सिसकियां ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
वो सुनता हैहमेशा
सभी की फ़रियाद
नहीं लौटा कभी कोई
दर से उसके खाली हाथ ।
शोर बहुत था
उसकी बंदगी करने वालों का वहां
तभी शायद
सुन पाया नहीं
आज ख़ुदा भी वहां
मेरी सिसकियों की आवाज़ ।
मेरे ब्लॉग पर मेरी ग़ज़ल कविताएं नज़्म पंजीकरण आधीन कॉपी राइट मेरे नाम सुरक्षित हैं बिना अनुमति उपयोग करना अनुचित व अपराध होगा। मैं डॉ लोक सेतिया लिखना मेरे लिए ईबादत की तरह है। ग़ज़ल मेरी चाहत है कविता नज़्म मेरे एहसास हैं। कहानियां ज़िंदगी का फ़लसफ़ा हैं। व्यंग्य रचनाएं सामाजिक सरोकार की ज़रूरत है। मेरे आलेख मेरे विचार मेरी पहचान हैं। साहित्य की सभी विधाएं मुझे पूर्ण करती हैं किसी भी एक विधा से मेरा परिचय पूरा नहीं हो सकता है। व्यंग्य और ग़ज़ल दोनों मेरा हिस्सा हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें