अगस्त 25, 2012

कहां कुछ और मांगा है , यही इम्दाद कर दो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

     कहां कुछ और मांगा है , यही इम्दाद कर दो ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ लोक सेतिया "तनहा"

कहां कुछ और मांगा है ,यही इम्दाद कर दो
मिटा दो हर निशां मेरा ,मुझे बर्बाद कर दो।

सुना है आपकी मांगी दुआ सुनता खुदा है
किसी दिन आप मेरे वास्ते फ़रियाद कर दो।

हुआ मुश्किल बड़ा जीना हमारा अब जहां में
हमें अब जिंदगी की कैद से आज़ाद कर दो।

ज़माना बन नहीं जाए कहीं दुश्मन तुम्हारा
मिलेगी हर ख़ुशी तुमको हमें नाशाद कर दो।

ये दुनिया लाख दुश्मन हो हमें कुछ ग़म नहीं है 
हमारा साथ तुम देना उसे नक्काद कर दो।

नहीं देते कसम लेकिन हमें तुमसे है कहना
मिलेंगे रोज़ हम दोनों यहां मीआद कर दो।

सभी अपने यहां पर हैं ,नहीं हैं गैर "तनहा"
कहो अपनी सुनो उनकी अभी इतिहाद कर दो।  

कोई टिप्पणी नहीं: