लोग कितना मचाये हुए शोर हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
लोग कितना मचाये हुए शोर हैंएक बस हम खरे और सब चोर हैं।
साथ दुनिया के चलते नहीं आप क्यों
लोग सब उस तरफ , आप इस ओर हैं।
चल रही है हवा , उड़ रही ज़ुल्फ़ है
लो घटा छा गई , नाचते मोर हैं।
हाथ जोड़े हुए मांगते वोट थे
मिल गई कुर्सियां और मुंहजोर हैं।
क्या हुआ है नहीं कुछ बताते हमें
नम हुए किसलिए आंख के कोर हैं।
सब ये इलज़ाम हम पर लगाने लगे
दिल चुराया किसी का है , चितचोर हैं।
टूट जाये अगर फिर न "तनहा" जुड़े
यूं नहीं खींचते , प्यार की डोर हैं।