अप्रैल 30, 2022

कितने परेशान सवालात खड़े हैं ( देश के हालात ) डॉ लोक सेतिया

   कितने परेशान सवालात खड़े हैं ( देश के हालात )  डॉ लोक सेतिया 

कहां से शुरूआत की जाए , भगवान जाने उसी को सब खबर होती है मानते हैं। मगर ध्यान आया ऋषि मुनि ईश्वर की खोज करते थे कठिन तपस्या के बाद दर्शन होते थे। इस आधुनिक युग में कोई विधाता दुनिया को बनाने वाले की तलाश कर भी ले तो क्या उनसे जवाब मिल जाएंगे। कोई उनसे कहे कि आपके लिए हमने या सरकार ने अथवा कुछ संस्थाओं संगठनों ने बड़े बड़े आलीशान शानदार महलनुमा घर बनवाए हैं जिन में चल कर आपको रहना होगा और जैसे मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे बनाने वालों ने निर्धारित किए हुए हैं उनका पालन करना होगा अपनी अर्चना ईबादत पूजा भक्ति स्वीकार कर वहां आने वालों को आशीर्वाद देकर उनकी आराधना का फल देना होगा। मुमकिन है ईश्वर को ये सब मंज़ूर नहीं हों और वो इन जगहों पर रहने को राज़ी नहीं हो। कोई भी ताकत भीड़ या सरकारी आदेश भी ईश्वर को विवश नहीं कर सकता उन स्थानों पर निवास करने को जिनका निर्माण सच्चाई ईमानदारी और पवन भावनाओं से नहीं तमाम तरह के स्वार्थ की खातिर मनमाने ढंग से किया गया हो। जिन को धर्म की देश सेवा की बात करनी चाहिए उनका पहला कर्तव्य इंसान की दुःख दर्द की चिंता होनी चाहिए ,  गरीबी भूख असमानता अन्याय को मिटाने पर बात छोड़कर भगवान और धर्म को अपनी मर्ज़ी से परिभाषित कर आदमी को आदमी से टकराव की राह भटकाने वालों पर वास्तविक ईश्वर मेहरबान नहीं हो सकते हैं। ऐसे सभी धार्मिक स्थलों में भगवान ईश्वर अल्लाह वाहेगुरु निवास करते हों धर्मगुरुओं की शिक्षाओं ग्रंथों को पढ़कर लगता नहीं है। हम कैसे लोग हैं जो इतना भी नहीं समझना चाहते कि हम मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे बनवा सकते हैं मगर परमात्मा को पकड़ कर उन जगहों रहने को विवश नहीं कर सकते क्योंकि उनको जिस बंधन जिस कैद में रख सकते हैं वो प्यार मुहब्बत और आपसी सद्भाव भाईचारे से निर्मित इंसानियत का घर हो सकता है। नफरत की अलगाव की बुनियाद पर ताकत अहंकार और दौलत से खड़ी ऊंची दीवारों में विधाता को बंद कर रहने को मज़बूर नहीं किया जा सकता है। 
 
