोई वकील जो मुझे भी ये सब दिलवा सकता हो , मिठाई मैं भी खिला सकती हूं आपको । ये सुनते ही वकील साहब का चेहरा देखने के काबिल था । उनके तेवर झट से बदल गये थे , अपनी पत्नी का हाथ पकड़ कर बोले से आप तो बुरा मान गई , भला आपको कभी तलाक दे सकता हूं मैं । मैं आपके बिना एक दिन भी नहीं रह सकता । आप ही मेरा प्यार हैं , मेरी ज़िंदगी हैं , मेरी दुनिया हैं , मेरा जो भी है सभी आपका ही तो है । बस दो बातों से उनकी पत्नी का मूड बदल गया था , और वो हंस कर बोली थी , बस ऐसे ही प्यार भरी बातों से बहला लेते हो आप सब पति लोग हम महिलाओं को हमेशा । वकील साहब कहने लगे कसम से सच कह रहा हूं । उनकी पत्नी बोली थी जाओ झूठे कहीं के । सुन कर मुस्कुरा दिये थे वकील साहब , झूठे कहीं के सुन कर उन्हें बुरा क्यों लगता । 
 
     
 

                  3     मरने भी नहीं देते ( व्यंग्य ) 

       ख़ुदकुशी करना अगर जुर्म है तो जीना किसी सज़ा से कम नहीं । शायद यही अकेला जुर्म है जो कामयाबी से करने पर सब सज़ाओं से बचा लेता है मगर इस जुर्म करने में जिसे नाकामी हासिल हो उसे कई सज़ायें झेलनी पड़ती हैं । उस पर कुछ लोग जो मरने के नाम से ही थर थर कांपने लगते हैं , ये इल्ज़ाम लगाते हैं कि ख़ुदकुशी करना कायरता है । हम अच्छी तरह जानते हैं कि ये कितने साहस का काम है । हर कोई नहीं कर सकता ऐसा हौसला , यूं मरने की बातें सभी करते रहते हैं । मौत जब सामने आती है तो सब जीने की चाहत करते हैं । अब कानून का क्या है वो ख़ुदकुशी को सही माने चाहे गल्त । कानून क्या सभी को जीने के अधिकार की बात नहीं करता है , तो क्या सब को मिलता है जीने का अधिकार । क्या हम सब जी रहे हैं जिस तरह उसको ज़िंदगी कह सकते हैं । अदालतों ने कभी इस पर कुछ कहा है कभी कुछ और कह दिया । करते रहें बहस लोग कि ख़ुदकुशी करने का अधिकार देना उचित होगा या अनुचित जिसने मरने को ठान लिया उसे इस सब से क्या मतलब । कल अगर कानून ख़ुदकुशी करने की इजाज़त दे भी दे तो क्या हर कोई जो मर जाने की बात करता है सच में ख़ुदकुशी करने का सहस कर सकेगा । मांगने से मौत कब मिलती है किसी को ।

              " मरने भी नहीं देते दुश्मन मेरी जां के " गीत मुझे शादी से पहले भी बेहद पसंद था लेकिन शादी के बाद तो मैं इसके सिवा दूसरा कोई गीत कभी गुनगुना ही नहीं सकी । मुझे आज भी याद है जब मैंने तय कर लिया था कि ख़ुदकुशी करके मरना है और हिम्मत करके नदी में कूद गई थी । मगर मेरी इस साहस पूर्वक की कोशिश को नाकाम करने ये जाने कहां से चले आये थे और मुझे मरने नहीं दिया था । जब आंख खुली तो सामने भीड़ को देख जितना घबराई थी उतना तो सामने मौत को देख भी नहीं डरी थी । तब मेरी हालत को देख इन्होंने सब को जाने को कह दिया था और मुझे पकड़ कर कुछ दूर ले गये थे । जब इन्होंने मुझसे ख़ुदकुशी करने का कारण पूछा और पुलिस की बात की तो मैंने इनसे कह दिया प्लीज़ आप ये बात किसी को मत बताना । तब इनको वादा किया था फिर कभी ख़ुदकुशी नहीं करने का । जब ये मुझे मेरे घर छोड़ने आये तो इन्होंने ही बहाना बना दिया था कि मेरा पांव फिसल गया था और मैं नदी किनारे से नदी में गिर गई थी । और उसके बाद मेरे पांव ही नहीं मेरा दिल भी फिसल गया था और मैं इनके प्रेमजाल में फस गई थी ।

      हमारी शादी हो गई थी लेकिन मैं इस बात से अनजान थी कि मुझे उम्र भर कीमत चुकानी है अपनी जान बचाने की । उसके बाद मैं कब कब कैसे कैसे मरती रही कोई नहीं जानता न मैं ही बता सकती हूं किसी को । लेकिन ये समझ आ गया था कि अब मरना भी उतना आसान नहीं रह गया है । अब तो मुझे पानी से भी डर लगने लगा है । कभी भूले से इनको कह बैठी कि ऐसा जीना भी कोई जीना है तो इनका जवाब होता है कि मैं तुम्हें बचाने की सज़ा ही तो काट रहा हूं । शादी को उम्र कैद बताते हैं , कहते हैं कि उनका एहसान है जो ज़िंदा हूं वरना कब की मर गई होती । कभी कहते हैं कि अगर मैं जीने से बेज़ार हो चुकी हूं तो वे खुद मुझे अपनी भूल को सुधार नदी में धक्का दे देते अगर कानून ऐसी अनुमति दिया करता । बहुत से देशों में मांग हो रही है मरने का हक देने की , कभी न कभी तो ये मांग हमारे देश में भी पूरी हो जायेगी । तब पूछूंगी इनसे क्यों मुझसे मेरा अधिकार छीना था , मुझ पर कोई उपकार नहीं किया था तुमने ।

       ज़िंदा रह कर मुझे क्या कुछ नहीं झेलना पड़ा है , कितने दर्द कितनी मुश्किलें मुझे सहनी पड़ी हैं आपके कारण । मेरी जान बचाने के बदले इनको तो मैं मिल गई थी उम्र भर के लिये ईनाम सवरूप । मुझे क्या दे सकते अगर कल कानून बदल जाये और ऐसा समझे कि ये दोषी हैं मुझे बचाने के और इस कारण मुझे कितनी तकलीफें सहनी पड़ी हैं । इनके कारण मेरी हालत ऐसी हो गई है कि न जी सकती हूं न मर ही सकती हूं । कितने सालों से इनकी गल्ती की सज़ा मुझे मिल रही है न चाहते हुए भी इनके लिये जीने की । उस एक गल्ती को सुधारने का क्या कोई उपाय नहीं है । आपको समझ आये तो बताना मुझे या फिर आत्महत्या का कोई सरल उपाय ही सुझा दें , बढ़िया सा तरीका जिसे कोई असफल नहीं कर सके इस बार । 
 
     
 

              4   तलाश लोकतंत्र की ( व्यंग्य ) 

       जाने कितने वर्ष हो गये हैं इस मुकदमें को चलते हुए , मगर देश की सुरक्षा की बात कह कर इसे अति गोपनीय रखा गया है । किसी को मालूम नहीं इसके बारे कुछ भी , उनको भी जिनका दावा रहता है सब से पहले हर इक बात का पता लगाने का । आज मैं आपको उस मुकदमें का पूरा विवरण बता रहा हूं बिना किसी कांट छांट के , बिना कुछ जोड़े , घटाये । जनता का आरोप है कि उसने लोकतंत्र का क़त्ल होते अपनी आंखों से देखा है । नेताओं ने मार डाला है लोकतंत्र को । क्योंकि कातिल सभी बड़े बड़े नेता लोग हैं इसलिये पुलिस और प्रशासन देख कर भी अनदेखा कर रहा है । अदालत ने पूछा कि क्या लोकतंत्र की लाश बरामद हुई है , उस पर किसी ज़ख्म का निशान मिला है , पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट क्या कहती है । जनता ने बताया है कि लोकतंत्र को एक बार नहीं बार बार क़त्ल किया जाता रहा है और उसकी लाश को छिपा दिया जाता रहा है । नेताओं ने परिवारवाद को पूंजीवाद को लोकतंत्र का लिबास पहना कर इतने सालों तक देश की जनता को छला है । अदालत ने जानना चाहा है कि क्या कोई गवाह है जिसने देखा हो क़त्ल होते और पहचानता हो कातिलों को । जनता बोली हां मैंने देखा है । अदालत ने पूछा है कि खुलकर बताओ कब कैसे कहां किसने किया क़त्ल लोकतंत्र को । जनता ने जवाब दिया कि आज़ादी के बाद से देश में हर प्रदेश में इसका क़त्ल हुआ है । कभी विधानसभाओं में हुआ है तो कभी संसद में हुआ है । अदालत को सबूत चाहिएं थे इसलिये जनता ने कुछ विशेष घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया है । एक बार आपात्काल घोषित करके लोकतंत्र को कैद में बंद रखा गया था पूरे उनीस महीनों तक । जब ये मुक्त हुआ और जनता ने राहत की सांस ली तब इसको दलबदल का रोग लग गया और ये अधमरा हो गया था ।

       हरियाणा प्रदेश में इसको जातिवाद ने अजगर की तरह निगल लिया था , एक बार महम उपचुनाव में राजनीति के हिंसक रूप से लोकतंत्र लहू लुहान हो गया था । तब भी इसका क़त्ल ही हुआ था मगर उसको एक दुर्घटना मान लिया गया । कितने ही राज्यों में लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही चलती रही और चल रही है। पिता मुख्यमंत्री है तो सारा परिवार ही शासक बन जाता है । किसी नेता का निधन हो जाये तो लोक सभा , राज्य सभा अथवा विधान सभा की जगह उसके बेटे , पत्नी , दामाद को मिलना विरासत की तरह क्या इसे लोकतंत्र माना जा सकता है । बिहार में , पश्चिम बंगाल में हिंसा में मरता रहता है लोकतंत्र । साम्प्रदायिक दंगों में दिल्ली , पंजाब , उत्तर प्रदेश , गुजरात और कितने ही अन्य राज्यों में लोकतंत्र की हत्या की गई है । भ्रष्टाचार रूपी कैंसर इसको भीतर ही भीतर खोखला कर रहा है कितने ही वर्षों से , बेजान हो चुका है लोकतंत्र । वोट पाने के लिये जब धन का उपयोग होता है तब भी लोकतंत्र को ही क़त्ल किया जाता है । सांसद खरीदे गये , विधायक बंदी तक बनाये गये हैं बहुमत साबित करने के लिये । संसद और विधान सभाओं में नेता असभ्य और अलोकतांत्रिक आचरण करते हैं जब , तब कौन घायल होता है ।

     अभी तक सरकारी वकील चुपचाप बैठा था , ये सब दलीलें जनता की सुन कर वो सामने आया और कहने लगा , जनता को बताना चाहिये कि कब उसने लोकतंत्र को भला चंगा सही सलामत देखा था । जनता ने जवाब दिया कि पूरी तरह तंदरुस्त तो लोकतंत्र लगा ही नहीं कभी , लेकिन अब तो उसके जीवित होने के कोई लक्षण तक नज़र नहीं आते हैं । आप किसी सरकारी दफ्तर में , पुलिस थाने में , सरकारी गैर सरकारी स्कूलों में , अस्प्तालों में , कहीं भी जाकर देख लो , सब कहीं अन्याय और अराजकता का माहौल है जो साबित करता है कि देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था चरमरा चुकी है । सरकारी वकील ने तर्क दिया है कि जब किसी का क़त्ल होता है तो उसकी लाश का मिलना ज़रूरी होता है , मुमकिन है वो कहीं गायब हो गया हो , अपनी मर्ज़ी से चला गया हो कहीं । बिना लाश को बरामद किये क़त्ल का पक्का सबूत नहीं माना जा सकता इन तमाम बातों की सच्चाई के बावजूद । जनता का कहना है कि उसको शक है नेताओं ने ही उसको क़त्ल करने के बाद किसी जगह दफ़न किया होगा । सरकारी वकील का कहना है कि अदालत को जल्दबाज़ी में कोई निर्णय नहीं करना चाहिये । लोकतंत्र को लापता मान कर उसको अदालत के सामने पेश होने का आदेश जारी कर सकती है या चाहे तो उसको जिंदा या मुर्दा होने की जानकारी देने वाले को ईनाम देने की भी घोषणा कर सकती है । सब से पहला सवाल ये है कि क्या वास्तव में लोकतंत्र था , कोई सबूत है उसके कभी जीवित होने का , अगर किसी के जिंदा होने तक का ही सबूत न हो तो उसका क़त्ल हुआ किस तरह मान लिया जाये । लगता है इस मुकदमें में भी नेता संदेह का लाभ मिलने से साफ बरी हो जायेंगे , जैसे बाकी मुकदमों में हो जाते हैं । अदालत ने सरकार को कहा है कि अपने प्रशासन को और पुलिस को आदेश दे लोकतंत्र को ढूंढ कर लाने के लिये , कोई समय सीमा तय नहीं है । जनता को अभी और और इंतज़ार करना होगा । लोकतंत्र की तलाश जारी है ।

        जाने कैसे इक नेता को किसी तहखाने में घायल लोकतंत्र मिल ही गया और उसने जनता को देश की तमाम समस्याओं से मुक्त करवाने का झूठा वादा कर सत्ता हासिल कर ली । मगर सत्ता मिलते ही उस ने सच्चे संविधान में वर्णन किये लोकतंत्र की जगह किसी छद्म झूठे लोकतंत्र को स्थापित करने का काम शुरू कर दिया उसके होने के निशान तक को मिटाने लगा । खुद को सबसे अच्छा और मसीहा या भगवान कहलाने को रोज़ तमाशे और आडंबर करने लगा जिस से बहुत लोग सम्मोहित होकर उसकी जय जयकार करने लगे । उनको अपने नेता का झूठ और झूठी देशभक्ति वास्तविक सच और संविधान वाले लोकतंत्र से अधिक पसंद आने लगी । धीरे धीरे लोग भूलने लगे हैं आज़ादी का अर्थ और लोकतंत्र की परिभाषा तक को । किसी राजनीतिक दल का खोटा सिक्का चलने लगा खरा बनकर और जो खरे थे उनको कूड़ेदान में फेंक दिया गया । अदालत ने लोकतंत्र की तलाश करने वाली फ़ाइल बंद करवा दी है हमेशा हमेशा को । 

   
 

                       5  संपादक जी ( व्यंग्य ) 

      संपादक जी मेरे दिये समाचार को पढ़ रहे थे और मैं सोच रहा था कि ये सब क्या हो रहा है । समाज किस दिशा को जा रहा है , आखिर कहीं तो कोई सीमा होनी चाहिये । नैतिक मूल्यों का अभी और कितना ह्रास होना बाकी है । " शाबाश अरुण " संपादक जी उत्साह पूर्वक चीखे तो मेरी तन्द्रा भंग हो गई  ,           " धन्यवाद श्रीमान जी "  मैं इतना ही कह सका । उनहोंने चपरासी को चाय लाने को कहा व फिर मेरी तरफ देख कर बोले " तुम वास्तव में कमाल के आदमी हो , क्या खबर लाये हो खोजकर आज , कल फ्रंट पेज के शीर्षक से तहलका मचा देगी ये स्टोरी । " मुझे चुप देख कर पूछने लगे " क्या थक गये हो " मैंने कहा कि नहीं ऐसी बात नहीं है । तब उनहोंने जैसे आदेश दिया , अभी बहुत काम करना है तुम्हें , किसी दूसरे अख़बार को भनक लगे उससे पहले और जानकारी एकत्र करनी है । इधर उधर से जो भी जैसे भी हासिल हो पता लगाओ , ये टॉपिक बहुत गर्म है इसपर कई संपादकीय लिखने होंगे आने वाले दिनों में । एक तो कल के अंक में लगाना चाहता हूं , थोड़ा मसाला और ढूंढ लाओ तो मज़ा आ जाये । " सम्पादक जी को जोश आ गया था और मैं समझ नहीं पा रहा था कि जिस खबर से मेरा अंतर रोने को हो रहा है उस से वे ऐसे उत्साहित हैं जैसे कोई खज़ाना ही मिल गया है । कल अख़बार में इनका संपादकीय लेख पढ़ कर पाठक सोचेंगे कि ये बात सुनकर बहुत रोये होंगे संपादक जी । कितनी अजीब बात है जो आज ठहाके लगा रहा है वो कल अखबार में दर्द से बेहाल हुआ दिखाई देगा । चाय कब की आ गई थी और ठंडी हो चुकी थी , मैंने उसे पानी की तरह पिया और इजाज़त लेकर उनके केबिन से बाहर आ गया था । मुझे याद नहीं संपादक जी क्या क्या कहते रहे थे , लेकिन उनका इस दर्द भरी बात पर यूं चहकना मुझे बेहद खल रहा था । उनके लेखों को पढ़कर जो छवि मेरे मन में बन गई थी वो टूट चुकी थी ।
                  मैं भी इस बारे और जानकारी हासिल करना चाहता था , संपादक जी के आदेश से अधिक अपने मन कि उलझन को मिटाने के लिये । शाम को कई बातें मालूम करने के बाद जब दफ्तर पहुंचा तो संदेश मिला कि संपादक जी ने घर पर बुलाया है । जाना ही था पत्रकार होना भी क्या काम है । उनको भी मेरा बेसब्री से इंतज़ार था , पूरी जानकारी लेने के बाद कहने लगे अब यही कांड कई दिन तक ख़बरों में , चर्चा में छाया रहेगा । ये सुन उनकी श्रीमती जी बोली थी इससे क्या फर्क पड़ता है । उनका जवाब था , बहुत फर्क पड़ता है , हम अख़बार वालों को ही नहीं तमाम लिखने वालों को ऐसा विषय कहां रोज़ रोज़ मिलता है । देखना इसी पर कितने लोग लिख लिख कर बहुत नाम कमा लेंगे और कुछ पैसे भी । इस जैसी खबर से ही अख़बार की बिक्री बढ़ती है , जब अख़बार का प्रसार बढ़ेगा तभी तो विज्ञापन मिलेंगे ।  देखो ये अरुण जो आज इस खबर से उदास लग रहा है , जब कल इसके नाम से ये स्टोरी छपेगी तो एक अनजान लड़का नाम वाला बन जायेगा । अभी इसको ये भी नहीं समझ कि इसकी नौकरी इन ख़बरों के दम पर ही है , कल ये भी जान जायेगा अपने नाम की कीमत कैसे वसूल सकता है । मैं ये सब चुपचाप सुनता रहा था और वापस चला आया था ।

                अगली सुबह खबर के साथ ही मुखपृष्ठ पर संपादक जी का लेख छपा था
                   " घटना ने सतब्ध कर दिया और कुछ भी कहना कठिन है

         " मुझे बेकार लगा इससे आगे कुछ भी पढ़ना , और मैंने अख़बार को मेज़ पर पटक दिया था । मैं नहीं जानता था कि साथ की मेज़ पर बैठे सह संपादक शर्मा जी का ध्यान मेरी तरफ है । शर्मा जी पूछने लगे , अरुण क्या हुआ सब कुशल मंगल तो है , खोये खोये से लग रहे हो आज । मैंने कहा शर्मा जी कोई बात नहीं बस आज की इस खबर के बारे सोच रहा था । और नहीं चाहते हुए भी मैं कल के संपादक जी के व्यवहार की बात कह ही गया । शर्मा जी मुस्कुरा दिये और कहने लगे अरुण तुमने गीता पढ़ी हो या नहीं , आज मैं तुम्हें कुछ उसी तरह का ज्ञान देने जा रहा हूं , जैसा उसमें श्रीकृष्ण जी ने दिया है अर्जुन को । अपना खास अंदाज़ में मेज़ पर बैठ गये थे किसी महात्मा की तरह । बोले " देखो अरुण किसी पुलिस वाले के पास जब क़त्ल का केस आता है तो वो ज़रा भी विचलित नहीं होता है , और जिसका क़त्ल हुआ उसी के परिवार के लोगों से हर तरह के सवाल करने के साथ , चाय पानी और कई साहूलियात मांगने से गुरेज़ नहीं करता । कोई इस पर ऐतराज़ करे तो कहता है आप कब हमें शादी ब्याह पर बुलाते हैं । इसी तरह वकील झगड़ा करके आये मुवकिल से सहानुभूति नहीं जतला सकता , क्योंकि उसको फीस लेनी है मुकदमा लड़ने की । जब किसी मरीज़ की हालत चिंताजनक हो और बचने की उम्मीद कम हो तब डॉक्टर की फीस और भी बढ़ जाती है । पुलिस वाले , वकील और डॉक्टर दुआ मांगते हैं कि ऐसे लोग रोज़ आयें बार बार आते रहें । पापी पेट का सवाल है । ख़बरों से अपना नाता भी इसी तरह का ही है , और हम उनका इंतज़ार नहीं करते बल्कि खोजते रहते हैं । देखा जाये तो हम संवेदनहीनता में इन सभी से आगे हैं । ये बात जिस दिन समझ जाओगे तुम मेरी जगह सह संपादक बन जाओगे , जिस दिन से तुम्हें इन बातों में मज़ा आने लगेगा और तुम्हें इनका इंतज़ार रहेगा उस दिन शायद तुम संपादक बन चुके होगे । कुछ लोग इससे और अधिक बढ़ जाते हैं और किसी न किसी पक्ष से लाभ उठा कर उनकी पसंद की बात लिखने लगते हैं अपना खुद का अख़बार शुरू करने के बाद। हमारी तरह नौकरी नहीं करते , हम जैसों को नौकरी पर रखते हैं ।

       सब से बड़ा सत्य तुम्हें अब बताता हूं कि आजकल कोई अख़बार ख़बरों के लिये नहीं छपता है , सब का मकसद है विज्ञापन छापना । क्योंकि पैसा उनसे ही मिलता है इसलिये कोई ये कभी नहीं देखता कि इनमें कितना सच है कितना झूठ । सब नेताओं के घोटालों की बात ज़ोर शोर से करते हैं , सरकार के करोड़ों करोड़ के विज्ञापन रोज़ छपते हैं जिनका कोई हासिल नहीं होता , सरासर फज़ूल होते हैं , किसी ने कभी उन पर एक भी शब्द बोला आज तक । शर्मा जी की बातों का मुझ पर असर होने लगा था और मेरा मूड बदल गया था , मैंने कहा आपकी बात बिल्कुल सही है शर्मा जी । वे हंस कर बोले थे मतलब तुम्हारी तरक्की हो सकती है ।

            इन बातों से मेरे मन से बोझ उतर गया था और मैं और अधिक उत्साह से उस केस की जानकारी एकत्र करने में जी जान से जुट गया था । शाम को जब अपनी रिपोर्ट संपादक जी को देने गया तो उन्होंने मुझे कि उनकी बात हुई है अख़बार के मालिक से तुम्हारी पदोन्ति के बारे और जल्दी ही तुम सह संपादक बना दिये जाओगे । जी आपका बहुत शुक्रिया , जब मैंने संपादक जी का आभार व्यक्त किया तब शर्मा जी की बात मेरे भीतर गूंज रही थी । मैं शर्मा जी का धन्यवाद करने गया तब उन्होंने पूछा कि अरुण तुम्हें कर्म की बात समझ आई कि नहीं । मैंने जवाब दिया था शर्मा जी कर्म का फल भी शीघ्र मिलने वाला है । हम दोनों हंस रहे थे , अख़बार मेज़ से नीचे गिर कर हमारे पांवों में आ गया था , कब हमें पता ही नहीं चला । 
 

 
 

          6    लौट के वापस घर को आये ( व्यंग्य ) 

