हादिसे इसलिए हैं होने लगे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हादिसे इसलिये हैं होने लगेकश्तियां नाखुदा डुबोने लगे ।
ज़ख्म खा कर भी हम रहे चुप मगर
ज़ख्म दे कर हैं आप रोने लगे ।
कल अभी आपने जगाया जिन्हें
देख लो आज फिर से सोने लगे ।
आप मरने की मांगते हो दुआ
खुद पे क्यों एतबार खोने लगे ।
काम अच्छे नहीं कभी भी किये
बस नहा कर हैं पाप धोने लगे ।
लोग खुशियां तलाश करते रहे
दर्द का बोझ और ढोने लगे ।
फूल देने की बात करते रहे
खार "तनहा" सभी चुभोने लगे ।
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