भगवान की बात के बाद समाज की देश राज्य न्याय व्यवस्था की आज़ादी और संविधान की बात करते हैं।राजनेता अधिकारी न्यायपालिका सुरक्षाकर्मी और साहित्य समाज की वास्तविकता की बात लिखने कहने दिखलाने वाले क्या होना चाहिए और क्या होता है इसका अंतर समझना ज़रूरी है कर्तव्य पालन करने को। लेकिन अगर खुद स्वार्थी और मतलब की खातिर झूठ को सच एवं सच को झूठ साबित करते हैं तो देश की बर्बादी के असली गुनहगार वही हैं। उनको खुद अपने लिए जितना चाहिए अधिकार मानते हैं पाने को नियम कानून कायदे कोई बाधा नहीं बन सकते लेकिन सामान्य नागरिक की बुनियादी ज़रूरत पूरी नहीं होने पर नागरिक बेबस हो अधिकार नहीं भीख मांगने की तरह खड़ा हुआ है 75 साल होने को हैं। ये कैसा विधान है जिस से मुट्ठी भर लोगों के पास देश का अधिकांश भाग है राजाओं की तरह रहने को जबकि बाकी तमाम लोग नाम भर को पाकर ज़िंदा हैं मौत से खराब हाल में रहकर। सरकार सरकारी विभाग अधिकारी कुछ धनवान लोगों उद्योगपतियों को मनमानी करने लूटने देते हैं और खुद भी तथा राजनेता भी मौज उड़ाते हैं और देश की जनता को कुछ नहीं मिलता झूठे आश्वासन और भाषण और कागज़ी आंकड़ों के सिवा। उनकी चाहत उनकी मर्ज़ी को पूरा करने को ख़ास वर्ग की कामना चुटकी बजाते हल हो जाती है करोड़ों का बजट उनकी महत्वांकाक्षा के लिए उपलब्ध होता है। उनके शाही अंदाज़ उनके राजसी ठाठ उनके शोहरत के इश्तिहार रोज़ करोड़ों सरकारी कोष से बंदरबांट कर अनावश्यक बोझ जनता को ढोना पड़ता है। मगर उसी आम जनता की शिक्षा स्वास्थ्य सेवा रोज़गार रोटी पीने का साफ़ पानी मुहैया करवाना सरकार को संभव नहीं लगता है क्योंकि राजनेताओं अधिकारी वर्ग न्यायपालिका देश की संस्थाओं संगठनों को इस पर सोचना ज़रूरी नहीं लगता है। 
 
    आजकल बिजली संकट छाया हुआ है ये समस्या हल हो सकती है । सूरज के आसन पर घने अंधेरे बैठे हैं। वास्तविक संकट उस घने अंधकार की है जिस पर अटल बिहारी बाजपेयी जी की कविता उपयुक्त लगती है।  पढ़ना समझना ये संकट गंभीर है।
 

 

अप्रैल 19, 2022

समझाने वालों ने बर्बाद किया ( हक़ीक़त ) डॉ लोक सेतिया

     समझाने वालों ने बर्बाद किया ( हक़ीक़त ) डॉ लोक सेतिया 

 इधर व्हाट्सएप्प फेसबुक पर जैसे कोई आग जल रही है दोस्तों को जानपहचान वालों को प्यार शुभकामनाओं के संदेश औपचरिकता निभाने को भेजने वाले समाज को धर्म या विचारधारा के नाम पर बांटने वाले वीडियो और संदेश बड़ी शिद्दत से भेजते हैं। मुझे कितनी बार समझाना पड़ा है निवेदन किया कृपया मुझे ये किताब मत पढ़ाओ मुझे सिर्फ मुहब्बत का सबक याद रखना है। दोस्त दोस्ती भुला बैठे करीबी लोग रिश्ते नाते सभ्य शिष्टाचार की मर्यादा लांघ कर ऐसे वार्तालाप करने लगे कि बोलचाल बंद है। जाने ये कैसा धर्म कैसी आस्था कैसी अंधभक्ति है जिस ने तमाम लोगों को पागल कर दिया है । मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना वाली कहानी पुरानी है आजकल धर्म मज़हब लोगों को क़त्ल करना दंगे फसाद करने की सीख देने लगे हैं। कभी चालबाज़ अशिक्षित नासमझ लोगों को झूठ को सच बताते थे अब तो पढ़े लिखे लोग भी ऐसे स्वार्थी लोगों की बातों में आकर इस हद तक मूर्ख बन गए हैं कि झूठ की जय जयकार करने लगे हैं। बड़े बड़े पद नाम शोहरत वाले लोग किरदार में ख़लनायक को पीछे छोड़ चुके हैं। देश के रखवाले होने की नकाब पहन नेता देश की संपदा लूट कर खाने लगे हैं चालीस चोर अलीबाबा के दिल को लुभाने लगे हैं।   
 