     सचिवालय क्या होता है मुझे मालूम नहीं था , कभी गया ही नहीं था अभी तक ऐसी किसी भी जगह । जाने को तो मैं किसी कत्लगाह भी नहीं गया मगर नाम से ही पता चलता है कि वहां क्या होता होगा । सचिवालय शब्द से समझ नहीं सकते कि वो क्या बला है । जब हमारे नगर में सचिवालय भवन बना तब लगा कि वहां सरकार के सभी विभागों के दफ्तर साथ साथ होंगे तो जनता को आसानी होती होगी , काम तुरंत हो जाते होंगे । वहां कुछ पढ़े लिखे सभ्य लोग बैठे होंगे जनसेवा करने का अपना दायित्व निभाने के लिये । मगर देखा वहां तो अलग ही दृश्य था , जानवरों की तरह जनता कतारों में छटपटा रही थी और सरकारी बाबू इस तरह पेश आ रहे थे जैसे राजशाही में कोड़े बरसाये जाते थे । सरकारी कानून का डंडा चल रहा था और लोगों को कराहते देख कर्मचारी , अधिकारी आनंद ले रहे थे , उन्हें मज़ा आ रहा था । कुर्सियों पर , मेज़ पर और अलमारी में रखी फाईलों पर बेबस इंसानों के खून के छींटे साफ नज़र आ रहे थे । कुछ लोग इंसानों का लहू इस तरह पी रहे थे जैसे सर्दी के मौसम में धूप में गर्म चाय - काफी का लुत्फ़ उठा रहे हों । लोग चीख रहे थे चिल्ला रहे थे मगर प्रशासन नाम का पत्थर का देवता बेपरवाह था । उसपर रत्ती भर भी असर नहीं हो रहा था , लगता है वो अंधा भी था और बहरा भी । मैं डर गया था , वहां से बचकर भाग निकलना चाहता था , लेकिन उस भूल भुलैयां से निकलने का रास्ता ही नहीं मिल सका था । तब मुझे बचपन में नानी की सुनाई कहानी याद आई थी जिसमें राजकुमारी राक्षसों के किले में फंस जाती है और छटपटाती है आज़ाद होने के लिये । मगर उसकी तरह मेरा कोई राजकुमार नहीं था जो आकर बचाता मुझे । मैं उन राक्षसों से फरियाद करने , दया की भीख मांगने के सिवा कुछ नहीं कर सकता था ।

                        मुझे नज़र आया एक दरवाज़ा जिसपर बजट व अर्थव्यवस्था का बोर्ड टंगा था , सरकारी लोग उसमें से कहीं जा रहे थे । उस पर लिखा हुआ था आम जनता का जाना मना है , मगर मैं परेशानी और घबराहट में देख नहीं सका और उधर चला आया था । मैंने देखा वहां से एक नदी बहती हुई निकल रही थी और दूर बहुत दूर राजधानी की तरफ जा रही थी । आम जनता का जो लहू सचिवालय के कमरों के फर्श पर बिखरा हुआ था वो धीरे धीरे बहता हुआ उस नदी में आकर पैसे चांदी सोने में बदल जाता था । उसी से बंगले फार्महाउस नेताओं के बनाये जा रहे थे । इस जादू के खेल को वहां लोकतंत्र नाम दिया जा रहा था । उस नदी के एक तरफ स्वर्ग जैसी दुनिया बसी हुई थी , नेता अफ्सर , धनवान लोग जिसमें सब सुख सुविधा पाकर रहते थे।  तो उस पार नदी के दूसरी तरफ नर्क का मंज़र था जहां तीन चौथाई देश की जनता मर मर कर जीने को विवश थी। बता रहे थे हर पांच साल बाद चुनाव रूपी पुल बना कर नेता आते हैं जनता के पास और वादा करते हैं कि बहत जल्द आपके लिये भी स्वर्ग का निर्माण किया जायेगा । झूठे सपने दिखला कर जनादेश लेकर वापस चले जाते हैं अपने स्वर्ग का आनंद लेने को ।

                         सचिवालय की सब से ऊपरी मंज़िल बेहद खास लोगों के लिये आरक्षित थी । उसके प्रमुख द्वार पर कड़ा पहरा था और एक बड़ा सा ताला उसपर लगाया हुआ था । सूत्रों से ज्ञात हुआ कि उसमें आज़ादी नाम की मूल्यवान वस्तु  बंद कर रखी गई थी जिसके दर्शन केवल वी आई पी लोग ही कर सकते थे । कभी कभी उधर से अफवाह की तरह से जानकारी मिलती थी कि आज़ादी की दशा शोचनीय है , लेकिन हर बार सरकार और सचिवालय खंडन करते थे और कहते थे वो ठीक ठाक है बल्कि पहले से स्वस्थ है । हर वर्ष जश्न मनाते थे और सरकारी समारोह आयोजित कर बताते रहते थे कि आज़ादी इतने वर्ष की हो गई है । मैंने वहां सुरक्षा में तैनात कर्मियों से विनती की थी कि मुझे दूर से ही अपनी आज़ादी की देवी को देख लेने दो , मगर उन्होंने इंकार कर दिया था और मुझसे कहा था तुम सीधे सादे आम आदमी लगते हो , गलती से यहां आ गये हो , चुपचाप वापस चले जाओ वर्ना कोई देश द्रोह का झूठा इल्ज़ाम लगा कर बेमौत मारे जाओगे । तुम्हें नहीं पता कि लोकतंत्र में आम आदमी को आज़ादी को सच में क्या सपने में देखना तक प्रतिबंधित है । हां अगर तुम भी नेता या अफ्सर बन जाओ तो आज़ादी को देख ही नहीं उसके साथ कोई खेल भी खेल सकते हो । तब तुम्हें छूट होगी जो चाहे करने की ।

                किसी तरह उस इमारत से बाहर आया था और उसके पिछले हिस्से में पहुंच गया था । देखा सभी दल के नेता वहां वोटों की राजनीति का सबक पढ़ रहे थे । जाति धर्म के नाम पर जनता को मूर्ख बनाने और लाशों पर सत्ता का गंदा खेल खेलने का पाठ पढ़ाया जा रहा था । चुनाव में जीत कर इंसानों की खोपड़ियों को फूलमाला बना गले में पहन इतरा रहे थे । कल तक चुनाव में दुश्मन की तरह लड़ने वाले सहयोगी बन गये थे , इक दूजे को गले लगा बधाई दे रहे थे । नैतिकता की बात करने वालों का अनैतिक गठबंधन हो गया था , विरोधी सहयोगी बन गये थे । दोनों को वोट देने वाली जनता ठगी सी खड़ी थी , अब अगले पांच साल इनकी बंधक बन चुकी थी । उसे अभी भी नर्क में ही रहना है और जब भी सचिवालय की तरफ आना पड़े उसे वही सब झेलना है । मैं भटकते भटकते सचिवालय के सामने पहुंच ही गया था । भाग कर अपने घर वापस आ गया हूं और कसम उठा ली है फिर कभी उधर नहीं जाने की । जान बची तो लाखों पाये । 
 
     
 

         7     मृत्युलोक का सीधा प्रसारण ( तरकश ) 

      यमराज उस परेशान आत्मा को लेकर सीधे धर्मराज जी की कचहरी में आये । चित्रगुप्त ने बही खाता खोल कर उनके कर्मों का विवरण प्रस्तुत किया । और धर्मराज को बताया कि इस आत्मा ने सदा सदकर्म ही किये हैं जीवन भर , मगर हमेशा ही परेशान होते रहे हैं धरती पर लोगों को अपकर्म करते देख कर । लेकिन इनके मन में ईश्वर के न्याय के प्रति हमेशा सवाल उठते रहे हैं । यहां तक कि मरने के बाद जब यमराज इनकी आत्मा को ला रहे थे तब भी इनकी आत्मा यही सोचती आ रही थी कि अगर ईश्वर से सामना हुआ तो पूछेंगे कि अपनी बनाई हुई सृष्टि की व्यवस्था को सुधारने का कोई कारगर उपाय क्यों नहीं करते आप हे ईश्वर । परेशान आत्मा की बात समझ धर्मराज जी को भी उचित  लगा उसे उसके सवालों के जवाब स्वयं भगवान से दिलवाना । ईश्वर के निजि कक्ष में धर्मराज जा पहुंचे उस आत्मा को साथ लेकर , ईश्वर ने जानना चाहा ऐसी क्या परेशानी है जो आपको मेरे पास आना पड़ा । धर्मराज बोले कि इस आत्मा के कुछ सवाल हैं जो सुन कर मुझे भी चिंता करने वाले ही लगे और उनका जवाब आप ही दे सकते हैं । ये आत्मा आपकी बनाई सृष्टि की खराब व्यवस्था से बेहद चिंतित है और चाहती है आप उसको सुधारने को कोई कारगर उपाय शीघ्र करें । ईश्वर कहने लगे हे परेशान आत्मा आपकी परेशानी सही है और मैं भी बहुत ही बेचैन रहता हूं इस बात को सोच सोच कर । मगर कोई उपाय सूझ ही नहीं रहा है । जिनको सत्य का धर्म का मार्ग दिखलाना था सभी को वही खुद भटक गये हैं , लोग उनको धर्मगुरु मान सर झुकाते हैं जबकि वो लोभ मोह अहंकार में डूबे रहते हैं । बात एक कंस या एक रावण की होती तो मैं खुद अवतार लेकर उसका अंत कर देता , मगर वहां तो तमाम कपटी लोग खुद को मेरा ही अवतार घोषित करने लगे हैं और करोड़ों लोग उनके झांसे में आ उनकी जयजयकार करते हैं । अब इतने लोगों के इस अंधविश्वास का अंत कैसे करूं और कैसे सच और झूठ उनको समझाऊं ये मेरी भी समझ में नहीं आ रहा है । परेशान आत्मा बोली ईश्वर मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूं , हमारे देश में जब किसी समस्या का कोई हल नज़र नहीं आता है तब सरकार एक प्रतिनिधिमंडल अपने नेताओं एवं अफ्सरों का विदेश भेजती है कि वे देख कर आएं कि उस देश में ये सब क्यों नहीं है । क्या उपाय किया हुआ है उन देश वालों ने । वो अलग बात है वो नेता अफ्सर वहां ये जानने का प्रयास नहीं करते , बस सैर सपाटा कर लौट आते हैं। आने के बाद कोई एक नई समस्या खड़ी कर देते हैं , पहले चल रही कितनी ही असफल योजनाओं जैसी एक और योजना प्रस्तुत कर , जिसका कार्यभार उनको सौंप दिया जाये । नतीजा वही ढाक के तीन पात , लेकिन आप ऐसा नहीं हो इसलिये अपने ऐसे ईमानदार देवी देवताओं को पृथ्वी का भ्रमण करने को भेजें जिनको अपनी पूजा , अपने नाम पर बनाये मंदिरों के चढ़ावे और वहां आये भक्तों की भीड़ को देख प्रसन्न होने की बुरी आदत नहीं हो । जो किसी पापी या अधर्मी को क्षमा नहीं करते हों प्रार्थना सुनकर ।

                   ईश्वर बोले परेशान आत्मा आपने मेरे सामने उस लोक से लेकर इस लोक तक की सही तस्वीर प्रस्तुत कर दी है । मैं आपको अपना विशेष सलाहकार नियुक्त करना चाहता हूं इस समस्या को समाप्त करने के उपाय खोजने के काम में योगदान दें आप भी । परेशान आत्मा बोली कहीं आप वही जल्दबाज़ी तो नहीं करने जा रहे जो हमारे प्रदेश में मुख्यमंत्री किया करते हैं । जिसको अपना विश्वासपात्र समझ ओ एस डी नियुक्त करते हैं वही उनके नाम पर सत्ता के जमकर दुरूपयोग करता है । सब से अधिक भ्रष्टाचार , घोटाले ऐसे ही लोग करते हैं , आप ऐसे आंख मूंद किसी का भी ऐतबार नहीं कर सकते । अधिकार मिलते ही सब बदल जाया करते हैं , मुझे खुद अपने आप पर भरोसा नहीं कि आपने मुझे इतनी शक्ति दे दी तो मैं क्या करूंगा , हो सकता है आपको भी धोखा देने लग जाऊं , इस कलयुग में कुछ भी संभव है हे ईश्वर । ये सुन ईश्वर की चिंता और अधिक बढ़ गई , उन्होंने पूछा परेशान आत्मा आपने तो मुझे दुविधा से निकालने की जगह मेरी दुविधा को और बढ़ा दिया है । आप क्या ये कहना चाहते हैं कि मैं अपने ही घर के सदस्य सभी देवी देवताओं पर भी भरोसा नहीं किया करूं । भला मैं ऐसा किस तरह कर सकता हूं , इस कदर अविश्वास करके हम एक साथ कैसे रह सकते हैं । परेशान आत्मा ने कहा कि अगर मेरी बात का बुरा नहीं मानें तो मैं आपको सुझाव दे सकता हूं । ईश्वर बोले अवश्य बताओ और अगर उचित लगा तो हम उस पर अमल भी करेंगे । परेशान आत्मा ने कहा हे ईश्वर आप सब कि पल पल की निगरानी की व्यवस्था करें । ईश्वर बोले ये सच है कि ऐसा माना जाता है कि मुझे सब की हर बात की खबर है , मगर मैं ऐसा नहीं कर सकता हूं , मुझे एक सीमा से अधिक किसी की निज्जता में झांकना अनुचित प्रतीत होता है । पल पल की बात पूछना या जानना तो मुमकिन नहीं है किसी भी तरह , आखिर मुझे भी कुछ समय चाहिये खुद के लिये । परेशान आत्मा कहने लगी मैं उपाय बताता हूं जिससे आपको कोई परेशानी नहीं होगी न किसी को कुछ मालूम होगा कि उनकी निज्जता में कोई दखल है , सब गोपनीय तरीके से होगा , आपको छोड़ किसी को भी कोई भनक नहीं लगेगी । बस आपको ये पुराने ढंग छोड़ नई तकनीक का सहारा लेना होगा । ईश्वर हैरान हो कर बोले बताओ ऐसी क्या तकनीक हो सकती है ।

      तब परेशान आत्मा ने बताया बिग बॉस नामक टीवी शो में यही होता है , बिग बॉस किसी को दिखाई नहीं देता मगर उसको सब नज़र आता रहता है । वह आदेश देता है , निर्देश देता है , कैमरे और माईक से पल पल की खबर रखता है । घर में रहने वाले अगर चाहें भी झूठ नहीं बोल सकते , ज़रूरत होने पर उनको उनकी असलियत दिखाई जा सकती है । आप मृत्युलोक से अपने पास सीधा प्रसारण करवाने की व्यवस्था करें , और खुद देखते रहें सब कुछ । आपको नज़र आएगा किस तरह नेता , अफ्सर देश को लूट रहे हैं , सरकार और प्रशासन कितना अमानवीय कर्म कर रहे हैं । जब सभी के अपकर्मों को आप खुद देख सकेंगे तब अपने सभी देवी देवताओं को भी निर्देश दे सकेंगे कि वे अपने अपने भक्तों को अपकर्मों की कड़ी सज़ा दें न कि अपनी स्तुति से प्रसन्न हो उनके अपराध क्षमा करते रहें । जब ईश्वर ने अपने लोक में नये टीवी चैनेल स्थापित करने की योजना को स्वीकृति प्रदान कर दी तब परेशान आत्मा ने कहा हे ईश्वर एक अंतिम बात और बतानी ज़रूरी है । सावधान रहना , अपना चैनेल किसी मुनाफाखोर को ठेके पर कभी मत देना वर्ना कोई हमारे देश के टीवी चैनेलों की तरह झूठे विज्ञापनों द्वारा पैसा कमाने के लालच में अपने ध्येय से भटक सकता है । ईश्वर ने इस कार्य के लिये महाभारत वाले संजय की सेवायें लेने का निर्णय लिया है । नेता , अपराधी , पाप - अधर्म करने वालों के साथ साथ धर्मोपदेशक भी संभल जायें , क्योंकि ईश्वर न केवल खुद सब देखेगा बल्कि इनके अपकर्मों को सभी को दिखाया भी करेगा , बिग बॉस की तरह । अब पता चलेगा असली बिग बॉस कौन है ।   
 
   

          8    देवी देवताओं का बाज़ार ( तरकश ) 

     बहुत ही विकट समस्या खड़ी हो गई है । चित्रगुप्त जी ने धर्मराज जी से साफ कह दिया है कि वे अब सेवा निवृत होना चाहते हैं । अब उनसे पाप पुण्य का हिसाब संभाला नहीं जा रहा , धर्मराज कोई अन्य व्यवस्था के लें जितना जल्द हो सके । धर्मराज जी को आज तक वी आर एस जैसी किसी स्कीम की कोई जानकारी नहीं थी , जिसको आधार बना चित्रगुप्त जी ने अपनी अर्ज़ी दी है । धर्मराज चित्रगुप्त को समझा रहे हैं कि अगर आप सब के अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब नहीं देखोगे तो उनको बहुत परेशानी होगी । ऐसे में वो न्याय नहीं कर पायेंगे । अब तक आप ये कार्य पूरी निष्ठा पूर्वक करते रहे हैं , ये अचानक आपको क्या सूझी है । चित्रगुप्त बता रहे हैं कि अब उनका काम करना बेहद कठिन हो गया है , क्योंकि सभी देवी देवता उनके कार्य में अनावश्यक रूप से दखलंदाज़ी करने लगे हैं । आये दिन कोई न कोई देवी देवता उनको सूचित किया करते हैं कि उन्होंने किसी के सब पाप और अपराध माफ कर दिये हैं , अपराधी उनके दर पर क्षमा मांगने आये थे चढ़ावा लेकर । ये तो सरासर रिश्वतखोरी है । भ्रष्टाचारी घोटालेबाज़ तक जब पकड़ में आते हैं तब इनकी शरण में पहुंच जाते हैं । इन बड़े लोगों को न कोई अदालत सज़ा दे पाती है न हम ही दे सकते हैं । क्या यहां भी छोटे छोटे चोर सज़ा पायेंगे और बड़े बड़े माफी पाते रहेंगे । धर्मराज भी ये जानकर चिंतित हो गये , सोचने लगे तभी धरती पर अपकर्म बढ़ता ही जा रहा है । ये तो देवी देवता अराजकता फैला रहे हैं दिल्ली की सरकार की तरह । आप अभी सब देवी देवताओं को सूचित कर कि वो ऐसा कोई काम नहीं करें जो उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता । ये बात सपष्ट की जाती है कि किसी भी देवी देवता को अधिकार नहीं है अपने भक्तों के पाप और अपराध क्षमा करने का । किसी की शरण में जाने मात्र से कोई बच नहीं सकता अपने कर्मों का फल भोगने से । कोई धर्म गुरु कोई देवता अगर अपने अनुयायियों को गुमराह करता है ये कह कर कि वो उनके अपकर्मों को क्षमा करवा सकता है तो वो न केवल सृष्टि के नियमों का अनादर करता है बल्कि खुद भी उनके पापों का सहभागी है । भविष्य में ऐसा करने वाले लोगों को अयोग्य घोषित किया जा सकता है ।

                   अब चित्रगुप्त कार्य करने को राज़ी हो गये हैं । सब देवी देवताओं को चित्रगुप्त जी का खुला पत्र मिला है एक चेतावनी के रूप में । निर्देश दिया गया है कि अब कोई अगर किसी के पाप और अपराध क्षमा करने का प्रस्ताव उनके पास भेजेगा तो उस पर कड़ी करवाई की जायेगी । ईश्वर तब निर्णय करेगा कि उनका देव पद पर रहना उचित है अथवा अनुचित । पत्र को पढ़ते ही खलबली मच गई है देवी देवताओं में , चिंता होने लगी है कि कहीं ये बात उनके भक्तों तक न पहुंच जाये कि उनके पास वरदान देने या किसी के कर्मों का फल नहीं मिलने देने का अधिकार ही नहीं है । ऐसे में तो उनके धर्मस्थलों के सामने लगने वाली कतारें ही नहीं रह जायेंगी । फिर तो हम केवल नाम को ही देव रह जायेंगे । सभी देवी देवता एक साथ मिल कर ईश्वर के पास गये हैं मांग पत्र लिये कि उनको ऐसा अधिकार होना चाहिये ।

                  ईश्वर उन सब को समझा रहे हैं कि आप सभी व्यर्थ की चिंता कर रहे हैं । क्या जो आपके भक्त हैं वो केवल आप पर भरोसा करते हैं , क्या वो कभी इस कभी उस तरफ डांवाडोल नहीं हुए रहते । आज के आपके भक्त तो बाज़ार के ग्राहक कि तरह हैं , किसी भी एक दुकानदार पर इनको भरोसा नहीं है । हर दुकानदार भी मुनाफा ही कमाता है , मगर मुफ्त उपहार और छूट का प्रलोभन देकर ग्राहकों को आकर्षित करता है । आपको भी ये बात समझनी होगी , आखिर ये भक्त आप में से ही किसी न किसी के दर पर ही तो आयेंगे । जैसे दुकानदार उपहार और छूट की बात कहते हैं लेकिन साधते खुद अपना आर्थिक हित ही हैं , उसी तरह आप भी क्षमा और वरदान का झूठा भ्रम बनाये चुपचाप सब देखते रहो । आपकी असलियत कोई भक्त कभी नहीं जान पायेगा । ये बात आपको भी जान लेनी ज़रूरी है कि कर्मों का फल तो आपको भी भोगना होगा , अगर आप पाप और अपराध को बढ़ावा देंगे तो देवी देवता नहीं रह जायेंगे । ईश्वर की बात सब समझ गये हैं , लेकिन ये भी जान गये हैं कि ये अंदर की बात है , किसी को कानोकान खबर न हो । 
 
     
 
 

                9      ज़िंदगी के दो किनारे ( तरकश ) 

       ज़िंदगी इक बहते हुए पानी की नदी है जिसके दो किनारे होते हैं । शादी इस तरफ का किनारा है तो प्यार इश्क़ मुहब्बत उस दूसरी तरफ का किनारा । साफ बात तो ये है कि शादी और प्यार मुहब्बत दो अलग अलग चीज़ें हैं । जाने क्यों कुछ लोग गुमराह करते हैं ये समझा कर कि प्यार करने वालों को विवाह के बंधन में बंध जाना चाहिये , कुछ लोग ये अफवाह भी फैलाते हैं कि शादी कर ली जिस किसी से उसी से प्यार खुद-ब-खुद हो ही जाता है । सच कहा जाये तो शादी और इश्क़ दोनों दुनिया की सब से गंभीर समस्याओं के नाम हैं जिनका आज तक हल कोई भी खोज नहीं पाया है । ये सवाल बेहद कठिन है कि जो एक दूसरे को सच्चा प्यार करते हों उनको आपस में शादी करनी चाहिये या नहीं । देखा जाये तो जिसे सच्चा प्यार करते हैं उसकी भलाई चाहते हैं तो उसको आज़ाद ही रहने देना चाहिये , बंधन में जकड़ कर खुद ही अपने प्यार का गला न दबायें । जीवन  भर साथ जीने मरने का शौक आप दोनों के सपनों को बिखर जाने टूट कर चूर चूर होने का कारण बन सकता है । जैसे कोई अदालत किसी बेगुनाह को सूली पर चढ़ाने के बाद किसी भी तरह भूल सुधार नहीं कर सकती , किसी को फिर से ज़िंदा नहीं कर सकती उसी तरह शादी की गलती को भी सुधारा नहीं जा सकता है । शादी करने के बाद तलाक लेना देना भी इक नई गलती है न कि पहली गलती को सुधारना । शादी एक ऐसा चक्रव्यूह है जिस से कोई अभिमन्यु बाहर नहीं निकल पाता है एक बार फस जाने के बाद ।

