अगस्त 15, 2012

बेचैनी ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

  बेचैनी ( नज़्म )  डॉ  लोक सेतिया 

पढ़ कर रोज़ खबर कोई
मन फिर हो जाता है उदास।

कब अन्याय का होगा अंत
न्याय की होगी पूरी आस।

कब ये थमेंगी गर्म हवाएं
आएगा जाने कब मधुमास।

कब होंगे सब लोग समान
आम हैं कुछ तो कुछ हैं खास।

चुनकर ऊपर भेजा जिन्हें
फिर वो न आए हमारे पास।

सरकारों को बदल देखा
हमको न कोई आई रास।

जिसपर भी विश्वास किया
उसने ही तोड़ा है विश्वास।

बन गए चोरों और ठगों के
सत्ता के गलियारे दास।

कैसी आई ये आज़ादी
जनता काट रही बनवास। 

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