  इतनी छोटी सी बात समझते समझते ज़िंदगी गुज़र गई कि समझदार कहलाने वाले लोगों ने मुझे उन राहों पर चलने को विवश कर बर्बाद किया जिन पर मुझे चलना पसंद नहीं था। अभी तुम छोटे हो बच्चे हो नासमझ हो जानते नहीं अच्छा बुरा क्या है हम तेरे शुभचिंतक हैं तुझसे बेहतर समझते हैं तुम्हें क्या करना चाहिए और किस तरह कहां कैसे जीना चाहिए।  जीवन के अधिकांश महत्वपूर्ण निर्णय मुझे इसी तरह लेने पड़े हैं क्योंकि मुझे भयभीत किया गया कि अपनी मर्ज़ी से चुनी राह पर चलना सुरक्षित नहीं नतीजे खतरनाक होंगे।  शायद उनकी आशंका उचित रही हो लेकिन खुद अपनी समझ से अपनी पसंद की डगर चलता तो इस बात का पछतावा नहीं होता कि मुझे अनचाही राहों पर चलकर हासिल कुछ भी नहीं हुआ।  और आज वही कहते हैं कि मुझे औरों की समझाई बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए था खुद अपनी मंज़िल चुननी चाहिए थी।  मगर कितनी अजीब बात है कि आज भी मुझे समझाया जाता है कि आपको तजुर्बा नहीं है हम शिक्षक हैं अनुभवी हैं तजुर्बेकार हैं तुम्हें वही करना चाहिए जैसा हम समझते हैं। कोई नहीं सोचता कि जिसकी ज़िंदगी जुड़ी है उसकी अपनी सोच इच्छा सबसे अधिक महत्व रखती है। मुझे जो चाहिए उसको छोड़ कर जो और समझते हैं उस को अपनाना चाहिए।  जबकि खुद ऐसे लोग हमेशा वही करते हैं जो उनको अच्छा लगता है उनको किसी की सलाह ज़रूरी नहीं लगती लेकिन सबको नसीहत देना पसंद है।  हमारी मुश्किल ये भी है कि हम उनसे शिकायत भी नहीं कर सकते कि उन्हीं के भरोसे उनकी बातों को मानकर हम चलते रहे अनचाही राहों पर खुद की मर्ज़ी को छोड़कर और नतीजा हम नहीं पहुंचे कहीं भी। नहीं ये मेरी ज़िंदगी की कहानी नहीं है  उन लोगों की बात है जो धार्मिक आस्था के नाम पर या किसी गुरु की भक्ति किसी व्यक्ति नेता अभिनेता खिलाड़ी के प्रशंसक बनकर अपने विवेक की समझ की तर्क की बात नहीं समझते और नफरत भेदभाव की इंसानियत को शर्मिंदा करने वाली बातें करते हुए खुद को देशभक्त एवं धर्म के झंडाबरदार समझते हैं। सारे जहां से अच्छा गीत लिखने वाले इक़बाल की दो रचनाओं से समस्या और समाधान की राह ढूंढते हैं।

                        1   नई तहज़ीब ( अल्लामा इक़बाल ) 

            उठाकर फेंक दो बाहर गली में , नई तहज़ीब के अण्डे हैं गन्दे ।

         इलेक्शन , मिम्बरी , कौंसिल , सदारत , बनाए खूब आज़ादी के फंदे। 

                  2    फ़लसफ़ा - ओ - मज़हब ( इक़बाल )

 यह आफ़ताब क्या यह सिपहरे बरी है क्या 
 ( ये सूरज ये ऊंचा आकाश क्या है )
समझा नहीं तसलसुले शाम ओ सहर को मैं। 

