वो जहां ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
देखी है हमने तोबस एक ही दुनिया
हर कोई है स्वार्थी जहां
नहीं है कोई भी
अपना किसी का ।
माँ-बाप भाई-बहन
दोस्त-रिश्तेदार
करते हैं प्रतिदिन
रिश्तों का बस व्यौपार ।
कुछ दे कर कुछ पाना भी है
है यही अब रिश्तों का आधार ।
तुम जाने किस जहां की
करते हो बातें
लगता है मुझे जैसे
देखा है शायद
तुमने कोई स्वप्न
और खो गये हो तुम ।
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