पुष्प ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
पल दो पल में मुर्झाऊंगाशाख से टूट के क्या पाउँगा।
आज सजा हूँ गुलदस्ते में
कल गलियों में बिखर जाऊंगा।
उतरूंगा जो तेरे जूड़े से
बासी फूल ही कहलाऊंगा।
गूंथा जाऊंगा जब माला में
ज़ख्म हज़ारों ही खाऊंगा।
मेरे खिलने का मौसम है
लेकिन तोड़ लिया जाऊंगा।
चुन के मुझे ले जायेगा माली
डाली को याद बहुत आऊंगा।
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