अपने वतन में होके गरीबुद्दयार हूं 
डरता हूं देख देख के इस दश्त-ओ - दर को मैं। 

खुलता नहीं है मेरे सफरे - ज़िंदगी का राज़ 
लाऊं कहां से बंदा ए साहब नज़र को मैं। 

हैरां हूं बू अली कि मैं आया कहां से हूं 
रूमी यह सोचता है कि जाऊं किधर को मैं। 

जाता हूं थोड़ी दूर हर इक राहे - रौ के साथ 
पहचानता नहीं हूं अभी रहबर को मैं। 

जब कोई भी सोच कोई व्यवस्था कोई औषधि कोई आहार सड़ गाल जाता है तब उसका उपयोग ख़तरनाक जानलेवा साबित हो सकता है। हमारी राजनैतिक धार्मिक संस्थाओं संगठनों की हालत यही हो चुकी है। दुष्यंत कुमार के शब्दों में " अब तो इस तालाब का पानी बदल दो , ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं।
 

      

अप्रैल 15, 2022

मुझसे बिना बात खफ़ा ख़ुदा है ( तिरछी नज़र ) डॉ लोक सेतिया

  मुझसे बिना बात खफ़ा ख़ुदा है ( तिरछी नज़र ) डॉ लोक सेतिया 

    बुलावा आया जाना ज़रूरी था भले उनसे जान-पहचान कभी ठीक से हुई नहीं जानते पहचानते हैं यूं ही चलते फिरते मुलाक़ात होती रहती है। अजीब ढंग से अपने घर आने का अनुरोध किया था ये कह कर कि आपको ऐसी शख़्सियत से मिलवाना है जिनसे आपको सवालात करने हैं और उनको भी आपसे मुलाक़ात करनी है ठीक तरह से समझने को क्योंकि उनकी परेशानी है नहीं समझ सके क्या हैं आप लोक सेतिया । ऐसा कौन हो सकता है उन्होंने राज़ रखा था इस को कहा था ताज्जुब की बात है हैरान होगे देख कर उस का लुत्फ़ कुछ ख़ास होगा। जाने पर मुझे महलनुमा घर के शानदार भाग में ले गए जहां कोई चमकदार लिबास में मनमोहक छवि धारण किए अनुपम दृश्य प्रस्तुत कर ईश्वरीय रूप बनाए ऊंचे सिंहासन पर हाथ उठाए आसीस देने का आभास देता पृष्ठभूमि में सूरज की किरणों से सुसज्जित बैठा हुआ था। अप्रत्याशित घटना थी उनके घर विधाता ईश्वर ख़ुदा भगवान विधाता साक्षात विराजमान थे। बिना बताये पहचान गया था जान गया था वही हैं मिलकर ख़ुशी हुई दुआ सलाम नमस्कार अभिवादन किया और पूछ ही बैठा आपको फुर्सत मिल गई धरती पर आकर अपनी बनाई दुनिया का हाल देखने की। भगवान बोले भूल गए आपने ही घोषणा की थी मेरे सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप्प पर आने की। मुझे अच्छी तरह याद है हुई थी चर्चा लेकिन मुझे लाख बार कोशिश करने पर भी आपका अकॉउंट दिखाई नहीं दिया। भगवान हंसकर बोले मुझे सब पता है लेकिन मैंने डॉ लोक सेतिया आपको ब्लॉक किया हुआ है सब को दिखाई देता हूं बस कुछ लोग आपके जैसे जिनकी बातें मुझे समझ नहीं आतीं उनको ब्लॉक किया हुआ है। दुनिया में तमाम लोग हैं जो मुझे मानते हैं या जो नहीं भी मानते हैं नास्तिक हैं लेकिन आप कुछ लोग मुझे कटघरे में खड़ा कर जाने कैसी कैसी बात कहते हैं। मैंने दुनिया बनाकर सही ढंग से उसका ख़्याल नहीं रखा अपने गुणगान और आरती पूजा अर्चना चढ़ावा मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा गिरिजाघर धार्मिक स्थल की शान-ओ-शौकत के मोहजाल में खोया रहता हूं। मुझे जिनकी बातें समझ नहीं आतीं भले खरी होती हैं कड़वा सच अच्छा नहीं लगता उनको ब्लॉक कर देता हूं बचने पीछा छुड़ाने को , कितने और लोग यही करते हैं आपको ब्लॉक करने का कोई कारण नहीं है आपसे संपर्क नहीं रखना पसंद करते क्योंकि आप उनको पसंद की झूठी बातें नहीं करते हैं। झूठ सिंघासन पर विराजमान है उसकी जय-जयकार नहीं करते तो खामोश रहो यही उचित है , ऊपरवाला बेबस है जब अधिकांश लोग झूठ के देवता के उपासक हैं तब सच को ज़िंदा रखना मुमकिन ही नहीं है। सच जाने कब से लापता है कोई नहीं जानता ज़िंदा भी है या उसकी लाश को दफ़न कर दिया है क़त्ल कर। 
 
