अगस्त 30, 2012

हैं उधर सारे लोग भी जा रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हैं उधर सारे लोग भी जा रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हैं उधर सारे लोग भी जा रहे
रास्ता अंधे सब को दिखा रहे ।

सुन रहे बहरे ध्यान से देख लो
गीत सारे गूंगे जब गा रहे ।

सबको है उनपे ही एतबार भी
रात को दिन जो लोग बता रहे ।

लोग भूखे हैं बेबस हैं मगर
दांव सत्ता वाले हैं चला रहे ।

घर बनाने के वादे कर रहे
झोपड़ी उनकी भी हैं हटा रहे ।

हक़ दिलाने की बात को भूलकर
लाठियां हम पर आज चला रहे ।

बेवफाई की खुद जो मिसाल हैं
हम को हैं वो "तनहा" समझा रहे ।
 

  

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