अगस्त 24, 2012

हादिसे इसलिए हैं होने लगे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हादिसे इसलिए हैं होने लगे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हादिसे इसलिये हैं होने लगे
कश्तियां नाखुदा डुबोने लगे।

ज़ख्म खा कर भी हम रहे चुप मगर
ज़ख्म दे कर हैं आप रोने लगे।

कल अभी  आपने  जगाया जिन्हें
देख लो आज फिर से सोने लगे।

आप मरने की मांगते हो दुआ
खुद पे क्यों  एतबार खोने लगे।

काम अच्छे नहीं कभी भी किये  
बस  नहा कर हैं पाप धोने लगे।

लोग खुशियां तलाश करते रहे 
दर्द का बोझ और ढोने लगे।

फूल देने की बात करते रहे 
खार "तनहा" सभी चुभोने लगे।

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