अगस्त 22, 2012

ये सबने कहा अपना नहीं कोई ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ये सबने कहा अपना नहीं कोई ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ये सबने कहा अपना नहीं कोई
फिर भी कुछ दोस्त बनाए हमने।

फूल उनको समझ कर चले कांटों पर
ज़ख्म ऐसे भी कभी खाए हमने।

यूं तो नग्में थे मुहब्बत के भी
ग़म के नग्मात ही गाए हमने।

रोये हैं वो हाल हमारा सुनकर
जिनसे दुःख दर्द छिपाए  हमने।

ऐसा इक बार नहीं , हुआ सौ बार
खुद ही भेजे ख़त पाए  हमने।

उसने ही रोज़ लगाई ठोकर 
जिस जिस के नाज़ उठाए हमने। 

हम फिर भी रहे जहां में "तनहा"
मेले कई बार लगाए  हमने।  

कोई टिप्पणी नहीं: