भुला दें चलो सब पुरानी खताएं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
भुला दें चलो सब पुरानी खताएंनई अपनी पहचान फिर से बनाएं ।
जो शिकवे गिले हैं निकालें दिलों से
करीब आ के हम हाथ अपने मिलाएं ।
न मुरझाएं चाहे बदल जाए मौसम
हम आँगन में कुछ फूल ऐसे खिलाएं ।
न हम जी सकेंगे न तुम दूर रह कर
तो फिर दूरियां ये न क्यूँ हम मिटाएं ।
हो टूटा हुआ सिलसिला फिर से कायम
हमें तुम बुलाओ तुम्हें हम बुलाएं ।
खताएं हमारी जफ़ाएं तुम्हारी
बहुत हो चुकीं अब चलो मान जाएं ।
ज़मीं आस्मां चाँद तारों के नग्में
फिर इक साथ मिलकर तरन्नुम से गाएं ।
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