             ऐसा लगता है कि विवाह की परंपरा कुछ लोगों ने अपना कारोबार चलाने को शुरू की होगी । बैंड बाजे वाले , टेंट वाले , हलवाई , रौशनी करने के काम में लगे लोग यही चाहते हैं कि हर दिन ऐसा कुछ न कुछ चलता ही रहे । कभी नाई और पंडित किया करते थे कुंवारों को सपनों के जाल में उलझाने का काम तो आजकल मैरिज ब्यूरो से लेकर इंटरनेट तक हर तरफ जाल ही जाल बिछा रखा है । अब कोई बच कर जाये तो जाये किधर । शायद मन पसंद वर वधू की तलाश करना दुनिया का सब से कठिन कार्य है , लगभग असंभव । इक सिनेमा की नायिका ने कई साल पहले टीवी पर शो शुरू किया था जोड़ियां बनाने का । 
 " कहीं न कहीं कोई है " नाम सुनते ही सिरहन सी होती थी , मुझे तो ये किसी हॉरर फिल्म का शीर्षक लगता था । मैं उस कार्यकर्म को देखने का साहस कभी नहीं कर पाया था । बाद में भी टीवी पर सवयंबर होते रहे किसी तमाशे की तरह । जिस नायिका ने शुरुआत की थी उसको जीवन साथी विदेश में कहीं मिल सका । अब सब लोग तो देस को छोड़ परदेस नहीं जा सकते , यहां की नायिका तो हर दम गुनगुनाती है " परदेसियों से न अखियां मिलाना "।

                 अपने जीवन साथी को लेकर सभी की मधुर कल्पना होती है । कौवा भी खुद को हंस समझ कर सच्चे मोती की तलाश करता है । हर लड़का हर लड़की अपने लिये हज़ारों नहीं लाखों में एक की तलाश करते हैं । जब किसी को चुन कर विवाह कर लेते हैं तब पता चलता है कि जल्दबाज़ी में सही निर्णय नहीं लिया जा सका । तब पछताये कुछ हासिल नहीं होता , चुप रहने में ही भलाई है , गले पड़ा ढोल बजाना पड़ता है उम्र भर । असली ज़िंदगी में सपनों की हसीन दुनिया का नामो-निशान तक नज़र आता नहीं । दूर के ढोल सुहावने लगते हैं इसका पता पति पत्नी दोनों को बहुत जल्द चल जाता है । कुछ लोग शादी को दो दिलों का मिलन समझते हैं , कुछ इसको शुद्ध लेन देन का इक कारोबार । दहेज की कीमत चुकाने के बाद ही दूल्हा खरीदा जाता है । शादी में रिश्तेदार और जान पहचान वाले सभी बुलाये जाते हैं ये खबर देने को कि दो लोग आज से कुंवारे नहीं रह गये हैं । जैसे किसी शोरूम में कोई माल सोल्ड का लेबल चिपका कर रखा हो , उसको कोई खरीदने की बात नहीं कर सकता । आजकल अच्छे दूल्हे का खरीदार ही नहीं मिलता , कितने दूल्हे बिक्री के लिये शोरूम में रखे रहते हैं । यूं शादी करने को उम्र की कोई सीमा तो नहीं होती लेकिन इक उम्र के बाद डिमांड खत्म हो जाती है । सब कुछ की चाहत में कुछ भी हासिल नहीं होता । मूर्ख लोग ही दोबारा शादी किया करते हैं , उनके लिये रिजेक्टेड माल ही उपलब्ध होता है । तब लगता है कि पहली वाली इससे अच्छी थी , तलाक नहीं देना था ।

                टीवी सीरियल की बात और है । उनके पास विषय ही यही बचा है , शादीशुदा नायक की कुंवारी प्रेमिका या किसी कुंवारे का विवाहित पर फिदा होना । असल जीवन में सब को नयापन ही पसंद होता है । असली ज़िंदगी में शादी भी मुश्किल से हो पाती है और तलाक तो बहुत ही मुश्किल । लेकिन फ़िल्म वालों की कहानी में और टीवी सीरियल में कुछ कागज़ों पर हस्ताक्षर करते ही तलाक हो जाता है । कई सीरियल में दर्शक याद तक नहीं रख सकते कि कब कौन किसका पति था , कौन किसकी पत्नी और अब किसका किससे क्या रिश्ता हो गया है । आजकल प्रेम विवाह का प्रचलन बढ़ गया है ऑनर किलिंग्स के बावजूद । लेकिन अब प्रेम भावनात्मक नहीं रह गया है , बिना सोचे समझे नहीं होता , ठोक बजा कर किया जाता है । पुराने युग का इश्क़ केवल कहानियों तक सिमित हो गया है । इस दौर के आशिक़ तू नहीं और सही में यकीन रखते हैं । शायद ये जान चुके हैं कि ये इश्क़ नहीं आसां । सच तो ये है कि शादी और प्यार मुहब्बत नदी के दो किनारों की तरह है , इनके बीच बने पुल अधिक दिन तक टिका नहीं करते । 
 
    
 

          10       बेघर हैं इस घर के मालिक ( तरकश ) 

     बहुत बड़ा ही ये मकान , कहते हैं ये भारत देश है । माना जाता है देश की सवा सौ करोड़ जनता खुद इसकी मालिक है , मगर उनको इसकी खबर ही नहीं कि ये देश उनका है । इस जनता में वे करोड़ों लोग भी हैं जो सड़कों -फुटपाथों को अपना ठिकाना बना ज़िंदगी बसर कर रहे हैं । इस देश रूपी भव्य मकान पर आज़ादी के बाद से कुछ राजनेताओं ने कब्ज़ा जमा रखा है । वे रात दिन जनसेवा की बात कर शासन के नाम पर इस घर को लूट रहे हैं बेरहमी से । इन नेताओं के कई गुट बने हुए है जिनको ये अपना दल कहते हैं , हर इक गुट का दावा है कि इस आलीशान मकान का कोई न कोई हिस्सा उसी का है । कोई किसी खिड़की को अपनी विरासत समझता है कोई दरवाज़े को अपनी मलकियत बताता है । किसी का अधिकार आंगन पर है , किसी ने छत को निजी जगह समझ लिया है । खिड़की को पकड़े कोई जब चाहे उसको बंद कर देता है और हवा रौशनी तक को नहीं आने देना चाहता तो कभी जब चाहे तब उसको खुला छोड़ देता है चाहे आंधी तूफान से तबाही मच जाये । कोई किवाड़ को पकड़े हुआ है जो चाहता है कि वही लोग भीतर जा सकें जो हर दम उसकी जय जयकार किया करें । किसी गुट ने मुख्य हाल पर अपना अधिपत्य जमा रखा है बाकी गुटों ने किसी न किसी कमरे को हथिया लिया है । इस मकान की हर चौखट पर , एक एक ईंट पर किसी न किसी का नाजायज़ कब्ज़ा है । सब की नज़र माल गोदाम और रसोई घर पर रहती है , हर कोई अधिक से अधिक खा जाना चाहता है । पूरे मकान में दरारें ही दरारें हैं भ्रष्टाचार की , जिधर भी नज़र जाती है प्रशासन की मनमानी कामचोरी का जाला दिखाई देता है । लगता है किसी को भी इसकी साफ सफाई की बिल्कुल भी चिंता नहीं है । अभी इक नया गुट इनमें आ मिला है जो हाथ में झाड़ू पकड़े हुए था और सफाई की बात कहने के वादे पर इस मकान में घुसा था लेकिन दो दिन में ही उसकी वास्तविकता सामने आ गई है उसको बाकी सभी से अधिक जगह पर अपना आधिपत्य कब्ज़ा चाहिये । जाने ये कैसी सफाई करना चाहते हैं कि खुद ही गंदगी को बढ़ाने का काम करने लगे हैं ।

    कहते हैं कि इस मकान का सब से खूबसूरत जो कक्ष है उसी में सत्ता रूपी सुंदरी वास करती है । ये तमाम नेता उसी के दीवाने हैं , सब रंगरलियां मनाना चाहते है उस सुंदरी के साथ । नेताओं के लिये इस से बढ़कर कोई भी सुख नहीं है , स्वर्ग का सुख इस के सामने कुछ भी नहीं है उनके लिये । सत्ता रूपी सुंदरी को हासिल करने को ये नेता कुछ भी कर सकते हैं । लाज शर्म , ईमानदारी नैतिकता सब को त्याग सकते हैं सत्ता सुंदरी के लिये । एक बार उसको अपने बाहुपाश में जकड़ लेने का सपना सब नेता उम्र भर देखता है । नेताओं को किसी मोक्ष की कामना नहीं होती कभी , जान जा रही हो तब भी इनको सत्ता सुंदरी को छोड़ और कुछ याद नहीं होता । हर नेता जल बिन मछली की तरह तड़पता रहता है उसी के लिये । इस मकान में जो सभा भवन है उसको हम्माम कहते हैं जहां पर सभी नग्न होते हैं । इसलिये उस सभा में किसी को कुछ भी करते रत्ती भर भी शर्म का एहसास नहीं होता है ।

              हर पांच वर्ष बाद और कभी उससे पहले भी चुनाव रूपी इक मेला लगता है । लोकतंत्र नाम का इक खेल खेला जाता है । नेता एक दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं , इक दूजे पर कालिख पोत कर होली खेलने का मज़ा लेते हैं । तब थोड़े दिन तक सड़क - फुटपाथ पर रहने वाली जनता को खुश करने , उसको मूर्ख बना फिर से अपने अपने जाल में फसाने के प्रयास सभी गुट के नेता करते हैं । इस समय नेता गुट को भी त्याग देते हैं जब उनको लगता है कि सत्ता सुंदरी विरोधी गुट में शामिल होने से उसको वरमाला पहना सकती है । जनता को हर बार नये नये सपने दिखाये जाते हैं , रोटी कपड़ा घर , विकास की बातें , उसको जीते जी स्वर्ग दिखलाने तक का दावा या वादा किया जाता है । हर बार जनता इनकी बातों के जाल में फंस जाती है वोट दे देती है इनको विश्वास करके । सत्ता के सिंहासन पर बैठते ही नेता सारे वादे सारी कसमें भूल जाते हैं और कुर्सी मिलते ही जनता रूपी द्रोपदी का चीर हरण होता है भरे दरबार में । वहां तब सब धृतराष्ट्र बन जाते हैं । और ऐसे में कोई कृष्ण भी नहीं आता है उसकी लाज बचाने को । जनता की चीख पुकार इस मकान की दीवारों में दब कर रह जाती है ।

              देश की आज़ादी के बाद से यही होता आया है , नेता इस देश रूपी जिस मकान में रहते हैं उसी की नींव को खोखला करने का काम करने को देश सेवा बता रहे हैं । ये नेता और प्रशासन के लोग जिस डाल पर बैठे हैं उसी को ही काटने का कार्य कर रहे हैं । तब भी खुद को बहुत अकलमंद समझते है ये सब । इसी मकान में तमाम जयचंद , मीर जाफर , विभीषण जैसे लोग भी रहते हैं जो बाहर वालों से मिलकर घर की ईंट से ईंट बजाने को व्याकुल हैं । कायदे कानून , जनता के हक़ सब इनकी मर्ज़ी पर हैं , जनता के हित पूरे करने में कोई काम नहीं आता और नेताओं का हित साधने में सब तत्पर रहते हैं । देखा जाये तो देश का कानून भी मकान के असली मालिक का कोई अधिकार नहीं समझता है , सारे कायदे कानून उनके हितों की रक्षा के लिये हैं जिनका कब्ज़ा होता है मकान पर । बस एक बार किरायेदार बन कर घुस गये तो फिर निकलने का नाम ही नहीं लेते । मालिक को किराया तक देना ज़रूरी नहीं है , केवल झूठा वादा करते हैं कि चुनाव के बाद पूरा किराया भी देते रहेंगे और मकान की देखभाल भी बराबर करेंगे । लेकिन चुनाव बीत जाने के बाद न वो याद रहता है जो कर्ज़ चुकाना है देश की मालिक जनता का न ही उसकी हालत को सुधारने का कोई प्रयास ही किया जाता है । हर बार हालत और भी खराब हो जाती है ।
   
  
 

                 11    भगवान का पेटेंट ( हास-परिहास ) 

      अभी पिछली पोस्ट पर मैंने भगवान नहीं आदमी को इंसान बनाने की बात कही थी । इक महिला मित्र ने उसको तुरंत हटा दिया अपनी टाइम लाईन से । ऐसा नहीं कि उनको मेरी बात अनुचित लगी , उनका कहना था कि कोई भगवान नाराज़ हो जाएगा । ये कितनी हैरानी की बात है कि हम ये सोच रहे कि सच बोलने से भगवान नाराज़ हो सकता है । आपको बता दूं मैं जिस धर्म को जानता हूं उसका आदर्श वाक्य ही यही है सत्य ही ईश्वर है । बहुत सारे सिख भाई नहीं जानते कि जब वो सात सिरी अकाल बोलते हैं तो उसका अर्थ क्या है । सत्य ही ईश्वर है , यही उसका अर्थ है । जो बोले सो निहाल सत सिरी अकाल का अर्थ है कि जो कोई भी ऐसा बोलता है कि सत्य ही ईश्वर है भगवान उस पर कृपा करते हैं । मैंने ये पहले भी ज़िक्र किया है बार बार कि मेरी माँ इक भजन गाती रहती थी । भगवन बन कर तूं मान न कर तेरा मान बढ़ाया भक्तों ने , तुझे भगवान बनाया भक्तों ने । मेरा विचार है ये वही कह सकता है जो ईश्वर को अपना और खुद को उसका मानता हो । मुझे माँ जैसा निश्छल सवभाव , किसी के प्रति कोई दुर्भावना न रखना , किसी से कभी कटु वचन नहीं कहना और हमेशा मुस्कुराते रहना विरला ही कभी दिखाई देता है । मेरी धर्म पत्नी अक्सर जब भी सास बहू की बात आती है किसी से चर्चा में तब यही बोलती है कि उनको तो सासू माँ ने कभी एक बार भी कोई बात गुस्से या नाराज़गी से नहीं की थी । ये तो केवल परिभाषा थी , अब विषय की बात । व्यंग्य है भगवान का पेटेंट ।

             खबर छपी थी कि पेटेंट कानून पास हो गया । अमेरिका वाले नीम का हल्दी का तुलसी का और जाने किस किस की खोज का पेटेंट पहले ही करवाये बैठे हैं । खेती के बीज तक उनके नाम पर पेटेंट हैं और दवायें भी । अब इनका उपयोग उनको रायल्टी चुका कर ही कर सकते हैं । कल ऐसा भी मुमकिन है कि कोई खुद को भगवान घोषित कर दे ये पेटेंट करवा कि ये दुनिया उसी की बनाई हुई है । दूर की कौड़ी लगती है आपको , पर सब कुछ मुमकिन है । देखा नहीं टीवी पर कोई करोड़ों कमा रहा है अपने तथाकथित भक्तों को यही बतला कर कि आप पर अमुक देवी देवता की कृपा क्यों नहीं हो पा रही और कैसे होगी । बहुत आसान सी बातें बताता है जो कोई भी कर सकता है । जलेबी खाना क्या कठिन है , रोज़ खा सकते अगर शुगर नहीं हो । सोचो कोई भगवान बन कर सभी से हवा में सांस लेने , सूरज की रौशनी , पीने का पानी , धरती पर कदम रखने तक की रायल्टी वसूल सकता है अगर उसके नाम पेटेंट हो जाये कि वही ईश्वर है । ये फज़ूल बात है कि ये उसने बनाया था कि नहीं । ऐसे तो हज़ारों साल से अपने देश के घर घर में देसी घरेलू इलाज दादी मां के बताये नुस्खे से होता ही है । हमारे आयुर्वेद के विद्वानों ने कोई रायल्टी मांगे बिना ये जानकारी हर खास-आम तक पहुंचा दी । अब इनकी रायल्टी उसी को मिलेगी जिसने इनका पेटेंट करवा लिया अपने नाम । हम अब भी सोचते ही रहे तो कोई अमेरिका वाला पेटेंट करवा लेगा भगवान को खोजने का अपने नाम पर । तब सब मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरुद्वारा उनका अधिकार क्षेत्र में आ जायेगा , उनको अपनी आमदनी से रायल्टी के रूप में हिस्सा देना होगा । तब हम क्या करेंगे ।  क्या वही दोहरायेंगे जो डंकल प्रस्ताव पर किया था । कुछ दिन विरोध सभायें कर भाषण देने के बाद खुद ही हस्ताक्षर कर हथियार डाल देंगे अमरीका वालों के दबाव में । जो वामपंथी कसमें खाते थे कभी गैट समझौते को न मानने की , खुद शामिल थे उस सरकार को समर्थन करने वालों में जिसने उसको स्वीकार किया । चुपचाप मोहर लगा दी संसद में । ये अब कोई मुद्दा ही नहीं रह गया , किसी भी दल को नहीं लगता कि इसको उठा कर कोई सरकार बनाई या गिराई जा सकती है या इसको उठाने से वोट मिल सकते हैं । जो ये नहीं कर सके वो विषय वो मुद्दा नेताओं को फज़ूल लगता है ।

              मैंने कहा था कि अगर कोई ईश्वर होने का पेटेंट करवा ले , मगर हम भारत वासी खुद को भगवान हरगिज़ नहीं कह सकते ।  भले है बहुत जो भगवान कहलाते हैं , मीडिया ने बना दिया अपने मकसद से , कुछ ताकत शोहरत मिलते ही खुदा बन जाते हैं इंसान नहीं रहते । मगर भगवान हैं ये नहीं कहते क्योंकि भगवान से उनको भी डर लगता है । मगर इतना तो हम कर ही सकते हैं कि ये पेटेंट अपने नाम करवा लिया जाये कि भगवान को हमने ही खोजा था । ये झूठ भी नहीं है , हम साबित कर सकते हैं। हमारे साधू संत , सन्यासी , ऋषि मुनि , देवी देवता तक वर्षों बन बन भटकते रहे , तपस्या करते रहे पर्मात्मा को पाने को । इस अपने देश में करोड़ों देव वास किया करते थे , तो बहुमत भी अपना ही साबित किया जा सकता है । अब वो सब किधर गये ये सवाल मत पूछना , कलयुग में राक्षस ही मिलते हैं उनके रूप में । लेकिन जब हमने खोजा था भगवान को तो इसका पेटेंट अपने नाम होना ही चाहिये । अब आप सोचोगे कि ऐसा करने से क्या हासिल होगा । तो समझ लो जब भगवान पर अपना पेटेंट होगा तब उसकी बनाई हर चीज़ पर अपना अधिाकर खुद ही हो जायेगा । तब उनको पता चलेगा जिन्होंने हमसे गैट समझौते पर हस्ताक्षर लिये थे । हवा पानी चांद सूरज , रौशनी अंधेरा सब की यहां तक कि बरसात की रायल्टी देनी होगी , इंद्र से लेकर सभी देवता अपने ही हैं । तब पता चलेगा उनको भी कि पेटेंट करवाना क्या होता है । 
 
 
 

                      12        मूर्ख शिरोमणी ( हास-परिहास ) 

         आजकल मौसम भी यही है , चुनाव जो हो रहे हैं । नेता जनता को मूर्ख बनाते बनाते हैरान हैं कि लोग जाने कैसे समझदार हो गये । मगर सच तो ये है अपनी तमाम समझदारी के बावजूद हर बार की तरह अब की बार भी मूर्ख जनता ही बनेगी । फिर उन्हीं दागदारों को जब चुनेगी । कभी होता था विरोधी को भी जो कहना होता था बड़ी शालीनता से कहते थे । अब कीचड़ की होली खेलने का लुत्फ़ उठा रहे हैं नेता लोग । बशीर बद्र जी का शेर है   " दुश्मनी जम कर करो ,लेकिन ये गुंजाइश रहे , जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों "।

       ऐसा लगता है नेताओं में लाज शर्म नाम की चीज़ नहीं होती , तभी कल तक जिसको क्या क्या अपशब्द कहते थे उसको गले लगा रहे हैं । मगर आज इनकी बात नहीं करना चाहता , अपनी बात पे आता हूं , पहली अप्रैल का दिन है ये समझदारी वाली बातें करना शोभा नहीं देता । कहने को ये दुनिया है ही मूर्ख लोगों की , जिधर भी नज़र डालो मूर्खों की मूर्खता दिखाई देती है । फिर भी हर कोई खुद को बाकी दुनिया से अधिक समझदार ही मानता है । मनोविज्ञान वाले इसको सामान्य बात कहते हैं , वो मानते हैं अधिक समझदारी की बात दिमागी तौर पर बीमार लोग करते हैं । जिस किसी ने घोषणा की हो कि मूर्ख दोस्त से अकलमंद दुश्मन अच्छा होता है , उसका मुमकिन है अकलमंदों से पाला ही न पड़ा हो , वरना अक़लमंदो से भला दोस्ती करना संभव है । आज तक आपने दो अक़लमंदो की दोस्ती नहीं देखी होगी , दस मूर्खों की ज़रूर देखी होगी । मूर्खों के बिना अपनी दुनिया बनाने की कल्पना दुनिया को बनाने वाले ने भी नहीं की होगी । मुझे तो अक्सर उसकी समझदारी पर हैरानी होती है ये कैसी दुनिया बनाई उसने , क्या क्या नहीं बना डाला दुनिया वालों के लिये , फिर भी लोग खुश नहीं उससे । अभी तक मूर्खों को अपनी अहमियत का पता नहीं चला , ये उनके कारण ही है कि अकलमंद खुद को अकलमंद साबित कर सकते हैं । ठीक उसी तरह जैसे काले रंग के सामने सफेद रंग की चमक और अधिक लगती है । साल के 3 6 4 दिन खुद बेवकूफ बनने के बाद पहली अप्रैल को दूसरों को मूर्ख बनाने का प्रयास भी अकलमंद लोग ही किया करते हैं । सब मूर्खों को इनसे सावधान रहना चाहिये आज , आज भी पहली अप्रैल है ।

             जब भी खबर पढ़ते कि फलां शहर में महामूर्ख सम्मलेन हुआ बड़ी धूमधाम से और किसी को मूर्ख शिरोमणि का ताज पहनाया गया तब मुझ जैसे मूर्ख मायूस हो कर रह जाते। कुछ मित्र जो रात दिन शहर की चिंता में ही दुबले हुए रहते हैं वो भी पूछते यार अपने नगर में मूर्खों की क्या कमी है कि यहां ऐसा नहीं किया जाता । लगता है यहां वाले बुद्धिजीवी साहित्य से और समाज की विसंगतियों से सरोकार नहीं रखते । ऐसे बात कहने वाले तमाम लोग थे लेकिन जो ऐसा आयोजन करवाये वो कोई भी नहीं । इसलिए मैंने सुबह उठते ही ठान लिया ये बीड़ा उठाने को , जब जागे तभी सवेरा । सोचा ये मूर्खता भी कोई दूसरा क्यों करे मैं खुद क्यों नहीं । शाम को ही ऐसी सभा बुलाने का तय कर ही लिया , मुझे अपनी मूर्खता साबित करने किसी के पास नहीं जाना था , शहर के काफी लोग पहले से ही मुझे मुर्ख मानते ही हैं । उम्मीद थी कोई ये सवाल नहीं खड़ा करेगा कि मुझे मूर्खों की सभा बुलाने का क्या अधिकार है । एक मित्र को फोन किया तो वो बोले यार कुछ दिन पहले तय करना चाहिये था , तब ही मज़ा आता , इस साल रहने दो अगले साल का अभी से तय कर लेते हैं । ये उनका तरीका था मुझे अप्रैल फूल बनाने का क्योंकि उनको मेरी बात कुछ ऐसी ही लगी थी । मगर मैं गंभीर था सभा बुलाने को लेकर । मैंने सोचा कि पहले से तय करना मूर्खों का काम नहीं हो सकता , ये तो अकल वाली बात हो गई ।

