ग़म से इतनी मुहब्बत नहीं करते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
ग़म से इतनी मुहब्बत नहीं करतेखुद से ऐसे अदावत नहीं करते ।
ज़ुल्म की इन्तिहा हो गई लेकिन
लोग फिर भी बगावत नहीं करते ।
इस कदर भा गया है कफस हमको
अब रिहाई की हसरत नहीं करते ।
हम भरोसा करें किस तरह उन पर
जो किसी से भी उल्फत नहीं करते ।
आप हंस हंस के गैरों से मिलते हैं
हम कभी ये शिकायत नहीं करते ।
पांव जिनके ज़मीं पर हैं मत समझो
चाँद छूने की चाहत नहीं करते ।
तुम खुदा हो तुम्हारी खुदाई है
हम तुम्हारी इबादत नहीं करते ।
पास कुछ भी नहीं अब बचा "तनहा"
लोग ऐसी वसीयत नहीं करते ।
1 टिप्पणी:
ज़ुल्म की....बगावत नही करते👍👍
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