  ऊपरवाले ने सच सामने कह दिया है जब मुझे ब्लॉक किया हुआ है तो मेरी उपासना मेरी दुआ मेरी विनती उस तक पहुंचती ही नहीं। लौट आती है मेरी ईबादत मेरी प्रार्थना मेरी विनती ख़ाली उस तक जा ही नहीं पाती मेरी आह मेरी सिसकियां मेरे आंसू। सुबह-शाम जिस जगह मैंने ईबादत पूजा अर्चना की उम्र बीत गई तब पता चला उस जगह कोई ख़ुदा कोई भगवान कोई अल्लाह कभी नहीं था। मेरे मन का संशय और बढ़ गया था समझ नहीं आ रहा था मुझे ब्लॉक किया हुआ है तो फिर मुझसे मुलाक़ात ये सब बातें करने की ज़रूरत क्या है। साहस कर उनसे सवाल कर दिया चलो माना आपकी सभी बातों को लेकिन इस तरह अचंभित कर चुपचाप बुलावा भेज मुलाक़ात करने और वार्तालाप करने का प्रयोजन क्या है। उन्होंने मेरी बात का जवाब इस तरह दिया है। ध्यान से पढ़ना और समझ कर विचार करना समझ आये तो मुझे समझाना अगर संभव हो। अब आपकी इस दुनिया का ख़ुदा भगवान सब मैं ही हूं सोशल मीडिया पर ही नहीं हर घर गांव गांव नगर नगर गली गली बाज़ार सड़क मॉल तक मेरा ही जलवा है। यही इस आधुनिक युग का सत्य है सोशल मीडिया पर हर कोई भगवान समझता है खुद को सब अपनी कहते हैं और अपनी पसंद की बात पढ़ना सुनना चाहते हैं। 
 
  मेरा हाथ पकड़ मेरे सहारे लोग क्या से क्या बन गए हैं। ज़र्रा आफ़ताब बन गया है चौकीदार आली - जनाब बन गया है मुखौटा पहचान हो गया है असली चेहरा नकाब बन गया है। झूठ लाल कालीन जैसा सच जैसे कि इक फंदा है इंसान आदमी नहीं रहा शैतान फ़रिश्ता हर बंदा है। झूठ बिकता है सच बनकर ये सबसे अच्छा धंधा है कहते हैं धंधा धंधा है भले कितना ही गंदा है। राजनीति धर्म खेल टीवी शो से सिनेमा टीवी सीरियल तक सिर्फ धोखा है बेईमानी है नई नहीं वही कहानी है। बिल्ली मौसी शेर की नानी है देश सेवा समाज सेवा है खूब खाने को मिलता मेवा है। नाम है नाम बिकते हैं करोड़ों का ले कर दाम बिकते हैं तुम खरीदो ईनाम बिकते हैं मयकदे बिकते हैं जाम बिकते हैं साकी खुद प्यासे रहते हैं क्या बताएं क्यों अरमान बिकते हैं। मुझ से बोला आधुनिक युग का स्वयं घोषित भगवान मेरी शरण में आ जाओगे जो भी चाहत है सब पाओगे नहीं समझोगे तो हाथ मलते रहोगे वक़्त के बाद पछताओगे। सोशल मीडिया की गंगा बहती है पाप धुलते हैं पुण्य मिलते हैं किनारे से देखते रह जाओगे सोच लो फिर सिर्फ पछताओगे। ऐसा नहीं कि कोई भगवान नहीं है असली नकली की होती पहचान नहीं है। सोशल मीडिया के भगवान से मिलना जाने कैसा लगा समझ नहीं पाया फिर भी उसको काल्पनिक नहीं वास्तविक कहना होगा। वास्तविक भगवान कोई भी हो उसको परेशानी हो सकती है खुद को असली साबित करने में बगैर सोशल मीडिया का उपयोग किये।
 