       एक अन्य मित्र जो पुलिस अधिकारी थे मान गये , उनका सुझाव था कि सब लोग खुद सभा में अपनी अपनी मूर्खतायें सुनायें ।  तो मैंने उनकी बात मान कुछ लोगों को आमन्त्रित किया कि आयें और खुद बतायें कि हां मैंने भी की हैं मूर्खतायें । कई लोग बोले आज फुर्सत नहीं है फिर कभी । मूर्खता में कोई कमी न रहे इसलिये मैंने सांध्य दैनिक में सब मूर्खों को खुला निमंत्रण का विज्ञापन भी छपवा दिया । साथ में इक नियम भी बता दिया कि शुल्क भी देना होगा मेंबर बनने का , ताकि गलती से अकलमंद लोग मूर्खों का तमाशा देखने को नहीं चले आयें । अकलमंद होने का ये भी नियम है कि किसी काम में समय भले लग जाये पैसे नहीं खर्च होने चाहियें । मन में इक डर ये भी था कि ऐसा न हो कि हम अकेले ही वहां पहुंचे दूसरा कोई भी नहीं आये , तभी कुछ चाहने वालों को विनती कर दी मूर्खों की लाज रखना । थोड़ा देरी से ही सही कुछ लोग आये और सब ने अपनी अपनी मूर्खताओं को बयान किया । सब मान गये कि जो आज के युग में नगरपालिका को सफाई की बात के लिये पत्र लिखे , अफ्सरों को कर्त्तव्य निभाने को , डॉक्टर्स को मानवता की बात , दुकानदारों को लूट जमाखोरी बंद करने की , जनस्वास्थ्य विभाग से साफ पानी की , वो महामूर्ख ही तो है । ये भी सबने माना कि पुलिस अधिकारी अगर संवेदनशीलता की बात करता है , जनता और पुलिस की दोस्ती की बात करता है , कविता लिखता है तो वो भी कम मूर्ख नहीं है । दो घंटे तक यही बातें होती रही और पूरी कोशिश थी कि समझदारी वाली कोई बात नहीं होने पाये । सब एकमत थे कि आज देश और समाज को मूर्खों की बहुत ज़रूरत है । वक़्त बहुत मज़े से कटा , लेकिन इस बात का अफसोस बाकी रहा कि जो हमेशा दावा किया करते हैं कि वो मूर्ख शिरोमणि हैं वो आये ही नहीं । उनको यकीन नहीं आया कि कोई ऐसी सभा बुला सकता है । बस इसी डर से वो अपने घर से बाहर ही नहीं निकले कि कोई उनको मूर्ख बनाना चाहता है । काश कि वो आते और मूर्ख शिरोमणि का ख़िताब पाते । लेकिन चाहे नहीं आये ख़िताब पर उनका दावा तब भी बरकरार है । भला मुझे भी कहां इनकार है ।

         ये वास्तविक घटना है और जहां तक मेरी जानकारी है एक अप्रैल का वही पहला और अभी तक का अंतिम आयोजन था मेरे नगर में । समझदार लोगों के इस शहर में मूर्ख भी होंगे ही अन्यथा चालाक और समझदार कैसे चैन से रहते बगैर औरों को मूर्ख साबित किये अपनी समझदारी का सिक्का नहीं जमा सकते हैं । मूर्ख शिरोमणि का ताज अभी भी मेरे पास सुरक्षित है और मैं चाहता हूं कोई खुद आकर अपना अधिकार जतलाए और मुझसे ताज ले जाए । 
 
     
 

                  13       लेखक से बोले भगवान ( कटाक्ष ) 

        आज फिर वही बात , जब मैंने हाथ ऊपर उठाया मंदिर का घंटा बजाने को तो पता चला घंटा उतरा हुआ है । मन ही मन मुस्कुराते हुए भगवान से कहना चाहा " ऐसा लगता है तुम्हारे इस मंदिर के मालिक फिर आये हुए हैं "। जब भी वह महात्मा जी यहां पर आते हैं सभी घंटे उतार लिये जाते हैं , ताकि उनकी पूजा पाठ में बाधा न हो । ऐसे में उन दिनों मंदिर आने वाले भक्तों को बिना घंटा बजाये ही प्रार्थना करनी होती है । कई बार सोचा उन महात्मा जी से पूछा जाये कि क्या बिना घंटा बजाये भी प्रार्थना की जा सकती है मंदिरों में , और अगर की जा सकती है तब ये घंटे घड़ियाल क्यों लगाये जाते हैं । पूछना तो ये सवाल भी चाहता हूं कि अगर और भक्तों के घंटा बजाने से आपकी पूजा में बाधा पड़ती है तो क्या जब आप इससे भी अधिक शोर हवन आदि करते समय लाऊड स्पीकर का उपयोग कर करते हैं तब आस-पास रहने वालों को भी परेशानी होती है , ये क्यों नहीं सोचते । अगर बाकी लोग बिना शोर किये प्रार्थना कर सकते हैं तो आप भी बिना शोर किये पूजा-पाठ क्यों नहीं कर सकते । बार बार मेरे मन में ये प्रश्न आता है कि किसलिये महात्मा जी के आने पर सब उनकी मर्ज़ी से होने लगता है , क्या मंदिर का मालिक ईश्वर है अथवा वह महात्मा जी हैं । ये उन महात्मा जी से नहीं पूछ सकता वर्ना उनसे भी अधिक वो लोग बुरा मान जाएंगे जो उनको गुरु जी मानते हैं । इसलिये अक्सर भगवान से पूछता हूं और वो बेबस नज़र आता है , कुछ कह नहीं सकता । जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है कि भगवान ऐसे मंदिरों में कैद है , छटपटा रहा है ।

               कुछ दिन पहले की बात है । मैं जब मंदिर गया तो देखा भगवान जिस शोकेस में कांच के दरवाज़े के पीछे चुपचाप बैठे रहते हैं उसका दरवाज़ा खुला हुआ था । मुझे लगा शायद आज मेरी आवाज़ भगवान सुन सके , कांच की दीवार के रहते हो सकता है मेरी आवाज़ उस तक नहीं पहुंच पाती हो । मैं अपनी आंखें बंद कर प्रार्थना कर रहा था कि अचानक आवाज़ सुनाई दी " हे लेखक तुम सब की व्यथा लिखते रहते हो , कभी तो मेरे हाल पर भी कुछ लिखो " मैंने चौंक कर आंखें खोली तो आस-पास कोई दिखाई नहीं दिया । तभी उस शोकेस से भगवान जी बोले , " लेखक कोई नहीं है और यहां पर , ये मैं बोल रहा हूं तुम सभी का भगवान"। 
 मैंने कहा प्रभु आपको क्या परेशानी है , कितना बड़ा मंदिर है यह आपके लिये , कितने सुंदर गहने - कपड़े आपने पहने हुए हैं , रोज़ लोग आते हैं आपकी अर्चना करने , सुबह शाम पुजारी जी आपका भोग लगाते हैं घंटी बजा बजा कर । किस बात की कमी है आपको , कितने विशाल मंदिर बने हुए हैं हर शहर में आपके । जानते हो भगवान आपके इस मंदिर को भी और बड़ा बनाने का प्रयास किया जा रहा है , कुछ दिन पहले मंदिर में सड़क किनारे वाले फुटपाथ की पांच फुट जगह शामिल कर ली है इसको और सुंदर बनाया जा रहा है। क्या जानते हो भगवान आपकी इस सम्पति का मूल्य अब करोड़ों रूपये है बाज़ार भाव से , और तेरे करोड़ों भक्त बेघर हैं । साफ कहूं भगवान , जैसा कि तुम सभी एक हो ईश्वर अल्ला वाहेगुरु यीशू मसीह , तुम से बड़ा जमाखोर साहूकार दुनिया में दूसरा कौन हो सकता है । अकेले तेरे लिए इतना अधिक है जो और भी बढ़ता ही जाता है । अब तो ये बंद कर दो और कुछ गरीबों के लिये छोड़ दो । अगर हो सके तो इसमें से आधा ही बांट दो गरीबों में तो दुनिया में कोई बेघर , भूखा नहीं रहे ।

       प्रभु कहने लगे " लेखक क्यों मज़ाक कर रहे हो , मेरे जले पर नमक छिड़कने जैसी बातें न करो तुम । मुझे तो इन लोगों ने तालों में बंद कर रखा है । तुमने देखा है मेरे प्रमुख मंदिर का जेल की सलाखों जैसा दरवाज़ा , जिस पर पुजारी जी ताला लगाये रखते हैं । क्या जुर्म किया है मैंने , जो मुझे कैद कर रखते हैं । इस शोकेस में मुझे कितनी घुटन होती है तुम क्या जानो , हाथ पैर फैलाने को जगह नहीं । ये कांच के दरवाज़े न मेरी आवाज़ बाहर जाने देते न मेरे भक्तों की फरियाद मुझे सुनाई पड़ती है । सच कहूं हम सभी देवी देवता पिंजरे में बंद पंछी की तरह छटपटाते रहते हैं "।

                  तभी किसी के क़दमों की आहट सुनाई दी और भगवान जी चुप हो गये अचानक । मुझे उनकी हालत सर्कस में बंद शेर जैसी लगने लगी , जो रिंगमास्टर के कोड़े से डर कर तमाशा दिखाता है , ताकि लोग तालियां बजायें , पैसे दें और सर्कस मालिकों का कारोबार चलता रहे । पुजारी जी आ गये थे , उन्होंने शोकेस का दरवाज़ा बंद कर ताला जड़ दिया था । मैंने पूछा पुजारी जी क्यों भगवान को तालों में बंद रखते हो , खुला रहने दिया करो , कहीं भाग तो नहीं जायेगा भगवान । पुजारी जी मुझे शक भरी नज़रों से देखने लगे और कहने लगे आप यहां माथा टेकने को आते हो या कोई और ईरादा है जो दरवाज़ा खुला छोड़ने की बात करते हो । आप जानते हो कितने कीमती गहने पहने हुए हैं इन मूर्तियों ने , कोई चुरा न ले तभी ये ताला लगाते हैं । जब तक मैं वहां से बाहर नहीं चला गया पुजारी जी की नज़रें मुझे देखती ही रहीं । तब से मैं जब भी कभी मंदिर जाता हूं तब भगवान को तालों में बंद देख कर सोचता हूं कि सर्वशक्तिमान ईश्वर भी अपने अनुयाईयों के आगे बेबस हैं । जब वो खुद ही अपनी कोई सहायता नहीं कर सकते तब मैं इक अदना सा लेखक उनकी क्या सहायता कर सकता हूं । इन तमाम बड़े बड़े साधु , महात्माओं की बात न मान कौन इक लेखक की बात मानेगा और यकीन करेगा कि उनका भगवान भी बेबस है , परेशान है । 
 
      
 

                    14      विष्णुलोक का टीवी चैनेल ( व्यंग्य ) 

     अगर आपने अभी तक नहीं लगवाया तो जल्द लगवा लें। जी नहीं ये आपके डी टी एच के सेटटॉप बॉक्स की बात नहीं है । ये विष्णुलोक का टीवी चैनल है जो अभी अभी शुरू किया गया है , बल्कि ये कहना चाहिये कि भगवान को करना पड़ा है । भगवान हाइटेक तो पहले ही हो चुके हैं , हर मंदिर हर पूजा स्थल पर सीसीटीवी कैमरे पहले ही लगवा चुके हैं , मगर नये हालात को देखते हुए इक कदम और आगे बढ़ाया है ।

          नारद जी को आप पहचानते ही हैं , भगवान के विश्वस्त खबरी हैं और लोग चाहे उनको बदनाम करते हों इधर की उधर , उधर की इधर बात पहुंचाने का आरोप लगाकर , उनका काम ही मीडिया की तरह है  । नारद जी आये हुए हैं भारतभूमि से विष्णुलोक टीवी का सीधा प्रसारण पहुंचाने को पूर्ण तथ्य सहित । इसको आप कोई धार्मिक चैनेल समझने की भूल नहीं करें । इस पर कोई धनलक्ष्मी यंत्र नहीं बेचा जायेगा न ही कोई भविष्यफल रोज़ का सप्ताह का वर्ष का राशियों के अनुसार बताया ही जायेगा । आपको कोई प्रवचन भी नहीं सुनाया जायेगा न ही किसी गुरु की दुकानदारी का हिस्सा विष्णुलोक का चैनेल बनेगा । फिर क्या करेगा ये नया चैनेल , आपने ठीक सवाल किया है । अभी तक बहुत चैनेल आपको बहुत कुछ दिखाने का काम करते आये हैं , ये चैनल भगवान बारे आपको नहीं आपके बारे भगवान को सही और सटीक जानकारी भेजने का काम करेगा । बिना कोई शुभ महूर्त निकले इसको शुरू किया गया है तो शुभः लाभ लिखने का प्रश्न ही नहीं उठता । कोई हवन नहीं कोई यज्ञ नहीं कोई लाल फीता नहीं काटा गया , सीधे काम शुरू । शास्त्रों में साफ़ लिखा है शुभ कार्य में विलंब नहीं करना चाहिए , पापकर्म करने से पहले विचार करना चाहिए , करें या नहीं करें ।

              टीवी कैमरा नज़र नहीं आता , नारद जी टीवी स्क्रीन पर दिखाई देते हैं । अभिवादन नमस्कार सभी एक सौ पचीस करोड़ भारतवासियों का भी और छतीस करोड़ देवी देवताओं का भी , नारद जी बोलते हैं अपनी जानी पहचानी मुस्कुराहट के साथ । आज विष्णु जी टीवी चैनल से बेतार द्वारा , इंटरनेट कहते जिसको , जुड़ चुके हैं और मैं नारदमुनि उनको यहां का हाल चाल बताता हूं , दिखलाता हूं । कैमरा भीड़ ही भीड़ दिखाता है तो भगवन पूछते हैं ये कैसी भीड़ है , क्या यहां कोई मंदिर है जहां प्रसाद बंट रहा है । जी नहीं प्रभु ये देश की जनता है जो बैंकों के सामने खड़ी है कतार में अपने खुद के जमा किये पैसे निकलवाने की जद्दोजहद में अपनी जान जोखिम में डालती । प्रभु हैरान होकर पूछते भला ऐसा क्यों । नारद जी बताते हैं भगवन आपने खुद भी देखा अपने मंदिरों का हाल , लोग जाकर माथा टेकते और दानपेटी में पैसे डालते हैं । कोई नहीं पूछता ये कैसा धन है मेहनत से कमाया हुआ अथवा चोरी लूट से जमा किया हुआ । गंगा नदी में गंदा नाला भी मिलता है तब भी गंगा पवित्र ही रहती है , उसी तरह राजनीतिक दलों को मिला चंदा और आपके नाम से चढ़ाया सारा धन भी पावन ही नहीं बताया जाता , ऐसा भी घोषित किया जाता है कि जितना दो और अधिक बढ़कर मिलना है । लोग दल को चंदा और भगवान के दर पे चढ़ावा इसी उद्देश्य से देते हैं । इन दोनों को दिया धन वापस कोई नहीं मांग सकता , कोई भूखा कभी मज़बूर होकर दानपेटी से पैसे निकाल ले तो पापी अधर्मी कहलाता है । अब उस धन दौलत पर संचालकों का अधिकार है वो जैसे भी चाहते उपयोग करते हैं ।

                  नारद जी बोले प्रभु अभी समाचार देख लो चुप चाप  , उसके बाद चर्चा को बहुत समय होगा । हमने कोई विज्ञापन तो दिखाने नहीं हैं । असली काम की बात करनी है और आपको असलियत दिखानी है । प्रभु हुआ ये कि इक दल को पूर्ण बहुमत से जनता ने जिताया ताकि देश की जनता को उस द्वारा दिखाये अच्छे दिन हासिल हो सकें । मगर क्या यही वो अच्छे दिन हैं कोई नहीं जानता , लोग तो बदहाल हैं । आप ही बताओ आम आदमी क्या करे , आपके पंडित जी के बताये उपाय करता रहे आपका नाम जपता रहे या कोई नौकरी काम धंधा करे अपना पेट पालने को । भूखे भजन न होय गोपाला । अब सरकार कहती है सहयोग करो मगर कब तक , तब तक क्या भूखे मरें , सरकार तब तक देती जनता को सभी खुद तो बात थी । देना नहीं जानती देश की सरकार भी आपकी ही तरह , माफ़ करना प्रभु यहां जितना बेईमानी का काला धन है सब से अधिक आप ही के नाम जमा है तमाम धर्मों के नाम पर या इन्हीं दलों के पास । खुद को छोड़ सभी की तलाशी ली जबकि चोरी की माला पहनी अपनी गले में हुई है । प्रभु जो आपने अभी सोचा , मुझे पता चला , धर्म की बात पूछते हो आप । देखो प्रधानमंत्री जी कैसे उपहास करते हैं विपक्ष का मज़ाक नहीं है ये जीत का अहंकार है जिस ने उनको मर्यादा तक को भुलवा दिया है । हार जीत होती रही है , जीत कर  विनम्र होना साहस का कार्य और अहंकारी होना कमज़ोरी होती है । मगर इस नेता को लगा कि किसी मंदिर में करोड़ रूपये की चंदन की लकड़ी दान में देकर उसने भगवान को खुश कर लिया है , जबकि वो लकड़ी भी जनता के धन की थी उसकी अपनी कमाई की नहीं ।  आप जानते हैं जो नेता मेरे गरीब भाईयो की रट लगाता है उसको देश की आधी आबादी जो गरीब ही नहीं दलित और शोषित भी है से कोई सरोकार नहीं है । प्रभु को समझ नहीं आ रहा ये कैसी सरकार है जिसको इतना भी पता नहीं है कि किसान खेत में हल चलाये बीज बोये फसल की रखवाली करे या फिर बैंक की कतार में खड़ा रहे । नारद जी बता रहे हैं सरकार का विभाग मानता है वही फसल बिजवाता है और उसी के आंकड़ों से देश की जनता का पेट भरता है । सत्ता मिलते ही सभी नेता खुद को भगवान समझने लगते हैं और जनता को सोचते हैं जुमलों से बहला सकते हैं ।

                नारद जी ने अलग अलग क्षेत्रों की तमाम तस्वीरें प्रभु को दिखाकर बताया ये असली भारत की तस्वीर है । नंगे बदन बच्चे महिलाएं , भूख और बिमारी से हारे हुए निराश लोग जो जीते हैं मगर ज़िंदा लगते नहीं , उनको घर की छत तो क्या पीने को पानी भी साफ नहीं मिलता । शिक्षा की दशा इस कदर खराब है कि शिक्षा का अधिकार उपहास बनकर रह गया है । देश की आधी आबादी साठ करोड़ लोग किसी भी दल के किसी भी नेता के लिये मात्र वोट हैं जिनकी ज़रूरत पांच साल बाद पड़ती है । उन बदनसीब लोगों का दर्द उनको भला कैसे समझ आयेगा जो शहंशाहों की तरह रहते हैं । चलो आपको ये भी दिखला देते हैं । कैमरा लुटियन ज़ोन को दिखाता है जिस को देख आंखे चुंधिया जाती हैं । ये राष्ट्रपति भवन है जो शायद सौ एकड़ से अधिक जगह पर बना है गरीब देश के राष्ट्रपति का निवास । जब यहां सैंकड़ों कमरों में राजसी शानो-शौकत से रहने वाला कोई गरीबी की बात करता है तो समझ नहीं आता उस पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की जाये , हंसा जाये कि रोया जाये । इस इक महल की देख रेख पर हर महीने करोड़ों रूपये खर्च किये जाते हैं , अर्थात लाखों रूपये हर दिन । इसी देश की इक तिहाई आबादी की आय प्रतिदिन पचास रूपये भी नहीं है । इसका मतलब ये है कि एक आदमी के रहन सहन पर जितना धन खर्च होता है उसी से कितने लाख भूखे अपना पेट भर सकते हैं । दूसरे शब्दों में ये कुछ लोग खुद पर जितना धन जनता के पैसे का खर्च करते हैं वही अगर गरीब लोगों को दिया जाता तो आज देश में गरीबी का नामो-निशान नहीं होता । गरीबों का हितैषी होने का दावा करने वाले दरअसल उनकी गरीबी की वजह खुद हैं । इस लुटियन ज़ोन में ढाई ढाई एकड़ में इक इक बंगला बना है , जब किसी गरीब को घर देने की बात की जाती है तो पचास गज़ ज़मीन भी ज़्यादा लगती है । संविधान में सभी को समानता का अधिकार क्या इसी को कहते हैं ।

            जो लोग अनपढ़ हैं अपने अधिकार की बात नहीं जानते उनको क्या कहें जब जो शिक्षित हैं सुविधा संपन्न हैं वो भी किसी दल किसी नेता की जय-जयकार किया करते हैं अपना स्वाभिमान भुला कर । गुलामी तमाम लोगों की मानसिकता बन गई है , हर किसी को भगवान बताने में कोई संकोच नहीं करता । कोई पूछे उनसे आप जिनको भगवान मानते हैं उन्होंने देश को दिया क्या है । हर दिन इनकी सभाओं को आयोजित करने पर ही कितना धन बर्बाद किया जाता है , कोई हिसाब नहीं बताता कैसे । सब से ज़रूरी बात , इस देश को माना जाता है धार्मिक लोग हैं , जबकि यहां अधर्म ही अधर्म दिखाई देता है । मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे जाकर माथा टेकने से कोई धार्मिक नहीं हो जाता , धार्मिक होते जो लोग वो अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाते हैं समाज को देश को लूट नहीं सकते । इस देश में न्याय की निष्पक्षता की कर्तव्य निभाने की आशा तक करना खुद को धोखे में रखना है । झूठ यहां का भगवान है और लूट यहां की नीति , धर्म की तो परिभाषा तक कोई नहीं जनता यहां । प्रभु ठीक से देख लो और समझ लो आप अगर भगवान हैं तो किन लोगों के भगवान हैं । इधर तो भगवान भी सभी लोग बदलते रहते हैं , सभी ने अपने अपने खुदा तराश लिये हैं जो उनको पाक साफ़ हैं का प्रमाणपत्र ही नहीं देते , मरने के स्वर्ग का आरक्षण भी देने की बात करते हैं ।

            
 

                          15     आपके बिना साजन ( व्यंग्य ) 

       मैं ऐसा सोचती थी या समझती थी कह नहीं सकती , मगर मानती ज़रूर थी साजन तुम बिन नहीं जी सकूंगी । जब भी कोई बात होती और मुझे या साजन को अलग होना होता तब यही कहते दोनों क्या करें मज़बूरी है दूर जाना है । दिल नहीं चाहता तब भी जाना ही होगा । अपने अपने मतलब की खातिर समझते थे यही प्यार है इक दूजे का साथ होना । उम्र बिता दी और सच कहूं इक बेगुनाह मुजरिम की तरह रही किसी ज़ालिम की कैद में । हर दिन एहसास करवाया जाता मुझ पर रोज़ उपकार किया जाता है , जबकि वास्तव में किसी की गुलामी खुद कबूल की थी जाने किस डर से । चार दिन पहले इक महिला ने लिखा अपनी फेसबुक पर कि महिला और परिंदे पिंजरे में रहते खुद को सुरक्षित समझते । मुझे हैरानी हुई पढ़कर भला कोई पंछी पिंजरे में खुश रह सकता है । कोई महिला दिल से किसी की गुलाम बन खुश हो जी सकती है । शायद उस को अपने पति के नहीं रहने का दुःख होगा , मगर मैंने कई महिलाओं को देखा उनको जीना आया ही तब जब किसी कारण उनके जीवन साथी नहीं रहे या अलग हो गए । घुट घुट कर जीने से अच्छा है आज़ाद हो खुद ज़िंदगी से लड़ना । अभी तक आप इसे किसी दुखियारी की व्यथा समझे तो आप नहीं समझे , ये किसी अबला नारी की बात नहीं है । आज देश भर में डॉक्टर्स हड़ताल पर हैं , आज मुझे समझना मैं रोगी होती तो मुझे इस से क्या होता , क्या मैं इलाज नहीं मिलने से मरती या इलाज ही से मौत आती । क्योंकि मौत आनी है आएगी इक दिन जान जानी है जाएगी इक दिन , ऐसी बातों से क्या घबराना ।
 
