अपनी सूरत से ही अनजान हैं लोग ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
अपनी सूरत से ही अनजान हैं लोगआईने से यूँ परेशान हैं लोग।
बोलने का जो मैं करता हूँ गुनाह
तो सज़ा दे के पशेमान हैं लोग।
जिन से मिलने की तमन्ना थी उन्हें
उन को ही देख के हैरान हैं लोग।
अपनी ही जान के वो खुद हैं दुश्मन
मैं जिधर देखूं मेरी जान हैं लोग।
आदमीयत को भुलाये बैठे
बदले अपने सभी ईमान हैं लोग।
शान ओ शौकत है वो उनकी झूठी
बन गए शहर की जो जान हैं लोग।
मुझको मरने भी नहीं देते हैं
किस कदर मुझ पे दयावान है लोग।
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