अगस्त 19, 2012

अपनी सूरत से ही अनजान हैं लोग ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

अपनी सूरत से ही अनजान हैं लोग ( नज़्म ) डॉ  लोक सेतिया 

अपनी सूरत से ही अनजान हैं लोग
आईने से यूँ परेशान हैं लोग ।

बोलने का जो मैं करता हूँ गुनाह
तो सज़ा दे के पशेमान हैं लोग ।

जिन से मिलने की तमन्ना थी उन्हें
उन को ही देख के हैरान हैं लोग ।

अपनी ही जान के वो खुद हैं दुश्मन
मैं जिधर देखूं मेरी जान हैं लोग ।

आदमीयत  को भुलाये बैठे
बदले अपने सभी ईमान हैं लोग ।

शान ओ शौकत है वो उनकी झूठी
बन गए शहर की जो जान हैं लोग ।

मुझको मरने भी नहीं देते हैं
किस कदर मुझ पे दयावान है लोग ।  
 

 

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