         टीवी पर देखना आपको हाहाकार होने की खबरें देखने को मिलेंगी दिन भर । शाम तक अख़बार वाले बता देंगे कितने लोग मर गए आज बिना इलाज मिले । क्या इलाज होता तो नहीं मरते किसे खबर , अभी तक तो कोई ज़िंदा बचा नहीं दुनिया भर में । धनवान लोग कभी नहीं मरते अगर पैसे और इलाज की सुविधा से मौत से बचा जा सकता । आपको बता देना ज़रूरी है ये बात मैंने गांव के इक बनिये से सुनी थी जो किसी क़र्ज़ मांगने वाले को समझा रहा था अगर तुम सोचते हो पैसे मिल गए तो किसी अपने को बचा लोगे तो बताओ ये जो चौधरी हैं गांव के अपने दादा जी को मरने देते । लाख टके की बात थी मैंने गांठ बांध ली , जीना मरना किसी के बस में नहीं है । अब अगर किस्मत में लिखा है डॉक्टर के हाथ से मरना तो इलाज को पैसे भी मिल ही जायेंगे अन्यथा मौत तो कीमत मांगती नहीं । लेकिन आज इक बात का अध्यन किया जा सकता है , वो इसका कि आंकड़े देख तय किया जाये आज कितने लोग मौत की गोद में समाए और कितने पिछले दिन जब डॉक्टर्स काम पर थे । सोचो कहीं ये सच सामने आया कि आज पहले से कम की मौत हुई तब क्या होगा , डॉक्टर तक हैरान हो सकते हैं । जिनको बचना है ऊपर वाला बचा ही लेता है और जिनकी मौत का इल्ज़ाम  किसी रोग को देना उनको भेज देता हॉस्पिटल ।

       साजन आपने बिना किसी का कुछ नहीं होगा मगर अगर आपके पास रोगी नहीं आएं उनकी भी हड़ताल हो जाये तब आपका जीना कठिन नहीं असंभव हो जायेगा । ये भला क्या बात हुई , इक कहावत है गिरी थी गधे के ऊपर से और लड़ पड़ी थी कुम्हार के साथ । आपको शिकायत सरकार से कि आपको किसी नियम कानून में अपना कारोबार करने को कानून बनाना चाहती है और आप सरकार का कुछ नहीं कर सकते तो रोगियों की जान आफत को लाना चाहते । आगे कुछ कहना  नहीं उचित आप खुद समझ लो , अपने पांव को काहे कुल्हाड़ी पे मारते हैं । रोगी नहीं अपने जीने की सोचो ज़रा । अंत में सभी को इक काम की बात कहनी है। मौत से डरने की ज़रूरत नहीं है , मौत बड़ी खूबसूरत होती है , ज़िंदगी कभी खूबसूरत नहीं होती । जीना है तो मौत का डर दिल से निकाल फिर देखो क्या है जीना ।
 
                            मौत तो दरअसल एक सौगात है ,
                          हर किसी ने उसे हादिसा कह दिया । 
 
   
 

           16      भगवान से हिसाब मांगता है कोई ( तरकश ) 

     क्या यही धर्मराज की अदालत है , आत्मा ने निडरता से सवाल किया ।  चित्रगुप्त जी भी बही खाता छोड़ उसी तरफ देखने लगे । न्यायधीश की ऊंची कुर्सी पर बैठे धर्मराज को अपना अपमान सा लगा । आप कहना क्या चाहते हैं , आत्मा से पूछा । आत्मा ने कहा जनाब आपका परिचय ही जानना चाहा क्या ये भी गुनाह है इस अदालत में । धर्मराज को कहना पड़ा नहीं ऐसा नहीं है मगर आज तक किसी ने पूछा ही नहीं सब को मालूम होता है यहीं सब कुछ चुकाना है । आत्मा ने कहा चलो मान लिया , मुझे मेरा हिसाब मत बताओ मैं जानता हूं ।  अपना फैसला सुना देना मान भी लूंगा बिना कोई सफाई दिए , मगर आपकी ही तरह मैंने भी हर दिन लिखा था भगवान और भगवान की अदालत का हर हिसाब किताब । मेरे पास कोई नर्क नहीं स्वर्ग नहीं मोक्ष नहीं देने को , मगर आपको आईना तो दिखला सकता हूं । क्या देखना चाहोगे आपके खुद के कर्मों की बात । अधिक समय नहीं लूंगा संक्षेप में सीधी सीधी बात करूंगा । अदालत में मौजूद आत्माओं ने ज़ोर ज़ोर से तालियां बजाईं तो धर्मराज भी घबरा गये । कहीं ये कोई लोकतंत्र की बात तो नहीं , मामला संगीन लगता है । साक्षात भगवान को आने को बुलवाया और ऊंचे सिंहासन पर बिठाकर आत्मा की बात सुन कर समझाने की विनती की । भगवान बोले कहो क्या समस्या है । आत्मा ने कहा सुनोगे ध्यान से मेरी बात पूरी की पूरी बिना बीच में कोई बाधा उतपन्न किये । भगवान मान गये मगर समय की सीमा का ध्यान रखने की बात भी जोड़ दी टीवी वालों की तरह । ठीक है मगर कोई छोटा सा ब्रेक लेने की बात मत कहना जब जवाब देते नहीं बनता हो । ओके फाइन ।
                      भगवान आपने सभी के अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब किताब करने का प्रबंध किया मगर खुद आपका हिसाब किताब किसी को देने की व्यवस्था नहीं की । अन्यथा हमारी सरकारों की तरह सी ए जी जैसे संस्थाएं सरकारी योजनाओं की पोल खोल देती हैं । पिछली सरकार इतनी बदनाम हुई कि पूछो मत । पांच साल बाद बदल देते हैं सभी को जब वास्तव में वादे निभाते नहीं हैं । आप पर कोई सवाल ही नहीं करता कि जिस दुनिया को बनाया उसकी हालत को कभी देखा भी है । अपने मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरूद्वारे जाने क्या क्या बनवा कर पत्थर की मूरत बनकर या किसी और तरह अपना गुणगान सुनते रहते हो और समझते हो सब ठीक ठाक है । कहीं कुछ भी ठीक नहीं है मगर आपको चिंता ही नहीं । बुराई पर अच्छाई की विजय दिखाई देती ही नहीं कहीं , बुराई है जो सुरसा की तरह बढ़ती जा रही है । सच को सूली चढ़ाया जाता है और झूठ की जय जयकार होती है । आपकी कोई अदालत ऐसी है जो आपको भी कटघरे में खड़ा करे और आपको भी दोषी ठहरा सज़ा का एलान करे । हमारे देश की व्यवस्था में लाख खामियां हैं फिर भी हमारे देश की अदालतों के न्यायधीश इतिहास रचते रहे हैं देश की प्रधानमंत्री को अदालत में बुलाकर दोषी ठहराने का फैसला देकर । ये आपके नियुक्त किये धर्मराज आपसे आपका हिसाब मांग सकते हैं । आपने इस बात पर कभी विचार ही नहीं किया आपके नाम पर क्या नहीं हो रहा , आप उसके लिए उत्तरदाई कैसे नहीं हैं । क्या आपका नाम जपना और आपकी अर्चना करना ही धर्म है या वास्तविक धर्म मानवता की रक्षा करना है । आप सब से बड़े जमाखोर हो कितनी ज़मीन कितने आलिशान महलनुमा घर अकेले आपकी खातिर जब करोड़ों लोग भूखे हैं बेघर हैं । लिखवा दिया पापियों का अंत करने आओगे मगर कब आओगे । सरकारी अच्छे दिनों के झूठे वादे में और आपके किये वायदे में अंतर क्या है । सोचोगे तो समझोगे कितनी बड़ी भूल की है अपनी दुनिया की व्यवस्था करना नहीं आता तो नहीं बनाई होती । हम सभी को खिलौना समझ खेलते रहे मगर कभी नहीं सोचा इंसानों पर क्या बीती है ।
          आदमी को कहा जाता सब से अच्छा है सब से उत्तम योनि है । सब से खराब आदमी ही है । छल कपट झूठ धोखा अन्याय अत्याचार हर बुराई में सब से आगे है । खुश कभी नहीं होता बेशक भगवान ही समझने लगें लोग , तब भी इंसानियत नहीं याद रखता । मुझे तो लगता है भगवान तुम अच्छे लोगों और सच्चे लोगों का कभी साथ नहीं देते , तभी अधर्मी पापी फलते फूलते हैं और ईमानदारी का जीना दूभर है । मुझे बेशक जो चाहो सज़ा दे दो , आपके बारे भी साफ साफ सच्ची बात मन की लिखता रहा हूं । चाहो तो धरती से मंगवा कर पढ़ लेना कुछ भी कल्पना से नहीं लिखा है । आपकी दुनिया की असलियत ही लिखी है । नर्क तो देखा है कोई चिंता नहीं नर्क भेज दो भले , स्वर्ग की चाह कभी की नहीं , मिलेगा भी नहीं और मिल भी जाये तो नहीं रहना मुझे । नेता लोग होते हैं जो खुद स्वर्ग की सुविधाएं पाना चाहते हैं और जनता को नर्क के सिवा कुछ नहीं देते । फिर से जन्म देना तो इंसान नहीं बनाना , इंसानों में इंसानियत बची ही नहीं । पंछी बना देना चाहे मगर पिंजरे में कैद नहीं होना , पेड़ पौधे में भी जीवन होता है कोई सुंगध बांटने वाला साफ हवा छायादार और फलदार पेड़ भी बना सकते हो । कोई रास्ता जिसे लोग कुचलकर अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ते जाएं उसकी धूल बनकर भी रहना मंज़ूर है मगर पत्थर नहीं बन सकता तुम्हारी तरह संवेदनहीन नहीं बनना चाहता । अभी फैसला अटक गया है भगवान को मेरा लिखा पढ़ने में जाने कितना वक़्त लगेगा , मैं अभी भी कटघरे में खड़ा हूं और आरोप उस पर लगा है जो कहते है उस से बड़ी अदालत कोई नहीं है । इंसाफ तो करना ही होगा चाहे फैसला खुद भगवान के खिलाफ हो या फिर मेरे । बहुत गहरी ख़ामोशी छाई हुई है ।
 
  

            17       चौकीदारों का एक समान वेतन और रैंक ( तरकश ) 

         आपको फिर से याद दिलवाता हूं देश में गधों के भी अधिकार हैं । कवि लोग तो कहते हैं गधों के ही अधिकार हैं , घोड़ों को मिलती नहीं है घास , गधे खा रहे हैं चव्वनप्राश  । मगर नहीं गधों के लिए नियम हैं , गधों को रात अंधेरे में बरसात और उमस के मौसम में काम पर लगाना अपराध है । उनको दिन में भोजन अवकाश और आराम करने देने का भी हक है । जॉनी वॉकर जी तो दिल्ली जाने की भी बात करते थे अपने गधे की जो सब गधों का लीडर था । उस पर दो रचनाएं लिखी जा चुकी हैं मुझे खेद है अभी तक मुझे चौकीदारों की बात पर लिखने की बात कैसे ध्यान में नहीं आई जबकि चार साल से चौकीदार का युग ही जारी है । इस देश में सब से अच्छा काम केवल और केवल चौकीदारी है । अबकी बारी उनकी बारी है ।

      देश के चौकीदारों का भी एक संगठन है मुझे पता नहीं था जब तक टीवी चैनल पर हाथ में लाठी और टोर्च लिये चौकीदार की फोटो वाले बैनर उठाये लोगों को अपनी उचित मांगे मनवाने दिल्ली जाने की खबर सुनी और देखी नहीं थी । आप क्या चाहते हैं पूछने पर जवाब देते हैं बराबरी का वेतन और अधिकार । हर चौकीदार को संविधान समानता का हक देता है । अब चौकीदार कोई भी कहीं का भी हो , गांव का हो चाहे शहर का या बेशक आधुनिक आवासीय सोसाइटी का हो , किसी दुकान का हो या कंपनी की मिल का । कुछ भी और नहीं चाहते केवल बराबरी की बात कहते हैं । एंकर नहीं समझा माजरा क्या है । कहने लगा आपको अपने अपने मालिक से बात करनी चाहिए । चौकीदार बोले बड़े नासमझ हो मालिक कौन होते हैं हमारा वेतन सुविधा और क्या करना क्या नहीं करना तय करने वाले । देश का चौकीदार जो है उसने कब जनता से इजाज़त ली किसी बात की । क्या शान से रहता है कितने देशों में घूमता फिरता है संसद या पीएमओ दफ्तर कितनी बार गया कोई पूछता है । क्या वादा किया था जब बना था देश का चौकीदार निभाया कब है । वही चौकिदार बताएगा उसका वेतन क्या हो हमारा भी उतना ही होना चाहिए । हम धन्यवाद करना चाहते हैं कि किसी ने तो हमारे काम को महान कार्य समझा , मगर इक ज़रा सी शिकायत भी है कि हमारे नाम को बदनाम भी किया और सागर की गहराई में डुबोया भी है जो हमें कदापि मंज़ूर नहीं । चौकीदार को झूठ नहीं बताना चाहिए और ये कैसा चौकीदार है जिसका संसद में दिया भाषण भी संसदीय करवाई से निकालने की नौबत आ गई ।

         जैसे संगीत कला कारोबार वकील डॉक्टर अध्यापक अभिनेता तक खानदानी लोग होने का दम भरते हैं , उसी तरह से हमारा चौकीदारी का खानदान भी ऊंचा समझा जाता है । चुपके-चुपके फिल्म का नायक खुद शिक्षित है घास फूस का डॉक्टर भी है मगर नायिका को भाता है चौकीदार भेस का धर्मेंदर ही । नकली ही सही उसने चौकीदार बनकर चोरी करने वालों को भगाया तो नहीं । चौकीदार बनना है तो ईमानदारी पहली शर्त है , सच बोलना पड़ता है भले चोर कोई भी हो । अपने ही घर में चोरी करने वाले लोग बदनाम चौकीदार को किया करते हैं । कोई चौकीदार ही चौकीदार की कठिनाई समझ सकता है । ये कैसा चौकीदार है जो रात भर गहरी नींद में सोया रहता है और चार साल बाद जगता है तो घर का सभी सामान चोरी हो चुका है । ऐसे चौकीदार को कौन सज़ा दे जिसका थानेदार अपना हो वकील अपना हो अदालत खुद की और न्यायधीश भी वही हो ।

        इस 15 अगस्त पर चौकीदार को युवा वर्ग को रोज़गार हासिल करने को अपना आज़माया नुस्खा बताना चाहिए । सब को पकोड़े बनाने नहीं आते चाय भी सब उन जैसी नहीं बनाते मगर उनकी डिगरियों से बेहतर शिक्षा बहुत युवकों ने पाई है उन्हें चौकीदार बनने से कोई परहेज़ नहीं है । दुनिया देख कर स्तब्ध है जिस देश में चौकीदार की ऐसी निराली शान है उसके मालिक कितने दौलमंद हैं । कोई नहीं यकीन करेगा भारत में गरीबी है भूख है या लोग बेइलाज मरते हैं और शिक्षा भी इतनी महंगी है कि पढ़ने जाना मुमकिन नहीं ।

            तू इधर उधर की न बात कर , ये बता कि काफिला क्यों लुटा ,

                हमें रहजनों से गर्ज़ नहीं , तेरी रहबरी का सवाल है।

       दिल का खिलौना हाय टूट गया , कोई लुटेरा आके लूट गया ।  चौकीदार जागते रहो कहने की जगह सोते रहो समझाता रहा ताकि चोर चोरी कर सकें । बात मौसेरे भाइयों तक आ ही गई है । ये राफेल विमान की खरीदारी है या चौकीदार की बटमारी है । चौकीदार रखवाली करने को होते हैं इधर खरीदारी करते करते बिकवाली करने लग गए हैं । चौकीदार मालिक बन बैठे मालिक को भिखारी बना दो किलो चावल एक किलो दाल की भीख देने का ऐलान करते हैं ।  
  
 
 

              18       खज़ाना मिल गया ( व्यंग्य ) 

     आज ही का दिन था जब खुदाई शुरू की थी कुबेर का खज़ाना दबा हुआ है काले बक्से में इसका शोर बहुत था । सबको कहा था उसने पचास दिन लगेंगे खुदाई में बस उसके बाद इतना बड़ा खज़ाना हाथ आएगा कि सब को सभी कुछ मिल जाएगा और बुरे दिन इक सपना बनकर रह जाएंगे , अच्छे दिन जब आएंगे । मौज उड़ाएंगे झूमेंगे गाएंगे जाम से जाम टकराएंगे । खाज़ना किस जगह है कोई नहीं जनता था शक था विदेश में अधिकांश धन गढ़ा हुआ है पर खुदाई देश से करनी थी और घर घर से करनी थी । किसी न किसी घर से कोई न कोई सुरंग जाती होगी स्विस बैंक तक और वापस उधर से देश के किस बैंक तक आती है पता लगाना ज़रूरी था । खुदाई हुई खज़ाना कितना मिला अभी तक हिसाब ही नहीं लगाया जा सका है मगर है ज़रूर खज़ाना । खुदाई करने वालों को पता है मगर खज़ाना मिलते ही खुदाई करने वालों की नीयत खराब हो जाती है । सब आपस में हिस्सा बांट लेते हैं और खज़ाना मिलने की बात खुदाई की जगह ही दफ़्न कर दी जाती है । लोग समझते हैं किसी की सनक थी कोई खज़ाना नहीं मिला बेकार खुदाई से बर्बादी की गई । मगर उनकी मर्ज़ी है सच्चाई बताएं या छुपाएं । खज़ाना उनका चौकीदार खुद सरकार है । आज भी रात आठ बजते सबकी धड़कन बढ़ जाएगी सोच कर । अली बाबा चालीस चोर बनानी थी मगर बना दी ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान और आज ही रिलीज़ कर दी है । सीने में ऐसी बात मैं दबा के चली आई , खुल जाए वही राज़ तो दुहाई है दुहाई । राज़ की बात पता चली है सरकार की तिजोरी खाली हो चुकी है और अब इरादा रिज़र्व बैंक में सेंध लगाने का है ।
     कुबेर जी ऊपर बैठे भगवान से विचार विमर्श कर रहे हैं । देवी लक्ष्मी जी इस बार भारत की धरती पर दीपावली की रात गईं तो साथ धन नहीं लेकर गईं इस डर से कि कहीं चौकीदार का आयकर विभाग हिसाब पूछने लगा तो बांटने से पहले ही ज़ब्त कर अपना खज़ाना भर लेगा । ऊपर से ज़हरीली हवा और शोर के साथ नकली रौशनी की चकाचौंध में भटकने का भी खतरा था । ऐसे में अमीरों के महलों की रौशनियों में गरीबों की अंधेरी बस्तियां अपनी तरफ देखने को विवश करती हैं । भगवान हैरान है उसके नाम पर इतनी बर्बादी धन की कैसे की जा रही है जब देश की आधी आबादी बदहाली में रहती है । अधर्म है आडंबरों पर देश का धन लुटाना या भगवान के नाम की आड़ में राजनीति की रोटियां सेंकना । देखो ऐ दीवानों तुम ये काम न करो , राम का नाम बदनाम न करो । ऐसे में नारद जी भी चिंता बढ़ा गये हैं ये जानकारी देकर कि किसी ने सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप्प पर करोड़ों को पैसे देकर गुणगान को रख रखा है और हर महीना नकद राशि लेकर भक्ति हो रही है । भगवान का अपना एक भी अकाउंट किसी साईट पर नहीं है । नकली भगवान भरे पड़े हैं जिनकी गिनती ही नहीं ।
 
                 टीवी चैनल वालों के भी अपने अपने भगवान हैं जो झूठे विज्ञापन करते हैं कमाई करने को मगर अख़बार टीवी वालों की आमदनी विज्ञापनों से ही होती है इसलिए उनके भगवान वही हैं । महात्मा जूदेव की बात भूली नहीं है उन्होंने सालों पहले घोषित किया था स्टिंग ऑपरेशन में कि पैसा खुदा तो नहीं मगर खुदा की कसम खुदा से कम भी नहीं । खज़ाने की बात उनसे बेहतर भला कौन जानता  होगा मगर अब सरकार उनके दल की है पर उनका कोई अता पता ही नहीं है । भगवान को अभी कोई ये नहीं बता सकता कि इधर भारत देश में लोग भगवान से कई गुणा अधिक नाम किसी नेता का लेते हैं । भगवान को भी लोग लालच की खातिर रटते हैं या डर से और उस नेता को भी इसी तरह लालच या डर से लोग नाम लेते हैं । खुश है वो भी दहशत ही सही डंका बजना चाहिए । खज़ाने का क्या हुआ इस पर सभी चुप हैं सरकार खुदाई को बेकार नहीं मानती और लोगों को अभी भी बुरे दिनों से कोई राहत मिली नहीं है । घोटालों की पुरानी बात है हुए मगर साबित नहीं हुए और चोर चोर का शोर आज भी जारी है मगर पकड़ा नहीं जाता कोई भी चोर । चोर दिन दहाड़े लूट लेते हैं साधु बनकर । राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट , ये लो फिर नारद जी चले आये हैं गाते हुए । नारद जी को कौन समझाए सभी अपनी खैर मनाते हैं ।

        खुदाई में खज़ाना मिला या नहीं मगर कोई नक़्शा हाथ लगा है जिस पर शोध किया जाना है । ऐसे ज़मीन में दबे गढ़े नक़्शे मिलने पर पाने वाले नाचने झूमने लगते हैं उनको जैसे स्वर्ग जाने का ही नहीं स्वर्ग का शासन हासिल करने का तरीका नक़्शे पर खुदा हो । खुदाई वाले नक़्शे को समझते रह गए और कोई ठग उनके चले जाने की राह देखता रहा ताकि उनके जाने के बाद छुपे खज़ाने को बाहर निकाल उस पर अपना क़ब्ज़ा जमा ले । खज़ाना हाथ नहीं आया खज़ाने का राज़ समझ आ गया है । 
 
 
 

                     19       क़यामत आ रही है ( तरकश ) 

