सब से पहले आपकी बारी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
सब से पहले आप की बारीहम न लिखेंगे राग दरबारी।
और ही कुछ है आपका रुतबा
अपनी तो है बेकसों से यारी।
लोगों के इल्ज़ाम हैं झूठे
आंकड़े कहते हैं सरकारी।
फूल सजे हैं गुलदस्तों में
किन्तु उदास चमन की क्यारी।
होते सच , काश आपके दावे
देखतीं सच खुद नज़रें हमारी।
उनको मुबारिक ख्वाबे जन्नत
भाड़ में जाये जनता सारी।
सब को है लाज़िम हक़ जीने का
सुख सुविधा के सब अधिकारी।
माना आज न सुनता कोई
गूंजेगी कल आवाज़ हमारी।
1 टिप्पणी:
Nice one
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