अगस्त 19, 2012

बात दिल में थी जो बता न सके ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

बात दिल में थी जो बता न सके ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

बात दिल में थी जो बता न सके
आपबीती उन्हें सुना न सके ।

हमने कोशिश हज़ार की लेकिन
बेकरारी ए दिल छिपा न सके ।

बातें करते रहे ज़माने की
बात अपनी जुबां पे  ला न सके ।

चाह कर भी घटा सी जुल्फों को
उनके चेहरे से हम हटा न सके ।

हमने पूछा जो बेरुखी का सबब
वो बहाना कोई बना न सके ।

जाने वाले ने देखा मुड़ मुड़ कर
हम मगर उसको रोक पा न सके ।   
 
छोड़ कर दोस्त चल दिए "तनहा" 
हम भी गैरों के पास जा न सके ।