      आखिर उसको आना ही पड़ा , साल पहले देश में चुनाव से पहले दहशत का माहौल बना हुआ था टीवी मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप्प सभी पर लगता था 2019 चुनाव नहीं कोई क़यामत आने वाली है । और उस क़यामत से बचने का उपाय बस वही केवल एक वही है जिसके लिए सब मुमकिन है । मगर अब साल बाद वास्तव में क़यामत सामने है तो जो कुछ भी कर सकता है समझते थे वो कुछ भी करना क्या समझ भी नहीं पा रहा है । कयामत आने वाली है जैसे ऐसा शोर है जैसे देश में पहले कभी चुनाव ही नहीं हुए हों । मगर ये शोर मचा वो रहे हैं जिनके लब सिले हुए हैं आंखों पर स्वार्थ की काली पट्टी बंधी हुई है । कहते हैं उनके पास कभी सच बोलने वाली ज़ुबान भी हुआ करती थी और समाज की बात समझने समझाने को ज़मीर नाम का भी कुछ हुआ करता था । विज्ञापन और कारोबार व ताकत हासिल करने को ये दोनों चीज़ें गिरवी रख दी सरकार नेताओं उद्योगपतियों धर्म का धंधा करने वालों और मनोरंजन के नाम पर देश की जनता और दर्शकों को गुमराह करने वालों की टकसालों पर । अब उन सभी का झूठ ऊंचे दाम पर बेचते हैं और मालामाल हो रहे हैं चोर भी और रखवाले भी । चौकीदार शब्द का उपयोग नहीं किया क्योंकि इधर उसका पेटेंट किसी के नाम किया जा चुका है जो वास्तव में चौकीदार है नहीं बनना चाहता भी नहीं था मगर कहलाना चाहता था । अख़बार कभी जागरूकता लाने और देश समाज को आईना दिखाने को निकाला करते थे और पत्रकार खुद को चौकीदार ही मानते थे और जो चोरी घोटाला करता उसका पता लगाना और देश की जनता को सूचना देना अपना फ़र्ज़ समझते थे । आजकल ये खुद को सबसे ऊपर समझते हैं और अपने लिए कोई बंधन कोई नियम नहीं मानते है । इनको भरोसा है या वहम है कि यही सब जानते हैं और कुछ भी कर सकते हैं । रात को दिन दिन को रात बना सकते हैं इनका दावा है । कभी नियम था कि किसी मकसद या स्वार्थ के लिए खबर छापना या छुपाना पीत पत्रकारिता होता है और इक गुनाह है । मगर आज फेक न्यूज़ या इस तरह से तमाम बहस कहानियां बनाकर झूठ को सच बताना इन्हें अनुचित नहीं लगता है । पीलिया रोगी बन चुके हैं और सही गलत की बात छोड़ इक अंधी दौड़ में भाग रहे हैं । आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास ।

           लोग हर किसी को जो कोई कहता है नाम दे देते हैं , मैं शरीफ आदमी हूं जो कहता है उसको शराफत का तमगा दे देते हैं , जबकि शरीफ समझा जाना अर्थात बिना अपराध गुनाह मानने वाला और सज़ा कबूल करने वाला आदमी । ठीक जैसे घर में अधिकतर पति शरीफ होते हैं मगर बाहर निकलते ही शराफत छोड़ बदमाशी करना चाहते हैं । मगर बदमाशी करना सब के बस की बात नहीं होती है इसलिए ज़्यादातर शरीफ चाहकर भी शराफत का लबादा उतार नहीं पाते हैं । अब बात चुनाव की कयामत की । ये अफवाह जाने कब से उड़ चुकी है कि अख़बार टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर ज्ञान बघारने वाले बेकार लोग और कुछ राजनीतिक दलों के भाड़े पर लगाए लोग जिसे चाहे चुनाव जितवा सकते हैं । हर दल की नज़र इसी पर है इनको खुश करने से जीत हासिल हो जाएगी मानते हैं । कहने को सभी कहते हैं देश की जनता समझदार है मगर समझते हैं जनता नासमझ बच्चा है जो उनकी समझाई किताब पढ़कर उस पर अमल करेगा । वास्तविकता सब जानते हैं कि हमेशा देश की जनता ने समझदारी का परिचय दिया है । इनको लगता है जो हम लिखेंगे जो भी हम दिखाएंगे लोग उसी को सच मानेंगे । लोग यही मानेंगे कि देश की वास्तविक समस्याएं वो हैं जो मीडिया बताता है और जो खुद जनता की समस्याएं हैं वो कोई समस्या हैं ही नहीं । और लोग अन्याय अत्याचार भेदभाव  शिक्षा रोज़गार स्वास्थ्य की चिंता छोड़ धर्म और मूर्तियों तथा राजनीतिक दलों की सत्ता की चाहत को साम दाम दंड भेद भाव की अनीति को उचित समझ अपना मत देंगे । सभी दल सब नेता टीवी चैनल अख़बार चुनाव को ऐसे देख रहे हैं जैसे कोई कयामत आने वाली है । इन को और कोई चिंता ही नहीं है , कुवें के मेंढक को लगता है उसका समंदर विशाल है । जो लोग आज़ादी चाहिए रौशनी चाहिए का शोर मचाते हैं कैफ़ी आज़मी की कविता की तरह उनको केवल सत्ता की चाहत है और चुनाव संपन्न होते ही वापस अंधे कुंवे में कूद जाते हैं फिर से नारे लगाने को ।
 
                  इस देश की जनता की आदत आज भी सदियों पुरानी हैं चुप रहती है सब समझती है मगर बोलती नहीं है मगर सही समय पर अच्छे अच्छों को असली औकात दिखला देती है । किताबी ज्ञान वालों को ये समझना आसान नहीं है कि बड़े बूढ़े और तजुर्बे से बहुत सबक लोग सीखते हैं और जीवन के अनुभव से बढ़कर कोई स्कूल कोई कॉलेज कोई विश्वविद्यालय ज्ञान नहीं दे सकता है । बंद कमरों में बैठ कर देश को समझना संभव नहीं है । शायद कोई ये विचार नहीं करता है कि ये कितनी बड़ी मूर्खता है कि पहले इसकी चर्चा करना कि कौन किसे वोट देगा कौन जीतेगा कौन हारेगा और उसके बाद क्यों कोई जीता कोई हारा की बात की चर्चा करना । कभी पढ़ना यही काम सब से अधिक मूर्खता वाला बताया गया है तमाम महान ऐसे लोगों द्वारा जिन्होंने इसकी चिंता नहीं की और वास्तविक कार्य किया । गांधी भगत सिंह सुभाष जैसे लोग अगर इन बातों की चर्चा में उलझे रहते या नानक बुद्ध केवल यही करते अथवा अब्दुल कलाम ऐसी बहस में लगे रहते तो कुछ भी हुआ नहीं होता । विडंबना की बात है गीता की बात करने वाले कभी समझ नहीं पाए कि जंग लड़ क्यों रहे हैं और जीत हार से अधिक महत्व किस बात का है । समझदार लोग खामोश रहते हैं और दो कौड़ी के लोग शोर मचाकर अपनी बोली लगवा रहे होते हैं । देश की अधिकांश जनता खामोश रहती है और आज भी चुप है समय पर निर्णय देने को मगर ये राजनेता और मीडिया वाले कुछ तथाकथित जानकर विशेषज्ञ कहलाने वाले लोगों के साथ शोर मचाए हुए हैं कि कयामत आने वाली है । हम शरीफ लोगों की शराफत को कमज़ोरी या नासमझी नहीं समझो जिस दिन ये दबे कुचले लोग बोलने लगे आप सभी खुद को सब जानने वाले समझने वाले दंग रह जाओगे मगर घबराना नहीं कोई आफत कोई कयामत नहीं आएगी ।

           शायद आज भी बहुत लोगों को याद होगा कि देश में चुनाव कभी नफरत और बदले की भावना से नहीं विचारों की विभिन्नता को लेकर लड़े जाते थे और जनता को इक पर्व की तरह उत्साह होता था । राजनीतिक दलों की सत्ता की भूख के कारण अपराधी और धनवान और सरकार का दुरूपयोग करने वाले लोग देश को बर्बाद करने में सफल होते होते सरकार पर वर्चस्व स्थपित कर सके हैं । आज कोई भी दल देश और समाज की भलाई नहीं चाहता ये सब उस गंदे पानी के तालाब की तरह हैं जिस में जितना साफ पानी बाहर से मिलाओ उस को भी गंदा कर देते हैं । सवाल इस गंदी राजनीति के पूरे पानी को बदलने का है । शायद कुछ कमी है जो हम किसी न किसी को मसीहा समझ उसकी बंदगी करने लगते हैं जो वास्तव में गुलामी की निशानी है । भारत हो या कोई भी देश कोई भी राजनेता देवता नहीं होता है और जनता जो उनको चुनती है उसे सर झुकाने की आदत छोड़ अपने अधिकार मांगने  और उनको कर्तव्य निभाने की बात करनी होगी । जो भी नेता कहता हो उसने आपको कुछ भी दिया है उसको कहना होगा कि आपने दिया नहीं है हमारा है हमें मिलना चाहिए था । किसी भी अधिकारी से बात करते हुए सर जी कहना इस देश के पत्रकार और बुद्धीजीवी ही किया करते है अन्य किसी देश में नहीं होता है ऐसा । वास्तविक मालिक देश की जनता है और शासन करने वालों की अकर्मण्यता का सबूत है कि खुद सुख सुविधा से रहते हैं मगर जनता को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवा सके आज तक । दो शेर आखिर में अपनी ग़ज़ल के अलग अलग । 

बोलने जब लगे पामाल लोग , 

कुछ नहीं कर सके वाचाल लोग। 

अनमोल रख कर नाम खुद बिकने चले बाज़ार में ,

देखो हमारे दौर की कैसी कहावत बन गई। 

 
 
 

            20         काला धन मिल गया है ( हास-परिहास ) 

       सही समय पर उसका पता चल गया है । जाने क्यों तमाम लोग चिंतित थे कि वो कहां गायब हो गया । किसी ने पिछले चुनाव के समय उसको खोज कर लाने का वादा किया था । तब समझा जा रहा था किसी और देश में जाकर छुप गया है । तमाम दुनिया को छान मारा फिर भी मिल नहीं सका था और लोग सवाल करने लगे थे इस बार चुनाव में कैसे जवाब देंगे जनाब । मगर मिला भी तो उस जगह जहां सब जानते थे फिर भी किसी को ख्याल ही नहीं आया कि उसका असली ठिकाना तो राजनीतिक दल ही हैं उनसे अधिक काला धन किसी और के पास होना संभव ही नहीं है । चिंता होने लगी थी चुनावी जंग बिना वास्तविक हथियार कैसे लड़ेंगे सभी दल वाले । हिसाब लगाया जा रहा है काला धन पहले किस दल की तिजोरी में अधिक था और अब किस दल के खज़ाने में ज़्यादा है । काले धन का धन्यवाद जो जब उसकी सबसे अधिक ज़रूरत थी खुद ही सामने चला आया है । देखा तो पूछना ही पड़ा कहां खो गया था भाई लोग जाने क्या क्या वहम करने लगे थे कि शायद तुम खत्म ही हो गये हो । हंस दिया काला धन , कहने लगा मुझे पता था ढूंढने वाले सभी लोग हर घर की तलाशी लेंगे मगर खुद अपने घर की कोई तलाशी नहीं लेगा । दल कोई भी हो और कितना भी विरोध आपस में भले हो भाईचारा कायम रखना सबको महत्वपूर्ण लगता है । कोई भी दल सत्ता में हो किसी भी दल को काले धन को लेकर कोई चिंता नहीं रहती है । आम जनता के माथे पर काला धन दाग़ की तरह होता है मगर राजनेताओं के चेहरे पर काले टीके जैसा नज़र लगने से बचाने को लगा प्यार की निशानी जैसा ।
  जिनको भी काला धन मिलने पर हिस्सा पाने की ललक रही उनको भरोसा रखना होगा बस कुछ दिन बाकी हैं । चुनाव आयोग अदालत जांच करने वाले सब ख़ामोशी से काले धन को फिर से नाचता खेलता और सब को नचवाता नज़र आएगा चुनावी जंग उसी से लड़ी जीती हारी जाएगी । कोई भी जीते कोई भी हारे इक यही काला धन है जो विजयी रहेगा और जिसकी जयजयकार हमेशा की तरह होगी ही । काला धन गुनगुना रहा है हम काले हैं तो क्या हुआ दल वाले हैं हम इस दल उस दल दल दल वाले हैं । काला धन सीना चौड़ा कर छाती ठोक खुले आम कह रहा है कोई है माई का लाल जो बिना उसके चुनाव लड़ भी सकता है । ये सभी नेता तो अपने हाथ की उंगलियों पर नाचने वाली कठपुतलियां हैं असली जीत हमेशा मुझ काले धन की हुई है और होती रहेगी । मेरी सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है सरकारी अधिकारी से लेकर जाने माने तमाम लोग मेरे चाहने वाले हैं उनके घर दफ्तर मेरा बसेरा है । कोई लाख कोशिश कर ले काला रंग पक्का होता है जिस पर चढ़ता है उतरता नहीं है । राजनीति काजल की कोठरी है उस में कालिख लगती सभी को है मगर अपनी कालिख को दाग़ कोई नहीं मानता है सब उसको तिलक समझते हैं ।
 
            हमने काला धन की बात जाकर टीवी चैनल वाले और अख़बार वाले को बताई और कहा आपको यकीन नहीं तो चलो मिलवा देते हैं । अचानक वही अट्टहास फिर सुनाई दिया और देखा जनाब वहां भी चले आये हैं , क्या साक्षात्कार देने को बुलाया है कह दिया । बोला हर दल जो भी विज्ञापन देता है मेरी बदौलत ही तो है मगर यहां आकर काला सफ़ेद का भेद बाकी नहीं रहता है रंगीन होते ही सभी रंग मिलने से चमक बढ़ जाती है । मीडिया वालों के पास काला धन होने की बात कोई नहीं कर सकता है क्योंकि फिर सुनाई कैसे देगी उसकी आवाज़ । मीडिया के शोर में बाकी सभी की आवाज़ दब जाती है मार दी जाती है कुचल दी जाती है । जिस देश में हर धार्मिक स्थल दो नंबर के पैसे से दान लेकर या फिर किसी भी ढंग से ज़मीन मुफ्त में या नाम भर की सस्ती कीमत चुकाकर बनते हों उस जगह कोई खुदा कोई भगवान कोई देवी देवता चढ़ावे को काले सफ़ेद धन का होने की चिंता करता होगा । भूल गये नानक को खाने को रोटी किसी भी अमीर के घर से नहीं मिली थी और उन सभी को निचोड़ा तो खून निकला था दूध निकला था इक गरीब मज़दूर की घर की रोटी से ही । अब कोई नानक कोई कबीर जैसा संत है जो सब को खरी खरी सुनाता है । लिखने वाले तक भी आधा अधूरा सच लिखते हैं और इस तरह कि जब मर्ज़ी उसका अर्थ बदल कर समझा सकें । काला धन मिल भी गया है और अब उसका हौसला भी पहले से कई गुणा अधिक बढ़ा हुआ है । देखना आपके आस पास भी होगा खड़ा हुआ मस्ती में झूमता गाता शान से कदम रखता हुआ ।

      काला धन वास्तव में काला कलूटा नहीं दिखाई देता है बस उसको किसी की नज़र नहीं लगे तभी नाम रख दिया है काला लगता बहुत प्यारा है श्याम सलोना है । काला धन पाकर कुछ नहीं खोना है गोरेपन का बेकार का रोना धोना है काला धन कोई जादू है कोई टोना है आपके पास सुरक्षित खरा सोना है । सच है काला धन बड़े काम आता है इंसान का घर नहीं बनता भगवान का मंदिर बन जाता है । सत्ता वालों का जितना फैला आसमान है किस्मत बलवान है गधा पहलवान है हुआ पूरा उनका हर इक अरमान है नहीं समझ सका इक वही नादान है काले धन से सारी शान है आखिर पैसा ही उनका भगवान है । सुनो साधो काले धन की कहानी है दूध कितना मिला कितना पानी लगे देखने याद आएगी नानी । सुनाई उसी ने अपनी कहानी कदर उसकी जिस किसी ने है जानी शराबी बोतल नशा झूमते लोग बहता हुआ खून बदलते रंग कितने लब्ज़ों के बदले हैं मानी । सिंहासन बनाया है सोने चांदी से है काले धन की सब मेहरबानी हर मुश्किल की है बड़ी आसानी । बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन , सूखा मचा रही है ये बारिश तो देखिए । दुष्यंत कुमार कहते हैं मगर कमर जलालवी फ़रमाते हैं , रहा बरसात में ऐ शैख़ मैं सूखा न तू सूखा , यहां तो जिस कदर बारिश
हुई उतना लहू सूखा । ये काले धन की झमझम बारिश उन पर हुई जिनके आलीशान दफ़्तर और महल जैसे घर बन गए गरीबों का लहू बहता रहा सूखता रहा है सत्ता के गलियारों में । खबर नहीं छपती है सच की झूठे सब अखबारों में आंसू आहें खो जाती हैं महफ़िल की झंकारों में । 
 
  
 
 

            21         बिक रहा है आतंकवाद ( व्यंग्य ) 

  आजकल आतंकवाद का मौसम है । अख़बार टीवी चैनल से सोशल मीडिया तक सब जगह आतंकवाद की धूम मची हुई है । कभी अमेरिका और लादेन को लेकर अफ़ग़ानिस्तान पर हमले की बात होती थी आजकल कितने नाम सामने आते जाते रहते हैं पलक झपकते ही कहीं गुम भी हो जाते हैं । विश्व में शांति की बात करने वाले तमाम देश हथियारों के सौदागर भी हैं उनकी अर्थव्यवस्था निर्भर है जंग पर । उन से हथियार कोई भी खरीदे उनको सामान बेचना है और मौत का सामान सस्ता महंगा नहीं देखा जाता जिनको मौत का खेल खेलना है हर मोल देने को तैयार हैं । टीवी अख़बार वाले नई स्टोरी नया शीर्षक ढूंढते रहते हैं हम हादसे की जगह से सीधा दिखा रहे हैं सबसे पहले और सच्ची तस्वीरें । पर्दे के पीछे इस सब की भी कीमत ली जाती है चुकाई जाती है । हम शोर मचाते रहते हैं आतंकवाद पीड़ित हैं सभी देश हमारे साथ खड़े हो जाओ मगर हर देश को हर घटना अपनी सुविधा से आतंकवादी लगती है अथवा कुछ और लगती है । राजनेताओं को आतंकवादी घटना खुद को देशभक्त बताने का अवसर लगती है ।
 
         कोई घर पर पत्नी के आतंकवाद की बात करता है तो कोई लिखने वाला इस विषय पर दो अलग अलग लेख लिखता है और दो जगह भेजता है दोनों जगह छपती है रचना और मानदेय मिलता है । लिखने वालों को हर बात विषय नज़र आती है और टीवी चैनल पर कई लोग विशेषज्ञ बनकर चर्चा करते हैं तभी उनका गुज़र बसर होता है । स्कूल का संचालक बच्चों की उदंडता से परेशान है अध्यापक से अनुशासन की बात कहता है , अध्यापक बच्चों की मां से शिकायत करते हैं आपका बच्चा पढ़ाई पर नहीं लड़ाई पर ध्यान देता है । पत्नी अपने पति से गिला करती है अपने बिगाड़ा हुआ है बच्चों को , तंग आ चुकी हूं इनकी शरारतों से । कब किस ने क्या तोड़ फोड़ दिया पता नहीं चलता है , पिता बच्चों को धमकाते हैं सुधर जाओ वर्ना अध्यापक से शिकायत कर देंगे । सुनकर बच्चे मन ही मन मुस्कुराते हैं आतंक की बात हास्य की सिथ्ति बन गई है । देश में भी सरकार विपक्ष बाकी लोग गेंद दूसरे के पाले में डालते हैं सरकार पड़ोसी देश पर आरोप लगाती है । खुद अपनी गलती किसी को समझ नहीं आती है । मामला समझ से परे है दो गायक एक सुर में गा रहे हैं , बात रोने की लगे फिर भी हंसा जाता है , यूं भी हालात से समझौता किया जाता है ।
 
                 अब उनकी याद बाकी है कभी व्यंग्य में सबसे बड़ा नाम था उनका । पत्नी पर व्यंग्य लिख लिख कर खूब पैसा कमाया था उन्होंने । ओसामा बिन लादेन पर लिखते हुए अपने घर पर बंब डालने का न्यौता तक देने की बात की थी अपनी पत्नी को सबसे खतरनाक आंतकवादी कह डाला था । पत्नी पर हास परिहास चुटकुले पहले भी कम नहीं थे मगर ये तो हद पार करना हो गया था । मामला हत्या का और धारा 307 का बनता था कत्ल की योजना खुद बनाते हैं और कविता में किसी महबूबा की कातिल अदा की बात कर तालियां बटोरते हैं । व्यंग्यकार की पत्नी होना कितना दुश्वार है कोई मेरी पत्नी से पूछे कभी , मगर हाय री नारी अपने पति की इस खराबी की बात नहीं करती जबकि थाने में रपट लिखवाना बनता है महिला को मानसिक परेशानी देना अपराध है । कब तक अबला की सहनशीलता का इम्तिहान लिया जाता रहेगा , वास्तव में पत्नी का आतंक होता तो क्या भरी सभा में ये बार बार कहने का साहस करते । ऐसे लिखने वाले उन पतियों के दर्द से वाक़िफ़ नहीं हैं जो पत्नी की तानशाही की बात ज़ुबान पर लाने का सपना भी नहीं देख सकते । ऐसे व्यंग्य पढ़कर उनके ज़ख्म फिर से हरे हो जाते हैं । ज़ख्मों पर नमक छिड़कना व्यंग्य वालों को खूब आता है । दर्द में हास्य ऐसे ही नहीं पैदा होता है । अमेरिका बाकी देशों में आतंकी खेल खेलता रहा था , इसकी शुरुआत उसी की की हुई है जब खुद उसी के सीने में दर्द उठा तब कराह उठा और आजकल सभी देश उसी से मसीहाई की गुहार लगाते हैं । तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना ।
 
                 आंतकवाद के सामने घुटने टेकने का काम किस ने नहीं किया और कौन है जिसने मानवता के कातिलों से बात करने और समझौता करने की वकालत नहीं की । बीच का कोई रास्ता सही नहीं होता है आतंकवाद को नामंज़ूर करना है तो उसके रंग की बात नहीं की जानी चाहिए । जिनकी राजनीति ही उन्माद फैला कर विध्वंस कर वोट पाने की रही हो उनको आतंकवाद भी देशभक्त होने का सबूत देकर सत्ता पाने की सीढ़ी लगता हो तो अचरज नहीं है । कोई संगठन भीड़ बनकर दंगे करता है तो क्या उस आतंक को अच्छा वाला आतंकवाद मान सकते हैं अपने अपने गिरेबान में झांकना होगा । नेताओं का भी आतंक है जो लोग सच बोलने से डरते हैं सत्ता और सरकारी विभाग खुद जो मर्ज़ी करते हैं मगर आम नागरिक पर नियम कानून का डंडा चलाते हैं आतंक पैदा कर रिश्वत या जुर्माना वसूल करने को उचित मानते हैं । ध्यान से देखना कोई बॉस अपने कर्मचारी के साथ मनचाहा काम लेने और उसकी महनत से कमाई करने के बाद भी नौकरी से निकालने का भय देकर मानसिक डर किसी आतंकी से बढ़कर देता है । आतंकवाद के चेहरे कई हैं जिन पर विस्तार से बात फिर कभी की जाएगी । 
 
   
 

               22         ईमानदार उम्मीदवार की खोज ( व्यंग्य ) 

