हमको जीने की दुआ देने लगे (ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हमको जीने की दुआ देने लगेआप ये कैसी सज़ा देने लगे ।
दर्द दुनिया को दिखाये थे कभी
दर्द बढ़ने की दवा देने लगे ।
लोग आये थे बुझाने को मगर
आग को फिर हैं हवा देने लगे ।
अब नहीं उनसे रहा कोई गिला
अब सितम उनके मज़ा देने लगे ।
साथ रहते थे मगर देखा नहीं
दूर से अब हैं सदा देने लगे ।
प्यार का कोई सबक आता नहीं
बेवफा को हैं वफ़ा देने लगे ।
कल तलक मुझ से सभी अनजान थे
अब मुझे मेरा पता देने लगे ।
मांगता था मौत "तनहा" रात दिन
जब लगा जीने , कज़ा देने लगे ।
1 टिप्पणी:
बहुत खूब👍
एक टिप्पणी भेजें