हैं उधर सारे लोग भी जा रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हैं उधर सारे लोग भी जा रहेरास्ता अंधे सब को दिखा रहे ।
सुन रहे बहरे ध्यान से देख लो
गीत सारे गूंगे जब गा रहे ।
सबको है उनपे ही एतबार भी
रात को दिन जो लोग बता रहे ।
लोग भूखे हैं बेबस हैं मगर
दांव सत्ता वाले हैं चला रहे ।
घर बनाने के वादे कर रहे
झोपड़ी उनकी भी हैं हटा रहे ।
हक़ दिलाने की बात को भूलकर
लाठियां हम पर आज चला रहे ।
बेवफाई की खुद जो मिसाल हैं
हम को हैं वो "तनहा" समझा रहे ।
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