भीगा सा मौसम हो और हम हों ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
भीगा सा मौसम हो और हम होंभूला हुआ हर ग़म हो और हम हों।
फूलों से भर जाये रात रानी
महकी हुई पूनम हो और हम हों।
झूल के झूले में आकाश छू लें
रिमझिम की सरगम हो और हम हों।
भूली बिसरी बातें याद करके
चश्मे वफा पुरनम हो और हम हों।
आकर जाने की सुध बुध भुलायें
थम सा गया आलम हो और हम हों।
आओ चलें हम उन तनहाइयों में
जिन में सुकूं हरदम हो और हम हों।
मिल न सकें तो मौत ही हमको आये
रूहों का संगम हो और हम हों।
1 टिप्पणी:
बहुत प्यारी ग़ज़ल
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