     चिंताराम जी को चिंता का नामुराद रोग लगा ही रहता है । हर दिन किसी चिंता में डूबे रहते हैं और चिंतन करते रहते हैं । उनका नाम चिंताराम शहर वालों का दिया हुआ है । कभी शहर की बदहाली की कभी सफाई व्यवस्था की कभी शिक्षा की कभी स्वास्थ्य सेवाओं की खराब दशा की कभी पुलिस और अधिकारियों की कथनी और आचरण की तमाम तरह की मुसीबत उनके सर है । सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है । पिछले चुनाव में राजनीति के अपराधीकरण की चिंता में दुबले हुए फिरते थे और कितने दिन इसी जानकारी जुटाने का काम करते रहे कि किस किस नेता पर कितने मुकदमें चल रहे हैं । कितने हैं जिनके गुनाह गंभीर हैं मगर गवाही नहीं मिली तो साबित नहीं हुए और उन्होंने अपनी बेगुनाही और रिहाई का जश्न भी धूमधाम से मनाया और आलाकमान भी उनको क्लीन चिट देकर बहुत ख़ुश हुआ । सरदार खुश हुआ की तरह । जिस  दल को सत्ताधारी दाग़ी लगते रहे चुनाव के समय अपने दल में शामिल कर सारे दाग़ धो डाले तो समझ आया दाग़ अच्छे हैं । कुछ बेकार के बुद्धीजीवी टाइप लोग मिलकर इक संस्था बनाई और अपराधी घोषित नेताओं को जाकर मिल कर इक सभा में आने का बुलावा दे आये सवाल जवाब देने को । नेताओं ने समझाया कि अभी मामला अदालत में है इसलिए कुछ कहना उचित नहीं मगर आप इंतज़ार करें जल्दी ही पाक साफ़ होकर निकलने का भरोसा अदालत पर है । अदालत राजनेताओं को उनकी पसंद का न्याय देने में कभी संकोच नहीं करती जानते हैं चिंताराम जी भी । उसके बाद नेताओं के सहयोगी आये और चेतावनी दे गये इस पचड़े से दूर रहो अन्यथा नेताजी को क्या है इक मुकदमा और सही आपके ऊपर हमले का । पागल हैं फिर भी नहीं समझे और सभा की बात बीच में अटकी रही मगर अपनी धुन के पक्के हैं जो बात दिमाग में घुसी निकलती नहीं है । 

    अपनी समस्या को लेकर चले आये मेरे घर पर , चाय पीते पीते आह भर कर बोले चुपचाप बैठने से क्या होगा । आपको क्या समाज की चिंता नहीं होती है कलम घिसाने से ज़रूरी काम और भी हैं , थोड़ा परेशान लगे । हुआ क्या पूछा तो धमकी मिलने की बात बताई और अख़बार वाले दोस्त भी कन्नी काटने लगे हैं जिस से उनकी चिंता और बढ़ गई थी । हमने बिना कोई विचार किये कह दिया आप कोई और दूसरा तरीका क्यों नहीं अपनाते हैं । बदमाश नेताओं के साथ शराफत की बात करने जाने की जगह किसी शरीफ और ईमानदार नेता के पास जाते और उनको अपनी सभा में बुलाते तो पॉज़िटिव अप्रोच होती । यूं उनको किसी की बात जचती नहीं है मगर मेरी ये बात उनको उचित लगी और उन्होंने तलाश किये कुछ शरीफ और ईमानदार लोग राजनीति की गंदगी में रहते हुए भी बेदाग़ रहने वाले । जब उनको जाकर मिले तो पता चला उन में किसी को भी अपने दल ने टिकट देकर खड़ा किया ही नहीं था । इसके बवजूद भी कुछ उनकी सभा में इस विषय पर बात कहने से बचना चाहते थे इस डर से कि कहीं इसको आलाकमान बगावत नहीं समझ ले । असंतुष्ट भी बाग़ी कहलाने को राज़ी नहीं थे अनुशासनात्मक करवाई की जा सकती है । शरीफ आदमी नेता होकर भी डरपोक रहता है । 
     
  सवाल मुश्किल था क्योंकि चुनाव में खड़े हुए बिना लोग किसी को वोट दे ही नहीं सकते हैं । शरीफ लोग लड़ने से डरते हैं भले बात चुनाव लड़ने की ही हो । अब राजनीति का मतलब विचारों की मतभेद की बात नहीं रही सत्ता की जंग है जिस में जीतने को सब करना जायज़ है । शांति पूर्वक चुनाव लड़ना संभव ही नहीं है। लेकिन उनकी हिम्मत रंग लाई और उन्होंने इक ऐसा नेता खोज ही लिया जो बेदाग़ था ईमानदार और शरीफ होने के बाद भी एक दल ने जिसे टिकट देकर उम्मीदवार बनाया हुआ था । बहुत खुश होकर उनके पास गये चिंताराम जी और निवेदन किया कि बहुत अच्छी बात है जो आप जैसे लोग भी राजनीति में हैं । हमारी संस्था आपको सभा में लोगों से रूबरू करवा कर सम्मानित करना चाहती है । राजनीति के अपराधीकरण पर आपके साथ सवाल जवाब करना चाहती है । उनके सच्चे आश्वासन के बाद सभा की तैयारी में जुट गये । अचानक उनको ख्याल आया पहले उन्होंने जो जो सवाल बना रखे थे वो अपराधी नेताओं से पूछने थे , इस ईमानदार नेता  बुला लिया मगर उनसे सवाल क्या करेंगे ये सोचा ही नहीं । समस्या लेकर मेरे पास चले आये कि अपने सुझाव दिया था अब सवाल भी आप ही बनाओ । मैंने उनकी समस्या का समाधान किया और ये सवाल पूछने को लिखवा दिए । ईमानदार होकर राजनीति में कैसे बने हुए हैं बताओ । पार्टी से टिकट कैसे मिला इसका कोई राज़ है तो बताओ । ईमानदारी से नियम पर चलकर चुनाव जीत कैसे सकेंगे । चुनाव का खर्च कैसे संभव होगा । क्या जनता ने जितवा दिया तो कोई पद मिलने की उम्मीद है और बिना मंत्री बने जनता को किये आश्वासन पूरे कर सकेंगे । जब ये सब सवाल उनको पहले लिखकर देने गए तो उनका कहना था ईमानदारी की बात है मैं इन सवालों के जवाब नहीं दे सकूंगा अतः मुझे क्षमा करें । 
      
उनके घर से निराश होकर लौटते चिंताराम जी को इक उम्मीदवार खुद मिल गए । और कहा चिंताराम जी आपकी समस्या हम जानते हैं और हम जानते हैं आप कब से किसलिए भटकते फिरते हैं । वो ईमानदार नेता हमारी धमकी से डर गए हैं कि अगर आपकी सभा में गये तो उनके ऊपर ऐसा केस बनवा देंगे कि नानी याद आ जाएगी । आप बताओ ऐसे डरपोक क्या करेंगे ईमानदारी और शराफत का । आप हमें बुलाएं और अवसर दें , आपके सभी सवाल हम जानते हैं । कोई केस किसी थाने में दर्ज नहीं हमारे खिलाफ । किसी थानेदार की मज़ाल नहीं कोई रपट भी लिखने की हमारे विरुद्ध । चिन्तराम जी के तैयार सभी सवाल उनकी तेज़ आंधी में उड़ते चले गए और उन्होंने सभा बुलाने का इरादा छोड़ दिया है । आजकल की राजनीति का वाक्य है बेदाग़ ढूंढते रह जाओगे ।
 
   

                23    आदर्श आचार संहिता ( तरकश ) 

     मैं जनता की भलाई को ध्यान रखते हुए निर्वाचन आयोग से इक निवेदन इक विनती करना चाहता हूं । बस बहुत लागू कर के देख चुके अब आदर्श आचार संहिता को तुरंत वापस ले ले । न तो मुझे कोई चुनाव लड़ना है न ही राजनीति से कोई मतलब है मुझे फिर भी तमाम कारण हैं जिन पर विचार करने के बाद समझ आया है कि इस से जिनको मुश्किल होनी चाहिए ऐसा समझते हैं उनको नहीं वास्तव में बाकि जनता को मुश्किल होती है । सबसे पहली बात अपने चुनाव आचार संहिता बनाते समय आम जनता की कोई सलाह ली ही नहीं । जबकि इसका असर पड़ता जनता जनार्दन पर ही है । राजनैतिक दलों से मशवरा करने का क्या औचित्य है ये उस तरह की बात है जैसे खेल के नियम खिलाडियों से राय से बनाये जाएं । राजनीति का मतलब राजनेताओं से नहीं बाकी सभी लोगों से अधिक होता है क्या जनता बस खेल की तमाशाई है तालियां बजाने भर को । सब को मालूम है ऐसी किसी संहिता का पालन होता नहीं है और इसको मानकर चुनाव जीतना क्या लड़ना भी संभव नहीं है । जब शुरुआत पर्चा दाखिल करते समय ही बात झूठा शपथ पत्र देने से की जाती है तो आगे भगवान ही मालिक है । जनता पर इसका कितना खराब असर होता है इसकी व्याख्या करना ज़रूरी है तभी आयोग को भूलसुधार करने की बात समझाई जा सकती है ।

    इस देश में अधिकारी आदी हैं कोई काम बिना ऊपरी आदेश नहीं करने की आदत के । खुद ब खुद अगर उचित कार्य करने की रिवायत होती तो विनती करने को अर्ज़ी देने दफ्तर जाकर कतार में खड़े होने की नौबत नहीं आती । खुला दरबार लगाने की परंपरा का अर्थ भी शासक का दाता बनकर अनुकंपा करना है जबकि वास्तव में लोग जाते हैं उचित कार्य नहीं किये जाने की शिकायत लेकर । सत्ता को शिकायत सुनना पसंद नहीं है और अधिकारी अगर रिश्वत लेने का लालच नहीं हो तो कोई काम करने की ज़हमत उठाते ही तभी हैं जब कोई सत्ताधारी दल का नेता सिफारिश करता है । चुनाव से पहले इस सब को रोकने से क्या मतलब यही है कि आपको बाकी पांच साल तक उचित काम भी मनमानी पूर्वक करने की खुली छूट मिली हुई है । जैसे उपवास के दिन खाने पीने पर कोई रोक या ऐतिहात की बात हो । नेता अपने ख़ास लोगों और धनवान चंदा देने वालों के सभी काम हमेशा करने को तत्पर रहते हैं यही अकेला अवसर जनता के लिए था वोट मांगने आने वाले नेताओं से अपने काम करवाने की बात करने का उसे भी आयोग ने छीन लिया । नेताओं की मंशा कभी नागरिक के उचित काम बिना फायदा उठाये करने की होती नहीं है इस तरह उनको बहाना मिल गया है नहीं करने का ।

     चुनाव होने के बाद नेताओं को सरकार बनाने गिराने से अधिक महत्व किसी बात का नहीं होता है । आम नागरिक से मिलने को फुर्सत नहीं होती न ही मिलना चाहते हैं । आम जनता से मुलाक़ात कभी संभव हो तब भी टरकाने को सौ ढंग हैं अर्ज़ी ले लेना विभाग को आगे भेजने की बात कहना या फिर दिखावे को भेज भी देते हैं लेकिन वास्तव में काम किस का करना है हिदायत देने पर ही होता है वर्ना अर्ज़ियां रद्दी की टोकरी में चली जाती हैं । आम जनता के लिए हिदायत चुनाव के वक़्त दी जाती थी उसी को बंद करवा दिया आपने । क्या संविधान उचित काम चुनाव के दिन नहीं करने को कहता है , नेताओं को सिफारिश से रोकना है तो हमेशा को बंद करना चाहिए । सब जानते हैं नेताओं की सिफारिश बिना काम जायज़ ढंग से होते ही नहीं ये कुछ दिन की पाबंदी नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज पर जाने की चुटकुले जैसी बात है ।

   दूसरा नियम चुनवों में खर्च पर सीमा को लेकर है हर बार जो हमुमान जी की पूंछ की तरह बढ़ता जाता है । सीमा में खर्च का शपथ देना कोई चुनावी उपहास जैसा है । पांच साल नेता हज़ार तरह से कल्याण राशि के नाम पर कोई और तरीका अपना कर देश के खज़ाने और जनता से चंदा रिश्वत किसी रूप में वसूल कर लूट का व्यवसाय करते हैं और पता चलता है उनके कुछ हज़ार करोड़ों बन चुके हैं ऐसा जादू का करिश्मा अन्य कोई नहीं जानता देश में । देश की संपत्ति का बड़ा हिस्सा इन पास है अगर इनको सीमा से कम नहीं बल्कि ऐसा नियम होता कि आपको दो करोड़ से अधिक खर्च करना लाज़मी है अन्यथा आपका चुनाव रद्द हो जाएगा तब जितना काला सफ़ेद धन इनकी तिजोरी में सड़ता है उसको हवा लगती और देश की अर्थव्यवस्था में इतना पैसा आने से कितने लोगों को थोड़ा हिस्सा मिल जाता । वैसे भी कोई शरीफ और ईमानदार आदमी चुनाव लड़ने की बात सोच भी नहीं सकता है ।  चुनाव  लड़ने जीतने को गुंडागर्दी बदमाशी अपराधी होना ज़रूरी शर्त जैसा है आधा सदन इनकी बदौलत है ।

          आखिर में सार की बात समझने को कई ढंग हो सकते हैं मगर कई बातें सुनने को अच्छी लगती हैं वास्तव में अच्छी साबित नहीं होती हैं । कितने राज्य शरब बंदी लागू करते हैं मगर शराब बिकनी बंद नहीं होती । शराब के दाम कई गुणा बढ़ जाते हैं और शराब माफिया घर घर बोतल पहुंचाता है । अभी कितने लाख करोड़ हर दल चुनाव पर खर्च करने को लिए बैठा है सब जानते हैं । उनको खर्च करना है जाने किस किस ढंग से कोई रास्ता तलाश कर के या फिर खर्च करने का नाम और तरीका बदल कर । आयोग आचार सहिंता की भूल को सुधार सकता है या बेशक इसका स्वादिष्ट अचार डाल कर सबको खाने खिलाने की बात कर मालामाल हो सकता है । जैसे हर सरकारी विभाग आयकर विभाग अकेले नहीं कई तरह से कुछ फीसदी जुर्माना या कर वसूल कर अनुंचित उचित का अंतर खत्म कर देता है । हर उम्मीदवार से खर्च का बीस तीस फीसदी लेकर छूट दे सकता है । मिल बांट कर खाना अच्छी बात है , न खुद खाऊंगा न किसी को खाने दूंगा का सच कौन नहीं जानता है आपको भी अभी की सी ए जी की रिपोर्ट को देख जान लिया होगा । सत्ता की भूख से बढ़कर कोई हवस नहीं दुनिया में । गागर में सागर भरने जैसे बात कही है थोड़े लिखे को बहुत समझना । 
  
  
 
 

                24        कलयुग की आत्मकथा ( व्यंग्य कहानी )

     शानदार वातानुकूलित मॉल के हॉल में स्वयं कलयुग सफ़ेद रंग का चोला धारण कर बाकायदा भीतर आने की महंगी टिकट खरीदने वालों को अपनी आत्मकथा सुना और दिखला रहे हैं । मान लिया गया है कि ये इस युग के भगवान हैं और इनकी अराधना आरती पूजा पाठ सब कुछ दे सकता है । पहले अध्याय में बात सत्ययुग की बताई थी फिर कैसे युग बदलता गया विस्तार से समझाया था । यहां सभी देवी देवता रहा करते थे धर्म भी इक गरीब की झौंपड़ी में रहा करता था उसका कोई अपना महल नहीं था मगर उसका ठिकाना हर दिल में हुआ करता था । माता पिता थोड़ा पढ़े लिखे होते थे मगर उनकी समझ ऊंची हुआ करती थी बच्चे माता पिता को गुरु भगवान से बढ़कर मानते थे और घर कितना छोटा भी होता दिल सभी के बड़े हुआ करते थे । तब घर में बच्चे भाई ताऊ चाची सब मिलकर रहते थे । घर में रौनक चहल पहल रहती थी मधुर वाणी सुनाई देती थी कोई शोर नहीं होता है धीमी आवाज़ भी सब को सुनाई देती थी । मन साफ थे और रूखी सूखी खा कर भी कोई कमी नहीं महसूस होती थी ।

     अहंकार स्वार्थ जाने किधर से आकर सब के भीतर रहने लगे और भाई भाई अलग होने लगे बच्चे माता पिता से दूर जाने लगे सभी अपनी अपनी दुनिया बसाने लगे । घर बड़े और ऊंचे आसमान को छूने वाले बनते गए सामान बढ़ता गया घर में इंसान को रहने को दो गज़ जगह भी अपनी नहीं मिलती है । कभी जिन माता पिता के घर आंगन में सब बच्चे भाई बहन उनके साथी दोस्त सखी सहेली खेला करते थे उन्हीं माता पिता को बच्चों के घर में आकर समझौता कर वक़्त बिताना पड़ता है । पिता के घर अधिकार से सब रहते थे बच्चों के महल में रहना है तो बड़े बूढ़ों को सलीका सीखना होता है और जीने को सब सहना पड़ता है । आधुनिकता और तथाकथित सभ्यता के विकास ने बाग़ बगीचे छीन गमले की सीमा बना दी थी पेड़ पौधे सब का अपना सभी कुछ बदल गया है छांव तलाश करते हैं तो दरख्तों से आग बरसती लगती है । पत्थर के लोग क्या हुए जो देवी देवता हुआ करते थे सभी बेजान पत्थर के बन गए हैं । लोग इंसान को प्यार नहीं करते पत्थरों की पूजा का आडंबर करते हैं धर्म जिस गरीब की झौंपड़ी में रहा करता था उसे शासन ने हटवा दिया है और जगह जगह अधर्म को स्थपित कर उनको धर्मस्थल घोषित कर दिया है । अब किसी भी ऐसी जगह कोई खुदा कोई भगवान कोई देवी देवता रहता नहीं है उनका भेस धारण कर मुझ कलयुग के अनुयायी मालामाल हो रहे हैं । सब मेरी इबादत पूजा करते हैं और पाप पुण्य का भेद बचा नहीं है । 

                युगों की दास्तान सुनाने में जितना समय लगेगा उतना जीवन बाकी नहीं है किसी के पास भी , सब सांसों की गिनती को जीना समझते हैं सांस सांस की कीमत चुकानी पड़ती है । बीती बातों को जानकर क्या होगा गुज़रा हुआ ज़माना वापस लौटता नहीं कभी । अपने जो खोया है बहुत मूलयवान था जो संजोया है कौड़ी का भी मोल नहीं है अभी आज की बात आज पर ही चर्चा करते हैं । कलयुग आया तो चोरी लूट डकैती अन्याय अत्याचार होने लगा ऐसे में इक चालाक आदमी ने कलयुग को सत्ययुग बनाने की बात की और सत्ता के शिखर पर चढ़ गया । उसने सभी को चोर अपराधी गुनहगार घोषित कर दिया और हर किसी पर पहरा लगाने का उपाय करने लगा । चोरी से बचने को सब को आदेश दिया अपना धन पैसा सोना चांदी हीरे मोती सभी कीमती सामान बैंक  में जमा करवाना है और सभी बैंकों की चाबी खुद अपने पास रख ली हैं । उसने घोषित किया है वही अकेला चौकीदार बनकर देश की रखवाली करेगा । और अपने काम में वह इधर उधर भागता फिरता है इस भरोसे पर कि जब हर खज़ाने की चाबी उसी के घर सुरक्षित हैं तो कोई चोर चोरी कैसे कर सकता है । मगर उसको इस बात का पता नहीं है कि घर घर में कोई महिला पत्नी बनकर घर की रखवाली किया करती है जबकि उसकी पत्नी घर में रह नहीं सकती है । अब ऐसे लोगों के घर यार दोस्त जब मर्ज़ी बिना रोक टोक घुसते रहते हैं घर की कोई मालकिन देखने को दरवाज़ा बंद करने को नहीं है । अब चौकीदार के घर से राज़ के दस्तावेज़ चोरी हो जाते हैं लोग बैंकों का खज़ाना लूट भाग जाते है मगर चाबियां सुरक्षित हैं इसलिए चौकीदार चोरी लूट को मानने से इनकार करता है । चौकीदार अब अपनी बिरादरी कुनबा बढ़ाना चाहता है और दावत देने लगा है आप भी चौकीदार बनने की घोषणा कर दो । हर कोई उनका रुतबा देख मैं भी चौकीदार घोषित कर रहा है । 

              आज की कथा का अंत इसी बात पर करते हैं कि जो देश करोड़ों देवी देवताओं का हुआ करता था क्या उसका भविष्य चौकीदारों का देश शहर बस्ती होना विकास की बात हो सकता है । क्या इस बात पर ताली बजाई जानी चाहिए आप सभी से वही इक दिन सवाल करेगा । चौकीदार होना क्या बुरी बात है क्या चौकीदार इंसान नहीं होते हैं उनको शासक नहीं बनाया जा सकता है । ऐसे में इक छोटे से शहर की अदालत ने जाने क्या समझ कर निर्णय सुनाया है चौकीदार से आठ घंटे से अधिक काम नहीं लिया जा सकता है और उसको छुट्टी भी मिलनी चाहिए । चौकीदार की छुट्टी की बात से कितनों को पसीने आने लगे हैं कोई छुट्टी नहीं चाहता है क्योंकि चौकीदारी ऐसा कर्म है जिस में जागते रहो की आवाज़ लगाने को छोड़ कोई काम नहीं करना होता है और आजकल गली गली चौकीदार की रिकार्डेड आवाज़ गूंजती रहती है और चौकीदार मज़े लूटता रहता है । त्याग की बात हो तो हर कोई ऐसा त्याग करने को व्याकुल है । हींग लगे न फटकरी और रंग भी चौखा इसी को कहते हैं ।

           कलयुग में सच बोलना गुनाह और झूठ बोलना महानता घोषित किया गया है । झूठ सिंघासन पर विराजमान है उसकी महिमा का गुणगान होने लगा है । शासक बनने के बाद झूठ ने अपना रुतबा बढ़ा लिया है अब सेवक चौकीदार नहीं कहलाता मालिक बन गया है । जिनको बुरा बताते थे उनको झूठ अपने दल में शामिल कर अच्छा बताने लगता है । कलयुग को सबसे अच्छा बताया जाने लगा है मुक्ति का मार्ग और मोक्ष पाने की राह कलयुग से बेहतर कोई नहीं है । कलयुग रात को दिन दिन को अंधेरी रात साबित कर सकता है । सुशासन जिसको कहा जा रहा है उस से खराब शासन कभी किसी ने नहीं देखा है । सभी को को कलयुग का स्वागत करना ज़रूरी है ऐसा ऐलान किया गया है । 
 

 

             25        सोमरस से कोरोना का ईलाज ( हास-परिहास )

  जो काम पैसे से नहीं होता सिफारिश से नहीं होता शराब की इक बोतल से झटपट हो जाता है । ये राज़ हर कोई जानता है । आपके घर दामाद जीजा जी आएं उनको छपन्न भोग खुश नहीं कर सकते मगर उनकी पसंद की शराब पिलाओ तो उनकी ख़ुशी आसमान पर होती है । शराब पीने को लोग कितने फासले तय कर लेते हैं ये लॉक डाउन कोरोना उनको क्या रोक सकते हैं । जो पीते पिलाते थे सरकार उनको पीने का अधिकार दे रही है यही स्वर्णिम पल हैं जो कभी कभी मिलते हैं । मोक्ष मिलना आसान है इस युग में घर में बंद शराबी को शराब का वरदान मिलना बड़ी बात है ।  

    देर से ही  सही कोई शोध करने की कोशिश की जा रही है । ये जो बुद्धीजीवी तरह के लोग हैं उनको ताली थाली दिया जलाना फूल बरसाना मज़ाक लग रहा था मगर शराब की दुकानें खोलना कोई बिना सोचे समझे उठाया कदम नहीं है । सब देश अपने ढंग से दवा वैक्सीन बनाते रहें हम जानते हैं शराब सब दुःख दर्द मिटाने को ही कारगर नहीं है उस में अल्कोहल होता है जो हाथ धोने के सेनिटाइज़र में भी काम आता है और जिसको पीना भी खतरनाक नहीं अमेरिका के ट्रम्प के नीम हकीम जैसे नुस्खे की तरह । ये जांच करने को ही शराब के ठेके खोलने का निर्णय लिया गया है और उस को और महंगा करना भी उचित है दवा की तरह काम आने वाली हर चीज़ महंगी होनी लाज़मी है । अगले कुछ महीने में सरकार यही आंकड़े देखती रहेगी कि जैसे शराबी लोग सोचते हैं शराब कीटाणु नाशक है और उनके भीतर से सब जीवाणु कीटाणु का अंत कर देती है । शराबी को शराब को छोड़ कोई और नहीं मार सकता है । निडर होकर शराबखाने की कतार में बारिश धूप हर मौसम में खड़े होने का दम खम और हौसला रखने के बाद कोरोना खुद उनसे अपनी जान बचाने को दूर रहता है या नहीं । और फिर भी कोरोना उनको अपना शिकार नहीं बना सकता पाया जाता है तो हमारी बल्ले बल्ले है । जो अमेरिका इंगलैंड नहीं कर सकता भारत देश बड़ी आसानी से कर सकता है शराब बनाना यहां गांव क्या वीरान जगह रहने वाले तक जानते हैं और मानते हैं उनकी घर की बनाई शराब की बात ही और है ।
शराब पीने से आदमी का हौंसला बढ़ जाता है और चिंता दूर हो जाती है इसलिए भी जब लोग कोरोना से घबराए हुए हैं शराब सहायक बन सकती है ।