 
 

अप्रैल 06, 2022

ज़मीं पर फ़रिश्ता थी मां ( श्रद्धासुमन ) डॉ लोक सेतिया


            ज़मीं पर फ़रिश्ता थी मां ( श्रद्धासुमन ) डॉ लोक सेतिया 

दुनिया की नज़र में पत्नी की माता सास होती है मगर मुझे उन्होंने कभी दामाद नहीं समझा हमेशा बेटा ही समझा मेरे लिए बड़ी खुशनसीबी थी मुझे इस तरह कुछ और महिलाओं ने मां भी ममता और स्नेह का आशीर्वाद दिया और मैंने उन सभी में अपनी मां की छवि देखी। मुझे अपनी मां से अधिक प्यारा और सुंदर दुनिया का कोई शख़्स नहीं लगा कभी। 18 साल पहले मुझे जन्म देने वाली मां दुनिया को छोड़ गई लेकिन मेरे मन में उनकी स्मृति हर क्षण बनी रही और जीवन भर रहेगी। मांओं की ममता का क़र्ज़ चुकाया नहीं जा सकता है दुनिया की दौलत देकर भी। मेरी इच्छा है कोई अगला जन्म हो तो अपनी मां और सभी मांओं की मामता की छांव में जीवन बिताने उनकी सेवा करने में व्यतीत हो। 
 
शायद कभी न कभी सभी के जीवन में ऐसा कठिन समय आता है जब हालात इस सीमा तक खराब होते हैं कि आपको अपनी ही ज़मीन जायदाद हक़ ही नहीं करीबी लोगों दोस्तों की ज़रूरत पड़ती है ज़िंदगी की जंग लड़ने के लिए मगर कुछ भी हासिल नहीं होता। दुनिया अजनबी गैर ही नहीं दुश्मन बन जाती है और बिना कारण हर कोई आपसे किनारा ही नहीं करता बल्कि आपको तबाह बर्बाद करने में शामिल हो जाता है। आपकी ज़िंदगी की कश्ती तूफ़ान में मझधार में हिचकोले खाती है और तमाम लोग डूबने का तमाशा देख रहे होते हैं। ऐसे भयानक हालात कुछ महीने या कुछ साल रहते हैं जब आपका बिखर जाना संभव होता है और संभलना बहुत मुश्किल। 
 
रूह कांपती है अभी भी सोचने पर हम कैसे उन हालात से सुरक्षित बाहर निकले। उस समय सिर्फ इक शख़्स था जो हमारे लिए इस ज़मीं पर फ़रिश्ता जैसा था वो थी मां जो 23 मार्च को चली गई दुनिया को छोड़ कर। अब कोई नहीं सर पर आशीर्वाद का हाथ रखने वाला भले हालात बदलते लोग बदल कर दूरियां मिटा साथ चलने लगे। मगर खराब हालात में ढांढस बंधाने और हिम्मत देने वाला फ़रिश्ता फिर कोई नहीं मिलेगा। जिन घनघोर अंधेरों में खुद अपना साया साथ छोड़ जाता है उस में सहारा देने वाले फ़रिश्ते के पास धन दौलत जैसा कुछ भी नहीं था लेकिन उसका साथ और हर तरह से कोशिश कर रास्ता निकालने की चाहत सब कर सकती थी। और उस ने ऐसा सिर्फ हमारे लिए ही नहीं किया बल्कि उनका जीवन हर किसी के लिए हमेशा मुश्किल हालात में साथ देने और निभाने की मिसाल रहा है। न जाने कितने अपनों परायों की मां सभी दिलों में बसती है।