दर्द दे कर हमें जो सताये कोई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
दर्द दे कर हमें जो सताये कोईहम किधर जाएं फिर ये बताये कोई ।
रूठ कर हम तो बैठे हैं इस आस में
हम को अपना समझ कर मनाये कोई ।
दर खुला हमने रक्खा है इस वास्ते
कोई वादा नहीं फिर भी आये कोई ।
बेख्याली में कब जाने किस मोड़ पर
राह में हाथ हमसे मिलाये कोई ।
याद आये किसी की तो भर आये दिल
इस तरह भी न हम को रुलाये कोई ।
अश्क पलकों पे आ कर छलकने लगें
इस कदर आज हमको हंसाये कोई ।
शाम ढलते ही इस धुन में रहते हैं हम
काश पुरदर्द नग्मा सुनाये कोई ।
1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया ग़ज़ल
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