     कोरोना पर शराब का असर देखने क ये शोध सफल हुआ तो देश में शराब की नदियां भले नहीं बहाई जा सकती हैं मगर रसोई गैस और पानी की लाईन की तरह सप्लाई करने का काम किया जाना मुमकिन है । घर घर शराब को सोमरस नाम से उपलब्ध करवाया जा सकता है क्योंकि जिनको नहीं मालूम उनको बता देते हैं कि ऐसा न केवल आयुर्वेद में वर्णन है बल्कि 1978 तक या उस के भी कुछ समय बाद आयुर्वेदिक दवा की दुकानों पर ये बिकती रही है और वास्तव में इसका उपयोग दवा की तरह नहीं शराब की तरह किया जाता रहा है । दाम भी कम और जिस दिन ड्राई डे होता ठेके बंद तब भी आसानी से मिल जाती थी । तब मुझे ये बात मेरी क्लिनिक के सामने खुली इक दुकान से पता चली थी । आपने भी किसी जगह शराब की बोतल चढ़ाने की बात सुनी होगी । शराब को शराब की तरह पीना हर किसी को नहीं आता अन्यथा शराब खराब नहीं होती खराबी शराब पीने वाले में होती है जो मदहोश होने को नहीं होश खोने को पीते हैं । शराब का हल्का हल्का सुरूर काफी होता है होश में रहना मदहोशी भी । जब सोमरस का गलत उपयोग किया जाने लगा तब इसको बंद करवा दिया गया था ।

   सबसे अच्छी बात है कि शायद एक धर्म को छोड़कर किसी भी धर्म में मदिरा पान की मनाही नहीं है । जिस धर्म में मना है उन को भी मरने के बाद शराब मिलने की चाहत रहती है क्योंकि उनको यही बताया जाता है । मेरा आशय किसी धर्म की बात पर कुछ भी कहना नहीं है बल्कि जान है तो जहान है ये सोचकर शायद जो हम जैसे नहीं पीते या पीना छोड़ चुके हैं वो भी इसका स्वाद चख सकते हैं । किसी ज़माने में परमिट मिला करते थे ताकि हर कोई निर्धारित सीमा में नशा सेवन कर सके वही व्यवस्था फिर से लागू करनी होगी या ये भी किया जा सकता है कि डॉक्टर की लिखी पर्ची से ही कौन सी और कितनी शराब पीनी है खरीद सकेंगे । डॉक्टर्स की मौज हो जाएगी उनको शराब बनाने वाली कंपनियां मुफ्त सैंपल देकर अपना धंधा बढ़ाने का काम करेंगी । दवा कंपनी वाले अभी भी यदा कड़ा डिनर मीटिंग में शराब परोसती हैं ।  यहां इक समस्या खड़ी हो सकती है क्योंकि आयुर्वेद में सोमरस का वर्णन है इसलिए युर्वेदिक डॉक्टर इस पर अपना अधिकार समझ सकते हैं । मगर वास्तव में ये उपचार संभव है भी या नहीं इस को लेकर कोई आयुर्वेदाचार्य भी विश्वास पूर्वक नहीं कह सकते दावा करना तो बहुत दूर की बात है ।

     ऐसे में ये उपाय आज़माने को किसी चिकत्सक ने नहीं बल्कि जब सभी भविष्यफल बताने वाले कोई भविष्वाणी नहीं कर सके तब किसी लाल किताब वाले ने कोशिश करने को ये गोपनीय संदेश भेजा होगा  कुछ ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है । क्योंकि लाल किताब वालों के जितने भी उपाय होते हैं उनको बिना किसी की जानकारी करना ही सफलता की शर्त होता है । लाल किताब वाले बताया करते हैं कि कोई उपाय किस दिन किस समय और किस ढंग से किया जाना चाहिए । कभी बहते पानी में शराब की उनकी बताई संख्या की बोतलें उंडेलनी होती हैं कभी किस वीरान में ज़मीन में दबानी और कभी जो बहुत दिन से प्यासा हो उसकी प्यास बुझाना भी उपाय होता है । शायद चालीस दिन की प्यास की भी कोई शर्त रही हो सकती है । पता चला है कि लाल किताब वाले उनको जो शराब का सेवन नहीं करते हैं घर की अलमारी में इक बोतल रखने का उपाय बताया करते हैं ।

( ये सच है या अनुमान कोई नहीं जानता । मगर इक चेतावनी आपको अवश्य देनी है कि ये इक काल्पनिक रचना शुद्ध मनोरंजन के लिए है अंधविश्वास को बढ़ावा देने को नहीं , क्योंकि जैसा सुनते हैं बताया जाता है कि अगर किसी के पास सही में कोई लाल किताब होगी तब आपको खुद उसके पास जाकर अपना परिचय देने की ज़रूरत नहीं होगी क्योंकि विश्वास है कि उसको अपनी किताब से पहले से जानकारी होगी किस ने कब क्यों आना है । असली नकली की पहचान इस से भी हो जाएगी कि न तो वो कोई पैसे लेगा और आपको खुद कुछ भी लिख कर देगा बल्कि आपको अपने पेन से अपने हाथ से कागज़ पर लिखवाएगा जो जो भी उपाय करना है । और क्योंकि ऐसा कोई नहीं मिलेगा इसलिए जब कोई आपको लाल किताब होने की बात कहे तो इस को आज़मा कर देख सकते हैं । सोशल मीडिया पर ऐसे नकली लोग मिलते हैं सावधान । )
 
  

                26         सुनो इक सच्ची कहानी ( व्यंग्य ) 

      मेरा नाम झूठ है ये सबसे बड़ा सच है , मुझसे सभी प्यार करते हैं सच कहता हूं सच से मुझे दुश्मनी हैं सभी लोग सच से डरते हैं । मेरा वजूद बहुत पुराना है मुझे याद हर प्यार का तराना है इश्क़ करने वालों से मेरा नाता पुराना है । कहानी मुहब्बत की मेरा फ़साना है हर आशिक़ से माशूक़ का जो भी झूठा बहाना है समझ लो मेरा किस्सा सदियों पुराना है । कभी झूठ बोलने से मौत मिल जाती थी कसम झूठी नहीं कोई खाती थी । फिर युग बदला लोग आधा सच बताने लगे जो कहना नहीं था उसको छिपाने लगे । शायद ये सच है दुमछल्ला लगाने लगे झूठ को इस तरह अपनाने लगे सच से दामन बचाने लगे झूठ से दिल लगाने लगे । आपने भी सुना और स्वीकार कर लिया कि ये दुनिया इक झूठा सपना है यहां कौन किसी का अपना है । जब ये संसार ही सच नहीं है झूठ है तब झूठ के इलावा बचा क्या है । झूठ है दुनिया और हमको जीना है यहीं झूठ को सच मानकर । आज कलयुग का ज़माना है आपके दिल में मेरा ठिकाना है बस यही आपको समझाना है मेरा आपका पक्का याराना है । हर किसी ने मुझे देवता माना है ।

       ज़िंदगी में हर मोड़ पर कोई दोराहा आता है इक कठिन रास्ता सच की तरफ जाता है कोई सड़क नहीं है न कोई पगडंडी है कांटों भरी राह है खतरे ही खतरे हैं । मेरी तरफ आने को राजमार्ग बनाये हैं आसानी से हर मुश्किल से पार जाने को पुल बनवाये हैं झूठ ने सभी को लुभाया है गले से मुझे आपने भी लगाया है कितनी बार सभी ने आज़माया है यही पाया है सच है तपती धूप झूठ शीतल छाया है । नादान थे लोग जो झूठ से बचते थे सच की खातिर जीते थे बार बार मरते थे । सब लोग उनको ज़हर पिलाते थे सूली पर सच बोलने वाले को ही चढ़ाते थे सच का क़त्ल करने वाले मसीहा कहलाते थे । मुझसे कभी लोग नफरत किया करते थे जो भी झूठा हो पापी उसे कहते थे मगर वक़्त आने पर काम उनके झूठ ही आया सच कभी किसी का पेट नहीं भर पाया । झूठ हर समय सभी के काम आया झूठ को अपना जिस किसी ने बनाया खूब खाया सबको खिलाया झूठ की बुनियाद पर घर अपना बनाया बाहर घर के नाम सच लिखवाया । कुछ इस तरह झूठ को सच से महान बनाया । 

      देखो है झूठ का राज जब से आया सच दुनिया में कहीं भी नज़र नहीं आया । झूठ ही तेरा भगवान है बंदे चंगे लगते हैं जो लोग हैं मंदे । गंदे हैं फिर भी अच्छे हैं धंधें ये धर्म ये राजनीति ये सत्ता के हथकंडे । आपको मेरी चाहत का ऐतबार है जानते हैं झूठ ही सच्चा दिलदार है झूठ सभी का अपना है सच तो कोई टूटा हुआ सपना है अब सच का निशान नहीं है सच किसी के घर महमान नहीं है झूठ माई बाप है जिसका कोई एहसान नहीं है । मुझे खोजना है न देखना है न आज़माना है मैं रहता तुम्हारे अंदर मेरा ठिकाना है ये राज़ नहीं है पर फिर भी सबसे छुपाना है । इस युग इस जहां में रहने को झूठ को बचाना है ये रिश्ता अपना सबसे सुहाना है झूठ का अपना इक तराना है हमने मिलकर गाना गुनगुनाना है । सबको ये अब जाकर बताना है इक झूठ का मंदिर हमने बनाना है मिलकर झूठ को सबने मनाना है उस के दर से झोली भर भर के लाना है । झूठ ही आजकल भगवान बन गया है सच अनचाहा वरदान बन गया है सच को कभी अपना नहीं बनाना झूठ से नाता हमेशा निभाना । झूठ की नैया पार लगाएगी सच की दौलत नहीं किसी काम आएगी कोई बैरागन बिरहा का गीत जाएगी सच को खो गया है उसको बुलाएगी शहर गांव से बाहर अकेली भटकती रहेगी सुनसान वीराने में आधी रात को उसकी आवाज़ आएगी ।

      आजकल इंसान में इंसान नहीं मिलते इंसान के भीतर ज़मीर आत्मा भगवान नहीं रहते । बस झूठ सभी के अंदर रहता है जो खुद को सच भी कहता है । पहचान सके तो पहचान लो खुद को झूठे हो मान लो मान लो खुद को । सच कभी मन में रहता था सभी के कहा करते थे झूठ कोई बोले उसको तुम हो झूठे कहीं के । मगर हुई जब झूठ से जान पहचान सभी की मुरादें मिलीं हुई पूरी हर हसरत सभी की । मन से सच को बाहर तब निकाला उसे ज़िंदा रहते ही क़त्ल कर डाला । दफ़्न सच को अपने अंदर कर दिया है होंटों के सच को सिल दिया है सच जाने कहां इक घुटन बन गया है सच पराजित नहीं हुआ शायद मर गया है । उठा कोई जनाज़ा न कोई मज़ार कहीं सच की बनी है करे कौन साबित है क़त्ल हुआ सच कैसे । झूठ है कानून झूठ है दौलत झूठ दुनिया झूठ पैसे झूठ की अदालत ने सुनाया है फैसला नहीं कोई गवाह हो जिसने सच को ज़िंदा भी देखा । कहीं अधमरा शायद रहता था कोई न कोई उसका वारिस न कोई वसीयत भी लावारिस की तरह सच का अंजाम होना था । सच क्या था लगता है मिट्टी का खिलौना था कभी न कभी चूर चूर होना था । सच फुटपाथ पर सोता था लगता है बिस्तर नहीं था न कोई बिछौना था । यही कभी न कभी तो  होना था ।
   

 
 

            27     आत्मनिर्भरता की पढ़ लो पढ़ाई ( हास-परिहास ) 

       शहंशाह का मूड आज बदला बदला है आज खास बैठक में बात आत्मनिर्भर बनाने की है । शुरुआत करते हुए बोले कि कितना अच्छा है जो कभी सोचा नहीं था कोरोना के लॉक डाउन ने करवा दिया है । जो पुरुष घर के काम को आसान समझते थे खुद करना पड़ा तो होश ठिकाने आ गए । जिन महिलाओं ने खुद अपने हाथ से चाय क्या पानी का गलास नहीं उठाया था पकोड़े बनाना उनको आ गया । देश के आत्मनिर्भर बनने की ओर ये पहला कदम है । सभी समझते हैं शादी विवाह ज़रूरी है कोई भी घर और बाहर दोनों जगह एक साथ काम नहीं कर सकता है । पति पत्नी दोनों इक दूजे की ज़रूरत हैं मुहब्बत नहीं मज़बूरी है बस यही गलत है इस आधुनिक युग में कोई किसी पर निर्भर क्यों रहे । मेरे परिवार ने भी मुझे आत्मनिर्भर बनाने की जगह मेरा विवाह रचाया था और मुझे उसी जाल में फंसाया था जिसको परंपरा समझ बनवाया था । मगर जैसे ही मुझे समझ आया था मेरे मन का पंछी पिंजरा छोड़ आया था । रसोई का काम मुझे भी नहीं भाया था मगर मैंने आत्मनिर्भर होने का अपना ढंग अपनाया था । तीस साल तक मैंने कहीं कोई चूल्हा नहीं जलाया था भीख मांग कर खाया था और स्वयं सेवक कहलाया था । मुफ्त का माल खाकर बड़ा मज़ा आया था इस से अच्छा कोई कारोबार नहीं है दुनिया भर को समझाया था । 

     देश की शिक्षा नीति को बदलना ज़रूरी है सभी को सब सीखना करना ज़रूरी है । मेरी बात और है मेरी शिक्षा में पढ़ना लाज़मी नहीं उपदेश करना ज़रूरी है । नवयुवकों को खुद खाना बनाना सीखना होगा उसके बाद गंभीरता से सोचना होगा बंधन में बंधना है या आज़ाद रहना है आप सभी घर परिवार वाले हैं कहो जो भी कहना है । शादी का लड्डू सभी खाते हैं कुछ खाकर कुछ बिना खाये पछताते हैं मैंने भी ये लड्डू खाया था किसी को खिलाया किसी का भोग लगाया था । मगर मुझे उसका स्वाद समझ नहीं आया था दिल में कुछ ज़ुबान पर कुछ करना था कर नहीं पाया था सच सोचकर ही ये बात घबराया था जब उसने जन्म जन्म के बंधन का अर्थ समझाया था । कोई बात थी दिल उकताया था मैं भाग आया था । शादीशुदा ज़िंदगी अनसुलझी कोई पहेली है आपका कोई दोस्त है आपकी कोई सहेली है जिस किसी ने आपको ये राह बताई है मत पूछो किस जन्म की दुश्मनी निभाई है । शादी वो इम्तिहान है जिसमें कोई भी पास नहीं होता है ज़ीरो नंबर मिलने से बढ़कर कोई एहसास नहीं होता । हमने शिक्षा नीति में शादी का विषय शामिल किया है सोलह अध्याय की किताब लिखवाई है लेखक किसी का साला नहीं है जीजा है न बहनोई और न किसी का सगा या सौतेला भाई है । बस इकलौता है और घरजवाई है नहीं कोई ननद न कोई भोजाई है सास ससुर शहद हैं दुल्हन रसमलाई है । सबने झूठी कोई कसम भी खाई है छाछ है कौन कौन मक्खन कौन दूध मलाई है ।

  पहले अध्याय में गहराई है ऊंचाई है शादी की परंपरा कब किसने क्यों बनाई है । जाने किसने बेमेल जोड़ी बनाई है एक बकरा है एक कसाई है बारात है दूल्हा दुल्हन बजती शहनाई है । उलझन है हर किसी ने उलझन उलझाई है हर कोई कहता है तू बड़ा हरजाई है । भला कौन किसको खिलाता है हर कोई अपने नसीब का खाता है विधाता ही दाता है दुनिया भिखारी है कानून कितने हैं समाज के नियम हैं अदालत सरकारी है । ज़रा सी देर में अविवाहित विहाहित बन जाता है उसके बाद कोई रास्ता उधर नहीं जाता है । मुझे बस यही समझ आया है झूठे सभी बंधन झूठी मोह माया है । शादी से परेशान हैं भविष्य से अनजान हैं क्या किया क्यों किया सोचकर हैरान हैं । अलग होने का पूछते रास्ता बताओ अगर ज़रूरत है पास मेरे आओ तलाक की बात छोड़ो बंधन को तोड़ो भाग जाओ भूलकर फिर से नहीं शादी रचाओ जिओ उसको भी जीने दो का रास्ता आज़माओ । आत्मनिर्भरता की पढ़ना पढ़ाई उसके बाद सोचना क्यों करनी शादी क्यों करनी सगाई । मुझे देख लो मैं विवाहित नहीं न ही कुंवारा मुझे चाहिए क्यों किसी का सहारा । मैं ये बाज़ी खेला इस तरह से नहीं जीत पाया मगर नहीं फिर भी हारा । हर कश्ती को मिलता नहीं है किनारा नहीं सबको मांझी ने पार लगाया । ये दरिया है डूबकर पार कर लो मौत को ज़िंदगी मत समझना इसे छोड़ कोई और कारोबार कर लो ।

 सरकार विवाह कानून में बदलाव करने पर विचार कर रही है । लड़के-लड़की की आयु के साथ साथ शादी की पढ़ाई विषय में पचास फीसदी अंक पाने की शर्त अनिवार्य की जा सकती है । सरकारी इश्तिहार टीवी अख़बार में नियमित दे सकते हैं कि गठबंधन करने से पहले सावधान रहना है जांच लें कि दोनों में आत्मनिर्भरता की पढ़ाई की है और शादी के विषय काअध्यन किया है अच्छे अंक मिलने वाले को ही चयन करने का सुझाव और हिदायत जारी की जाएगी । शादी विषय का अध्यन करना सभी के लिए कल्याणकारी है यही ईलाज है ऐसी बिमारी है । शादी कहते हैं खाना-आबादी है मगर कभी बन जाती ये भी बर्बादी है । पढ़नी इस की पूरी तरह से समझकर पढ़ाई है सभी की इसी में भलाई है । 
 
 
 

    28          काला धन से कोरोना तक ( व्यंग्य-कथा ) 

        बात दो राक्षसों की कहानी की है कहानी की शुरुआत कुछ साल पहले हुई । हर तरफ काला धन की चर्चा थी ये कोई दैत्य था जो देवताओं की नगरी में भेस बदल कर निवास करता था । कोई उसकी सही पहचान नहीं बता सकता था मगर देश की जनता को उस नाम के राक्षस का डर दिखला कर राजनीति की पायदान पर कितने लोग चढ़ते रहते थे । ऐसे में उसने आकर काला धन को पकड़ने और उसकी बिरयानी बनाकर हर देशवासी को बांटने की घोषणा कर दी थी । सब के मुंह में पानी आ गया था बात लाखों रूपये बैंक खाते में जमा होने की जो थी । काला धन नाम के राक्षस को मिटाने को उसने बहुत कुछ किया और इस तरह से किया कि लोग बस करो बस करो कहने लगे । मगर उसने ठानी थी काला धन को सफ़ेद बनाने की और अपनी तिजोरी भरने की । खेल खेलता रहा खेलने के नियम अपनी साहूलियत से बदलते रहे लेकिन काला धन किसी को मिला नहीं बस उसने काला धन नाम के दैत्य को अपने बस में कर अपनी कैद में बंद कर लिया और उसका रंग रूप बदल कर खूबसूरत बना लिया ।

         उसको अपने मन की बात अच्छी लगती है मनमानी करता है । खेलना उसको पसंद है और उसकी मर्ज़ी है चाहे जिस से खेले दिल से भावनाओं से या नये नये ढंग से अपने खेल अपने मैदान अपने नियम बना कर । उसके पास शोले फिल्म वाला सिक्का है जिस में दोनों तरफ उसकी जीत तय है जो वो मांगता है दोनों तरफ वही अंकित है अभी तक कोई समझ नहीं पाया हर बार हर जगह उसकी जीत का अर्थ क्या है । अपने काला धन की तिजोरी से उसने विदेश से इक नया खिलौना मंगवा लिया कोरोना नाम का दैत्य की शक़्ल वाला । खबर सभी को पता चली और लोग भयभीत होने लगे इस आधुनिक राक्षस के नाम से । मगर उसने सबको कह दिया मुझे इस को बस में करना आता है चिंता मत करो जीत मेरी पक्की है । खेल शुरू हो गया खिलौना उसके हाथ नहीं आता था बस उसने सोच लिया ये कोरोना नाम का खिलौना क्या है मुझसे कभी कोई किसी खेल में जीता है न जीतने दूंगा किसी को । साम दाम दंड भेद हर नीति अपनाना आता है मगर मामला काला धन जैसा साफ नहीं था कोरोना को होना है नहीं होना है कुछ समझ नहीं आया मगर उसने भी खेल को समझा न सामने वाले खिलाड़ी को हराने का दम भरने लगे ।

  कोरोना हंसता उसकी नासमझी की बातों पर , ताली बजाओ थाली बजाओ अंधेरा करने के बाद टोर्च जलाओ जैसे काम देख उसको लगता मनसिक संतुलन बिगड़ गया है । कोरोना की चाल उसको समझ नहीं आती थी कभी सबको घर में बंद कभी खुद और ख़ास लोगों को सब करने की आज़ादी कभी मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे बंद कभी मंदिर में पूजा पाठ कभी इधर कभी उधर । फिर सब बंद से सब खोलने तक की नादानी की की कसरत और सत्ता का गंदा खेल खेलने की आज़ादी । कोरोना को मनाने की कोशिश करते हुई समझौता वार्ता में उसको दिन भर की छूट देने की बात मगर वो भी ज़िद पर अड़ा रहा कोई बात मंज़ूर नहीं की । सप्ताह में इक दिन की दो दिन की छुट्टी भी कोरोना को स्वीकार नहीं हुई । उसने कितनी बार टीवी पर जनता से बात की और समझाया कि कोरोना को अवसर समझना चाहिए हमको इस से अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक करने को उपयोग करना होगा । बस किसी ढंग से कोरोना अपनी जकड़ पकड़ में आये तो सही फिर उसको दुनिया भर को महंगे ऊंचे दाम पर बेचकर मालामाल होना तय है ।

   देश नहीं बिकने देना की बात कहते कहते देश में जो भी नज़र आया उसको बेच दिया ये उसकी मॉडलिंग का करिश्मा ही है जो चाय से लेकर कुछ भी बेच सकता है । खरीदार मिलना चाहिए हर चीज़ बिकती है नेता क्या अभिनेता क्या अदालत क्या सियासत क्या ईबादत क्या तिजारत क्या कोरोना क्या हिफाज़त क्या । गांधी जी ने सत्य पर शोध किया जनाब ने झूठ पर शोध करने का कीर्तिमान स्थापित किया है । काला धन वाला राक्षस और कोरोना वाला महाराक्षस दोनों की नस्ल झूठ वाली है उनकी असलियत कोई नहीं जान पाया कोई जानना भी नहीं चाहता है ।