और कुछ भी नहीं बंदगी हमारी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
और कुछ भी नहीं बंदगी हमारीबस सलामत रहे दोस्ती हमारी।
ग़म किसी के सभी हो गए हमारे
और उसकी ख़ुशी अब ख़ुशी हमारी।
अब नहीं मांगना और कुछ खुदा से
झूमने लग गई ज़िंदगी हमारी।
क्या पिलाया हमें आपकी नज़र ने
ख़त्म होती नहीं बेखुदी हमारी।
याद रखनी हमें आज की घड़ी है
जब मुलाक़ात हुई आपकी हमारी।
आपके बिन नहीं एक पल भी रहना
अब यही बन गई बेबसी हमारी।
जाम किसने दिया भर के आज "तनहा"
और भी बढ़ गई तिश्नगी हमारी।