बात दिल में थी जो बता न सके ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
बात दिल में थी जो बता न सकेआपबीती उन्हें सुना न सके।
हमने कोशिश हज़ार की लेकिन
बेकरारी ए दिल छिपा न सके।
बातें करते रहे ज़माने की
बात अपनी जुबां पे ला न सके।
चाह कर भी घटा सी जुल्फों को
उनके चेहरे से हम हटा न सके।
हमने पूछा जो बेरुखी का सबब
वो बहाना कोई बना न सके।
जाने वाले ने देखा मुड़ मुड़ कर
हम मगर उसको रोक पा न सके।
छोड़ कर दोस्त चल दिए "तनहा"
हम भी गैरों के पास जा न सके।
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