बहुत खूब समझे इशारा तुम्हारा ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
बहुत खूब समझे इशारा तुम्हारानहीं अब मिलेगा सहारा तुम्हारा।
गया टूट नाता हमारा तुम्हारा।
हुई भूल हमसे भी कोई तो होगी
नहीं दोष होगा ये सारा तुम्हारा।
भुला कर हमें मत कभी याद करना
तभी हो सकेगा गुज़ारा तुम्हारा।
हमारे सितारे रहें गर्दिशों में
चमकता रहे पर सितारा तुम्हारा।
हमारी नज़र में अभी तक बसा है
था कितना हसीं वो नज़ारा तुम्हारा।
तुम्हें रात सपने में देखा था "तनहा"
वही नाम फिर था पुकारा तुम्हारा।
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